"रात नहीं कटती थी रात में -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
 
रात नहीं कटती थी रात में, अब दिन में भी कटी नहीं
 
रात नहीं कटती थी रात में, अब दिन में भी कटी नहीं
 
ऐसी परत जमी चेहरों पर, कोहरे की फिर हटी नहीं
 
ऐसी परत जमी चेहरों पर, कोहरे की फिर हटी नहीं
 
बी पॉज़िटिव-बी पॉज़िटिव, कह कह कर जी ऊब गया
 
इतना जीया सन्नाटे को, सन्नाटा भी रूठ गया
 
  
 
मस्त ज़िन्दगी जी लो यारो, इसमें कोई हर्ज़ नहीं
 
मस्त ज़िन्दगी जी लो यारो, इसमें कोई हर्ज़ नहीं
पंक्ति 27: पंक्ति 24:
 
उसे भुला दूँ जिसमें बसा था,  पूरा ये संसार मिरा
 
उसे भुला दूँ जिसमें बसा था,  पूरा ये संसार मिरा
 
शक़ की बिनाह पर मुझको छोड़ा, कोई बहस तक़रीर नहीं
 
शक़ की बिनाह पर मुझको छोड़ा, कोई बहस तक़रीर नहीं
 
दिन जैसे जंगल बातों का, सांय-सांय करता रहता
 
किसी तिलस्मी खोज में जैसे, अय्यारी करता फिरता
 
  
 
इसने टोका उसने पूछा, क्यों किस्मत क्या खुली नहीं ?
 
इसने टोका उसने पूछा, क्यों किस्मत क्या खुली नहीं ?

11:33, 21 अप्रैल 2014 का अवतरण

Copyright.png
रात नहीं कटती थी रात में -आदित्य चौधरी

रात नहीं कटती थी रात में, अब दिन में भी कटी नहीं
ऐसी परत जमी चेहरों पर, कोहरे की फिर हटी नहीं

मस्त ज़िन्दगी जी लो यारो, इसमें कोई हर्ज़ नहीं
संजीदा रिश्ते को तलाशो, तो दिन रातों चैन नहीं

दूर हैं हम जो तुमसे इतने, ये अपनी तक़्दीर नहीं
इल्म नहीं है हमको जिसका, साज़िश है तदबीर नहीं

वक़्त निगेहबाँ होता जब, ख़ाबों में रंग होते हैं
एक ख़ाब मैंने भी देखा, जिसकी कहीं ताबीर नहीं

उसे भुला दूँ जिसमें बसा था, पूरा ये संसार मिरा
शक़ की बिनाह पर मुझको छोड़ा, कोई बहस तक़रीर नहीं

इसने टोका उसने पूछा, क्यों किस्मत क्या खुली नहीं ?
रात नहीं कटती थी रात में, अब दिन में भी कटी नहीं