"हर शाख़ पे बैठे उल्लू से -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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− | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>हर | + | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>हर शाख़ पे बैठे उल्लू से<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div> |
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<poem style="color=#003333"> | <poem style="color=#003333"> | ||
− | हर | + | हर शाख़ पे बैठे उल्लू से, |
कोई प्यार से जाके ये पूछे | कोई प्यार से जाके ये पूछे | ||
है क्या अपराध गुलिस्तां का ? | है क्या अपराध गुलिस्तां का ? | ||
− | जो | + | जो शाख़ पे आके तुम बैठे ! |
कितने सपने कितने अरमां | कितने सपने कितने अरमां | ||
पंक्ति 25: | पंक्ति 25: | ||
हम चप्पल जूते घिसते हैं | हम चप्पल जूते घिसते हैं | ||
− | ना | + | ना शाख़ कभी ये सूखेंगी |
ना पेड़ कभी ये कटना है | ना पेड़ कभी ये कटना है | ||
− | जब भी कोई | + | जब भी कोई शाख़ नई होगी |
उल्लू ही उसमें बसना है | उल्लू ही उसमें बसना है | ||
पंक्ति 36: | पंक्ति 36: | ||
तब नई कोंपलें फूटेंगी | तब नई कोंपलें फूटेंगी | ||
− | और नई | + | और नई शाख़ उग आएगी |
फिर नये गीत ही गूँजेंगे | फिर नये गीत ही गूँजेंगे | ||
और नई ज़िन्दगी गाएगी | और नई ज़िन्दगी गाएगी |
11:32, 5 जुलाई 2014 का अवतरण
हर शाख़ पे बैठे उल्लू से -आदित्य चौधरी
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टीका टिप्पणी और संदर्भ