"ये तेरा घर ये मेरा घर -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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“पल्लोऽऽऽ ओ पल्लोऽऽऽ देख तो सई... घन्टोली हलवाई के यहाँ ते इमरती आईं कि नईं… ? न आई हों तो सामने खड़ी होके बनवईयो, मरा ढड़ेल घी में ही न बना दे कहीं…कम ते कम तेरे बाबा के सराद में तो ताजे घी की बनाबै… और सुन वो सिकंदर रंगरेज को बुला लइयो” | “पल्लोऽऽऽ ओ पल्लोऽऽऽ देख तो सई... घन्टोली हलवाई के यहाँ ते इमरती आईं कि नईं… ? न आई हों तो सामने खड़ी होके बनवईयो, मरा ढड़ेल घी में ही न बना दे कहीं…कम ते कम तेरे बाबा के सराद में तो ताजे घी की बनाबै… और सुन वो सिकंदर रंगरेज को बुला लइयो” | ||
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ये जो सारे दृश्य आप देख रहे हैं ये भारतीय समाज के संयुक्त परिवार या कहें कि 'जौइंट फ़ैमिली' का माहौल है। कहाँ गए ये संयुक्त परिवार… और क्यों गए? आइए नये-पुराने ज़माने की ज़िन्दगी पर चर्चा करते हैं। | ये जो सारे दृश्य आप देख रहे हैं ये भारतीय समाज के संयुक्त परिवार या कहें कि 'जौइंट फ़ैमिली' का माहौल है। कहाँ गए ये संयुक्त परिवार… और क्यों गए? आइए नये-पुराने ज़माने की ज़िन्दगी पर चर्चा करते हैं। | ||
दुनिया में जिन खोजों का विशेष महत्व है उनमें पहिया, शून्य, दशमलव, π (पाई), पुस्तक छपाई, गुरुत्वाकर्षण, बैटरी, मोटर, डायनमो आदि हैं। इनमें डायनमो ने जो प्रभाव डाला है वो तो ग़ज़ब है। बिजली का बनने और आम जन के लिए सुलभ हो जाने से जैसे दुनिया ही बदल गई। कह सकते हैं कि दुनिया दो हैं, एक बिजली से पहले की दुनिया और दूसरी बिजली के बाद की दुनिया। | दुनिया में जिन खोजों का विशेष महत्व है उनमें पहिया, शून्य, दशमलव, π (पाई), पुस्तक छपाई, गुरुत्वाकर्षण, बैटरी, मोटर, डायनमो आदि हैं। इनमें डायनमो ने जो प्रभाव डाला है वो तो ग़ज़ब है। बिजली का बनने और आम जन के लिए सुलभ हो जाने से जैसे दुनिया ही बदल गई। कह सकते हैं कि दुनिया दो हैं, एक बिजली से पहले की दुनिया और दूसरी बिजली के बाद की दुनिया। |
12:56, 5 अक्टूबर 2015 का अवतरण
![]() ये तेरा घर ये मेरा घर -आदित्य चौधरी यह लेख, भारतकोश के लिए लिखे मेरे संपादकीय ‘ज़माना' का अगला भाग भी माना जा सकता है…
“अरे ज़रा मालूम तो कर राजेन्दर की भऊ मंदिर से लौटी… कि पुजारी के संग भाग गई…?”
“तू दिलीप कुमार की राम और श्याम देख आई… ? हाय मरी कितनी चंट है… किसोर की भऊ को भी ले जाती वो भी तो दिलीप कुमार पै मरै…”
“मेरे तो बाप की बस की नईं है ये अट्ठाइस लोगों का आटा माढ़ना… जा! जाके नैक जगदीस चाचा को बुला ला वो मदद कर देगा… जइयो बेटा… जरा दौड़ के…”
“झूला ताईऽऽऽ ! ओ झूला ताईऽऽऽ, महादेव ऊपर है क्या ? नैक नीचे तो भेजोऽऽऽ देखो जे नादिया बाबा आ गए… दो पस चून डाल दे…”
“छोटी चाचीऽऽऽ ! टाँड़ से हाँडी उतारवा के बरोसी के पास रखने की कह रई है अम्मा। छींके से टमाटर भी निकाल लेना हैंऽऽऽ और तिखाल में एक लालटेन भी जलवा दोऽऽऽ!”
“अजी माताजीऽऽऽ! माताजीऽऽऽ! लंहगा तो रंग लायौ पर जे दिल्ली बारी टैरालीन की धोबती पै रंग ई नाय चढ़ि रौ… कहा करुँ?”
“पल्लोऽऽऽ ओ पल्लोऽऽऽ देख तो सई... घन्टोली हलवाई के यहाँ ते इमरती आईं कि नईं… ? न आई हों तो सामने खड़ी होके बनवईयो, मरा ढड़ेल घी में ही न बना दे कहीं…कम ते कम तेरे बाबा के सराद में तो ताजे घी की बनाबै… और सुन वो सिकंदर रंगरेज को बुला लइयो” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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