"एक महान डाकू की शोक सभा -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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हर एक जीव स्वभाव से कायर ही होता है चाहे वह जानवर हो या इंसान। बहादुर तो हमें समाज और संस्कृति बनाते है। जिसे हम बहादुरी या निडरता कहते हैं उसके मुख्य कारण दो ही होते हैं एक तो उस भय के प्रति पूरी अज्ञानता जैसे बच्चा सांप से नहीं डरता और दूसरा कारण है, अपने भय को छुपा जाना अर्थात यह ज़ाहिर न होने देना कि हम भयभीत हैं। जिन्हें हम साहसी और बहादुर मानते हैं। उन्होंने अपने भय को कभी किसी के सामने ज़ाहिर नहीं होने दिया, बस यही है बहादुरी। | हर एक जीव स्वभाव से कायर ही होता है चाहे वह जानवर हो या इंसान। बहादुर तो हमें समाज और संस्कृति बनाते है। जिसे हम बहादुरी या निडरता कहते हैं उसके मुख्य कारण दो ही होते हैं एक तो उस भय के प्रति पूरी अज्ञानता जैसे बच्चा सांप से नहीं डरता और दूसरा कारण है, अपने भय को छुपा जाना अर्थात यह ज़ाहिर न होने देना कि हम भयभीत हैं। जिन्हें हम साहसी और बहादुर मानते हैं। उन्होंने अपने भय को कभी किसी के सामने ज़ाहिर नहीं होने दिया, बस यही है बहादुरी। | ||
जिस तरह हर एक साहस वीरता नहीं होता उसी तरह हर एक पलायन कायरता नहीं होता। इसीलिए बहादुरी और मूर्खता के बीच बहुत महीन सीमा रेखा होती है और यही महीन रेखा कायरता और बुद्धिमानी के बीच भी होती है। ग़लत निर्णय से आपकी बहादुरी मूर्खता में गिनी जा सकती है और समझदारी से किया गया पलायन भी बुद्धिमानी में शामिल हो जाता है। हमारा यही स्वभाव और इच्छाएँ हमें डाकू-फ़ॅन बना देती हैं। हमारे मित्र जानवरों में कुत्ता, घोड़ा, गाय आदि गिने जाते हैं लेकिन हर-कोई बनना 'शेर' ही चाहता है। घोड़ा या गाय बनने की कोई नहीं सोचता और कुत्ता बनने का तो सवाल ही नहीं है। हम ख़ुद को बहादुर और साहसी देखना और दिखाना चाहते हैं और इस और बहादुरी का जो जो ग्लॅमर शेर के पास है, वह दूसरों के पास कहाँ ? इसलिए डाकुओं को भी चम्बल का शेर कहा जाता है। | जिस तरह हर एक साहस वीरता नहीं होता उसी तरह हर एक पलायन कायरता नहीं होता। इसीलिए बहादुरी और मूर्खता के बीच बहुत महीन सीमा रेखा होती है और यही महीन रेखा कायरता और बुद्धिमानी के बीच भी होती है। ग़लत निर्णय से आपकी बहादुरी मूर्खता में गिनी जा सकती है और समझदारी से किया गया पलायन भी बुद्धिमानी में शामिल हो जाता है। हमारा यही स्वभाव और इच्छाएँ हमें डाकू-फ़ॅन बना देती हैं। हमारे मित्र जानवरों में कुत्ता, घोड़ा, गाय आदि गिने जाते हैं लेकिन हर-कोई बनना 'शेर' ही चाहता है। घोड़ा या गाय बनने की कोई नहीं सोचता और कुत्ता बनने का तो सवाल ही नहीं है। हम ख़ुद को बहादुर और साहसी देखना और दिखाना चाहते हैं और इस और बहादुरी का जो जो ग्लॅमर शेर के पास है, वह दूसरों के पास कहाँ ? इसलिए डाकुओं को भी चम्बल का शेर कहा जाता है। | ||
− | यदि हम जल-दस्युओं के बारे में जानकरी करने के लिए गहरे में उतरें तो एक ज़बर्दस्त इतिहास और किंवदंतियों से भरी | + | यदि हम जल-दस्युओं के बारे में जानकरी करने के लिए गहरे में उतरें तो एक ज़बर्दस्त इतिहास और किंवदंतियों से भरी दुनिया हमें मिलती है। इनकी लोकप्रियता का अन्दाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि कॅप्टेन जॅक स्पॅरो के किरदार में 'जॉनी डेप' अभिनीत 'पाइराइट्स ऑफ़ कॅरेबियन' करोड़ों डॉलर का व्यापार कर रही है और इसके सीक्वल, ट्रायोलॉजी और क्वाड्रियोलॉजी बनते जा रहे हैं। इन समुद्री डाकुओं ने तो एक बहुत प्रभावी संस्कृति का प्रतिनिधित्व भी किया है। |
− | डाकुओं, दस्युओं या लुटेरों से प्रभावित होने का कारण है हमारा उनकी | + | डाकुओं, दस्युओं या लुटेरों से प्रभावित होने का कारण है हमारा उनकी दुनिया से अनभिज्ञ होना। इनका जीवन, जिससे कि लोग चमत्कृत हो जाते हैं, वास्तव में नारकीय जीवन होता है। समाज से कटे होने का दर्द इनके हृदय को हर समय कचोटता रहता है। आत्म समर्पण के बाद कुछ दिन ये लोग शो-पीस बने इधर-उधर घूमते रहते हैं फिर कोई घास नहीं डालता। सब की क़िस्मत फूलन जैसी नहीं होती कि सांसद बन जाय। |
इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... |
10:12, 8 जुलाई 2012 का अवतरण
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टीका टिप्पणी और संदर्भ