"भार्या पुरुषोत्तम -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो ("भार्या पुरषोत्तम -आदित्य चौधरी" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (अनिश्चित्त अवधि) [move=sysop] (अनिश्चित्त अवधि)))
छो (Text replacement - " मां " to " माँ ")
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 8 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{| width="100%" style="background:transparent;"
+
{| width="100%" style="background:#fbf8df; border:thin groove #003333; border-radius:5px; padding:8px;"
|- valign="top"
 
| style="width:85%"|
 
{| width="100%" class="headbg37" style="border:thin groove #003333; border-radius:5px; padding:10px;"
 
 
|-
 
|-
 
|  
 
|  
[[चित्र:Bharatkosh-copyright-2.jpg|50px|right|link=|]]  
+
<noinclude>[[चित्र:Copyright.png|50px|right|link=|]]</noinclude>
<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>भार्या पुरषोत्तम<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
+
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>भार्या पुरुषोत्तम<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
----
 
----
<font color=#003333 size=4>
+
{| width="100%" style="background:transparent"
<poem>
+
|-valign="top"
 +
| style="width:35%"|
 +
| style="width:35%"|
 +
<poem style="color=#003333">
 
हे कृष्ण !
 
हे कृष्ण !
 
उत्तरा के गर्भ में
 
उत्तरा के गर्भ में
पंक्ति 28: पंक्ति 28:
 
इन बेटियों को बचाने भी
 
इन बेटियों को बचाने भी
 
तो कभी आते
 
तो कभी आते
इन कंसों का भी संहार कर जाते
+
इन कंसों का संहार भी कर जाते
  
 
हे राम !
 
हे राम !
पंक्ति 48: पंक्ति 48:
 
ऐसे में तुम भी तो साथ निभाते
 
ऐसे में तुम भी तो साथ निभाते
 
तभी तो 
 
तभी तो 
'भार्या पुरषोत्तम' भी बन जाते
+
'भार्या पुरुषोत्तम' भी बन जाते
  
 
हे बुद्ध !
 
हे बुद्ध !
 
छोड़ा यशोधरा-राहुल को
 
छोड़ा यशोधरा-राहुल को
संन्यास लिया 
+
सन्न्यास लिया 
 
नया पाठ सिखलाया दुनिया को
 
नया पाठ सिखलाया दुनिया को
 
क्योंकि वो 'धर्म' है
 
क्योंकि वो 'धर्म' है
पंक्ति 67: पंक्ति 67:
  
 
पहले गृहस्थ को निभाते
 
पहले गृहस्थ को निभाते
तो प्रवज्या को
+
तो तुम्हारी प्रवज्या को
राहुल और उसकी मां भी समझ पाते
+
राहुल और उसकी माँ भी समझ पाते
 
</poem>
 
</poem>
</font>
+
| style="width:30%"|
 
|}
 
|}
| style="width:15%"|
 
<noinclude>{{सम्पादकीय}}</noinclude>
 
 
|}
 
|}
 +
 +
<br />
  
 
<noinclude>
 
<noinclude>

14:06, 2 जून 2017 के समय का अवतरण

Copyright.png
भार्या पुरुषोत्तम -आदित्य चौधरी

हे कृष्ण !
उत्तरा के गर्भ में
बनकर गदाधारी
रक्षा की परीक्षित की, ब्रह्मास्त्र से
क्योंकि वो वंश है

और बेटी ?
बेटी क्या शाप है, दंश है ?
बेटी भी तो, पुत्र की तरह ही
तुम्हारा ही अंश है

न जाने कितनी बेटियाँ
मारी गईं, गर्भ में
और तुम्हारा भी मौन है 
इस संदर्भ में

इन बेटियों को बचाने भी
तो कभी आते
इन कंसों का संहार भी कर जाते

हे राम !
पिता के वचन के लिए
छोड़ दी राजगद्दी
सीता को साथ ले, बने वनवासी
क्योंकि वो मर्यादा है

और सीता ?
सीता क्या दासी है, धरमादा है ?
तुम्हारा जो कुछ भी है
उसमें सीता का भी तो आधा है

कैसे गई सीता 
तुम्हारे बिना दोबारा वन को 
क्यों नहीं छोड़ा
तुमने राजभवन को 

ऐसे में तुम भी तो साथ निभाते
तभी तो 
'भार्या पुरुषोत्तम' भी बन जाते

हे बुद्ध !
छोड़ा यशोधरा-राहुल को
सन्न्यास लिया 
नया पाठ सिखलाया दुनिया को
क्योंकि वो 'धर्म' है

और यशोधरा ?
यशोधरा क्या वस्तु है, मात्र वैवाहिक कर्म है ?
उसे, सोते छोड़ जाना
भी तो अधर्म है

यदि तुम्हारे पिता ने
तुमको इस तरह छोड़ा होता
तो फिर, बुद्ध क्या
सिद्धार्थ भी नहीं होता

पहले गृहस्थ को निभाते
तो तुम्हारी प्रवज्या को
राहुल और उसकी माँ भी समझ पाते