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भार्या पुरुषोत्तम -आदित्य चौधरी

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भार्या पुरुषोत्तम
-आदित्य चौधरी

<poem style="color=#003333"> हे कृष्ण ! उत्तरा के गर्भ में बनकर गदाधारी रक्षा की परीक्षित की, ब्रह्मास्त्र से क्योंकि वो वंश है

और बेटी ? बेटी क्या शाप है, दंश है ? बेटी भी तो, पुत्र की तरह ही तुम्हारा ही अंश है

न जाने कितनी बेटियाँ मारी गईं, गर्भ में और तुम्हारा भी मौन है  इस संदर्भ में

इन बेटियों को बचाने भी तो कभी आते इन कंसों का संहार भी कर जाते

हे राम ! पिता के वचन के लिए छोड़ दी राजगद्दी सीता को साथ ले, बने वनवासी क्योंकि वो मर्यादा है

और सीता ? सीता क्या दासी है, धरमादा है ? तुम्हारा जो कुछ भी है उसमें सीता का भी तो आधा है

कैसे गई सीता  तुम्हारे बिना दोबारा वन को  क्यों नहीं छोड़ा तुमने राजभवन को 

ऐसे में तुम भी तो साथ निभाते तभी तो  'भार्या पुरुषोत्तम' भी बन जाते

हे बुद्ध ! छोड़ा यशोधरा-राहुल को संन्यास लिया  नया पाठ सिखलाया दुनिया को क्योंकि वो 'धर्म' है

और यशोधरा ? यशोधरा क्या वस्तु है, मात्र वैवाहिक कर्म है ? उसे, सोते छोड़ जाना भी तो अधर्म है

यदि तुम्हारे पिता ने तुमको इस तरह छोड़ा होता तो फिर, बुद्ध क्या सिद्धार्थ भी नहीं होता

पहले गृहस्थ को निभाते तो तुम्हारी प्रवज्या को राहुल और उसकी मां भी समझ पाते