"हरदम याद आती है -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर

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कई जन्मों के बंधन से वो हरदम याद आती है  
 
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13:23, 20 मार्च 2015 का अवतरण

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हरदम याद आती है -आदित्य चौधरी

कोई मुस्कान ऐसी है जो हरदम याद आती है
छिड़कती जान ऐसी है वो हरदम याद आती है

अंधेरी ठंड की रातों में बस लस्सी ही पीनी है
फुला के मुंह जो बैठी है वो हरदम याद आती है

कभी हर बात पे हाँ है कभी हर बात पे ना है
पटक कर पैर खिसियाती वो हरदम याद आती है

शरारत आँखों में तैरी है और मैं देख ना पाऊँ
झुकी नज़रों की शैतानी वो हरदम याद आती है

न जाने कौन से जन्मों में मोती दान कर बैठा
कई जन्मों के बंधन से वो हरदम याद आती है


टीका टिप्पणी और संदर्भ