"हर शख़्स मुझे बिन सुने -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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+ | :: एक गुमनाम किसान गजेन्द्र द्वारा, सरेआम फाँसी लगा लेने पर... | ||
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हर शख़्स मुझे बिन सुने आगे जो बढ़ गया | हर शख़्स मुझे बिन सुने आगे जो बढ़ गया | ||
− | तो दर्द दिखाने को मैं | + | तो दर्द दिखाने को मैं फाँसी पे चढ़ गया |
महलों के राज़ खोल दूँ शायद में इस तर्हा | महलों के राज़ खोल दूँ शायद में इस तर्हा |
10:41, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
हर शख़्स मुझे बिन सुने -आदित्य चौधरी
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टीका टिप्पणी और संदर्भ