अट्ठकथा
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अट्ठकथा अथवा 'अर्थकथा' पालि ग्रंथों पर लिखे गए भाष्य हैं। मूल पाठ की व्याख्या साफ करने के लिए पहले उससे संबद्ध कथा का उल्लेख कर दिया जाता है, फिर उसके शब्दों के अर्थ बताए जाते हैं।[1]
- 'त्रिपिटक' के प्रत्येक ग्रंथ पर अट्ठकथा प्राप्त होती है।
- अट्ठकथा की परंपरा मूलत कदाचित् श्रीलंका में सिंहली भाषा में प्रचलित हुई थी। आगे चलकर जब भारतवर्ष में बौद्ध धर्म का पतन होने लगा, तब श्रीलंका से अट्ठकथा लाने की आवश्यकता हुई। इसके लिए चौथी शताब्दी में आचार्य रेवत ने अपने प्रतिभाशाली शिष्य बुद्धघोष को लंका भेजा।
- बुद्धघोष ने 'विसुद्धिमग्ग' जैसा प्रौढ़ ग्रंथ लिखकर श्रीलंका के स्थविरों को संतुष्ट किया और सिंहली ग्रंथों के पालि अनुवाद करने में उनका सहयोग प्राप्त किया।
- आचार्य बुद्धदत्त और धम्मपाल ने भी इसी परंपरा में कतिपय ग्रंथों पर अट्ठकथाएँ लिखी थीं।
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