अनित्य
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
अनित्य एक संस्कृत शब्द है जिसका अभिप्राय बौद्ध धर्म में अस्थायित्व का सिद्धांत अथवा सारे अस्तित्व का एक मूलभूत लक्षण।
- अनित्य, अनत्त (आत्म की अनुपस्थिति) और दु:ख आपस में मिलकर त्रिलक्षण या संपूर्ण अस्तित्व के तीन लक्षणों का निर्माण करते हैं।
- बाल्यावस्था, युवावस्था, परिपक्वता और वृद्धावस्था की सार्वभौमिक स्थितियों में मानव शरीर में होने वाले परिवर्तन अनुभव के द्वारा देखे जा सकते हैं, इसी तरह मानसिक घटनाएं क्षणिक हैं, जो बसती हैं और विलीन हो जाती हैं अस्थायित्व सिद्धांत की पहचान बोधित्व प्राप्ति की ओर बौद्ध आध्यात्मिक के पहले चरणों में से एक है।
अनित्य (विशेषण) (न. त.]
- 1. जो सनातनप न हो, जो नित्य न हो, सदा रहने वाला न हो, क्षणभंगुर, अशाश्वत, नश्वर।
- 2. क्षणस्थायी आकस्मिक, जो नियमतः अनिवार्य न हो, विशेष।
- 3. असाधारण, अनियमित
- 4. अस्थिर, चंचल
- 5. अनिश्चित, संदिग्ध-विजयस्य ह्यनित्यत्वात्-पंच. 3/22,-त्यम् (क्रि. वि.) कदाचित्, अकस्मात्।
सम.-कर्मन्,-क्रिया आकस्मिक कार्य जैसा कि किसी विशेष निमित्त से किया जाने वाला यज्ञ, ऐच्छिक या सामयिक अनुष्ठान,-दत्तः,-दत्तकः,-दत्रिमः, माता-पिता के द्वारा अस्थायी रूप से किसी को दिया गया पुत्र, भावः क्षणभंगुरता, क्षणभंगुर स्थिति-समासः वह समास जो प्रत्येक स्थिति में अनिवार्य न हो (जिसका भाव अलग-अलग विश्लिष्ट पदों द्वारा भी समान रूप से प्रकट किया जाए)।[1]
इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 40 |