सप्तपर्णी गुफ़ा
सप्तपर्णी गुफ़ा (अंग्रेज़ी: Saptaparni Cave) प्रसिद्ध बौद्ध धार्मिक स्थल है जो राजगीर की एक पहाड़ी में स्थित है। कुछ सूत्रों के अनुसार प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन इसी स्थान पर हुआ था। यहाँ गरम जल का एक स्रोत है जिसमें स्नान करने से स्वास्थ्य लाभ होता है। यह हिन्दुओं के लिये पवित्र कुण्ड है।
महत्त्व
राजगीर के पंच पहाड़ियों में शुमार वैभारगिरी पर्वत पर स्थित सप्तकर्णी गुफ़ा का महत्व बुद्धिज्म के धार्मिक इतिहास के एक प्रमुख केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित है। यहां कई प्राकृतिक गुफ़ाएं और बड़े क्षेत्र में फैली हुई विशाल शिलाखंडों का चबूतरा भी है। जहां भगवान बुद्ध तपमुद्रा में लीन रहा करते थे। इस स्थान की चर्चा बौद्ध धर्म ग्रंथ त्रिपिटक में भी की गई है।
इस गुफ़ा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि त्रिपिटिका ग्रंथ का निर्माण बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके प्रमुख शिष्य महाकश्यप के अगुआई में इसी गुफ़ा में हुए प्रथम बौद्ध संगिति के दौरान किया गया था। जिसमें बड़ी संख्या में बौद्ध अनुयायी मौजूद थे। यह वो स्थान है जहां भगवान बुद्ध के मूल दर्शन का संकलन त्रिपिटिका ग्रंथ में समाहित किया गया था। जिसके पश्चात् इसी स्थान से बौद्ध सिद्धांतों और उपदेशों का व्यापक प्रचार-प्रसार का शुभारंभ किया गया था।
त्रिदिवसीय बौद्ध सम्मेलन
इस कड़ी में 17 मार्च से 19 मार्च 2017 तक वैभारगिरी पर्वत के सप्तपर्णी गुफ़ा के पास अवस्थित अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर में हुए त्रिदिवसीय बौद्ध सम्मेलन ने इसके महत्व को उजागर किया है। जहां एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय बौद्ध धर्म गुरु महापावन लाई लामा के कर कमलों द्वारा देश-विदेश के बौद्ध धर्म संघ महानायक, धर्मावलंबी व भिक्षु इसके साक्षी रहे। हजारों प्रतिनिधियों के समक्ष देवनागरी लिपि में बौद्ध धर्म ग्रंथ त्रिपिटिका ग्रंथ का पुनर्मुद्रण के किये गये विमोचन ने उन सुनहरे प्रथम बौद्ध संगिति की याद ताजा करा दी।
बौद्धकालीन मक्का
लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व छठी शताब्दी में वैभारगिरी पर्वत पर स्थित सप्तपर्णी गुफ़ा को बौद्धकालीन का मक्का भी कहा जाता है। इस पहाड़ी के घाटी में बिखरी हरियाली पूरे क्षेत्र को मनोरम दृश्य प्रदान करते हैं। शायद यही वो वजह थी कि बुद्ध ने गृद्ध कूट के बाद इस स्थान को भी अपना तपस्थली के रूप में चयन किया।
सप्तपर्णी गुफ़ा के सानिध्य में तपमुद्रा में बैठ कई सूक्तियों का सूत्रपात भगवान बुद्ध किया करते थे। जहां भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के पूर्व व ज्ञान प्राप्ति के पश्चात भी राजगीर से अपना मोह बनाये रख यहां के विभिन्न स्थानों को रमणीय बताया था। जिसमें गृद्धकूट के बाद सप्तपर्णी गुफ़ा पर भी अपने शिष्यों के साथ राजगीर के प्रति प्रेम दिखाते हुए प्रिय शिष्य आनंद को पाली भाषा में ज्ञान दिया था। उन्होने वैभारगिरी पर्वत के आंचल में बसा सप्तपर्णी गुफ़ा को भी अतिरमणीय बताया था।
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