उपासक
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उपासक गौतम बुद्ध के सामान्य अनुयायी या भक्त। यह शब्द ऐसे बौद्ध मतावलंबी के लिए प्रयुक्त होता है, जो किसी भी मठीय संघ का सदस्य नहीं है। लेकिन दक्षिण-पूर्व एशिया में इसका आधुनिक प्रयोग विशेष रूप से धर्मपरायण व्यक्तियों के लिए किया जाता है, जो साप्ताहिक पवित्र दिनों में स्थानीय मठों में जाते हैं तथा विशेष व्रत रखते हैं।[1]
- 'उपासक' एक संस्कृत शब्द है, अर्थात् 'सेवक'। इसका स्त्रीलिंग 'उपासिका' है।
- भारत में अपनी शुरुआत के समय से ही बौद्ध धर्म ने हर सामाजिक वर्ग या जाति के स्त्री-पुरुष, दोनों को स्वीकार किया।
- भक्तों से केवल यही अपेक्षा की जाती है कि वे बुद्ध, धर्म और संघ के 'त्रिरत्न' के प्रति अपनी सहज आस्था प्रकट करें।
- आम बौद्ध अनुयायी से आशा की जाती है कि वह पांच ज्ञान बोधों- 'हत्या', 'चोरी', 'लैंगिक दुराचार', 'झूठ' तथा 'नशे का सेवन न करना', का अनुपालन करेगा तथा भिक्षा देकर मठ समुदाय को सहारा देगा।
- दक्षिण-पूर्व एशिया की 'थेरवाद'[2] बौद्ध परंपरा में आम अनुयायी तथा भिक्षु के धार्मिक मार्गों के बीच विभेद किया गया है। निर्वाण प्राप्ति को तब ही संभव माना गया है, जब भक्त सांसारिक जीवन का परित्याग कर मठीय संघ में शामिल हो जाता है। किंतु तिब्बत तथा पूर्वी एशिया की 'महायान' परंपरा में ऐसे अनेक मान्यता प्राप्त गुरु हैं, जो विवाहित गृहस्थ भी थे।
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