थेय्यम अथवा तेय्यम (अंग्रेज़ी: Theyyam) भारतीय राज्य केरल की पारम्परिक लोक नृत्य कला है। यह केरल और कर्नाटक के निकटवर्ती क्षेत्र का एक पूजा नृत्य व लोकप्रिय सांस्कृतिक धार्मिक अनुष्ठान है। इसे कालियाट्टम, तेय्यम या तिरा भी कहते हैं। कुछ स्रोतों के अनुसार यह 800 साल पुरानी परम्परा है जबकि कई स्रोत इसे 2000 साल प्राचीन मानते हैं। थेय्यम को शिव या शक्ति का अवतार माना जाता है। मालाबार तट के कोलाट्टूनाडू क्षेत्र में यह एक सदियों पुरानी परंपरा रही है।
प्रचलन
थेय्यम मुख्य रूप से केरल के कासर्गोड, कण्णूर जिला, वायनाड जिले के मानन्ततवाटी तालूका, कोझीक्कोड जिले के वडकरा और कोइलाण्डि तालूका और कर्नाटक के कोडागु-मडिकेरी क्षेत्र और तुलुनाडु क्षेत्र में प्रचलित है। केरल के उत्तरी क्षेत्र में यह अक्टूबर से मई-जून के महीने तक देखा जा सकता है किंतु नवम्बर से दिसम्बर तक यह चरम पर होता है।[1]
प्रकार
थेय्यम के कुल 456 प्रकार होते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख हैं-
- विष्णुमूर्ति थेय्यम - थेय्यम के सभी प्रकारों में से केवल दो थेय्यम वैष्णव (अर्थात वैष्णव संप्रदाय से प्रभावित) माने जाते हैं- दैवतार थेय्यमऔर विष्णुमूर्ति थेय्यम। यह थेय्यम पलन्थाई कन्नन से सम्बंधित है, जो भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे। यह केरल का सबसे लोकप्रिय वैष्णव थेय्यम है। यह थेयम भगवान विष्णु द्वारा नरसिम्हम के अवतार में हिरण्यकशिपु की मृत्यु की कहानी का वर्णन और प्रदर्शन करता है जिसमें भगवन विष्णु ने उसके वध के लिए नरसिंह अवतार धारण किया था अर्थात उनका आधा शरीर नर का था और शेष सिंह का। यही कारण है कि इस थेय्य्म को नरसिम्हा मूर्ति थेय्य्म भी कहते हैं।
- पडीकुट्टी अम्मा - मान्यतानुसार पडीकुट्टी अम्मा मुथाप्पन की माता हैं।
- श्री मुथाप्पन थेय्यम - ये चेरिया मुथाप्पन (शिव के) और वालिया मुथाप्पन (विष्णु के) के अवतार माने जाते हैं। इस थेय्यम की विशिष्टता यह है कि यह सभी मुथाप्पन मंदिरों में केवल एक बार ही किया जाता है।
- गुलिकन - मान्यतानुसार गुलिकन भगवान शिव के सबसे महत्वपूर्ण योद्धाओं में से एक थे। उन्हें मृत्यु और न्याय के देवता यमराज का अवतार माना जाता है।
इसके अलावा कुट्टीचथन, ती चामुण्डी, कण्डाकर्णन, मुच्छिलोट भगवति, काठिवनूर वीरन थेय्यम आदि भी इसके अन्य प्रमुख रूप हैं।
प्रस्तुति
ऐसी मान्यता है कि परशुराम ने मलयर, पाणन, वण्णान, वेलर जैसी जनजातीय समुदायों को इस अनुष्ठान के आयोजन की ज़िम्मेदारी दी थी। किंतु थेय्यम की उत्पत्ति का श्रेय मनक्काडन गुरुक्कल को दिया जाता है। वे वण्णान जाति के प्रमुख कलाकार थे। माना जाता है कि चिरक्कल प्रदेश के राजा ने एक बार उनकी जादुई शक्तियों की परीक्षा करने के लिए उन्हें कुछ देवताओं के पोशाक बनाने का उत्तरदायित्व सौंपा। इन पोशाकों का प्रयोग धार्मिक अनुष्ठान में होना था। तब गुरुक्कल ने रात भर में ही कई अलग-अलग पोशाकें तैयार कर दीं। उनकी इस रहस्यमयी शक्ति से प्रभावित होकर राजा ने गुरुक्कल को मनक्काड्न की उपाधि प्रदान की। तभी से थेय्यम की परंपरा शुरू हुई।[1]
इस भव्य नृत्य में प्रत्येक कलाकार महान शक्ति वाले एक नायक का प्रतिनिधित्व करता है जिसने वीर कर्म करके या पवित्र जीवन व्यतीत करके दैवीय शक्ति प्राप्त की है। अपने शरीर में भगवान या देवी का आह्वान करते हुए, वह मन्दिर के परिसर में नृत्य करता है और वहीं देवताओं की पूजा की जाती है। इस स्थान को कवू कहा जाता है।
समय
यह उत्सव मलयाली महीने तुलाम (अक्टूबर/नवंबर) के दसवें दिन से आरंभ होता है और जून के अंत तक समाप्त हो जाता है।
भाग
थेय्यम के 2 भाग होते हैं। इसका प्रथम भाग वेल्लाट्टम या तोट्टम कहलाता है। इसे तोट्टमपाट्टु के नाम से भी जाना जाता है। यह प्रदर्शन बिना किसी खास परिधान और साज-सज्जा के, सादे तरीके से होता है। इसमें प्रयुक्त होने वाले मुख्य वाद्य यंत्र हैं चेंडा, वीक्कन चेंडा, इलत्तालम और कुजल इत्यादि। वेल्लाट्टम के प्रदर्शन के लिए कलाकार अपने चेहरे पे रंगों का प्रयोग करते हैं। इसमें आनुष्ठानिक गीतों का बहुत महत्त्व होता है। सभी नर्तक हथियारों की निरंतरता के रूप में अपने हाथों में ढाल और कदथला (तलवा) लेते हैं। नृत्य के विभिन्न चरण होते हैं जिन्हें कलासम कहा जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 थेय्यम नृत्य (हिंदी) byjus.com। अभिगमन तिथि: 23 फ़रवरी, 2024।
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