राजभाषा के रूप में हिन्दी का विकास, महत्त्व तथा प्रकाश की दिशाएँ

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लेखक- श्री जयनारायण तिवारी

          भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से प्रत्येक प्राणी अपने विचारों को दूसरों पर अभिव्यक्त करता है। यह ऐसी दैवी शक्ति है, जो मनुष्य को मानवता प्रदान करती है और उसका सम्मान तथा यश बढ़ाती है। जिसे वाणी का वरदान प्राप्त होता है, वह बड़े से बड़े पद पर प्रतिष्ठित हो सकता है और अक्षय कीर्ति का अधिकारी भी बन सकता है। किंतु, इस वाणी में स्खलन या विकृति आने पर मनुष्य निंदा ओर अपयश की भी भागी बनता है। यही नही अवांछनीय वाणी, उसके पतन का भी कारण बन सकती है। अतः वाणी या भाषा का प्रयोग बहुत सोच विचार कर करना चाहिए। इसलिए राजकीय कार्याें मे पूर्ण सोच विचार के बाद उपयुक्त भाषा का प्रयोग करने की परंपरा रही है।
          राज्य या प्रशासन की भाषा को राज्य भाषा कहते हैं। इसके माध्यम से सभी प्रशासनिक कार्य सम्पन्न किये जाते हैं। यूनेस्को के विशेषज्ञों के अनुसार ‘उस भाषा को राज्य भाषा कहते हैं, जो सरकारी कामकाज के लिए स्वीकार की गई हो और जो शासन तथा जनता के बीच आपसी संपर्क के काम आती हो’ जबसे प्रशासन की परंपरा प्रचलित हुई है, तभी से राजभाषा का प्रयोग भी किया जा रहा है। प्राचीन काल में भारत में संस्कृत, प्राकृत, पालि, अपभ्रंश आदि भाषाओं का राजभाषा के रूप में प्रयोग होता था। राजपूत काल में तत्कालीन भाषा हिन्दी का प्रयोग राजकाज में किया जाता था। किंतु भारतवर्ष में मुसलमानों का आधिपत्य स्थापित हो जाने के बाद धीरे-धीरे हिन्दी का स्थान फ़ारसी और अरबी भाषाओं ने ले किया। इस बीच में भी राजपूत नरेशों के राज्य क्षेत्र में हिन्दी का प्रयोग बराबर प्रचलित रहा। मराठों के राजकाज में भी हिन्दी का प्रयोग किया जाता था। आज भी इन राजाओं के दरबारों से हिन्दी अथवा हिन्दी-फारसी, द्विभाषिक रूप में जारी किए गए फरमान बड़ी संख्या में उपलब्ध है। यह इस बात का द्योतक है कि हिन्दी राजकाज करने के लिए सदैव सक्षम रही है। किंतु केंद्रीय शक्ति के मुसलमान शासकों के हाथ में चले जाने के कारण उसे वह अवसर प्राप्त नहीं हुआ, जिससे सभी क्षेत्रों में उसकी क्षमता एवं सामर्थ्य का पूर्ण विकास हो पाता।
          अंग्रेज़ी ने अपने शासन काल में तत्कालीन प्रचलित राजभाषा फारसी को ही प्रश्रय दिया। परिणामस्वरूप भारत के आज़ाद होने के कुछ समय बाद तक भी फारसी भारत के अधिकांश भागों में कचहरियों की भाषा बनी रही। इस बीच 1855 में लॉर्ड मैकाले ने अंग्रेजी को भारत की शिक्षा और प्रशासन की भाषा के रूप में स्थापित कर दिया था। धीरे धीरे वह न केवल पूर्णतय भारतीय प्रशासन की भाषा बन गई, बल्कि शिक्षा, वाणिज्य, व्यापार तथा उद्योग धंधों की भाषा के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गई। इनता ही नहीं वह भारत के शिक्षित वर्ग के व्यवहार की भी भाषा बन गई। फिर भी, अंग्रेजी शासक यह महसूस करते रहे कि भारत की भाषाओं को बहुत दिनों तक दबाया नही जा सकता, अतः उन्होंने हिन्दी भाषी प्रदेशों में हिन्दी को और अन्य प्रदेशों में, वहां की भाषाओं को प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं में शिक्षा का माध्यम बनाया। इस श्रीगणेश का शुभ परिणाम यह हुआ कि हिन्दी और भारतीय भाषएं विकसित होने लगीं और वे उच्च शिक्षा का माध्यम बनी। इतना ही नहीं स्वतंत्रता संग्राम के साथ साथ हमारे राष्ट्रीय नेताओं ने भारतीय भाषाओं और विशेषकर हिन्दी को राष्ट्रभाषा और संपर्क भाषा के रूप में प्रचलित करने का प्रयास प्रारंभ किया। इस राष्ट्रीय जागरण के परिणाम स्वरूप हिन्दी का उत्तरोत्तर प्रसार होने लगा और यह मत व्यक्त किया जाने लगा कि देश के अधिकांश लोगों की बोली होने के कारण हिन्दी को भी भारत की राष्ट्रभाषा बनाया जाना चाहिए। देश के कोन कोने से अनेक अहिन्दी भाषी राष्ट्रीय नेताओं ने भी इसी प्रकार के विचार व्यक्त किये।
महात्मा गांधी ने एक बार यह विचार व्यक्त किया था कि राष्ट्रभाषा बनने के लिए किसी भाषा में नीचे दिए गए पांच गुण होने आवश्यक होने चाहिए-

  1. उसे सरकारी अधिकारी आसानी से सीख सकें
  2. वह समस्त भारत में धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक संपर्क के माध्यम के रूप में प्रयोग के लिए सक्षम हो,
  3. वह अधिकांश भारतवासियों द्वारा बोली जाती हो,
  4. सारे देश को उसे सीखने में आसानी हो,
  5. ऐसी भाषा को चुनते समय आरजी या क्षणिक हितों पर ध्यान न दिया जाए।

          उनका विचार था कि भारतीय भाषाओं में केवल हिन्दी ही एक ऐसी भाषा है, जिसमें उपर्युक्त सभी गुण मौजूद हैं। महात्मा गांधी तथा अन्य नेताओं के उद्गारो का परिणाम यह हुआ कि जब भारतीय संविधान सभा में संघ सरकार की राजभाषा निश्चित करने का प्रश्न आया तो विशद विचार मंथन के बाद 14 सितंबर, 1949 को हिन्दी को भारत संघ की राजभाषा घोषित किया गया। भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ और तभी से देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी विधिवत भारत संघ की राजभाषा है।
          किसी भी स्वाधीन देश के लिए, जो महत्व उसके राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का है, वही उसकी राजभाषा का है। प्रजातांत्रिक देश में जनता और सरकार के बीच भाषा की दीवार नही होनी चाहिए और शासन का काम जनता की भाषा में किया जाना चाहिए। जब तक विदेशी भाषा में शासन होता रहेगा, तब तक कोई देश सही आर्थाें में स्वतंत्र नहीं कहा जा सकता। प्रत्येक व्यक्ति अपनी भाषा में ही स्पष्टता और सरलता से अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सकता है। नूतन विचारों का स्पंदन और आत्मा की अभिव्यक्ति, मातृभाषा में ही सम्भव है। राजभाषा देश के भिन्न भिन्न भागों को एक सूत्र में पिराने का कार्य करती है इसके माध्यम से जनता न केवल अपने देश की नीतियों और प्रशासन को भलीभांति समझ सकती है, बल्कि उसमें स्वयं भी भाग ले सकती है। प्रजातंत्र की सफलता के लिए ऐसी व्यवस्था अत्यंत आवश्यक है। विश्व के सभी स्वतंत्र देश और नवोदित राष्ट्रों ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि उनका उत्थान, उनकी अपनी भाषााओं के माध्यम से ही सम्भव है। रूस, जापान, जर्मनी, आदि सभी राष्ट्र इसके प्रमाण हैं। भारतीय संविधान सभा इस तथ्य से पूर्णतयः परिचित थी। इसलिए यद्यपि अंग्रेज़ी के समर्थकों ने उसकी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति और समृद्धि की बड़ी वकालत की, फिर भी राष्ट्रीय नेताओं ने देश के बहुसंख्यक वर्ग द्वारा बोली जाने वाली और देश के अधिकांश भाग में समझी जाने वाली भाषा हिन्दी को ही भारत संघ की राजभाषा बनाया।
          हिन्दी का संघ की राजभाषा 1950 में ही घोषित कर दिया गया था, किंतु केंद्र सरकार के कामों में हिन्दी को अंग्रेजी का स्थान देने के लिए गंभीरता से प्रयास केंद्र सरकार द्वारा 1960 ओर विशेषकर राजभाषा अधिनियम, 1963 के पास होने के बाद से प्रारंभ किया गया। उस समय यह अनुभव किया गया कि हिन्दी के माध्यम से प्रशासन का कार्य चलाने के लिए कुछ प्रारंभिक तैयारियों की आवश्यकता पड़ेगी, जैसे:-

  1. प्रशासनिक, वैज्ञानिक, तकनीकि एवं विधि शब्दावली का निर्माण।
  2. प्रशासनिक एवं विधि साहित्य का हिन्दी में अनुवाद।
  3. अहिन्दीभाषी सरकारी कर्मचारियों का हिन्दी प्रशिक्षण।
  4. हिन्दी टाइपराइटरों एवं अन्य यांत्रिक साधनों की व्यवस्था आदि।

शब्दावली का निर्माण

शब्दावली निर्माण के लिए शिक्षा मंत्रालय ने 1950 में वैज्ञानिक तथा तकनीकी बोर्ड की स्थापना की थी। इसके मार्गदर्शन में शिक्षा मंत्रालय के हिन्दी विभाग ने तकनीकी शब्दावली के निर्माण का कार्य चालू किया था। बाद में हिन्दी विभाग का विस्तार होते होते सन् 1960 में केंद्रीय हिन्दी निदेशालय की स्थापना हुई। इसके कुछ समय बाद 1961 में राष्ट्रपति के आदेशानुसार वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना की गई। निदेशालय तथा आयोग ने अब तक विज्ञान, मानविकी, आयुर्विज्ञान, इंजीनियरी, कृषि तथा प्रशासन आदि के 4 लाख अंग्रेज़ी के तकनीकी शब्दों के हिन्दी पर्याय प्रकाशित कर दिये हैं। इसी प्रकार राजभाषा (विधायी) आयोग तथा राजभाषा खंड ने विधि शब्दावली का निर्माण कार्य लगभग पूरा कर लिया है। सन 1979 में प्रकाशित विधि शब्दावली इसका स्पष्ट प्रमाण हैं। इसमें लगभग 34000 विधिक शब्दों के हिन्दी पर्याय प्रकाशित किए गए हैं।

प्रशासनिक साहित्य का अनुवाद

केंद्रीय सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, विभागों के मैनुअलों, संहिताओं, फार्मों आदि का अनुवाद कार्य पहले शिक्षा मंत्रालय के केंद्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा किया जाता था। मार्च, 1971 से यह कार्य गृह मंत्रालय (राजभाषा विभाग) के आधीन स्थापित केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो को सौंपा गया है। ब्यूरो ने निदेशालय द्वारा अनूदित साहित्य के अतिरिक्त अब तक लगभग 3 लाख मानक पृष्ठों का अनुवाद करके विभिन्न मंत्रालयों को उपलब्ध करा दिया है। इस समय ब्यूरो मंत्रालयों, विभागों के अतिरिक्त अन्य सरकारी कार्यालयों, उपक्रमों आदि के मेनुअलों का भी अनुवाद कर रहा है। इसी प्रकार विधि मंत्रालय के राजभाषा खंड ने भी अब तक 13000 मानक पृष्ठों के 1000 से अधिक केंन्द्रीय अधिनियमों का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत कर दिया है और यह कार्य निरंतर चल रहा है। इसके अतिरिक्त नियमों तथा अन्य विधिक साहित्य का भी अनुवाद किया गया है।

हिन्दी शिक्षण योजना

केंद्रीय सरकार के हिन्दी न जानने वाले सरकारी कर्मचारियों के लिए हिन्दी शिक्षण का कार्य शिक्षा मंत्रालय की देखरेख में 1952 में प्रारंभ हुआ था, किंतु बाद में लिए गए निर्णय के अनुसार अक्टूबर, 1955 से यह कार्य गृह मंत्रालय के तत्वाधान में हो रहा है। प्रारंभ में यह प्रशिक्षण पाठ्यक्रम उन लोंगों के लिए था, जा अपनी इच्छा से हिन्दी पढ़ना चाहते हैं बाद में अप्रॅल 1960 में राष्ट्रपति के आदेश के अधीन हिन्दी का सेवाकालीन प्रशिक्षण उन सभी केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य कर दिया गया जो 01-01-1961 को 45 वर्ष के नहीं हुए थे। फिर भी, स्वेच्छा से हिन्दी सीखने वालों की तादाद आधिकतर जगहों पर इतनी पर्याप्त है कि राजभाषा विभाग ने अभी तक इस अनिवार्यता का प्रयोग नहीं किया है और हिन्दी प्रशिक्षण का कार्य सारे देश में स्वेच्छा तथा प्रोत्साहन के आधार पर चल रहा है।

इसी प्रकार टंककों और आशुलिपिकों के लिए भी हिन्दी टाइपिंग और हिन्दी आशुलिपि का प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की गई है। इस समय देश भर में हिन्दी प्रशिक्षण के 149 केंद्र चल रहे हैं, जिनमें 73 पूर्णकालिक और 76 अंशकालिक हैं। इन केंद्रों के माध्यम से जून, 1981 तक लगभग 4,37,360 कर्मचारियों ने हिन्दी की विभिन्न परीक्षाएं तथा 34, 531 कर्मचारियों ने हिन्दी टाइपिंग और हिन्दी आशुलिपिक की परीक्षाएं पास कर ली हैं।

यांत्रिक साधनों की व्यवस्था

कुछ वर्ष पहले देवनागरी के टाइपराइटरों का उत्पादन मांग के अनुसार नहीं था। किंतु अब औद्योगिक विकास विभाग, पूर्ति तथा निपटान महानिदेशालय एवं टाइपराटर बनाने वाली कंपनियों के प्रतिनिधियों के सहयोग से देवनागरी टाइपराइटरों के उत्पादन में प्रगति हुई है। इस समय देवनागरी टाइपराइटरों का उत्पादन मांग के अनुसार है। वर्ष 1978 में 11,573 1979 में 13,686 तथा 1980 में 12,754 देवनागरी टाइपराइटरों का उत्पादन हुआ। वर्ष 1981 में विभिन्न मंत्रालयों तथा विभागों के पास कुल 1367 देवनागरी टाइपराइटर थे।

कम्प्यूटर

कम्प्यूटर मे देवनागरी लिपि तथा भारतीय भाषाओं के प्रयोग की सुविधा के विकास के संबंध में इलेक्ट्राॅनिकी विभाग तथा इलेक्ट्राॅनिकी आयोग क्षरा विशेष कदम उठाए जा रहे हैं। कुछ वर्ष पहले ई. सी. आई. एल हैदराबाद ने कम्प्यूटर में हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के प्रयोग के संबंध में एक प्रोटोटाइप बनाया था। उसे और उपयोगी बनाने के लिए कदम उठए जा रहे हैं। हाल ही में बिरला इंस्टीट्यूट आफ टेक्नालाॅजी एंड साइंस, पिलानी ने भी ऐसे ही एक कम्प्यूटर का प्रोटोटाइप बनाया है। इसके अलावा टाटा ब्रदर्स, बंबई की एक फर्म ने भी इस प्रकार के कम्प्यूटर प्रोटोटाइप बनाया है। कंप्यूटर में देवनागरी तथा अन्य भारतीय भाषाओं का प्रयोग करने की दृष्टि से कोड निर्धारित करने के लिए इलेक्ट्रानिकी आयोग द्वारा कर्रवाई की जा रही है।

इलैक्ट्राॅनिक टेलीप्रिंटर

संचार मंत्रालय के अधीन एक सरकारी उपक्रम हिन्दुस्तान टेलीप्रिंटर लि. द्वारा इलेक्ट्रानिक टैलीप्रिंटर्स बनाए जाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे है। इलेक्ट्रॅनिकी के लिए एक समिति का गठन किया जा चुका है। इसी प्रकार हिन्दी के बिजली से चलने वाले टइपराइटरों, पतालेखी मशीनों और पिनप्वाइंट टाइपराइटरों के निर्माण के लिए भी कार्रवाई की जा रही है।

हिन्दी की मुद्रण क्षमता में वृद्धि

भारत सरकार के प्रेसों की हिन्दी मुद्रण क्षमता कुद समय पहले संतोषजनक नहीं थी। आवास तथा निर्माण मंत्रालय के सहयोग से मुद्रण निदेशालय ने हिन्दी मुद्रण क्षमता बढाने के लिए विशेष प्रयास किये हैं, जिससे इस दिशा में काफ़ी प्रगति हुई है। पहले हिन्दी मुद्रण क्षमता केवल 400 पृष्ठ प्रतिदिन थी, अब यह बढ़कर 1200 पृष्ठ प्रतिदिन तक पहुंच गई है।

राजभाषा के संबंध में कानूनी व्यवस्थाएं

राजभाषा नीति को लागू करने के लिए 1963 में राजभाषा अधिनियम पारित किया गया और इसमें 1976 में संशोधन किया गया। इसकें कुछ प्रमुख उपबंध इस प्रकार हैं:-

  1. अधिनियम की धारा 3 के अनुसार (क) संघ के उन सभी सरकारी प्रयोजनों के लिए, जिनके लिए 26 जनवरी, 1965 से तत्काल पूर्व अंग्रेजी का प्रयोग किया जा रहा था और (ख) संसद में कार्य निष्पादन के लिए 26 जनवरी, 1965 के बाद भी हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखा जा सकेगा।
  2. केंद्र सरकार और हिन्दी को राजभाषा के रूप में न अपनाने वाले किसी राज्य के बीच पत्राचार अंग्रेजी में होगा, वशर्ते उसे राज्य ने इसके लिए हिन्दी का प्रयोग करना स्वीकार न किया हो। इसी प्रकार, हिन्दी भाषी राज्यों की सरकारें ऐसे राज्यों की सरकारों के साथ अंग्रेजी में पत्राचार करेगी और यदि वे ऐसे राज्यों को कोई पत्र हिन्दी में भेजती हैं तो साथ-साथ उसका अंग्रेजी अनुवाद भी भेजेंगी। पारस्पिरिक समझौते से यदि कोई भी दो राज्य आपसी पत्राचार में हिन्दी का प्रयोग करें तो इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी।
  3. केंद्रीय सरकार के कार्यालयों, आदि के बीच पत्र व्यवहार के लिए हिन्दी अथवा अंग्रेजी का प्रयोग किया जाता है। लेकिन जब तक संबंधित कार्यालयों आदि के कर्मचारी हिन्दी का कार्य साधक ज्ञान प्राप्त न कर लें, तब तक पत्रादि का दूसरी भाषा में अनुवाद उपलब्ध कराया जाता रहेगा।
  4. राजभाषा अधिनियम की धारा 3 (3) के अनुसार निम्नलिखित कागजपत्रों के लिए हिन्दी और अंग्रेजी दोनों का प्रयोग अनिवार्य है- 1. संकल्प, 2. सामान्य आदेश, 3. नियम, 4. अधिसूचनाएँ, 5. प्रशासनिक तथा अन्य रिपोर्ट, 6. प्रेस विज्ञप्तियाँ, 7. संसद के किसी सदन या सदनों के समक्ष रखी जाने वाली प्रशासनिक तथा अन्य रिपोर्टें एवं 8. सरकारी कागजपत्र, 9. संविदाएँ, 10. करार, 11. अनुज्ञप्तियाँ, 12. अनुज्ञापत्र, 13. टेंडर नोटिस और 14. टेंडर फार्म।
  5. धारा 3 (4) के अनुसार अधिनियम के अधीन नियम बनाते समय यह सुनिश्चित कर लेना होगा कि यदि केंद्रीय सरकार का कोई कर्मचारी हिन्दी या अंग्रेजी में से किसी एक ही भाषा में प्रवीण हो, तब भी वह अपना सरकारी कामकाज प्रभावी ढंग से कर सके और केवल इस आधारा पर कि वह दोनों भाषाओं में प्रवीण नहीं है, उसका कोई अहित न हो।
  6. राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 1967 द्वारा अधिनियम की धारा 3 (5) के रूप में यह उपबंध किया गया है कि उपर्युक्त विभिन्न कार्यों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखने संबंधी व्यवस्था तब तक जारी रहेगी, जब तक हिन्दी को राजभाषा के रूप में न अपनाने वाले सभी राज्यों के विधान मंडल अंग्रेजी का प्रयोग खत्म करने के लिए आवश्यक संकल्प पारित न करें और इन संकल्पों पर विचार करने के बाद संसद का प्रत्येक सदन भी इसी आशय का संकल्प पारिन न कर दें।
  7. अधिनियम की धारा 7 के अनुसार किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति से, उस राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए अथवा पारित किसी निर्णय, डिक्री अथवा आदेश के लिए, अंग्रेजी भाषा के अलावा, हिन्दी अथवा राज्य की राजभाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकता है। तथापित यदि कोई निर्णय डिक्री या आदेश अंग्रेजी से किसी भिन्न किसी भाषा में दिया या पारित किया जाता है तो उसके साथ साथ संबंधित उच्च न्यायालय के प्राधिकार से अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद भी दिया जाएगा। अब तक उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के राज्यपालों ने अपने उच्च न्यायालयों में उपर्युक्त उद्देश्यों के लिए राष्ट्रपति से हिन्दी के प्रयोग की अनुमति ली है।

राजभाषा संशोधन अधिनियम पारित करने के साथ साथ दिसंबर, 1967 में संसद के दोनों सदनों नले सरकार की भाषा नीति के संबंध में एक सरकारी संकल्प भी पारित किया था। इस संकल्प के पेरा 1 के अनुसार केंद्रीय सरकार हिन्दी के प्रसार तथा विकास और संघ के विभिन्न सरकारी प्रयोजनों के लिए उसके प्रयोग में तेज़ीलाने के लिए एक अधिक गहन और विस्तृत कार्यक्रम तैयार करेगी और उसे कार्यान्वित करेगी। इसके अतिरिक्त इस संबंध में किए गए उपायों तथा उसमें हुई प्रगति का व्यौरा देते हुए एक वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट संसद के सदनों के सभापटल पर प्रस्तुत करेंगी। सन् 1968 से निरंतर वार्षिक कार्यक्रम बनाया जा रहा है, जिसमें केंद्रीय सरकार के मंत्रालयों एवं विभाग से अनुरोध किया जाता है कि हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के लिए उसके अनुसार कार्रवाई करें। अब तक इस प्रकार की 10 रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत की जा चुकी हैं और 11वीं रिपोर्ट मुद्रणाधीन है।

राजभाषा अधिनियम, 1976

सरकारी कामकाज में हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के लिए 1976 में राजभाषा नियम बनाया गया है। यह एक महत्वपूर्ण कदम था, जिससे हिन्दी के प्रयोग में काफ़ी सहायता मिली है। इस नियम की महत्वपूर्ण व्यवस्थाएँ इस प्रकार हैः (क) केंद्र सरकार के कार्यालयों के ‘क’ क्षेत्र के लिए राज्य व संघ राज्य क्षेत्र (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश राज्य और संघ राज्य क्षेत्र दिल्ली) को ऐसे राज्यों में स्थित किसी अन्य कार्यालय या व्यक्ति को भेजे जाने वाले पत्र आदि हिन्दी में भेजे जाएँगे। यदि किसी ख़ास मामलें में कोई पत्र अंग्रेजी में भेजा जाता है तो उसका हिन्दी अनुवाद भी साथ भेजा जाएगा। (ख) केंद्र सरकार के कार्यालयों से ‘ख’ क्षेत्र के किसी राज्य व संघ राज्य क्षेत्र (पंजाब, गुजरात, और महाराष्ट्र तथा चंडीगढ़ और अंडमान निकोबार द्वीप समूह संघ राज्य क्षेत्र) के प्रशासनों को भेजे जाने वाले पत्र आदि सामान्यतः हिन्दी में भेजे जाएँगे। यदि ऐसा कोई पत्र अंग्रेजी में भेजा जाता है तो उसका हिन्दी अनुवाद भी साथ भेजा जाएगा। इन राज्यों में रहने वाले किसी व्यक्ति को भेजे जाने वाले पत्रादि हिन्दी या अंग्रेजी, किसी भी मात्रा में हो सकते हैं। (ग) केंद्रीय सरकार के कार्यालयों से ‘ग’ क्षेत्र के किसी राज्य व संघ राज्य क्षेत्र (‘क’ और ‘ख’ क्षेत्र में शामिल न होने वाले सभी राज्य और संघ राज्य क्षेत्र) के किसी कार्यालय या व्यक्ति को पत्रादि अंग्रेजी में भेजे जाएँगे। यदि ऐसा कोई पत्र हिन्दी में भेजा जाता है तो उसका अंग्रेजी अनुवाद साथ भेजा जाएगा। (घ) केंद्रीय सरकार के एक मंत्रालय या विभाग और दूसरे मंत्रालय या विभाग के बीच पत्र व्यवहार हिन्दी या अंग्रेजी में हो सकता है किंतु केंद्र सरकार के किसी मंत्रालय/विभाग और ‘क’ क्षेत्र में स्थिति संबंद्ध और अधीनस्था कार्यालयों के बीच होने वाला पत्र व्यहार सरकार द्वारा निर्धारित अनुपात में हिन्दी में होगा। वर्तमान व्यवस्था के अनुसार कम से कम दो तिहाई पत्र व्यवहार हिन्दी में होना चाहिए। ‘क’ क्षेत्र में स्थित केंद्र सरकार के किन्दी दो कार्यालयों के बीच सभी पत्र व्यवहार हिन्दी में ही किए जाने का प्रावधान है। (ड.) हिन्दी में प्राप्त पत्रादि के उत्तर अनिवार्य रूप से हिन्दी में ही दिए जाएँगे। हिन्दी में लेख या हिन्दी में इस्ताक्षर किए गए आवेदनों या अभ्यावेदनों के उत्तर भी हिन्दी में दिए जाएंगे। (च) राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 3 (3) में निर्दिष्ट सभी दस्तावेजों के लिए हिन्दी और अंग्रेज़ी, दोनों भाषाओं का प्रयोग किया जाएगा और इसे सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी ऐसे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति की होगी। (छ) केंद्रीय सरकार का कोई कर्मचारी फाइलों में हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणी या मसौदे लिख सकता है और उससे यह अपेक्षा नहीं की जाएगी कि वह उसका अनुवाद दूसरी भाषा में भी प्रस्तुत करें। (ज) केंद्रीय सरकार के कार्यालयों से संबंधित सभी मैनुअल, संहिताएँ और अन्य प्रक्रिया साहित्य हिन्दी और अंग्रेजी, दोनों में द्विभाषिक रूप में तैयार और प्रकाशित किए जाएँगे। सभी फार्मो और रजिस्टरों के शीर्ष, नामपट्ट, स्टेशनरी, आदि की अन्य मदें भी हिन्दी और अंग्रेजी मे द्विभाषिक रूप में होगी। (ण) प्रत्येक कार्यालय के प्रशासनिक प्रधान का यह दायित्व होगा कि वह राजभाषा अधिनियम और उसके अधीन बने नियमों का समुचित रूप से अनुपालन सुनिश्चित करें।

राजभाषा नीति के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों पर है। इस नीति के समन्वय का कार्य राजभाषा विभाग करता है। यह विभाग समन्वय के लिए वार्षिक कार्यक्रमों को जारी करने के अलावा कई प्रकार की समितियों का गठन करके यह कार्य कर रहा है, जिनका विवरण इस प्रकार हैः

(1) केंद्रीय हिन्दी समिति

हिन्दी के विकास और प्रसार तथा सरकारी कामकाज में हिन्दी के अधिकाधिक प्रयोग के संबंध में भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों द्वारा कार्यान्वित किए जा रहे कार्यक्रमों का समन्वय करने और नीति संबंधी दिशा निर्देश देने वाली यह सर्वाेच्च समिति है। प्रधानमंत्री जी की अध्यक्षता में गठित इस समिति में केंद्रीय सरकार के 11 मंत्री तथा राज्य मंत्री, राज्यों के 8 मुख्यमंत्री, 7 संसद सदस्य तथा हिन्दी के 10 विशिष्ट विद्वान् शामिल है। राजभाषा विभाग के सचिव एवं भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार इसके सदस्य सचिव हैं।

(2) हिन्दी सलाहकार समितियाँ

सरकार का यह निर्णय है कि राजभाषा नीति का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने और इस संबंध में आवश्यक सलाह देने के लिए जनता के साथ अधिक संपर्क में आने वाले विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों में हिन्दी सलाहकार संमितियाँ गठित की जाएँ। इस निर्णय के अनुसार 25 मंत्रालयों में उनके मंत्रियों की अध्यक्षता में हिन्दी सलाहकार समितियों का गठन किया गया है, जिनमे संसदस्यों तथा हिन्दी के विशिष्ट विद्वानों के अतिरिक्त मंत्रालय विशेष के वरिष्ठ अधिकारी शामिल होते हैं। वे अपने मंत्रलाय में हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के संबंध में आवश्यक विचार विर्मश करके निर्णय लेते हैं।

(3) राजभाषा कार्यान्वयन समितियाँ

केंद्रीय सरकार के जिन कार्यालयों में कर्मचारियों की संख्या (चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को छोड़कर) 25 या इससे अधिक है, वहाँ राजभाषा कार्यान्वयन समितियाँ बनाई गई हैं। मंत्रालयों व विभागों की राजभाषा कार्यान्वयन समितियों के अध्यक्षों को मिला कर एक केंद्रीय राजभाषा कार्यान्वयन समिति बनाई गई है, जो उसकी समस्याओं पर आंतरिक रूप से विचार करके उनका समाधान ढूँढती है। 1976 में लिए गए एक निर्णय के अनुसार ऐसे 55 नगरों में भी, जहाँ 10 या इनसे अधिक केंद्रीय कार्यालय है, नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों का गठन किया गया है।

          उपर्युक्त प्रयत्नों के फलस्वरूप भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों विभागों में हिन्दी का प्रयोग बढ़ा है। वर्ष 1981 की 3 तिमाहियों में कुल 423990 पत्र हिन्दी में प्राप्त हुए। इनमें से 233030 पत्रों का उत्तर हिन्दी में दिया गया तथा केवल 5088 पत्रों का उत्तर अंग्रेजी में। इसी अवधि में विभिन्न मंत्रालयों/विभागों से 345899 पत्र मूल रूप से हिन्दी में भेजे गए। इसी प्रकार अधीनस्थ कार्यालयों में भी हिन्दी का प्रयोग बढ़ रहा हे। राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 3 (3) के अनुसार सामान्य आदेश (जिनमें परिपत्र भी शामिल है) संकल्प, नियम, अधिसूचनाएँ, प्रशासनिक तथा अन्य रिपोर्ट, प्रेस विज्ञप्तियाँ, संविदा, करार, अनुज्ञप्ति आदि द्विभाषी रूप में जारी किए जाने चाहिए। इस संबंध में राजभाषा विभाग की ओर से सभी मंत्रालयों व विभागों से यह कहा गया है कि वे उन्हें अनिवार्य रूप से द्विभाषी रूप में जारी करें। अधिकतर मंत्रालय व विभाग ऐसा ही कर रहे हैं। वर्ष 1981 की 3 तिमाहियों में जारी होने वाले विभाग ऐसा ही कर रहे हैं। वर्ष 1981 की 3 तिमाहियों में जारी होने वाले इन कागज पत्रों की कुल संख्या 73341 थी। इनमें 61297 कागजपत्र द्विभाषी रूप में जारी हुए। इसके अतिरिक्त सभी मंत्रालयों व विभागों द्वारा हिन्दी में प्राप्त पत्रों के उत्तर प्रायः हिन्दी में दिए जाते हैं।
          उपर्युक्त विवरण से ज्ञात होगा कि राजभाषा के रूप में हिन्दी के विकास, प्रचार और प्रयोग में पर्याप्त वृद्धि हुई है, किंतु अभी भी हम अपेक्षित लक्ष्य तक नहीं पहुँच सके हैं। इसका कारण यह है कि जो सरकारी कर्मचारी हिन्दी जानते भी हैं, वे भी द्विभाषिक रूप में कार्य करने की छूट होने के कारण हिन्दी के बजाय अंग्रेजी में काम करना पसंद करते हैं, क्योंकि एक तो वे पहले से अंग्रेजी में काम करने के अभ्यस्त रहे हैं दूसरे हिन्दी में काम करने में वे कुछ हीनता अथवा संकोच का अनुभव करते हैं। यह हीनता और संकोच की भावना इस समय सरकारी कार्यालयों में हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है। इसके अतिरिक्त अंग्रेजी का प्रयोग करने के लिए अभी जितने यांत्रिक साधन और सुविधाएँ उपलब्ध है, वे हिन्दी में सुलभ नहीं है। इससे विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दी का प्रयोग अपेक्षित रूप में नहीं हो पा रहा है। अतः विभिन्न प्रकार के टाइपराइटरों, कंप्यूटरों आदि की अपेक्षित सुविधाएँ हिन्दी में सुलभ कराने के लिए पर्याप्त प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। हिन्दी भाषी राज्य सरकारें भी, जहाँ अधिकांश कर्मचारी हिन्दी जानते हैं, अभी तक संपूर्ण कार्य हिन्दी में नहीं कर पा रही है। इससे अन्य राज्यों में हिन्दी का प्रयोग करने पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
          यद्यपि राजभाषा अधिनियम एवं राजभाषा नियम के अनुसार अनेक कागज पत्रों एवं प्रकाशनों को द्विभाषिक रूप में अथवा केवल हिन्दी में जारी करना पड़ता है। किंतु सरकारी प्रेसों की हिन्दी की मुद्रण-क्षमता अभी भी संतोषजनक नहीं है। इससे न तो हिन्दी के प्रकाशन समय पर निकल पाते हैं और न ही समुचित मात्रा में हिन्दी का प्रयोग बढ़ पाता है। यह भी देखा गया है कि राजभाषा नीति के कार्यन्वयन के लिए अभी तक मंत्रालयों, विभागों, कार्यालयों आदि में समुचित हिन्दी स्टाफ की व्यवस्था नहीं हो पाई है। हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा उपयुक्त वातावरण न होने की है। प्रायः सभी सही सोचते हैं कि उनके बजाय किसी और को हिन्दी में काम करना है। फिर भी, विविध प्रयासों के परिणामस्वरूप हिन्दी का प्रयोग दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। भारत सरकार के सभी मंत्रालयों विभागो, कार्यालयों, उपक्रमों आदि में वार्षिक कार्यक्रमों को पूरा करने का भरकस प्रयास किया जा रहा है। हिन्दी में सर्वाधिक काम करने वाले मंत्रालयों व विभागों को शील्ड देने की व्यवस्था की गई है। इसके अतिरिक्त हिन्दी में पर्याप्त काम करने वाले को आर्थिक प्रोत्साहन देने की योजना भी विचाराधीन है। राजभाषा विभाग अपने विभिन्न प्रकाशनों के माध्यम से राजभाषा नीति, राजभाषा अधिनियम तथा राजभाषा नियमों की जानकारी देने का पूरा प्रयास कर रहा हे। विभिन्न मंत्रालयों की हिन्दी सलाहकार समितियाँ तथा राजभाषा कार्यान्वयन समितियाँ हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम उठा रही है। हिन्दी कार्यशालाओं के आयोजन से भी कर्मचारियों की झिझक दूर करके उन्हें हिन्दी में काम करने का प्रोत्साहन दिया जा रहा है। तात्पर्य यह है कि हिन्दी में काम करने का वातावरण बनाने के लिए हर संभव उपाय किए जा रहे हैं। यद्यपि हमारी मंजिल कुछ दूर अवश्य है, किंतु हम सब का सहयोग लेते हुए सशक्त और संतुलित कदमों से उसकी तरफ बढ़ रहे हैं। हमें आशा है, हम देर सवेर अपनी मंजिल तक अवश्य पहुँचेंगे।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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57. जर्मनी संघीय गणराज्य में हिन्दी डॉ. लोठार लुत्से
58. सूरीनाम देश और हिन्दी श्री सूर्यप्रसाद बीरे
59. हिन्दी का अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य श्री बच्चूप्रसाद सिंह
स्वैच्छिक संस्था संदर्भ
60. हिन्दी की स्वैच्छिक संस्थाएँ श्री शंकरराव लोंढे
61. राष्ट्रीय प्रचार समिति, वर्धा श्री शंकरराव लोंढे
सम्मेलन संदर्भ
62. प्रथम और द्वितीय विश्व हिन्दी सम्मेलन: उद्देश्य एवं उपलब्धियाँ श्री मधुकरराव चौधरी
स्मृति-श्रद्धांजलि
63. स्वर्गीय भारतीय साहित्यकारों को स्मृति-श्रद्धांजलि डॉ. प्रभाकर माचवे