फली एस. नरीमन
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पूरा नाम | फली सैम नरीमन |
जन्म | 10 जनवरी, 1929 |
जन्म भूमि | रंगून (वर्तमान म्यांमार) |
मृत्यु | 21 फ़रवरी, 2024 |
मृत्यु स्थान | दिल्ली |
अभिभावक | माता- बानू नरीमन पिता- सैम बरियामजी नरीमन |
संतान | पुत्र- 1 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | वकालत |
विद्यालय | मुंबई विश्वविद्यालय |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म विभूषण, 2007 |
प्रसिद्धि | अधिवक्ता, उच्चतम न्यायालय |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | फली एस. नरीमन मई 1972 में भारत के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल नियुक्त हुए थे। वरिष्ठ वकील के साथ वे 1991 से 2010 तक बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष भी रहे। |
फली सैम नरीमन (अंग्रेज़ी: Fali Sam Nariman, जन्म- 10 जनवरी, 1929; मृत्यु- 21 फ़रवरी, 2024) भारत के जाने-माने कानूनविद और उच्चतम न्यायालय के अनुभवी वरिष्ठ अधिवक्ता थे। उनका एक अधिवक्ता के तौर पर 70 साल से ज्यादा का अनुभव रहा। वह 1971 से भारत के सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील थे और 1991 से 2010 तक 'बार एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया' के अध्यक्ष रहे थे। बम्बई उच्च न्यायालय के बाद फली एस. नरीमन ने सन 1972 से सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। वे मई 1972 में भारत के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल भी नियुक्त हुए थे। उन्हें पद्म भूषण, 1991 और पद्म विभूषण, 2007 से भारत सरकार ने सम्मानित किया था।
प्रारंभिक जीवन
सन 1929 में रंगून (वर्तमान म्यांमार) में पारसी माता-पिता सैम बरियामजी नरीमन और बानू नरीमन के घर जन्मे फली एस. नरीमन ने अपनी स्कूली शिक्षा बिशप कॉटन स्कूल, शिमला से की। इसके बाद उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई से अर्थशास्त्र और इतिहास में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उसके बाद 1950 में गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, मुंबई से कानून की डिग्री (एलएलबी) ली। परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने के बाद और किन्लॉक फोर्ब्स गोल्ड से वह सम्मानित हुए। फली एस. नरीमन के पिता शुरू में चाहते थे कि वे भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में बैठें, चूँकि वह उस समय इसका खर्च वहन नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने कानून को अपने अंतिम विकल्प के रूप में चुना।
कॅरियर
नवंबर 1950 में फली. एस नरीमन बॉम्बे हाईकोर्ट में वकील के तौर पर रजिस्टर हुए। उन्हें 1961 में वरिष्ठ वकील का दर्जा दिया गया था। बॉम्बे हाईकोर्ट के बाद नरीमन ने 1972 से भारत की सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। वे मई 1972 में भारत के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल नियुक्त हुए थे। वरिष्ठ वकील के साथ वे 1991 से 2010 तक बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष भी रहे। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उनका कद काफी ऊंचा रहा। नरीमन 1989 से 2005 तक इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स की अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता कोर्ट के उपाध्यक्ष भी रहे। वे 1995 से 1997 तक जेनेवा के कानूनविदों के अंतरराष्ट्रीय आयोग की एग्जीक्यूटिव कमेटी के अध्यक्ष भी रहे।
पुरस्कार
- फली एस. नरीमन को जनवरी 1991 को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
- वहीं 2007 में उन्हें पद्म विभूषण दिया गया।
संविधान के संरक्षक
फली एस. नरीमन की कानूनी कुशलता उनके ऐतिहासिक दलीलों में झलकती है, जो संविधान के इकबाल को बनाए रखने और आम लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए अदालतों में मोतियों की तरह झरते थे। उन्होंने संविधान के मूलभूत ढांचे के सिद्धांत की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो भारतीय न्यायशास्त्र की आधारशिला है और जो संविधान के मूल सिद्धांतों को मनमाने संशोधनों से बचाता है। नरीमन संविधान के मर्म में गहराई से उतरते थे, इस कारण मूल संरचना को संविधान की नींव करार दिया था जिस पर पूरा राष्ट्र टिका हुआ है। वो संविधान की सर्वोच्च स्थिति को दर्शाने के लिए 'सर्वोच्च आसन पर दस्तावेज' के रूपक का उपयोग करते हैं। यह कल्पना उस दस्तावेज के प्रति उनकी श्रद्धा को रेखांकित करती है जो देश की आत्मा को परिभाषित करता है। नरीमन संविधान के मूल सिद्धांतों को चुनौतियों के प्रति आगाह करते रहे। वो इसके मूलभूत सिद्धांतों के साथ छेड़छाड़ के संभावित परिणामों की तुलना 'भूकंप' से करते थे।[1]
मौलिक अधिकारों के रक्षक
निजता का अधिकार, अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार और समानता का अधिकार जैसे मामलों में फली एस. नरीमन की दलीलों ने कानूनी पहलुओं को फिर से परिभाषित किया। ऐतिहासिक केशवानंद भारती मामले में उन्होंने संविधान की एक अपरिवर्तनीय 'बुनियादी संरचना' के विचार का समर्थन किया, जिससे इसकी स्थायी भावना सुनिश्चित हुई। श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ मामले में उन्होंने डिजिटल युग में अभिव्यक्ति की आजादी की सुरक्षा करते हुए ऑनलाइन अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाने वाले कठोर प्रावधान की अपनी दलीलों से धज्जियां उड़ा दीं। फली एस. नरीमन ने 99वें संविधान संशोधन अधिनियम, जिसे आमतौर पर एनजेसी एक्ट के नाम से जाना जाता है, के खिलाफ दलीलें दी थीं जिसने जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका को हस्तक्षेप का अधिकार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 4-1 के फैसले में यह संशोधन असंवैधानिक घोषित कर दिया था क्योंकि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है जो संविधान की मूल संरचना है।
नरीमन ने 1993 के सेकंड जज केस और 1998 के थर्ड जज केस में भी तर्क दिया, जिसमें वह सुप्रीम कोर्ट को न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए वर्तमान कॉलेजियम सिस्टम को अपनाने के लिए राजी करने में सफल रहे थे। संसद की सर्वोच्चता पर चर्चा करते समय नरीमन जटिलताओं को स्पष्ट करते हुए 'एकदलीय संसद' की तुलना 'बुलडॉग' से करते हैं, जिससे पता चलता है कि अनियंत्रित शक्ति, चाहे उसका स्वरूप कुछ भी हो, खतरनाक हो सकती है। यह कल्पना बहस के सार को पकड़ती है, सिस्टम के भीतर परख और संतुलन की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।
मानवाधिकारों के चैंपियन
मानवाधिकारों के प्रति फली एस. नरीमन की अटूट प्रतिबद्धता तीन तलाक और सबरीमाला जैसे संवेदनशील मुद्दों पर उनके फैसलों से स्पष्ट होती है। उन्होंने लगातार समानता और गैर-भेदभाव के आदर्शों का समर्थन किया और संविधान में निहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाली भेदभावपूर्ण प्रथाओं को खत्म किया। न्यायपालिका के प्रति उनका अटूट विश्वास उनकी बातों से झलकती थी। वो अदालतों को 'हमारी स्वतंत्रता का सबसे बड़ा रक्षक', 'अन्याय के खिलाफ आशा की किरण' के रूप में वर्णित करते थे। उनका यह व्यक्तित्व न्यायपालिका में एक संरक्षक की भावना का प्रसार करता था।[1]
भोपाल त्रासदी फैसले पर पछतावा
फली एस. नरीमन ने दिसंबर 1984 के भोपाल गैस रिसाव कांड में यूनियन कार्बाइड कंपनी की तरफ से मुकदमा लड़ा तो उनकी घोर आलोचना हुई। बाद में उनसे जब पूछा गया कि क्या उन्हें यूनियन कार्बाइड का केस लड़ने का पछतावा है तो उन्होंने बेहिचक कहा कि आज की तारीख में वह मुकदमा मिलता तो वो निश्चित रूप से इसे अपने हाथ में नहीं लेते। उन्होंन बड़ी साफगोई से कहा कि वो युवावस्था का दौर था। उन्हें लगा कि इतना बड़ा केस लेकर मशहूर हो जाएंगे, लेकिन बाद में महसूस हुआ कि यह मुकदमा नहीं था, एक त्रासदी थी। फ़रवरी 1989 में भोपाल त्रासदी के पीड़ितों को कंपनी ने 47 करोड़ डॉलर का मुआवजा दिया। इस समझौते में नरीमन ने महत्वपूर्ण भूमिक निभाई थी।
न्यायिक विरासत
फली एस. नरीमन की विरासत कानूनी दलीलों से कहीं आगे तक फैली हुई है। वो एक शब्दशिल्पी थे जिन्हें हरेक वाक्य के अर्थ की जटिल कशीदाकारी बुनने में महारत हासिल था। वो अपनी दलीलों में एक कहानीकार की झलक देते थे, जो पाठक को कोर्ट रूम की कथाओं में उलझाता है, कानून को कायम रखने का जुनून जगाता है।
मृत्यु
दिग्गज अधिवक्ताओं में शामिल रहे फली एस. नरीमन की मृत्यु 21 फ़रवरी, 2024 को दिल्ली में हुई। फली एस. नरीमन अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए हैं जो वकीलों और न्यायविदों की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी। कानून के शासन के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता, मानवाधिकारों की उनकी अविचल रक्षा और उनकी अत्यंत तीक्ष्ण बुद्धि ने उनका नाम भारतीय कानूनी इतिहास के इतिहास में अंकित कर दिया है। फली एस. नरीमन बस एक वकील नहीं, संविधान में निहित आदर्शों के प्रतीक, न्याय के अथक रक्षक और अधिक न्यायसंगत और न्यायपूर्ण समाज की तलाश करने वालों के लिए आशा की किरण रहे। नरीमन की गैर-मौजूदगी में भी उनके शब्द गूंज रहे हैं, जो न्याय के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता और कानून की उनकी गहरी समझ का प्रमाण है। वो न केवल कानूनी मिसालों का एक समूह, बल्कि भाषा की एक समृद्ध विरासत भी छोड़ गए हैं, जो भारतीय न्यायशास्त्र के इतिहास में हमेशा के लिए अंकित हो गई है।[1]
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी]] ने फली एस. नरीमन के निधन पर शोक जताया। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, 'श्री फली नरीमन ने अपना पूरा जीवन आम नागरिकों को न्याय सुलभ कराने के लिए समर्पित कर दिया। उनके निधन से गहरा दु:ख हुआ है। मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ हैं। उनकी आत्मा को शांति मिले'।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने फली एस. नरीमन के निधन पर शोक व्यक्त किया और कहा कि- 'वह एक महान बुद्धिजीवी थे'।
राहुल गांधी ने एक्स पर पोस्ट किया, 'फली नरीमन के परिवार और दोस्तों के प्रति मेरी संवेदनाएं। उनके निधन से विधि समुदाय में गहरा शून्य पैदा हो गया है। उनके योगदान ने न केवल ऐतिहासिक मामलों को आकार दिया है, बल्कि हमारे संविधान की पवित्रता और नागरिक स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए न्यायविदों की पीढ़ियों को भी प्रेरित किया है'।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 फली एस नरीमन: जिनकी दमदार दलीलों से दशकों गूंजती रहीं अदालतें (हिंदी) navbharattimes.indiatimes.com। अभिगमन तिथि: 21 फ़रवरी, 2024।
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