"भारतकोश सम्पादकीय 3 मई 2013": अवतरणों में अंतर
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मरना ही शौक़ होता तो मर गए होते | मरना ही शौक़ होता तो मर गए होते | ||
जायज़ अगर ये होता तो कर गए होते | जायज़ अगर ये होता तो कर गए होते | ||
मालूम गर ये होता बुरा मानते हो तुम | मालूम गर ये होता बुरा मानते हो तुम | ||
इतने तो शर्मदार हैं, क्यों घर गए होते | इतने तो शर्मदार हैं, क्यों घर गए होते | ||
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इक दोस्ती का वास्ता तुमसे नहीं रहा | इक दोस्ती का वास्ता तुमसे नहीं रहा | ||
पहचान भी तो रस्म है, वो कर गए होते | पहचान भी तो रस्म है, वो कर गए होते | ||
उस मुफ़लिसी के दौर में हम ही थे राज़दार<ref>मुफ़लिसी = दरिद्रता, ग़रीबी, फ़कीरी</ref> | उस मुफ़लिसी के दौर में हम ही थे राज़दार<ref>मुफ़लिसी = दरिद्रता, ग़रीबी, फ़कीरी</ref> | ||
आसाइशों की बज्म़ दिखा कर गए होते<ref>आसाइश = सुख, चैन, आराम, समृद्धि, खुशहाली</ref><ref>बज़्म = सभा, महफिल</ref> | आसाइशों की बज्म़ दिखा कर गए होते<ref>आसाइश = सुख, चैन, आराम, समृद्धि, खुशहाली</ref><ref>बज़्म = सभा, महफिल</ref> | ||
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हर रोज़ मुलाक़ात औ बातों के सिलसिले | हर रोज़ मुलाक़ात औ बातों के सिलसिले | ||
इक रोज़ ख़त्म करते हैं, वो कर गए होते | इक रोज़ ख़त्म करते हैं, वो कर गए होते | ||
माज़ूर बनके क्या मिलें अब दोस्तों से हम<ref>माज़ूर = जिसे किसी श्रम या सेवा का फल दिया गया हो, प्रतिफलित</ref> | माज़ूर बनके क्या मिलें अब दोस्तों से हम<ref>माज़ूर = जिसे किसी श्रम या सेवा का फल दिया गया हो, प्रतिफलित</ref> | ||
कुछ दोस्ती का पास निभा कर गए होते<ref>पास = | कुछ दोस्ती का पास निभा कर गए होते<ref>पास = लिहाज़</ref> | ||
पहले बहुत ग़ुरूर था तुम दोस्त हो मेरे | पहले बहुत ग़ुरूर था तुम दोस्त हो मेरे | ||
अब दुश्मनी के तौर बता कर गए होते<ref>तौर = शैली, आचरण, व्यवहार, रंगढंग </ref> | अब दुश्मनी के तौर बता कर गए होते<ref>तौर = शैली, आचरण, व्यवहार, रंगढंग </ref> | ||
'बंदा' नहीं है मुंतज़िर अब रहमतों का यार<ref>मुंतज़िर = इंतज़ार या प्रतीक्षा करने वाला</ref><ref>रहमत = दया, कृपा, करुणा, तरस</ref> | 'बंदा' नहीं है मुंतज़िर अब रहमतों का यार<ref>मुंतज़िर = इंतज़ार या प्रतीक्षा करने वाला</ref><ref>रहमत = दया, कृपा, करुणा, तरस</ref> | ||
ताक़ीद हर एक दोस्त को हम कर गये होते<ref>ताक़ीद = कोई बात ज़ोर देकर कहना, किसी बात का करने या न करने का हुक्म देना</ref> | ताक़ीद हर एक दोस्त को हम कर गये होते<ref>ताक़ीद = कोई बात ज़ोर देकर कहना, किसी बात का करने या न करने का हुक्म देना</ref> |
16:42, 3 मई 2013 के समय का अवतरण
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मुफ़लिसी = दरिद्रता, ग़रीबी, फ़कीरी
- ↑ आसाइश = सुख, चैन, आराम, समृद्धि, खुशहाली
- ↑ बज़्म = सभा, महफिल
- ↑ माज़ूर = जिसे किसी श्रम या सेवा का फल दिया गया हो, प्रतिफलित
- ↑ पास = लिहाज़
- ↑ तौर = शैली, आचरण, व्यवहार, रंगढंग
- ↑ मुंतज़िर = इंतज़ार या प्रतीक्षा करने वाला
- ↑ रहमत = दया, कृपा, करुणा, तरस
- ↑ ताक़ीद = कोई बात ज़ोर देकर कहना, किसी बात का करने या न करने का हुक्म देना