"जीवन संगिनी -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>जीवन संगिनी<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>जीवन संगिनी<br />
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<small>-आदित्य चौधरी</small></font></div>
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क़ीमत चुकाई, तो मालूम होगा
क़ीमत चुकाई, तो मालूम होगा
   जो यूँ ही मिला है, फ़रिश्ता हो शायद
जो यूँ ही मिला है, फ़रिश्ता हो शायद


तुम पर ख़ुदा की मेहरबानियाँ हैं
तुम पर ख़ुदा की मेहरबानियाँ हैं
   ये जलवा उसी का करिश्मा हो शायद
ये जलवा उसी का करिश्मा हो शायद


जिसे तुम मुहब्बत को तरसा रहे हो
जिसे तुम मुहब्बत को तरसा रहे हो
   वो ख़ुद को ख़ुशी से सताता हो शायद
वो ख़ुद को ख़ुशी से सताता हो शायद


हरदम कसौटी पे क्यूँ कस रहे हो
हरदम कसौटी पे क्यूँ कस रहे हो
   कहीं तुम जो पीतल, वो सोना हो शायद
कहीं तुम जो पीतल, वो सोना हो शायद


तुम अपने मंदिर के भगवान होगे
तुम अपने मंदिर के भगवान होगे
   वो विस्तार अपना छुपाता हो शायद
वो विस्तार अपना छुपाता हो शायद


उसे सारी दुनिया दिखा दो तो क्या है
उसे सारी दुनिया दिखा दो तो क्या है
   तुम्हें आइना वो दिखाता हो शायद
तुम्हें आइना वो दिखाता हो शायद


ये दुनिया तुम्हारी औ तुम इसके सूरज
ये दुनिया तुम्हारी औ तुम इसके सूरज
   तुम्हें रात को वो सुलाता हो शायद
तुम्हें रात को वो सुलाता हो शायद


-आदित्य चौधरी  
-आदित्य चौधरी  
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06:54, 24 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

जीवन संगिनी -आदित्य चौधरी

क़ीमत चुकाई, तो मालूम होगा
जो यूँ ही मिला है, फ़रिश्ता हो शायद

तुम पर ख़ुदा की मेहरबानियाँ हैं
ये जलवा उसी का करिश्मा हो शायद

जिसे तुम मुहब्बत को तरसा रहे हो
वो ख़ुद को ख़ुशी से सताता हो शायद

हरदम कसौटी पे क्यूँ कस रहे हो
कहीं तुम जो पीतल, वो सोना हो शायद

तुम अपने मंदिर के भगवान होगे
वो विस्तार अपना छुपाता हो शायद

उसे सारी दुनिया दिखा दो तो क्या है
तुम्हें आइना वो दिखाता हो शायद

ये दुनिया तुम्हारी औ तुम इसके सूरज
तुम्हें रात को वो सुलाता हो शायद

-आदित्य चौधरी