"रात नहीं कटती थी रात में -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर

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रात नहीं कटती थी रात में अब दिन में भी कटी नहीं
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ऐसी परत जमी चेहरों पर कोहरे की फिर हटी नहीं
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रात नहीं कटती थी रात में, अब दिन में भी कटी नहीं
ऐसी परत जमी चेहरों पर, कोहरे की फिर हटी नहीं


बी पॉज़िटिव-बी पॉज़िटिव कह कह कर जी ऊब गया
मस्त ज़िन्दगी जी लो यारो, इसमें कोई हर्ज़ नहीं
इतना जीया सन्नाटे को सन्नाटा भी रूठ गया
संजीदा रिश्ते को तलाशो, तो दिन रातों चैन नहीं


मस्त ज़िन्दगी जीलो यारो इसमें कोई हर्ज़ नहीं
दूर हैं हम जो तुमसे इतने, ये अपनी तक़्दीर नहीं
संजीदा रिश्ते को तलाशो तो दिन रातों चैन नहीं
इल्म नहीं है हमको जिसका, साज़िश है तदबीर नहीं


दूर हैं हम जो तुमसे इतने ये अपनी तक़्दीर नहीं
वक़्त निगेहबाँ होता जब, ख़ाबों में रंग होते हैं
इल्म नहीं है हमको जिसका साज़िश है तदबीर नहीं
एक ख़ाब मैंने भी देखा, जिसकी कहीं ताबीर नहीं


वक़्त निगेहबाँ होता जब ख़ाबों में रंग होते हैं
उसे भुला दूँ जिसमें बसा था,  पूरा ये संसार मिरा
एक ख़ाब मैंने भी देखा जिसमें रंगत दिखी नहीं
शक़ की बिनाह पर मुझको छोड़ा, कोई बहस तक़रीर नहीं


उसे भुला दूँ जिसमें बसा था  पूरा ये संसार मिरा
इसने टोका उसने पूछा, क्यों किस्मत क्या खुली नहीं ?
शक़ की बिनाह पर मुझको छोड़ा कोई बहस तक़रीर नहीं
रात नहीं कटती थी रात में, अब दिन में भी कटी नहीं
 
दिन जैसे जंगल बातों का सांय-सांय करता रहता
किसी तिलस्मी खोज में जैसे अय्यारी करता फिरता
 
इसने टोका उसने पूछा क्यों किस्मत क्या खुली नहीं ?
रात नहीं कटती थी रात में अब दिन में भी कटी नहीं
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14:37, 13 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

रात नहीं कटती थी रात में -आदित्य चौधरी

रात नहीं कटती थी रात में, अब दिन में भी कटी नहीं
ऐसी परत जमी चेहरों पर, कोहरे की फिर हटी नहीं

मस्त ज़िन्दगी जी लो यारो, इसमें कोई हर्ज़ नहीं
संजीदा रिश्ते को तलाशो, तो दिन रातों चैन नहीं

दूर हैं हम जो तुमसे इतने, ये अपनी तक़्दीर नहीं
इल्म नहीं है हमको जिसका, साज़िश है तदबीर नहीं

वक़्त निगेहबाँ होता जब, ख़ाबों में रंग होते हैं
एक ख़ाब मैंने भी देखा, जिसकी कहीं ताबीर नहीं

उसे भुला दूँ जिसमें बसा था, पूरा ये संसार मिरा
शक़ की बिनाह पर मुझको छोड़ा, कोई बहस तक़रीर नहीं

इसने टोका उसने पूछा, क्यों किस्मत क्या खुली नहीं ?
रात नहीं कटती थी रात में, अब दिन में भी कटी नहीं