"हर शाख़ पे बैठे उल्लू से -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 32: पंक्ति 32:
इस जंगल में अब आग लगे  
इस जंगल में अब आग लगे  
और सारे उल्लू भस्म करे  
और सारे उल्लू भस्म करे  
फिर नया एक सावन आए  
फिर एक नया सावन आए  
और नया सवेरा पहल करे
और नया सवेरा पहल करे



14:33, 21 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

हर शाख़ पे बैठे उल्लू से -आदित्य चौधरी

हर शाख़ पे बैठे उल्लू से,
कोई प्यार से जाके ये पूछे
है क्या अपराध गुलिस्तां का ?
जो शाख़ पे आके तुम बैठे !

          कितने सपने कितने अरमां
          लेकर हम इनसे मिलते हैं
          बेदर्द ये पंजों से अपने
          सबकी किस्मत पे चलते हैं

उल्लू तो चुप ही रहते हैं
हम दर्द से हरदम पिसते हैं
वो बोलेंगे, इस कोशिश में
हम चप्पल जूते घिसते हैं

          ना शाख़ कभी ये सूखेंगी
          ना पेड़ कभी ये कटना है
          जब भी कोई शाख़ नई होगी
          उल्लू ही उसमें बसना है

इस जंगल में अब आग लगे
और सारे उल्लू भस्म करे
फिर एक नया सावन आए
और नया सवेरा पहल करे

          तब नई कोंपलें फूटेंगी
          और नई शाख़ उग आएगी
          फिर नये गीत ही गूँजेंगे
          और नई ज़िन्दगी गाएगी


टीका टिप्पणी और संदर्भ