"क्यों विलग होता गया -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर

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आज निर्गत, नीर निर्झर नयन से होता गया
आज निर्गत, नीर निर्झर नयन से होता गया
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वह निरंतर शुभ्र तन औ शांत मन होता गया  
वह निरंतर शुभ्र तन औ शांत मन होता गया  
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13:32, 20 मार्च 2015 के समय का अवतरण

क्यों विलग होता गया -आदित्य चौधरी

आज निर्गत, नीर निर्झर नयन से होता गया
त्याग कर मेरा हृदय वह क्यों विलग होता गया

शब्द निष्ठुर, रूठकर करते रहे मनमानियां
प्रेम का संदेश कुछ था और कुछ होता गया

मैं अधम, शोषित हुआ, अपने ही भ्रामक दर्प से
क्रूर समयाघात सह, अवसादमय होता गया

कर रही विचलित, कि ज्यों टंकार प्रत्यंचा की हो
नाद सुन अपने हृदय का मैं द्रवित होता गया

मैं, अपरिचित काल क्रम की रार में विभ्रमित था
वह निरंतर शुभ्र तन औ शांत मन होता गया


टीका टिप्पणी और संदर्भ