"सभ्य जानवर -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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जब दरवाज़ा नहीं खुला तो साधु ने उसे तोड़ने की कोशिश की लेकिन वह टूटा नहीं। इसके बाद साधु छत पर चढ़ गया और खपरैल में छेद करके अंदर कूदा। इस प्रक्रिया में साधु के जांघ में खपरैल की छत का नुकीला बांस घुस गया और गहरे घाव से ख़ून बहने लगा। गहरे ज़ख़्म और भयंकर पीड़ा के कारण साधु का आवेग समाप्त हो गया। उसने दम्पत्ति से क्षमा याचना की और अपने रक्त (ख़ून) से ही यह पूरा घटना क्रम लिखा। इसीलिए इसका नाम रक्त गीता पड़ा। | जब दरवाज़ा नहीं खुला तो साधु ने उसे तोड़ने की कोशिश की लेकिन वह टूटा नहीं। इसके बाद साधु छत पर चढ़ गया और खपरैल में छेद करके अंदर कूदा। इस प्रक्रिया में साधु के जांघ में खपरैल की छत का नुकीला बांस घुस गया और गहरे घाव से ख़ून बहने लगा। गहरे ज़ख़्म और भयंकर पीड़ा के कारण साधु का आवेग समाप्त हो गया। उसने दम्पत्ति से क्षमा याचना की और अपने रक्त (ख़ून) से ही यह पूरा घटना क्रम लिखा। इसीलिए इसका नाम रक्त गीता पड़ा। | ||
रक्त गीता का साधु दोनों ही पक्षों में खरा उतरता है। वह सभ्य भी था और भद्र भी। सभ्य इसलिए कि उसने दम्पत्ति को रात गुज़ारने का आसरा दिया और भद्र इसलिए कि अपने एकान्त के 'असाधु' से उन्हें बचाने के उपाय बताए और बचाया भी। | रक्त गीता का साधु दोनों ही पक्षों में खरा उतरता है। वह सभ्य भी था और भद्र भी। सभ्य इसलिए कि उसने दम्पत्ति को रात गुज़ारने का आसरा दिया और भद्र इसलिए कि अपने एकान्त के 'असाधु' से उन्हें बचाने के उपाय बताए और बचाया भी। | ||
हमारे भीतर न जाने कितने रूप छिपे होते हैं, जो समय-समय पर अपनी भूमिका निभाते हैं। एक व्यक्ति, बेटा या बेटी के रूप में कुछ और ही है और उसी व्यक्ति को जब पिता या | हमारे भीतर न जाने कितने रूप छिपे होते हैं, जो समय-समय पर अपनी भूमिका निभाते हैं। एक व्यक्ति, बेटा या बेटी के रूप में कुछ और ही है और उसी व्यक्ति को जब पिता या माँ के रूप में देखते हैं तो कुछ और ही पाते हैं। सामान्यत: आदमी अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में तब होता है जब वह 'पिता' हो और औरत के लिए यह रूप 'मां' का है। | ||
अपने प्रेमी या प्रेमिका के लिए हम किसी भी अन्य रूप से एकदम छलांग लगा कर भोले-भाले और मासूम बन जाते हैं। यदि एक रिंग मास्टर जो सर्कस में जानवरों पर कोड़े बरसा रहा हो और तभी उसकी प्रेमिका आ जाय तो... ? एकदम से रिंगमास्टर के चेहरे पर कोमलता के भाव आ जायेंगे और वह कोड़े बरसाने में सहज नहीं रह पाएगा। सारा दिन दुकान पर झूठ-सच बोलने वाला कोई दुकानदार जब अपने बच्चों के लिए चॉकलेट लेकर घर पहुँचता है तो कोई अंदाज़ा भी नहीं कर सकता कि ये वही आदमी है जो बेहद चालाक़ी से अपनी दुकान पर सामान बेचता है। | अपने प्रेमी या प्रेमिका के लिए हम किसी भी अन्य रूप से एकदम छलांग लगा कर भोले-भाले और मासूम बन जाते हैं। यदि एक रिंग मास्टर जो सर्कस में जानवरों पर कोड़े बरसा रहा हो और तभी उसकी प्रेमिका आ जाय तो... ? एकदम से रिंगमास्टर के चेहरे पर कोमलता के भाव आ जायेंगे और वह कोड़े बरसाने में सहज नहीं रह पाएगा। सारा दिन दुकान पर झूठ-सच बोलने वाला कोई दुकानदार जब अपने बच्चों के लिए चॉकलेट लेकर घर पहुँचता है तो कोई अंदाज़ा भी नहीं कर सकता कि ये वही आदमी है जो बेहद चालाक़ी से अपनी दुकान पर सामान बेचता है। | ||
बछड़ों की गर्दन पर चाक़ू चलाने वाला क़साई जब प्यार से अपने बेटे-बेटी की गर्दन सहलाता है तो उसे ध्यान भी नहीं आता कि कितनी गर्दन वो रोज़ाना काटता है क्योंकि उस समय वो किसी दूसरी भूमिका में होता है। | बछड़ों की गर्दन पर चाक़ू चलाने वाला क़साई जब प्यार से अपने बेटे-बेटी की गर्दन सहलाता है तो उसे ध्यान भी नहीं आता कि कितनी गर्दन वो रोज़ाना काटता है क्योंकि उस समय वो किसी दूसरी भूमिका में होता है। | ||
लोग अपने वास्तविक जीवन में अनेक भूमिकाएँ करते रहते हैं, उनके वास्तविक रूप को पहचान पाना बड़ा ही मुश्किल है, लगभग असंभव... लेकिन ऐसा क्यों है ? कभी किसी जानवर को पहचान पाना तो मुश्किल नहीं होता। एक प्रजाति के सभी जानवर एक जैसा ही व्यवहार करते हैं, बहुत कम अंतर होता है उनके व्यवहार में। बिल्लियाँ सब एक जैसी हैं, कुत्ते सब एक जैसे हैं, गाय सब एक जैसी हैं... तो फिर मनुष्य ही ऐसे हैं क्या, जो एक जैसे नहीं हैं! | लोग अपने वास्तविक जीवन में अनेक भूमिकाएँ करते रहते हैं, उनके वास्तविक रूप को पहचान पाना बड़ा ही मुश्किल है, लगभग असंभव... लेकिन ऐसा क्यों है ? कभी किसी जानवर को पहचान पाना तो मुश्किल नहीं होता। एक प्रजाति के सभी जानवर एक जैसा ही व्यवहार करते हैं, बहुत कम अंतर होता है उनके व्यवहार में। बिल्लियाँ सब एक जैसी हैं, कुत्ते सब एक जैसे हैं, गाय सब एक जैसी हैं... तो फिर मनुष्य ही ऐसे हैं क्या, जो एक जैसे नहीं हैं! | ||
असल बात यह है कि, हैं तो मनुष्य भी सब एक जैसे ही लेकिन उनकी सभ्यता का माप अलग है। मनुष्य के | असल बात यह है कि, हैं तो मनुष्य भी सब एक जैसे ही लेकिन उनकी सभ्यता का माप अलग है। मनुष्य के मस्तिष्क ने अलग-अलग तरह से विकसित और पोषित होकर मनुष्य को 'पशुता' से भिन्न बना दिया है। किसी मनुष्य को क्या सिखाया गया, यह महत्व नहीं रखता बल्कि उसने क्या सीखा, महत्त्वपूर्ण यह है। हम दो बच्चों को एक ही कक्षा में, एक ही शिक्षा देते हैं, लेकिन परिणाम भिन्न पाते हैं। किसी अनुशासन का असर भी बच्चों पर भिन्न ही होता है और यह असर समय-समय पर बदलता भी रहता है। | ||
आपको इस तरह की बात कहते लोग अक्सर मिल जाएँगे- | आपको इस तरह की बात कहते लोग अक्सर मिल जाएँगे- | ||
* "मेरे मां-बाप ने मुझे बेहद लाड़-प्यार से पाला, जिसके कारण मैं बरबाद हो गया।" | * "मेरे मां-बाप ने मुझे बेहद लाड़-प्यार से पाला, जिसके कारण मैं बरबाद हो गया।" | ||
* "मेरी | * "मेरी माँ या पिता ने मुझे कठोर अनुशासन में रखा। इसी कारण मैं आज एक सफल व्यक्ति हूँ।" | ||
* "मेरे टीचर का वो चाँटा मुझे अब तक याद है और उस चाँटे ने मेरी ज़िन्दगी बदल दी और मैंने ख़ूब पढ़ाई की और सफल हुआ।" | * "मेरे टीचर का वो चाँटा मुझे अब तक याद है और उस चाँटे ने मेरी ज़िन्दगी बदल दी और मैंने ख़ूब पढ़ाई की और सफल हुआ।" | ||
* "मेरे टीचर ने मुझे चाँटा मारा और फिर मैं कभी स्कूल नहीं गया।" | * "मेरे टीचर ने मुझे चाँटा मारा और फिर मैं कभी स्कूल नहीं गया।" |
14:09, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
सभ्य जानवर -आदित्य चौधरी "अरे, शंकर चौधरी ! ओ शंकर चौधरी !"
अजीब बात है? हर एक घटना प्रत्येक व्यक्ति पर अलग असर डालती है और कभी-कभी तो एक ही व्यक्ति पर एक ही घटना अलग-अलग समय पर अलग असर डालती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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