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'''पुलेला गोपीचंद''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Pullela Gopichand'', जन्म: [[16 नवम्बर]], [[1973]]) एक प्रसिद्ध भारतीय [[बैडमिंटन]] खिलाड़ी हैं। [[11 मार्च]] [[2001]] को ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप जीत कर [[भारत]] के स्टार शटलर पुलेला गोपीचंद ने भारतीय खेल जगत में एक नया इतिहास लिख डाला। इनसे 21 [[वर्ष]] पूर्व [[प्रकाश पादुकोने]] ने भारत में बैडमिंटन की ऊँचाइयों को छुआ था।  
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==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
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गोपीचंद की आरम्भिक शिक्षा [[हैदराबाद]] के सेंट पॉल स्कूल में हुई तथा ए.वी कॉलेज से उसने स्नातक परीक्षा पास की। फिर उसने पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में डिग्री प्राप्त की। पुलेला ने प्रथम मैच 12 वर्ष की उम्र में [[दिल्ली]] में आयोजित 'राष्ट्रीय प्रतिभा खोज कार्यक्रम' में जीता। फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।  
गोपीचंद की आरम्भिक शिक्षा [[हैदराबाद]] के सेंट पॉल स्कूल में हुई तथा ए.वी कॉलेज से उसने स्नातक परीक्षा पास की। फिर उसने पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में डिग्री प्राप्त की। पुलेला ने प्रथम मैच 12 वर्ष की उम्र में [[दिल्ली]] में आयोजित 'राष्ट्रीय प्रतिभा खोज कार्यक्रम' में जीता। फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।  
==खेल जीवन==
==खेल जीवन==
पुलेला गोपीचंद ने [[1991]] से देश के लिए खेलना आरम्भ किया जब उनका चुनाव [[मलेशिया]] के विरुद्ध खेलने के लिए किया गया। उसके पश्चात तीन बार (1998-2000) 'थामस कप' में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और अनेक बार विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लिया है। उसने अनेक टूर्नामेंट में विजय हासिल कर भारत को गौरवांवित किया है। उसने [[1996]] में [[विजयवाड़ा]] के सार्क टूर्नामेंट में तथा 1997 में कोलम्बो में स्वर्ण पदक प्राप्त किए। कामनवेल्थ खेलों में कड़े मुक़ाबलों के बीच रजत व कांस्य पदक भारत को दिलाए। [[1997]] में [[दिल्ली]] के 'ग्रैंड प्रिक्स' मुक़ाबलों में उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा हुई जब उसने एक से एक अच्छे खिलाड़ियों को हराते हुए फाइनल में प्रवेश किया। यद्यपि फाइनल में वह हार गया। वर्ष [[2000]] के सिडनी ओलंपिक में बैडमिंटन के लिए भारतीय खिलाड़ियों में केवल पुलेला गोपीचंद का ही नाम था। [[प्रकाश पादुकोने]] के रिटायर होने के पश्चात भारत में कोई उत्तम बैडमिंटन खिलाड़ी बचा ही नहीं था, तब पुलेला का आगमन हुआ जिसमें असीम संभावनाएं दिखाई दीं। अतः प्रकाश पादुकोने के बाद आगे बढ़ कर चमकने वाला बैंडमिंटन खिलाड़ी पुलेला गोपीचंद ही है। वह प्रतिभावान होने के साथ-साथ देखने में सुन्दर व आकर्षण भी है।  
पुलेला गोपीचंद ने [[1991]] से देश के लिए खेलना आरम्भ किया जब उनका चुनाव [[मलेशिया]] के विरुद्ध खेलने के लिए किया गया। उसके पश्चात् तीन बार (1998-2000) 'थामस कप' में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और अनेक बार विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लिया है। उसने अनेक टूर्नामेंट में विजय हासिल कर भारत को गौरवांवित किया है। उसने [[1996]] में [[विजयवाड़ा]] के सार्क टूर्नामेंट में तथा 1997 में कोलम्बो में स्वर्ण पदक प्राप्त किए। कामनवेल्थ खेलों में कड़े मुक़ाबलों के बीच रजत व कांस्य पदक भारत को दिलाए। [[1997]] में [[दिल्ली]] के 'ग्रैंड प्रिक्स' मुक़ाबलों में उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा हुई जब उसने एक से एक अच्छे खिलाड़ियों को हराते हुए फाइनल में प्रवेश किया। यद्यपि फाइनल में वह हार गया। वर्ष [[2000]] के सिडनी ओलंपिक में बैडमिंटन के लिए भारतीय खिलाड़ियों में केवल पुलेला गोपीचंद का ही नाम था। [[प्रकाश पादुकोने]] के रिटायर होने के पश्चात् भारत में कोई उत्तम बैडमिंटन खिलाड़ी बचा ही नहीं था, तब पुलेला का आगमन हुआ जिसमें असीम संभावनाएं दिखाई दीं। अतः प्रकाश पादुकोने के बाद आगे बढ़ कर चमकने वाला बैंडमिंटन खिलाड़ी पुलेला गोपीचंद ही है। वह प्रतिभावान होने के साथ-साथ देखने में सुन्दर व आकर्षण भी है।  


वर्ष [[2000]] में गोपीचंद थामस कप के फाइनल में पहुँचा था तो यूँ लगा था कि भारत खेलों में आगे बढ़ने लगा है। फिर जब गोपीचंद ने आल इंग्लैंड खिताब 2001 में जीता तब तो यूँ लगने लगा कि मानो हमें चाँद तक पहुँचने की सीढ़ी मिल गई हो। तब हमारे 6 खिलाड़ी विश्व के टॉप 100 खिलाड़ियों में शामिल हो गए थे लेकिन अब केवल 3 भारतीय खिलाड़ी ही उन टाप 100 खिलाड़ियों में हैं। 2001 में गोपीचंद विश्व की रैंकिंग में नं. 4 खिलाड़ी बन गया था।  
वर्ष [[2000]] में गोपीचंद थामस कप के फाइनल में पहुँचा था तो यूँ लगा था कि भारत खेलों में आगे बढ़ने लगा है। फिर जब गोपीचंद ने आल इंग्लैंड खिताब 2001 में जीता तब तो यूँ लगने लगा कि मानो हमें चाँद तक पहुँचने की सीढ़ी मिल गई हो। तब हमारे 6 खिलाड़ी विश्व के टॉप 100 खिलाड़ियों में शामिल हो गए थे लेकिन अब केवल 3 भारतीय खिलाड़ी ही उन टाप 100 खिलाड़ियों में हैं। 2001 में गोपीचंद विश्व की रैंकिंग में नं. 4 खिलाड़ी बन गया था।  
====ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप====
====ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप====
[[11 मार्च]] [[2001]] को ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप जीत कर भारत के स्टार शटलर पुलेला गोपीचंद ने भारतीय खेल जगत में एक नया इतिहास लिख डाला। इससे 21 वर्ष पूर्व प्रकाश पादुकोने ने भारत में बैडमिंटन की ऊँचाइयों को छुआ था। पिछले ओलंपिक के गोल्ड पदक विजेता और विश्व के नम्बर 1 खिलाड़ी को क्वार्टर फाइनल और फिर सेमी फाइनल विश्व बैडमिंटन मुक़ाबले मे हराना और फिर फाइनल में भी हरा कर जीत जाना एक सपने जैसा था जैसा कि अक्सर भारतीय फ़िल्मों में हीरो के साथ होता है परंतु गोपीचंद ने इसे असल ज़िंदगी में कर दिखाया।  
[[11 मार्च]] [[2001]] को ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप जीत कर भारत के स्टार शटलर पुलेला गोपीचंद ने भारतीय खेल जगत् में एक नया इतिहास लिख डाला। इससे 21 वर्ष पूर्व प्रकाश पादुकोने ने भारत में बैडमिंटन की ऊँचाइयों को छुआ था। पिछले ओलंपिक के गोल्ड पदक विजेता और विश्व के नम्बर 1 खिलाड़ी को क्वार्टर फाइनल और फिर सेमी फाइनल विश्व बैडमिंटन मुक़ाबले मे हराना और फिर फाइनल में भी हरा कर जीत जाना एक सपने जैसा था जैसा कि अक्सर भारतीय फ़िल्मों में हीरो के साथ होता है परंतु गोपीचंद ने इसे असल ज़िंदगी में कर दिखाया।  


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
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पुलेला गोपीचंद
पुलेला गोपीचंद
पुलेला गोपीचंद
पूरा नाम पुलेला गोपीचंद
जन्म 16 नवम्बर, 1973
जन्म भूमि प्रकाशम, आन्ध्र प्रदेश
खेल-क्षेत्र बैडमिंटन
पुरस्कार-उपाधि राजीव गाँधी खेल रत्न, अर्जुन पुरस्कार, द्रोणाचार्य पुरस्कार, पद्म श्री
नागरिकता भारतीय
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पुलेला गोपीचंद (अंग्रेज़ी:Pullela Gopichand, जन्म: 16 नवम्बर, 1973) एक प्रसिद्ध भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। 11 मार्च 2001 को ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप जीत कर भारत के स्टार शटलर पुलेला गोपीचंद ने भारतीय खेल जगत् में एक नया इतिहास लिख डाला। इनसे 21 वर्ष पूर्व प्रकाश पादुकोने ने भारत में बैडमिंटन की ऊँचाइयों को छुआ था।

जीवन परिचय

गोपीचंद की आरम्भिक शिक्षा हैदराबाद के सेंट पॉल स्कूल में हुई तथा ए.वी कॉलेज से उसने स्नातक परीक्षा पास की। फिर उसने पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में डिग्री प्राप्त की। पुलेला ने प्रथम मैच 12 वर्ष की उम्र में दिल्ली में आयोजित 'राष्ट्रीय प्रतिभा खोज कार्यक्रम' में जीता। फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

खेल जीवन

पुलेला गोपीचंद ने 1991 से देश के लिए खेलना आरम्भ किया जब उनका चुनाव मलेशिया के विरुद्ध खेलने के लिए किया गया। उसके पश्चात् तीन बार (1998-2000) 'थामस कप' में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और अनेक बार विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लिया है। उसने अनेक टूर्नामेंट में विजय हासिल कर भारत को गौरवांवित किया है। उसने 1996 में विजयवाड़ा के सार्क टूर्नामेंट में तथा 1997 में कोलम्बो में स्वर्ण पदक प्राप्त किए। कामनवेल्थ खेलों में कड़े मुक़ाबलों के बीच रजत व कांस्य पदक भारत को दिलाए। 1997 में दिल्ली के 'ग्रैंड प्रिक्स' मुक़ाबलों में उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा हुई जब उसने एक से एक अच्छे खिलाड़ियों को हराते हुए फाइनल में प्रवेश किया। यद्यपि फाइनल में वह हार गया। वर्ष 2000 के सिडनी ओलंपिक में बैडमिंटन के लिए भारतीय खिलाड़ियों में केवल पुलेला गोपीचंद का ही नाम था। प्रकाश पादुकोने के रिटायर होने के पश्चात् भारत में कोई उत्तम बैडमिंटन खिलाड़ी बचा ही नहीं था, तब पुलेला का आगमन हुआ जिसमें असीम संभावनाएं दिखाई दीं। अतः प्रकाश पादुकोने के बाद आगे बढ़ कर चमकने वाला बैंडमिंटन खिलाड़ी पुलेला गोपीचंद ही है। वह प्रतिभावान होने के साथ-साथ देखने में सुन्दर व आकर्षण भी है।

वर्ष 2000 में गोपीचंद थामस कप के फाइनल में पहुँचा था तो यूँ लगा था कि भारत खेलों में आगे बढ़ने लगा है। फिर जब गोपीचंद ने आल इंग्लैंड खिताब 2001 में जीता तब तो यूँ लगने लगा कि मानो हमें चाँद तक पहुँचने की सीढ़ी मिल गई हो। तब हमारे 6 खिलाड़ी विश्व के टॉप 100 खिलाड़ियों में शामिल हो गए थे लेकिन अब केवल 3 भारतीय खिलाड़ी ही उन टाप 100 खिलाड़ियों में हैं। 2001 में गोपीचंद विश्व की रैंकिंग में नं. 4 खिलाड़ी बन गया था।

ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप

11 मार्च 2001 को ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप जीत कर भारत के स्टार शटलर पुलेला गोपीचंद ने भारतीय खेल जगत् में एक नया इतिहास लिख डाला। इससे 21 वर्ष पूर्व प्रकाश पादुकोने ने भारत में बैडमिंटन की ऊँचाइयों को छुआ था। पिछले ओलंपिक के गोल्ड पदक विजेता और विश्व के नम्बर 1 खिलाड़ी को क्वार्टर फाइनल और फिर सेमी फाइनल विश्व बैडमिंटन मुक़ाबले मे हराना और फिर फाइनल में भी हरा कर जीत जाना एक सपने जैसा था जैसा कि अक्सर भारतीय फ़िल्मों में हीरो के साथ होता है परंतु गोपीचंद ने इसे असल ज़िंदगी में कर दिखाया।

उपलब्धियाँ

  • 1998 में नई दिल्ली में राष्ट्रीय चैंपियनशिप मुक़ाबले में वह चैंपियन बना।
  • 1998 में ही बैंगलूर के बी.पी.एल. आल इंडिया मुक़ाबले में चैंपियन बना।
  • 1998 में कुआलालंपुर के राष्ट्रमंडल खेलों में व्यक्तिगत मुक़ाबले में कांस्य तथा टीम मुक़ाबले में रजत पदक प्राप्त किया, जबकि आस्ट्रियन ओपन में वह रनर-अप रहा।
  • 1999 के राष्ट्रीय चैंपियनशिप मुकाबले में नई दिल्ली में वह तीसरी बार राष्ट्रीय चैंपियन बना।
  • 1999 के इम्फाल में होने वाले राष्ट्रीय खेलों में 2 स्वर्ण व एक रजत पदक जीता।
  • 1999 के. बी.पी.एल. ऑल इंडिया मुक़ाबले में वह 5वीं बार चैंपियन बना।
  • 1999 में गोपी चंद ने एडिबबर्ग के स्कॉटिश ओपन व टोलूसे ओपन टूर्नामेंटों में चैंपियनशिप हासिल की। इन दोनों मुक़ाबलों को जीतने वाला गोपी चंद प्रथम भारतीय खिलाड़ी बना।
  • 1999 के एशियाई सेटेलाइट खेलों में चैंपियन बना।
  • 2000 में राष्ट्रीय खेलों में पुनः राष्ट्रीय चैंपियन बना।
  • 2000 में कुआलालंपुर में थामस कप के फाइनल मुक़ाबले तक पहुँचा।

यह इससे पूर्व के 12 वर्षों का सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा क्योंकि इन खेलों के फाइनल तक कोई अन्य भारतीय खिलाड़ी पहुँचा ही नहीं था।

  • 2000 के मलेशिया ओपन कुआलालंपुर मुक़ाबले में शीर्ष चार खिलाड़ियों में से एक रहा।
  • उसके उत्तम प्रदर्शन के लिए वर्ष 2001 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया था। इस वर्ष उसे विश्व की नम्बर 10 रैंकिग हासिल हुई। इससे पूर्व केवल प्रकाश पादुकोने ने यह रैंकिंग प्राप्त की थी।
  • 2000 के सिडनी ओलंपिक के प्रि-क्वार्टर फाइनल तक ही पहुँच सका।
  • 2001 में इंग्लैंड में होने वाली आल इंग्लैंड चैंपियनशिप में चैंपियन बना। इस मुक़ाबले में गोपीचंद ने चीन के चेन होंग को 15-12, 15-6 से हराया। फाइनल में विश्व के नं.1 खिलाड़ी पीटर गेड क्रिस्टियनसन को हराया, जबकि सेमी फाइनल मुक़ाबले में ओलंपिक के स्वर्ण पदक विजेता जी जिंपेंग को क्वार्टर फाइनल में हराया था। इस प्रकार 21 वर्ष में पहली बार आल इंग्लैंड का चैंपियनशिप खिताब जीता।
  • जून 2006 में पुलेला गोपीचंद को राष्ट्रीय बैडमिंटन कोच नियुक्त कर दिया गया। उसका चयन इस उद्देश्य से किया गया ताकि दिल्ली में होने वाले 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में बैडमिंटन में देश को कम से कम एक स्वर्ण, दो रजत व कुछ कांस्य पदक अवश्य प्राप्त हो सकें। इस अवसर पर पुलेला गोपीचंद का कहना था-
"यह ज़िम्मेदारी मेरे लिए बड़े सम्मान के साथ चुनौतीपूर्णा भी है।"
  • इसके अतिरिक्त पुलेला गोपीचंद हैदराबाद में एक अत्यंत सफल अकादमी चला रहे हैं, जहाँ से प्रशिक्षण लेकर 16 वर्षीय सायना नेहवाल ने बैडमिंटन में भारत का नाम समस्त विश्व में रोशन कर दिया है।

सम्मान और पुरस्कार

पुलेला गोपीचंद ने निरंतर प्रगति करते हुए 1998 में के. के बिरला फाउंडेशन पुरस्कार प्राप्त किया। वर्ष 2000 में उसे आन्ध्र प्रदेश सरकार द्वारा सम्मानित किया गया, उसे 'दशक का खिलाड़ी' पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 2001 में उसे 'राजीव गाँधी खेल रत्न' पुरस्कार प्रदान किया गया।

पुलेला गोपीचंद इंडियन आयल कारपोरेशन के सेल्स विभाग में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत है। वह अपना खेल बेहतर बनाने के लिए वर्ष में तीन महीने जर्मन क्लब के लिए खेलते हैं। अपने दस वर्षों के खेल जीवन में उन्होंने अनेक विश्व स्तर के खिलाड़ियों को हराया है जिनमें ओलंपिक चैंपियन एलेन बूडी कुसूमा तथा लार्सेन शामिल हैं।


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