"जश्न मनाया जाय -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
 
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 7 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
|-
|-
|  
|  
[[चित्र:Facebooklike.jpg|border|left|55px|फ़ेसबुक पर शेयर करें|link=http://www.facebook.com/sharer.php?u={{fullurle:{{FULLPAGENAME}}}}&t={{urlencode:{{FULLPAGENAME}} - भारतकोश}}]]
<noinclude>[[चित्र:Copyright.png|50px|right|link=|]]</noinclude>
<noinclude>[[चित्र:Copyright.png|50px|right|link=|]]</noinclude>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>जश्न मनाया जाय <small>-आदित्य चौधरी</small></font></div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>जश्न मनाया जाय <small>-आदित्य चौधरी</small></font></div>
----
----
{| width="100%" style="background:transparent"
|- style="text-align:center;"
|-valign="top"
|
| style="width:35%"|
{{#widget:YouTube|id=5HyCW8hGMvc}}
| style="width:35%"|
|-
<poem style="color=#003333">
|
<center>
<poem style="width:360px; text-align:left; background:#fff; border:1px solid #000; border-radius:5px; padding:10px; font-size:16px; color:#000;">
उनकी ख़्वाहिश, कि इक जश्न मनाया जाय
उनकी ख़्वाहिश, कि इक जश्न मनाया जाय
छोड़कर मुझको हर इक दोस्त बुलाया जाय
छोड़कर मुझको हर इक दोस्त बुलाया जाय


रौनक़-ए-बज़्म<ref>बज़्म= सभा, गोष्ठी, महफ़िल</ref> के लायक़ मेरी हस्ती ही नहीं
रौनक़-ए-बज़्म के लायक़ मेरी हस्ती ही नहीं<ref>बज़्म= सभा, महफ़िल</ref>
यही हर बार मुझे याद दिलाया जाय
यही हर बार मुझे याद दिलाया जाय


पंक्ति 20: पंक्ति 23:


कहीं जो भूल से भी ज़िक्र मेरा आता हो
कहीं जो भूल से भी ज़िक्र मेरा आता हो
यही ताकीद<ref>ताकीद =  कोई बात ज़ोर देकर कहना, हठ, ज़िद</ref> कि मक़्ता<ref>ग़ज़ल के आखरी शेर को जिसमें शायर का नाम अथवा उपनाम हो उसे ‘मक़्ता’ कहते हैं।</ref> ही न गाया जाय
यही ताकीद कि मक़्ता ही न गाया जाय<ref>ताकीद =  कोई बात ज़ोर देकर कहना</ref><ref>ग़ज़ल के आखरी शेर को जिसमें शायर का नाम अथवा उपनाम हो उसे ‘मक़्ता’ कहते हैं।</ref>  


मेरे वो ख़ाब में ना आएँ बस इसी के लिए
मेरे वो ख़ाब में ना आएँ बस इसी के लिए
ताउम्र मुझे अब न सुलाया जाए
ताउम्र मुझको अब न सुलाया जाय


कभी सुकून से गुज़रा था जहाँ वक़्त मेरा
कभी सुकून से गुज़रा था जहाँ वक़्त मेरा
उसी जगह मुझे हर रोज़ रुलाया जाए
उसी जगह मुझे हर रोज़ रुलाया जाय


क़ब्र मेरी हो, जिस पे उनका लिखा पत्थर हो
क़ब्र मेरी हो, जिस पे उनका लिखा पत्थर हो
उन्ही का ज़िक्र हो जब मेरा जनाज़ा जाए
मेरा वजूद ही दुनिया से मिटाया जाय
 
उनकी ख़्वाहिश, कि इक जश्न मनाया जाय
छोड़कर मुझको हर इक दोस्त बुलाया जाय
</poem>
</poem>
| style="width:30%"|
</center>
|}
|}
|}


पंक्ति 43: पंक्ति 48:
[[Category:कविता]]
[[Category:कविता]]
[[Category:आदित्य चौधरी की रचनाएँ]]
[[Category:आदित्य चौधरी की रचनाएँ]]
[[Category:विडियो]]
</noinclude>
</noinclude>


__INDEX__
__INDEX__

11:21, 9 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

फ़ेसबुक पर शेयर करें
फ़ेसबुक पर शेयर करें
जश्न मनाया जाय -आदित्य चौधरी

उनकी ख़्वाहिश, कि इक जश्न मनाया जाय
छोड़कर मुझको हर इक दोस्त बुलाया जाय

रौनक़-ए-बज़्म के लायक़ मेरी हस्ती ही नहीं[1]
यही हर बार मुझे याद दिलाया जाय

कभी जो शाम से बेचैन उनकी तबीयत हो
किसी मेरे ही ख़त को पढ़ के सुनाया जाय

कहीं जो भूल से भी ज़िक्र मेरा आता हो
यही ताकीद कि मक़्ता ही न गाया जाय[2][3]

मेरे वो ख़ाब में ना आएँ बस इसी के लिए
ताउम्र मुझको अब न सुलाया जाय

कभी सुकून से गुज़रा था जहाँ वक़्त मेरा
उसी जगह मुझे हर रोज़ रुलाया जाय

क़ब्र मेरी हो, जिस पे उनका लिखा पत्थर हो
मेरा वजूद ही दुनिया से मिटाया जाय

उनकी ख़्वाहिश, कि इक जश्न मनाया जाय
छोड़कर मुझको हर इक दोस्त बुलाया जाय



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बज़्म= सभा, महफ़िल
  2. ताकीद = कोई बात ज़ोर देकर कहना
  3. ग़ज़ल के आखरी शेर को जिसमें शायर का नाम अथवा उपनाम हो उसे ‘मक़्ता’ कहते हैं।