"गुड़ का सनीचर -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>गुड़ का 'सनीचर' | [[चित्र:Facebook-icon-2.png|20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत)]] [http://www.facebook.com/bharatdiscovery भारतकोश] <br /> | ||
[[चित्र:Facebook-icon-2.png|20px|link=http://www.facebook.com/profile.php?id=100000418727453|फ़ेसबुक पर आदित्य चौधरी]] [http://www.facebook.com/profile.php?id=100000418727453 आदित्य चौधरी] | |||
<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>गुड़ का 'सनीचर'<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | |||
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"पंडिज्जी ! मेरा सनीचर उतर गया ?" | "पंडिज्जी ! मेरा सनीचर उतर गया ?" | ||
"उतर गया चौधरी, पूरी तरह से उतर गया... लो गुड़ खाओ... सेठ जी ने दो भेली आज ही भिजवाई हैं। बड़े भले आदमी हैं बेचारे, उनसे एक भेली मांगो तो दो भिजवा देते हैं" | "उतर गया चौधरी, पूरी तरह से उतर गया... लो गुड़ खाओ... सेठ जी ने दो भेली आज ही भिजवाई हैं। बड़े भले आदमी हैं बेचारे, उनसे एक भेली मांगो तो दो भिजवा देते हैं" | ||
इसी समय वहाँ से पंडित निरंजन शास्त्री गुज़र रहे थे, दोनों की बात सुनकर रुक गए। निरंजन शास्त्री माने हुए | इसी समय वहाँ से पंडित निरंजन शास्त्री गुज़र रहे थे, दोनों की बात सुनकर रुक गए। निरंजन शास्त्री माने हुए विद्वान् थे, पास के शहर से भी लोग उनकी सलाह लेने आया करते थे। | ||
"क्या बात चल रही हैं पंडित ? मैंने सुना है तुम लोगों का अच्छा-बुरा करवा सकते हो, इतनी ताक़त है तुम्हारे ज्योतिष में ?" | "क्या बात चल रही हैं पंडित ? मैंने सुना है तुम लोगों का अच्छा-बुरा करवा सकते हो, इतनी ताक़त है तुम्हारे ज्योतिष में ?" | ||
"बिल्कुल शास्त्री जी अगर कोई विश्वास ना करे तो साबित कर सकता हूँ, बोलिए किसका भला-बुरा करवाना है, जिसका कहें उसी का चौपट कर दूँ" | "बिल्कुल शास्त्री जी अगर कोई विश्वास ना करे तो साबित कर सकता हूँ, बोलिए किसका भला-बुरा करवाना है, जिसका कहें उसी का चौपट कर दूँ" | ||
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अब पंडित जी हाथ जोड़ कर खड़े हो गए | अब पंडित जी हाथ जोड़ कर खड़े हो गए | ||
"शास्त्री जी ! आप यहाँ तक हो ? मैं कान पकड़ता हूँ जो आपसे कभी बहस करूँ ! परमानंद आपका इकलौता बेटा है और आप उस का ही बिगाड़ करवाने के लिए तैयार हैं। आपकी ज़िद के आगे तो सब राहु, केतु, शनीचर बेकार हैं।" | "शास्त्री जी ! आप यहाँ तक हो ? मैं कान पकड़ता हूँ जो आपसे कभी बहस करूँ ! परमानंद आपका इकलौता बेटा है और आप उस का ही बिगाड़ करवाने के लिए तैयार हैं। आपकी ज़िद के आगे तो सब राहु, केतु, शनीचर बेकार हैं।" | ||
"बात ज़िद की नहीं है पंडित ! बात ज़िम्मेदारी की है। मैं अपने भले या बुरे के लिए किसी राहु-केतु को या किसी को भी ज़िम्मेदार ठहरा दूँ तो लानत है मेरे मनुष्य होने पर... अपने कर्म से हमारी सफलता और असफलता निश्चित होती है, ना कि भाग्य और ग्रहों से... समझे... और तुम भी समझ लो छोटे पहलवान... तुम्हारी बुरी आर्थिक स्थिति की वजह | "बात ज़िद की नहीं है पंडित ! बात ज़िम्मेदारी की है। मैं अपने भले या बुरे के लिए किसी राहु-केतु को या किसी को भी ज़िम्मेदार ठहरा दूँ तो लानत है मेरे मनुष्य होने पर... अपने कर्म से हमारी सफलता और असफलता निश्चित होती है, ना कि भाग्य और ग्रहों से... समझे... और तुम भी समझ लो छोटे पहलवान... तुम्हारी बुरी आर्थिक स्थिति की वजह शनिदेव नहीं बल्कि तुम्हारा सारे दिन गाँव में इधर से उधर समय नष्ट करते रहना और कोई रोज़गार न करना है।" | ||
"मैं अच्छी तरह समझ गया सास्तरी जी ! अब मेरा सनीचर तो | "मैं अच्छी तरह समझ गया सास्तरी जी ! अब मेरा सनीचर तो ज़िंदगी भर को परमानेन्ट उतर गया" | ||
ये क़िस्सा तो यहीं ख़त्म हुआ... | ये क़िस्सा तो यहीं ख़त्म हुआ... | ||
अब ज़रा ये सोचें कि अपनी असफलता को कुण्डली के दोष से जोड़ना कहाँ की अक़्लमंदी है। | अब ज़रा ये सोचें कि अपनी असफलता को कुण्डली के दोष से जोड़ना कहाँ की अक़्लमंदी है। | ||
कहते हैं कि ज़िम्मेदारियाँ सदैव 'ज़िम्मेदार इंसान' को ढूँढ लेती हैं। यदि लोग किसी को एक ज़िम्मेदार इंसान नहीं समझते तो ग़लती लोगों की नहीं बल्कि उसकी ख़ुद की ही है। | कहते हैं कि ज़िम्मेदारियाँ सदैव 'ज़िम्मेदार इंसान' को ढूँढ लेती हैं। यदि लोग किसी को एक ज़िम्मेदार इंसान नहीं समझते तो ग़लती लोगों की नहीं बल्कि उसकी ख़ुद की ही है। | ||
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ये एक ऐसा मसला है, जिसका हल विज्ञान और पौराणिक ग्रंथों की तुलना करने से होता है। | ये एक ऐसा मसला है, जिसका हल विज्ञान और पौराणिक ग्रंथों की तुलना करने से होता है। | ||
आदि काल से ही भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ विश्व भर में मनुष्य के मस्तिष्क में वैज्ञानिक सोच भी कुलबुलाने लगी थी। एक सामान्य धारणा बनी जो कि पृथ्वी पर जीवन के क्रमिक विकास का वैज्ञानिक विश्लेषण करती थी और जो चार्ल्स डार्विन की इवॉल्यूशन थ्यॉरी का कुछ 'देसी' रूप थी। हिन्दुओं के अवतारों को अगर वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाय तो- | आदि काल से ही भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ विश्व भर में मनुष्य के मस्तिष्क में वैज्ञानिक सोच भी कुलबुलाने लगी थी। एक सामान्य धारणा बनी जो कि पृथ्वी पर जीवन के क्रमिक विकास का वैज्ञानिक विश्लेषण करती थी और जो चार्ल्स डार्विन की इवॉल्यूशन थ्यॉरी का कुछ 'देसी' रूप थी। हिन्दुओं के अवतारों को अगर वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाय तो- | ||
सबसे पहले 'मत्स्यावतार' आता है। जीव-विज्ञान के अनुसार सबसे पहले जीवन की शुरुआत समुद्र में ही हुई। भले ही 'एल्गी' और अमीबा से हुई, लेकिन उस समय यहीं तक सोच बन पाई कि सबसे पहला जीव मछली है। | सबसे पहले 'मत्स्यावतार' आता है। जीव-विज्ञान के अनुसार सबसे पहले जीवन की शुरुआत समुद्र में ही हुई। भले ही 'एल्गी' और 'अमीबा' से हुई, लेकिन उस समय यहीं तक सोच बन पाई कि सबसे पहला जीव मछली है। | ||
दूसरा कूर्मावतार: कूर्म | दूसरा कूर्मावतार: कूर्म अर्थात् कच्छप (कछुआ) कछुआ पानी में रहता है, किंतु सांस पानी के भीतर नहीं लेता और अपने अंडे भी ज़मीन पर ही देता है। तो यह हुआ आधा पानी और आधा धरती का जीव। | ||
तीसरा वराह अवतार: वराह शूकर (सूअर) को कहते हैं। मछली की तरह गर्दन न घुमा सकने वाला, लेकिन पूरी तरह धरती पर रहने वाला जल प्रेमी जानवर है। | तीसरा वराह अवतार: वराह शूकर (सूअर) को कहते हैं। मछली की तरह गर्दन न घुमा सकने वाला, लेकिन पूरी तरह धरती पर रहने वाला जल प्रेमी जानवर है। | ||
नरसिंह अवतार: यह आधा पशु और आधा मनुष्य था। यह सोचा गया होगा कि मनुष्य अपने आदि रूप में पशुओं जैसा ही रहा होगा। | नरसिंह अवतार: यह आधा पशु और आधा मनुष्य था। यह सोचा गया होगा कि मनुष्य अपने आदि रूप में पशुओं जैसा ही रहा होगा। | ||
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प्राचीन भारत में वैज्ञानिकों के पृथ्वी पर क्रमिक विकास को परिभाषित करने वाले यह शोध धरे के धरे रह गये और लोक-कथावाचकों और धार्मिक-कथावाचकों द्वारा बनाए गए सुरुचिपूर्ण कथानकों ने बाज़ी जीत ली और प्रचलन में भी अवतारों की चमत्कारिक छवि ही बनी रही। जनता इन अवतारों की कथाएँ रस ले कर बड़े आनन्द से सुनती थी जबकि वैज्ञानिकों की बातें बेहद गंभीर और नीरस होती थीं। कथाकारों को राजाश्रय भी था और सामान्य जनता का समर्थन भी इसलिए भारतीय वैज्ञानिक कभी भी अपने बात को स्थापित नहीं कर पाए। | प्राचीन भारत में वैज्ञानिकों के पृथ्वी पर क्रमिक विकास को परिभाषित करने वाले यह शोध धरे के धरे रह गये और लोक-कथावाचकों और धार्मिक-कथावाचकों द्वारा बनाए गए सुरुचिपूर्ण कथानकों ने बाज़ी जीत ली और प्रचलन में भी अवतारों की चमत्कारिक छवि ही बनी रही। जनता इन अवतारों की कथाएँ रस ले कर बड़े आनन्द से सुनती थी जबकि वैज्ञानिकों की बातें बेहद गंभीर और नीरस होती थीं। कथाकारों को राजाश्रय भी था और सामान्य जनता का समर्थन भी इसलिए भारतीय वैज्ञानिक कभी भी अपने बात को स्थापित नहीं कर पाए। | ||
परशुराम अवतार: यह समय वह था जब मनुष्य हाथ में शस्त्र रखने लगा था। जैसे इनके हाथ में परशु यानि फरसा होता था। | परशुराम अवतार: यह समय वह था जब मनुष्य हाथ में शस्त्र रखने लगा था। जैसे इनके हाथ में परशु यानि फरसा होता था। | ||
राम: यहाँ तक आते-आते शस्त्र के साथ अस्त्र भी आ गये जैसे- धनुष बाण और राम ने अहल्या (ऐसी भूमि जिसमें हल न चला हो) में हल चला कर उसे उपजाऊ किया। गौतम ऋषि की पत्नी की कथा कि अहल्या शाप के कारण पत्थर की हो गयी थी यही इंगित करती है। मिथिला के जनक ने सीता (हल की फाल) का आविष्कार किया और उसे राम को भेंट स्वरूप दिया। सीता का अर्थ हल की 'फाल' भी होता है और हल द्वारा बनी रेखा भी। राम कथा 'कुशीलवों' (एक कथा-वाचक जाति) द्वारा ग्रामों में कही जाती थी और बहुत प्रचलित थी जिसे बाद में | राम: यहाँ तक आते-आते शस्त्र के साथ अस्त्र भी आ गये जैसे- धनुष बाण और राम ने अहल्या (ऐसी भूमि जिसमें हल न चला हो) में हल चला कर उसे उपजाऊ किया। गौतम ऋषि की पत्नी की कथा कि अहल्या शाप के कारण पत्थर की हो गयी थी यही इंगित करती है। मिथिला के जनक ने सीता (हल की फाल) का आविष्कार किया और उसे राम को भेंट स्वरूप दिया। सीता का अर्थ हल की 'फाल' भी होता है और हल द्वारा बनी रेखा भी। राम कथा 'कुशीलवों' (एक कथा-वाचक जाति) द्वारा ग्रामों में कही जाती थी और बहुत प्रचलित थी जिसे बाद में बाल्मीकि ने परिष्कृत किया और अधिक सुन्दर रूप दिया। | ||
कृष्ण: कृष्ण को सोलह कला से पूर्ण होने के कारण पूर्णावतार कहा गया है। शेष सभी अवतार अंशावतार थे। ग्रंथों में आता है कि आठ कला मनुष्य में होती हैं, आठ से अधिक कला वाले अवतार हैं। राम बारह कला के अंशावतार थे। इसमें एक तर्क यह भी है कि कृष्ण चंद्रवंशी थे और चंद्रमा की सोलह कलाएँ हैं। राम सूर्यवंशी थे और सूर्य बारह राशियों में बंटा हुआ है। कृष्ण को महाभारत काल का मानने में इतिहासकारों में आम सहमति नहीं है। महाभारत की कथा 'सूत' सुनाया करते थे, जिसे सूतों के मुखिया 'संजय' ने तैयार किया था। इसलिए इस महाकाव्य का नाम पहले 'जय' था। उस समय लगभग सात हज़ार श्लोक ही थे जो बाद में एक लाख से भी ऊपर जा पहुँचे। कालांतर में महाभारत के रचयिता के रूप में संजय को सब भूल गए, याद रह गये व्यास। व्यासों ने महाभारत को विशाल रूप दिया जिसे हम आज जानते हैं। | कृष्ण: कृष्ण को सोलह कला से पूर्ण होने के कारण पूर्णावतार कहा गया है। शेष सभी अवतार अंशावतार थे। ग्रंथों में आता है कि आठ कला मनुष्य में होती हैं, आठ से अधिक कला वाले अवतार हैं। राम बारह कला के अंशावतार थे। इसमें एक तर्क यह भी है कि कृष्ण चंद्रवंशी थे और चंद्रमा की सोलह कलाएँ हैं। राम सूर्यवंशी थे और सूर्य बारह राशियों में बंटा हुआ है। कृष्ण को महाभारत काल का मानने में इतिहासकारों में आम सहमति नहीं है। महाभारत की कथा 'सूत' सुनाया करते थे, जिसे सूतों के मुखिया 'संजय' ने तैयार किया था। इसलिए इस महाकाव्य का नाम पहले 'जय' था। उस समय लगभग सात हज़ार श्लोक ही थे जो बाद में एक लाख से भी ऊपर जा पहुँचे। कालांतर में महाभारत के रचयिता के रूप में संजय को सब भूल गए, याद रह गये व्यास। व्यासों ने महाभारत को विशाल रूप दिया जिसे हम आज जानते हैं। | ||
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-आदित्य चौधरी | -आदित्य चौधरी | ||
<small> | <small>संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक</small> | ||
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{{भारतकोश सम्पादकीय}} | |||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
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07:47, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
गुड़ का 'सनीचर' -आदित्य चौधरी "पंडिज्जी ! पहले पुराना हिसाब साफ़ करो फिर गुड़ की भेली दूँगा। पुराना ही पैसा बहुत बक़ाया है। ऐसे तो मेरी दुकान ही बंद हो जाएगी" |