"भारत": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replacement - "शृंखला" to "श्रृंखला")
 
(13 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 150 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{सूचना बक्सा देश
{{सुरक्षा}}{{भारत विषय सूची}}
|native_name = भारत गणराज्य
{{सूचना बक्सा भारत}}
|conventional_long_name = <small>Republic of India</small>
'''भारत''' [सम्पूर्ण प्रभुतासंपन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य भारत। ([[अंग्रेज़ी]]: ''India'')] दुनिया की सबसे पुरानी सभ्‍यताओं में से एक है, जो 4,000 से अधिक वर्षों से चली आ रही है और जिसने अनेक रीति-रिवाज़ों और परम्‍पराओं का संगम देखा है। यह देश की समृद्ध संस्‍कृति और विरासत का परिचायक है। आज़ादी के बाद {{#expr:{{CURRENTYEAR}}-1947}}  वर्षों में भारत ने सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत [[कृषि]] में आत्‍मनिर्भर देश है और औद्योगीकरण में भी विश्व के चुने हुए देशों में भी इसकी गिनती की जाती है। यह उन देशों में से एक है, जो [[चंद्र ग्रह|चाँद]] पर पहुँच चुके हैं और परमाणु शक्ति संपन्न हैं।
|common_name = भारत
|image_flag = India-Flag.jpg
|image_coat = Emblem-of-India.png
|image_map =India-Map.png
|national_motto =  "सत्यमेव जयते" ([[संस्कृत]])<br />
सत्य ही विजयी होता है ''
|national_anthem = [[जन गण मन]]
|official_languages =[[हिन्दी भाषा|हिन्दी]] संघ की राजभाषा है, <br />[[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] "सहायक राजभाषा" है.
|languages_type = अन्य भाषाएँ
|languages =[[बांग्ला भाषा|बांग्ला]], [[गुजराती भाषा|गुजराती]], [[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]], [[मलयालम भाषा|मलयालम]], [[मराठी भाषा|मराठी]] और [[राजभाषा|अन्य]]
|capital = [[नई दिल्ली]]
|latd = 28|latm=34|latNS=N|longd=77|longm=12|longEW=E
|largest_city = [[दिल्ली]], [[मुम्बई]], [[कोलकाता]] और [[चेन्नई]]
|government_type= '''गणराज्य'''
|leader_titles = राष्ट्रपति <br />-उपराष्ट्रपति <br />-लोकसभा अध्यक्ष <br />-प्रधानमंत्री <br />-मुख्य न्यायाधीश
|leader_names = [[प्रतिभा पाटिल]] <br /> हामिद अंसारी <br />मीरा कुमार <br /> डॉ मनमोहन सिंह <br /> के.जी.बालकृष्णन
|legislature=भारतीय संसद
|house_titles =उपरी सदन<br />-निचला सदन
|house_names=राज्य सभा<br />लोक सभा
|area_rank = सातवां
|area_magnitude =
|area= 32,87,590
|areami² = 12,22,559
|percent_water = 9.56
|population_estimate = 1,10,33,71,000
|population_estimate_year = 2005
|population_estimate_rank = द्वितीय
|population_census = 1,02,70,15,248
|population_census_year = 2001
|population_density = 329
|population_densitymi² = 852
|population_density_rank = 31वां
|GDP_PPP_year=2005
|GDP_PPP = $3.633 महासंख
|GDP_PPP_rank = चौथा
|GDP_PPP_per_capita = $3,320
|GDP_PPP_per_capita_rank = 122 वां
|GDP_nominal_year=2008
|GDP_nominal = $1.209 महाशंख
|GDP_nominal_rank =''
|GDP_nominal_per_capita =$1,016
|GDP_nominal_per_capita_rank =''
|HDI_year = 2004
|HDI = 0.611
|HDI_rank = 126 वीं
|HDI_category = <font color="#ffcc00">मध्यम</font>
|sovereignty_type        = स्वतंत्रता
|sovereignty_note        = संयुक्त राजशाही से
|established_event1      = तिथि
|established_date1        = [[15 अगस्त]], [[1947]]
|established_event2      = गणराज्य
|established_date2        = [[26 जनवरी]], [[1950]]  
|established_event3      =
|established_date3      =
|currency = भारतीय रुपया [[चित्र:Rupee-symbol.png|14px]]
|currency_code = आइएनआर (INR)
|time_zone= आइएसटी (IST)
|utc_offset= +5:30
|time_zone_DST= ''अनुसरण नहीं किया जाता''  
|utc_offset_DST= +5:30
|cctld= .in
|drives_on = बाएं
|calling_code = 91
|footnotes=
}}
[[चित्र:bharat-name.jpg|100px]]दुनियाँ की सबसे पुरानी सभ्‍यताओं में से एक हैं, जो 4,000 से अधिक वर्षों से चली आ रही है और जिसने अनेक रीति-रिवाज़ों और परम्‍पराओं का संगम देखा है। यह देश की समृद्ध संस्‍कृति और विरासत का परिचायक है। आज़ादी के बाद 62 वर्षों में भारत ने सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत कृषि में आत्‍मनिर्भर देश है और औद्योगीकरण में भी विश्व के चुने हुए देशों में भी इसकी गिनती की जाती है। यह उन देशों में से एक है, जो [[चंद्र ग्रह|चाँद]] पर पहुँच चुके हैं और परमाणु शक्ति संपन्न हैं। भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग कि.मी. है, जो हिमाच्‍छादित [[हिमालय]] की बुलन्दियों  से दक्षिण के विषुवतीय वर्षा वनों तक विस्तृत है। क्षेत्रफल में विश्‍व का सातवां बड़ा देश होने के कारण भारत [[एशिया]] महाद्वीप में अलग दिखायी देता है। इसकी सरहदें हिमालय पर्वत और समुद्रों ने बांधी है, जो इसे एक विशिष्‍ट भौगोलिक पहचान देते हैं। उत्तर में बृहत् हिमालय की पर्वत श्रृंखला से घिरा यह देश कर्क रेखा से आगे संकरा होता चला जाता है। पूर्व में [[बंगाल की खाड़ी]], पश्चिम में [[अरब सागर]] तथा दक्षिण में [[हिन्द महासागर]] इसकी सीमाओं का निर्धारण करते हैं।<br />
उत्‍तरी गोलार्ध में स्थित भारत की मुख्‍यभूमि 8 डिग्री 4 मिनट और 37 डिग्री 6 मिनट उत्‍तरी अक्षांश और 68 डिग्री 7 मिनट तथा 97 डिग्री 25 मिनट पूर्वी देशान्‍तर के बीच स्थित है । उत्‍तर से दक्षिण तक इसकी अधिकतम लंबाई 3,214 कि.मी. और पूर्व से पश्चिम तक अधिकतम चौड़ाई 2,933 कि.मी. है। इसकी ज़मीनी सीमाओं की लंबाई लगभग 15,200 कि.मी. और  तटरेखा की कुल लम्‍बाई 7,516.6 कि.मी है। यह उत्‍तर में हिमालय पर्वत, पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिंद महासागर से घिरा हुआ है।
{{highleft}}[[चित्र:Ashoka.jpg|100px|right]]हर दशा में दूसरे सम्प्रदायों का आदर करना ही चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य अपने सम्प्रदाय की उन्नति और दूसरे सम्प्रदायों का उपकार करता है। इसके विपरीत जो करता है वह अपने सम्प्रदाय की (जड़) काटता है और दूसरे सम्प्रदायों का भी अपकार करता है। क्योंकि जो अपने सम्प्रदाय की भक्ति में आकर इस विचार से कि मेरे सम्प्रदाय का गौरव बढ़े, अपने सम्प्रदाय की प्रशंसा करता है और दूसरे सम्प्रदाय की निन्दा करता है, वह ऐसा करके वास्तव में अपने सम्प्रदाय को ही गहरी हानि पहुँचाता है। इसलिए समवाय (परस्पर मेलजोल से रहना) ही अच्छा है अर्थात् लोग एक-दूसरे के धर्म को ध्यान देकर सुनें और उसकी सेवा करें। - सम्राट [[अशोक]] महान<ref>गिरनार का बारहवाँ शिलालेख "अशोक के धर्म लेख" से पृष्ठ सं- 31</ref>{{highclose}}


भारत [[एशिया महाद्वीप]] के दक्षिणी भाग में स्थित तीन प्रायद्वीपों में मध्यवर्ती और सबसे बड़ा प्रायद्वीप । यह त्रिभुजाकार है। [[हिमालय]] पर्वत श्रृंखला को इस त्रिभुज का आधार और [[कन्याकुमारी]] को उसका शीर्षबिन्दु कहा जा सकता है। इसके उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में [[हिन्द महासागर]] स्थित है। ऊँचे-ऊँचे पर्वतों ने इसे उत्तर-पश्चिम में [[अफ़ग़ानिस्तान]] और [[पाकिस्तान]] तथा उत्तर-पूर्व में [[म्यांमार]] से अलग कर दिया है। यह स्वतंत्र भौगोलिक इकाई है। प्राकृतिक दृष्टि से इसे तीन क्षेत्रों में विभक्त किया जा सकता है—हिमालय क्षेत्र, उत्तर का मैदान जिससे होकर [[सिंधु नदी|सिंधु]], [[गंगा नदी|गंगा]] और [[ब्रह्मपुत्र नदी|ब्रह्मपुत्र]] नदियाँ बहती हैं, दक्षिण का पठार, जिसे [[विंध्य पर्वतमाला]] उत्तर के मैदान से अलग करती है। भारत की विशाल जनसंख्या सात सौ पचास से अधिक <ref>प्राचीन भारत की संस्कृति और सभ्यता लेखक- दामोदर धर्मानंद कोसंबी</ref> बोलियाँ बोलती है और संसार के सभी मुख्य धर्मों को मानने वाले यहाँ मिलते हैं। अंग्रेज़ी में भारत का नाम '[[इंडिया]]' सिंधु के [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] रूपांतरण के आधार पर यूनानियों के द्वारा प्रचलित 'हंडस' नाम से पड़ा। सिन्धु का फ़ारसी में हिन्द, हन्द या हिन्दू हुआ। हिन्द का यूनानियों ने इन्दस किया जो बाद में 'इंडिया' हो गया। सिन्धु नदी को अंगेज़ी में आज भी 'इन्डस' ही कहते हैं। मूल रूप से इस देश का नाम प्रागैतिहासिक काल के [[राजा भरत]]<ref>इतिहास कारों के अनुसार यह प्राचीन भरतों का क़बीला भरत है जो उत्तर-पश्चिम में था भरत वंशी भी इन्हें ही माना जाता है</ref> के आधार पर भारतवर्ष है किन्तु अधिकारिक नाम 'भारत' ही है। अब इसका क्षेत्रफल संकुचित हो गया है और इस प्रायद्वीप के दो छोटे-छोटे क्षेत्रों [[पाकिस्तान]] तथा [[बांग्लादेश]] को इससे पृथक करके शेष भू-भाग को भारत कहते हैं। 'हिन्दुस्थान' नाम सही तौर से केवल गंगा के उत्तरी मैदान के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है जहाँ हिन्दी बोली जाती है। इसे भारत अथवा इंडिया का पर्याय नहीं माना जा सकता।
{{Point}}विस्तार में पढ़ने के लिए देखें:[[भारत आलेख]]
भारत की आधारभूत एकता उसकी विशिष्ट संस्कृति तथा सभ्यता पर आधारित है। यह इस बात से प्रकट है कि हिन्दू धर्म सारे देश में फैला हुआ है। संस्कृत को सब देवभाषा स्वीकार करते हैं। जिन [[सात नदियाँ|सात नदियों]] को पवित्र माना जाता है उनमें सिंधु [[पंजाब]] में बहती है और [[कावेरी नदी|कावेरी]] दक्षिण में, इसी प्रकार जिन सात पुरियों को पवित्र माना जाता है उनमें [[हरिद्वार]] [[उत्तर प्रदेश]] में स्थित है और [[कांची]] सुदूर दक्षिण में। भारत के सभी राजाओं की आकांक्षा रही है कि उनके राज्य का विस्तार आसेतु हिमालय हो। परन्तु इतने बड़े देश को जो वास्तव में एक उपमहाद्वीप है और क्षेत्रफल में पश्चिमी रूस को छोड़कर सारे यूरोप के बराबर है, एक राजनीतिक इकाई बनाये रखना अत्यन्त कठिन था। वास्तव में उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में ब्रिटिश शासकों की स्थापना से पूर्व सारा देश बहुत थोड़े काल को छोड़कर, कभी एक साम्राज्य के अंतर्गत नहीं रहा। [[ब्रिटिश काल]] में सारे देश में एक समान शासन व्यवस्था करके तथा अंग्रेजों को सारे देश में प्रशासन और शिक्षा की समान भाषा बनाकर पूरे देश को एक राजनीतिक इकाई बना दिया गया। परन्तु यह एकता एक शताब्दी के अन्दर ही भंग हो गयी। 1947 ई॰ में जब भारत स्वाधीन हुआ, उसे विभाजित करके सिंधु, उत्तर पश्चिमी सीमाप्रान्त, पश्चिमी पंजाब (यह भाग अब पाकिस्तान कहलाता है), पूर्वी तथा उत्तरी बंगाल (यह भाग अब बांगलादेश कहलाता  है) उससे अलग कर दिया गया।


==इतिहास==
{{मुख्य|भारत का इतिहास}}
[[भारत]] में मानवीय कार्यकलाप के जो प्राचीनतम चिह्न अब तक मिले हैं, वे 4,00,000 ई. पू. और 2,00,000 ई. पू. के बीच दूसरे और तीसरे हिम-युगों के संधिकाल के हैं और वे इस बात के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि उस समय पत्थर के उपकरण काम में लाए जाते थे। इसके पश्चात् एक लम्बे अरसे तक विकास मन्द गति से होता रहा, जिसमें अन्तिम समय में जाकर तीव्रता आई और उसकी परिणति 2300 ई. पू. के लगभग सिन्धु घाटी की आलीशान सभ्यता (अथवा नवीनतम नामकरण के अनुसार हड़प्पा संस्कृति) के रूप में हुई। [[हड़प्पा]] की पूर्ववर्ती संस्कृतियाँ हैं: [[बलूचिस्तान|बलूचिस्तानी पहाड़ियों]] के गाँवों की [[कुल्ली संस्कृति]] और [[राजस्थान]] तथा [[पंजाब]] की नदियों के किनारे बसे कुछ ग्राम-समुदायों की संस्कृति।<ref>पुस्तक 'भारत का इतिहास' [[रोमिला थापर]]) पृष्ठ संख्या-19</ref>
==भौतिक विशेषताएँ==
==भौतिक विशेषताएँ==
मुख्‍य भूभाग में चार क्षेत्र हैं, नामत: महापर्वत क्षेत्र, [[गंगा नदी|गंगा]] और [[सिंधु नदी]] के मैदानी क्षेत्र और मरूस्‍थली क्षेत्र और दक्षिणी प्रायद्वीप।
मुख्‍य भूभाग में चार क्षेत्र हैं, नामत: महापर्वत क्षेत्र, [[गंगा नदी|गंगा]] और [[सिंधु नदी]] के मैदानी क्षेत्र और मरूस्‍थली क्षेत्र और दक्षिणी प्रायद्वीप।
पंक्ति 82: पंक्ति 15:
*उत्तर-पूर्व दार्जिलिंग  
*उत्तर-पूर्व दार्जिलिंग  
*कल्‍पना (किन्‍नौर) के उत्तर - पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकी ला दर्रा
*कल्‍पना (किन्‍नौर) के उत्तर - पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकी ला दर्रा
पर्वतीय दीवार लगभग 2,400 कि.मी. की दूरी तक फैली है, जो 240 कि.मी. से 320 कि.मी. तक चौड़ी है। पूर्व में भारत तथा [[म्यांमार]] और भारत एवं [[बांग्लादेश]] के बीच में पहाड़ी श्रृंखलाओं की ऊंचाई बहुत कम है। लगभग पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई गारो, खासी, जैंतिया और नगा पहाडियाँ उत्तर से दक्षिण तक फैली मिज़ो तथा रखाइन पहाडियों की श्रृंखला से जा मिलती हैं।
मरुस्‍थली क्षेत्र को दो भागों में बाँटा जा सकता है बड़ा मरुस्‍थल कच्‍छ के रण की सीमा से लुनी नदी के उत्‍तरी ओर आगे तक फैला हुआ है। [[राजस्थान]] सिंध की पूरी सीमा इससे होकर गुजरती है। छोटा मरुस्‍थल लुनी से [[जैसलमेर]] और [[जोधपुर]] के बीच उत्‍तरी भूभाग तक फैला हुआ बड़े और छोटे मरुस्‍थल के बीच का क्षेत्र बिल्‍कुल ही बंजर है जिसमें चूने के पत्‍थर की पर्वत माला द्वारा पृथक किया हुआ पथरीला भूभाग है।
पर्वत समूह और पहाड़ी श्रृंखलाएँ जिनकी ऊँचाई 460 से 1,220 मीटर है, प्रायद्वीपीय पठार को [[गंगा]] और [[सिंधु नदी|सिंधु]] के मैदानी क्षेत्रों से अलग करती हैं। इनमें प्रमुख हैं अरावली, विंध्‍य, सतपुड़ा, मैकाला और अजन्‍ता। इस प्रायद्वीप की एक ओर पूर्व घाट दूसरी ओर पश्चिमी घाट है जिनकी ऊँचाई सामान्‍यत: 915 से 1,220 मीटर है,  कुछ स्‍थानों में 2,440 मीटर से अधिक ऊँचाई है। पश्चिमी घाटों और अरब सागर के बीच एक संकीर्ण तटवर्ती पट्टी है जबकि पूर्व घाट और बंगाल की खाड़ी के बीच का विस्‍तृत तटवर्ती क्षेत्र है। पठार का दक्षिणी भाग नीलगिरी पहाड़ियों द्वारा निर्मित है जहाँ पूर्वी और पश्चिमी घाट मिलते हैं। इसके आगे इलायची की पहाडियाँ पश्चिमी घाट के विस्‍तारण के रुप में मानी जा सकती हैं।


==भूगर्भीय संरचना==
==भूगर्भीय संरचना==
भू‍वैज्ञानिक क्षेत्र व्‍यापक रुप से भौतिक विशेषताओं का पालन करते हैं और इन्‍हें तीन क्षेत्रों के समूह में रखा जा सकता है:  
{{Main|भारत का भूगोल}}
*हिमाचल पर्वत श्रृंखला और उनके संबद्ध पर्वत समूह
भारत के भू‍वैज्ञानिक क्षेत्र व्‍यापक रुप से भौतिक विशेषताओं का पालन करते हैं और इन्‍हें मुख्यत: तीन क्षेत्रों के समूह में रखा जा सकता है:  
*भारत-गंगा मैदान क्षेत्र
# [[हिमालय]] पर्वत श्रृंखला और उनके संबद्ध पर्वत समूह।
*प्रायद्वीपीय ओट
# भारत-गंगा मैदान क्षेत्र।
 
# [[प्रायद्वीप|प्रायद्वीपीय क्षेत्र]]
उत्‍तर में हिमाचलय पर्वत क्षेत्र और पूर्व में नागालुशाई पर्वत, पर्वत निर्माण गतिविधि के क्षेत्र है। इस क्षेत्र का अधिकांश भाग जो वर्तमान समय में विश्‍व का सार्वधिक सुंदर पर्वत दृश्‍य प्रस्‍तुत करता है, 60 करोड़ वर्ष पहले समुद्री क्षेत्र में था। 7 करोड़ वर्ष पहले शुरु हुए पर्वत-निर्माण गतिविधियों की श्रृंखला में तलछटें और आधार चट्टानें काफ़ी ऊँचाई तक पहुँच गई। आज हम जो इन पर उभार देखते हैं, उनको उत्‍पन्‍न करने में अपक्षय और अपरदक ने कार्य किया। भारत-गंगा के मैदानी क्षेत्र एक जलोढ़ भूभाग हैं जो दक्षिण के प्रायद्वीप से उत्‍तर में हिमाचल को अलग करते हैं।
{{आँकड़े एक झलक}}
 
== भारत का संविधान ==
प्रायद्वीप सापेक्ष स्थिरता और कभी-कभार भूकंपीय परेशानियों का क्षेत्र है। 380 करोड़ वर्ष पहले के प्रारंभिक काल की अत्‍याधिक कायांतरित चट्टानें इस क्षेत्र में पायी जाती हैं, बाक़ी क्षेत्र गोंदवाना के तटवर्ती क्षेत्र से घिरा है, दक्षिण में सीढ़ीदार रचना और छोटी तलछटें लावा के प्रवाह से निर्मित हैं।
{{Main|भारत का संविधान}}
 
भारत का संविधान [[26 जनवरी]], 1950 को लागू हुआ। इसका निर्माण संविधान सभा ने किया था, जिसकी पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई थी। संविधान सभा ने 26 नवम्बर, 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था।
==नदियाँ==
संविधान सभा की पहली बैठक अविभाजित भारत के लिए बुलाई गई थी। 4 अगस्त, 1947 को संविधान सभा की बैठक पुनः हुई और उसके अध्यक्ष [[सच्चिदानन्द सिन्हा]] थे। सिन्हा के निधन के बाद [[डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]] संविधान सभा के अध्यक्ष बने। फ़रवरी 1948 में संविधान का मसौदा प्रकाशित हुआ। 26 नवम्बर, 1949 को संविधान अन्तिम रूप में स्वीकृत हुआ और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
भारत की नदियों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे :-
*हिमाचल से निकलने वाली नदियाँ
*दक्षिण से निकलने वाली नदियाँ
*तटवर्ती नदियाँ
*अंतर्देशीय नालों से द्रोणी क्षेत्र की नदियाँ
===<u>हिमालय से निकलने वाली नदियाँ</u>===
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बर्फ़ और ग्‍लेशियरों के पिघलने से बनी हैं अत: इनमें पूरे वर्ष के दौरान निरन्‍तर प्रवाह बना रहता है। मॉनसून माह के दौरान हिमालय क्षेत्र में बहुत अधिक वृष्टि होती है और नदियाँ बारिश पर निर्भर हैं अत: इसके आयतन में उतार चढ़ाव होता है। इनमें से कई अस्‍थायी होती हैं। तटवर्ती नदियाँ, विशेषकर पश्चिमी तट पर, लंबाई में छोटी होती हैं और उनका सीमित जलग्रहण क्षेत्र होता है। इनमें से अधिकांश अस्‍थायी होती हैं। पश्चिमी [[राजस्‍थान]] के अंतर्देशीय नाला द्रोणी क्षेत्र की कुछ्‍ नदियाँ हैं। इनमें से अधिकांश अस्‍थायी प्रकृति की हैं।
[[चित्र:Sindhu-River-1.jpg|[[सिन्धु नदी]]<br />Sindhu river|thumb|left]]
हिमाचल से निकलने वाली नदी की मुख्‍य प्रणाली सिंधु और गंगा ब्रहमपुत्र मेघना नदी की प्रणाली की तरह है।
 
====<u>सिंधु नदी</u>====
विश्‍व की महान, नदियों में एक है, [[तिब्‍बत]] में मानसरोवर के निकट से निकलती है और भारत से होकर बहती है और तत्‍पश्‍चात् [[पाकिस्‍तान]] से हो कर और अंतत: कराची के निकट [[अरब सागर]] में मिल जाती है। भारतीय क्षेत्र में बहने वाली इसकी सहायक नदियों में [[सतलुज नदी|सतलुज]] (तिब्‍बत से निकलती है), [[व्‍यास नदी|व्‍यास]], [[रावी नदी|रावी]], [[चेनाब नदी|चेनाब]], और [[झेलम नदी|झेलम]] है।
[[चित्र:Ganga-Varanasi.jpg|thumb|[[वाराणसी]] में [[गंगा नदी]] के घाट<br /> Ghats of Ganga River in Varanasi]]
====<u>गंगा</u>====
ब्रह्मपुत्र मेघना एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण प्रणाली है जिसका उप द्रोणी क्षेत्र [[भागीरथी नदी|भागीरथी]] और [[अलकनंदा नदी|अलकनंदा]] में हैं, जो देवप्रयाग में मिलकर [[गंगा]] बन जाती है। यह [[उत्तरांचल]], [[उत्तर प्रदेश]], [[बिहार]] और [[पश्चिम बंगाल|प.बंगाल]] से होकर बहती है। राजमहल की पहाडियों के नीचे भागीरथी नदी, जो पुराने समय में मुख्‍य नदी हुआ करती थी, निकलती है जबकि पद्भा पूरब की ओर बहती है और [[बांग्लादेश]] में प्रवेश करती है।
=====<u>सहायक नदियाँ</u>=====
[[चित्र:Yamuna-Mathura-2.jpg|[[यमुना नदी]]<br /> River Yamuna|thumb|left]]
[[यमुना नदी|यमुना]], [[रामगंगा नदी|रामगंगा]], [[घाघरा नदी|घाघरा]], [[गंडक नदी|गंडक]], [[कोसी नदी|कोसी]], [[महानदी]], और [[सोन नदी|सोन]]; गंगा की महत्‍वपूर्ण सहायक नदियाँ है। [[चंबल नदी|चंबल]] और [[बेतवा नदी|बेतवा]] महत्‍वपूर्ण उप सहायक नदियाँ हैं जो गंगा से मिलने से पहले यमुना में मिल जाती हैं। [[पद्मा नदी|पद्मा]] और [[ब्रह्मपुत्र नदी|ब्रह्मपुत्र]] [[बांग्लादेश]] में मिलती है और पद्मा अथवा गंगा के रुप में बहती रहती है।
 
====<u>ब्रह्मपुत्र</u>====
ब्रह्मपुत्र [[तिब्‍बत]] से निकलती है, जहाँ इसे सांगणो कहा जाता है और भारत में [[अरुणाचल प्रदेश]] तक प्रवेश करने तथा यह काफ़ी लंबी दूरी तय करती है, यहाँ इसे दिहांग कहा जाता है। पासी घाट के निकट देबांग और लोहित [[ब्रह्मपुत्र नदी]] से मिल जाती है और यह संयुक्‍त नदी पूरे [[असम]] से होकर एक संकीर्ण घाटी में बहती है। यह घुबरी के अनुप्रवाह में [[बांग्‍लादेश]] में प्रवेश करती है।
=====<u>सहायक नदियाँ</u>=====
भारत में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियाँ सुबसिरी, जिया भरेली, घनसिरी, पुथिभारी, पागलादिया और मानस हैं। बांग्‍लादेश में ब्रह्मपुत्र तिस्‍त आदि के प्रवाह में मिल जाती है और अंतत: गंगा में मिल जाती है। मेघना की मुख्‍य नदी बराक नदी मणिपुर की पहाडियों में से निकलती है। इसकी महत्‍वपूर्ण सहायक नदियाँ मक्‍कू, ट्रांग, तुईवई, जिरी, सोनई, रुक्‍वी, कचरवल, घालरेवरी, लांगाचिनी, महुवा और जातिंगा हैं। बराक नदी बांग्‍लादेश में भैरव बाजार के निकट गंगा-‍ब्रह्मपुत्र के मिलने तक बहती रहती है।
 
दक्‍कन क्षेत्र में अधिकांश नदी प्रणालियाँ सामान्‍यत पूर्व दिशा में बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं।
 
गोदावरी, कृष्‍णा, कावेरी, महानदी, आदि पूर्व की ओर बहने वाली प्रमुख नदियाँ हैं और नर्मदा, ताप्‍ती पश्चिम की बहने वाली प्रमुख नदियाँ है। दक्षिणी प्रायद्वीप में गोदावरी का दूसरी सबसे बड़ी नदी का द्रोणी क्षेत्र है जो भारत के क्षेत्र 10 प्रतिशत भाग है। इसके बाद कृष्‍णा नदी के द्रोणी क्षेत्र का स्‍थान है जबकि महानदी का तीसरा स्‍थान है। डेक्‍कन के ऊपरी भूभाग में नर्मदा का द्रोणी क्षेत्र है, यह अरब सागर की ओर बहती है, बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं दक्षिण में कावेरी के समान आकार की है और परन्‍तु इसकी विशेषताएँ और बनावट अलग है।


कई प्रकार की तटवर्ती नदियाँ हैं जो अपेक्षाकृत छोटी हैं। ऐसी नदियों में काफ़ी कम नदियाँ-पूर्वी तट के डेल्‍टा के निकट समुद्र में मिलती है, जबकि पश्चिम तट पर ऐसी 600 नदियाँ है।
==धर्म==
{{Main|धर्म}}
भारतीय संस्कृति में विभिन्नता उसका भूषण है। यहाँ हिन्दू धर्म के अगणित रूपों और संप्रदायों के अतिरिक्त, [[बौद्ध]], [[जैन]], [[सिक्ख धर्म|सिक्ख]], [[इस्लाम धर्म|इस्लाम]], [[ईसाई धर्म|ईसाई]], यहूदी आदि धर्मों की विविधता का भी एक सांस्कृतिक समायोजन देखने को मिलता है। [[हिन्दू धर्म]] के विविध सम्प्रदाय एवं मत सारे देश में फैले हुए हैं, जैसे [[वैदिक धर्म]], [[शैव सम्प्रदाय|शैव]], [[वैष्णव धर्म|वैष्णव]], [[शाक्त सम्प्रदाय|शाक्त]] आदि पौराणिक धर्म, राधा-बल्लभ संप्रदाय, श्री संप्रदाय, [[आर्य समाज]], समाज आदि। परन्तु इन सभी मतवादों में सनातन धर्म की एकरसता खण्डित न होकर विविध रूपों में गठित होती है। यहाँ के निवासियों में भाषा की विविधता भी इस देश की मूलभूत सांस्कृतिक एकता के लिए बाधक न होकर साधक प्रतीत होती है।  


राजस्‍थान में ऐसी कुछ नदियाँ है जो समुद्र में नहीं मिलती हैं। ये खारे झीलों में मिल जाती है और रेत में समाप्‍त हो जाती हैं जिसकी समुद्र में कोई निकासी नहीं होती है। इसके अतिरिक्‍त कुछ मरुस्‍थल की नदियाँ होती है जो कुछ दूरी तक बहती हैं और मरुस्‍थल में लुप्‍त हो जाती है। ऐसी नदियों में लुनी और मच्‍छ, स्‍पेन, सरस्‍वती, बानस और घग्‍गर जैसी अन्‍य नदियाँ हैं।
==अर्थव्यवस्था==
 
{{Main|भारतीय अर्थव्यवस्था}}
==भारत की प्रमुख नदियाँ==
भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था क्रय शक्ति समानता के आधार पर दुनिया में चौथी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है। यह विशाल जनशक्ति आधार, विविध प्राकृतिक संसाधनों और सशक्‍त वृहत अर्थव्‍यवस्‍था के मूलभूत तत्‍वों के कारण व्‍यवसाय और निवेश के अवसरों के सबसे अधिक आकर्षक गंतव्‍यों में से एक है। वर्ष 1991 में आरंभ की गई आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया से सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था में फैले नीतिगत ढाँचे के उदारीकरण के माध्‍यम से एक निवेशक अनुकूल परिवेश मिलता रहा है। भारत को आज़ाद हुए {{#expr:{{CURRENTYEAR}}-1947}} साल हो चुके हैं और इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा में ज़बरदस्त बदलाव आया है। औद्योगिक विकास ने अर्थव्यवस्था का रूप बदल दिया है। आज भारत की गिनती दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में होती है। विश्व की अर्थव्यवस्था को चलाने में भारत की भूमिका बढ़ती जा रही है। आईटी सॅक्टर में पूरी दुनिया भारत का लोहा मानती है।
{{भारत की प्रमुख नदियाँ सूची1}}
 
{{भारत की नदियाँ}}
 
==राज्यों का गठन एक झलक==
{{राज्यों का गठन सूची1}}
 
{{राज्य और के. शा. प्र.}}
==कृषि==
==कृषि==
{{कृषि सूची1}}
{{Main|कृषि}}
कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों एवं प्रयासों से कृषि को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में गरिमापूर्ण दर्जा मिला है। कृषि क्षेत्रों में लगभग 64% श्रमिकों को रोज़गार मिला हुआ है। 1950-51 में कुल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा 59.2% था जो घटकर 1982-83 में 36.4% और 1990-91 में 34.9% तथा 2001-2002 में 25% रह गया। यह 2006-07 की अवधि के दौरान औसत आधार पर घटकर 18.5% रह गया। दसवीं योजना (2002-2007) के दौरान समग्र सकल घरेलू उत्पाद की औसत वार्षिक वृद्धि पद 7.6% थी जबकि इस दौरान कृषि तथा सम्बद्ध क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर 2.3% रही। 2001-02 से प्रारंभ हुई नव सहस्त्राब्दी के प्रथम 6 वर्षों में 3.0% की वार्षिक सामान्य औसत वृद्धि दर 2003-04 में 10% और 2005-06 में 6% की रही।


==खनिज संपदा==
==खनिज संपदा==
{{खनिज संपदा सूची1}}
{{Main|खनिज}}
==राष्ट्रीय चिन्ह और प्रतीक==
[[स्वतंत्रता दिवस|स्वतंत्रता प्राप्ति]] के पश्चात् भारत में [[खनिज|खनिजों]] के उत्पादन में निरन्तर वृद्धि हुई है। [[कोयला]], [[लौह अयस्क]], [[बॉक्साइट]] आदि का उत्पादन निरंतर बढ़ा है। 1951 में सिर्फ़ 83 करोड़ रुपये के खनिजों का खनन हुआ था, परन्तु [[1970]]-[[1971|71]] में इनकी मात्रा बढ़कर 490 करोड़ रुपये हो गई। अगले 20 वर्षों में खनिजों के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। 2001-02 में निकाले गये खनिजों का कुल मूल्य 58,516.36 करोड़ रुपये तक पहुँच गया जबकि 2005-06 के दौरान कुल 75,121.61 करोड़ रुपये मूल्य के खनिजों का उत्पादन किया गया। यदि मात्रा की दृष्टि से देखा जाये, तो भारत में खनिजों की मात्रा में लगभग तिगुनी वृद्धि हुई है, उसका 50% भाग सिर्फ़ [[पेट्रोलियम]] और [[प्राकृतिक गैस]] के कारण तथा 40% कोयला के कारण हुआ है।
{{राष्ट्रीय चिन्ह और प्रतीक चित्र}}
==रक्षा==
{{Main|भारतीय सशस्त्र सेना}}
भारत की रक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में उसे बढ़ावा दिया जाए एवं स्थायित्व प्रदान किया जाए तथा देश की रक्षा सेनाओं को पर्याप्त रूप से सुसज्जित किया जाए, ताकि वे किसी भी आक्रमण से देश की रक्षा कर सकें। वर्ष 1946 के पूर्व भारतीय रक्षा का पूरा नियंत्रण अंग्रेज़ों के हाथों में था। उसी वर्ष केंद्र में अंतरिम सरकार में पहली बार एक भारतीय देश के रक्षा मंत्री बलदेव सिंह बने। हालांकि कमांडर-इन-चीफ एक अंग्रेज़ ही रहा । 1947 में देश का विभाजन होने पर भारत को 45 रेजीमेंटें मिलीं, जिनमें 2.5 लाख सैनिक थे। शेष रेजीमेंट पाकिस्तान चली गयीं। गोरखा फ़ौज की 6 रेजीमेंट (लगभग 25,000 सैनिक) भी भारत को मिलीं। शेष गोरखा सैनिक ब्रिटिश सेना में सम्मिलित हो गये। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन हो गयी। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन भारतीय भूमि से 28 फ़रवरी, 1948 को स्वदेश रवाना हुई।
==पशु पक्षी जगत==
{{Main|भारत में वन्य जीवन}}
वन्य जीवन प्रकृति की अमूल्य देन है। भविष्य में वन्य प्राणियों की समाप्ति की आशंका के कारण भारत में सर्वप्रथम 7 जुलाई, 1955 को वन्य प्राणी दिवस मनाया गया । यह भी निर्णय लिया गया कि प्रत्येक वर्ष दो अक्तूबर से पूरे सप्ताह तक वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जाएगा। वर्ष 1956 से वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जा रहा है। भारत के संरक्षण कार्यक्रम की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक मज़बूत संस्थागत ढांचे की रचना की गयी है।
==भारतीय भाषा परिवार==
{{Main|भारतीय भाषाएँ}}
भारत की मुख्य विशेषता यह है कि यहाँ विभिन्नता में एकता है। भारत में विभिन्नता का स्वरूप न केवल भौगोलिक है, बल्कि भाषायी तथा सांस्कृतिक भी है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचलन में हैं, जबकि संविधान द्वारा 22 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 344 के अंतर्गत पहले केवल 15 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता दी गयी थी, लेकिन 21वें संविधान संशोधन के द्वारा [[सिन्धी भाषा|सिन्धी]] को तथा [[संविधान संशोधन- 71वाँ|71वाँ संविधान संशोधन]] द्वारा [[नेपाली भाषा|नेपाली]], [[कोंकणी भाषा|कोंकणी]] तथा [[मणिपुरी भाषा|मणिपुरी]] को भी [[राजभाषा]] का दर्जा प्रदान किया गया। बाद में [[संविधान संशोधन- 92वाँ|92वाँ संविधान संशोधन]] अधिनियम, 2003 के द्वारा संविधान की [[आठवीं अनुसूची]] में चार नई भाषाओं [[बोडो भाषा|बोडो]], [[डोगरी भाषा|डोगरी]], [[मैथिली भाषा|मैथिली]] तथा [[संथाली भाषा|संथाली]] को राजभाषा में शामिल कर लिया गया। इस प्रकार अब संविधान में 22 भाषाओं को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया है।


{{राष्ट्रीय चिन्ह और प्रतीक}}
==शिक्षा==
==भारतीय भाषा परिवार==
{{Main|भारत में शिक्षा}}
[[भारत]] की मुख्य विशेषता यह है कि यहाँ विभिन्नता में एकता है। भारत में विभिन्नता का स्वरूप न केवल भौगोलिक है, बल्कि भाषायी तथा सांस्कृतिक भी है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचलन में हैं, जबकि संविधान द्वारा 22 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 344 के अंतर्गत पहले केवल 15 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता दी गयी थी, लेकिन 21वें संविधान संशोधन के द्वारा सिन्धी को तथा 71वाँ संविधान संशोधन द्वारा नेपाली, कोंकणी तथा मणिपुरी को भी राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया। बाद में 92वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूची में चार नई भाषाओं बोडो, डोगरी, मैथिली तथा संथाली को राजभाषा में शामिल कर लिया गया। इस प्रकार अब संविधान में 22 भाषाओं को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया है। भारत में इन 22 भाषाओं को बोलने वाले लोगों की कुल संख्या लगभग 90% है। इन 22 भाषाओं के अतिरिक्त [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] भी सहायक राजभाषा है और यह [[मिजोरम]], [[नागालैण्ड]] तथा [[मेघालय]] की राजभाषा भी है। कुल मिलाकर भारत में 58 भाषाओं में स्कूलों में पढ़ायी की जाती है। संविधान की आठवीं अनुसूची में उन भाषाओं का उल्लेख किया गया है, जिन्हें राजभाषा की संज्ञा दी गई है।  
1911 में भारतीय जनगणना के समय साक्षरता को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि "एक पत्र पढ़-लिखकर उसका उत्तर दे देने की योग्यता" साक्षरता है। भारत में लम्बे समय से लिखित भाषा का अस्तित्व है, किन्तु प्रत्यक्ष सूचना के अभाव के कारण इसका संतोषजनक विकास नहीं हुआ। [[हड़प्पा]] और [[मोहनजोदड़ो]] की लेखन चित्रलिपि तीन हज़ार वर्ष ईसा पूर्व और बाद की है। यद्यपि अभी तक इस लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है, तथापि इससे यह स्पष्ट है कि भारतीयों के पास कई शताब्दियों पहले से ही एक लिखित भाषा थी और यहाँ के लोग पढ़ और लिख सकते थे। हड़प्पा और [[अशोक]] के काल के बीच में पन्द्रह सौ वर्षों का ऐसा समय रहा है, जिसमें की कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता। लेकिन [[पाणिनि]] ने उस समय भारतीयों के द्वारा बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं का उल्लेख किया है।
{{भारत के भाषा परिवार सूची1}}


====भारतीय भाषा सूची====
==भारतीय कला==
{{भारतीय भाषा सूची1}}
{{Main|भारतीय कला}}
भारतीय कला अपनी प्राचीनता तथा विविधता के लिए विख्यात रही है। आज जिस रूप में '[[कला]]' शब्द अत्यन्त व्यापक और बहुअर्थी हो गया है, प्राचीन काल में उसका एक छोटा हिस्सा भी न था। यदि ऐतिहासिक काल को छोड़ और पीछे प्रागैतिहासिक काल पर दृष्टि डाली जाए तो विभिन्न नदियों की घाटियों में पुरातत्त्वविदों को खुदाई में मिले असंख्य पाषाण उपकरण भारत के आदि मनुष्यों की कलात्मक प्रवृत्तियों के साक्षात प्रमाण हैं। पत्थर के टुकड़े को विभिन्न तकनीकों से विभिन्न प्रयोजनों के अनुरूप स्वरूप प्रदान किया जाता था।
====भारतीय संगीत====
{{Main|संगीत}}
संगीत मानवीय लय एवं तालबद्ध अभिव्यक्ति है। भारतीय संगीत अपनी मधुरता, लयबद्धता तथा विविधता के लिए जाना जाता है। वर्तमान भारतीय संगीत का जो रूप दृष्टिगत होता है, वह आधुनिक [[युग]] की प्रस्तुति नहीं है, बल्कि यह [[भारतीय इतिहास]] के प्रासम्भ के साथ ही जुड़ा हुआ है। [[वैदिक काल]] में ही भारतीय संगीत के बीज पड़ चुके थे। [[सामवेद]] उन वैदिक ॠचाओं का संग्रह मात्र है, जो गेय हैं। प्राचीन काल से ही ईश्वर आराधना हेतु भजनों के प्रयोग की परम्परा रही है। यहाँ तक की यज्ञादि के अवसर पर भी समूहगान होते थे।
====नृत्य कला====
{{main|नृत्य कला}}
भारत में नृत्य की अनेक शैलियाँ हैं। [[भरतनाट्यम]], [[ओडिसी]], [[कुचिपुड़ी]], [[कथकली]], [[मणिपुरी]], [[कथक]] आदि परंपरागत नृत्य शैलियाँ हैं तो [[भंगड़ा]], [[गिद्दा]], नगा, [[बिहू नृत्य|बिहू]] आदि लोक प्रचलित नृत्य है। ये नृत्य शैलियाँ पूरे देश में विख्यात है। [[गुजरात]] का [[गरबा नृत्य|गरबा]] [[हरियाणा]] में भी मंचो की शोभा को बढ़ाता है और [[पंजाब]] का [[भंगड़ा]] [[दक्षिण भारत]] में भी बड़े शौक़ से देखा जाता है। भारत के संगीत को विकसित करने में [[अमीर ख़ुसरो]], [[तानसेन]], [[बैजू बावरा]] जैसे संगीतकारों का विशेष योगदान रहा है। आज भारत के संगीत-क्षितिज पर [[बिस्मिल्ला ख़ाँ‎]], [[ज़ाकिर हुसैन]], [[रवि शंकर]] समान रूप से सम्मानित हैं।


{{भाषा और लिपि}}
==संस्कृति==
{{Main|भारतीय संस्कृति}}
त्योहार और मेले भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। यह भी कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति अपने हृदय के माधुर्य को त्योहार और मेलों में व्यक्त करती है, तो अधिक सार्थक होगा। भारतीय संस्कृति प्रेम, सौहार्द्र, करुणा, मैत्री, दया और उदारता जैसे मानवीय गुणों से परिपूर्ण है। यह उल्लास, उत्साह और विकास को एक साथ समेटे हुए है। आनन्द और माधुर्य तो जैसे इसके प्राण हैं। यहाँ हर कार्य आनन्द के साथ शुरू होता है और माधुर्य के साथ सम्पन्न होता है। भारत जैसे विशाल धर्मप्राण देश में आस्था और विश्वास के साथ मिल कर यही आनन्द और उल्लास त्योहार और मेलों में फूट पड़ता है। त्योहार और मेले हमारी धार्मिक आस्थाओं, सामाजिक परम्पराओं और आर्थिक आवश्यकताओं की त्रिवेणी है, जिनमें समूचा जनमानस भावविभोर होकर गोते लगाता है।
== भारतीय भोजन ==
{{Main|भारतीय भोजन}}
भारतीय भोजन स्वाद और सुगंध का मधुर संगम है। पूरन पूरी हो या दाल बाटी, तंदूरी रोटी हो या शाही पुलाव, पंजाबी भोजन हो या मारवाड़ी भोजन, ज़िक्र चाहे जिस किसी का भी हो रहा हो, केवल नाम सुनने से ही भूख जाग उठती है। भारत में पकवानों की विविधता भी बहुत अधिक है। [[राजस्थान]] में दाल-बाटी, [[कोलकाता]] में चावल-मछली, [[पंजाब]] में रोटी-साग, दक्षिण में इडली-डोसा। इतनी विविधता के बीच एकता का प्रमाण यह है कि आज दक्षिण भारत  के लोग दाल-रोटी उसी शौक़ से खाते हैं, जितने शौक़ से उत्तर भारतीय इडली-डोसा खाते हैं। सचमुच भारत एक रंगबिरंगा गुलदस्ता है।
==पर्यटन==
==पर्यटन==
{{पर्यटन सूची1}}
{{Main|पर्यटन}}
भारतवासी अपनी दीर्घकालीन, अनवरत एवं सतरंगी उपलब्धियों से युक्त इतिहास पर गर्व कर सकते हैं। प्राचीन काल से ही भारत एक अत्यन्त ही विविधता सम्पन्न देश रहा है और यह विशेषता आज भी समय की घड़ी पर अंकित है। यहाँ प्रारम्भ से अनेक अध्यावसायों का अनुसरण होता रहा है, पृथक्-पृथक् मान्यताएँ हैं, लोगों के रिवाज़ और दृष्टिकोणों के विभिन्न रंगों से सजा यह देश अतीत को भूत, वर्तमान एवं भविष्य की आँखों से देखने के लिए आह्वान कर रहा है। किन्तु बहुरंगी सभ्यता एवं संस्कृति वाले देश के सभी आयामों को समझने का प्रयास इतना आसान नहीं है।  
भारतवासी अपनी दीर्घकालीन, अनवरत एवं सतरंगी उपलब्धियों से युक्त इतिहास पर गर्व कर सकते हैं। प्राचीन काल से ही भारत एक अत्यन्त ही विविधता सम्पन्न देश रहा है और यह विशेषता आज भी समय की घड़ी पर अंकित है। यहाँ प्रारम्भ से अनेक अध्यावसायों का अनुसरण होता रहा है, पृथक्-पृथक् मान्यताएँ हैं, लोगों के रिवाज और दृष्टिकोणों के विभिन्न रंगों से सज़ा यह देश अतीत को भूत, वर्तमान एवं भविष्य की आँखों से देखने के लिए आह्वान कर रहा है। किन्तु बहुरंगी सभ्यता एवं संस्कृति वाले देश के सभी आयामों को समझने का प्रयास इतना आसान नहीं है।  
====ऐतिहासिक स्थल====
{{पर्यटन सूची2}}
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत में इतने अधिक विचार एवं दृष्टिकोण केवल इसीलिए फल-फूल पाएँ हैं कि यहाँ वैचारिक विविधता और वाद-संवाद को प्रायः सर्व- सहमति प्राप्त रही है। भारत की विविधता हमें स्थलों के अनुशीलन में भी दिखाई देती है। ऐतिहासिक स्थलों के अध्ययन तथा विवेचन में भारतीय संस्कृति का स्वरूप स्वयं प्रकाशित होता है। इससे इतिहास के बिखरे सूत्रों की प्रभावी रूप से तलाश संभव है। यह भी उल्लेखनीय है कि नगर एवं नगर-जीवन के विकास का विविरण सभ्यता के विकास का प्रधान सूत्र है। राजनीतिक और आर्थिक प्रगति तथा शिल्प, कला एवं विद्या का बहुमुखी विकास के साथ ही सम्पन्न हुआ है।
====प्राचीन धार्मिक स्थल====
प्राचीन काल से ही भव्य देवालयों और धर्म स्थलों से भरपूर भारत स्थापत्य कला के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
{{पर्यटन सूची3}}
====धार्मिक स्थल====
अनेक धर्म और परंपराओं से सजा भारत अपने भीतर हज़ारों धार्मिक स्थल बसाए हुए है। जो पूरे भारत में देशी और विदेशी पर्यटकों और श्रद्धालुओं का मुख्य आकर्षण हैं।
{{पर्यटन सूची4}}
 
==इतिहास <small>(आदिकाल से स्वतंत्रता तक)</small>==
{{seealso|आर्य|आर्यावर्त|सोम रस|वेद}}
भारत का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होता है। 3000 ई॰ पूर्व तथा 1500 ई॰ पूर्व के बीच [[सिंधु घाटी]] में एक उन्नत सभ्यता वर्तमान थी, जिसके अवशेष [[मोहन जोदड़ो]] (मुअन-जो-दाड़ो) और [[हड़प्पा]] में मिले हैं। विश्वास किया जाता है कि भारत में [[आर्य|आर्यों]] का प्रवेश बाद में हुआ। आर्यों ने पाया कि इस देश में उनसे पूर्व के जो लोग निवास कर रहे थे, उनकी सभ्यता यदि उनसे श्रेष्ठ नहीं तो किसी रीति से निकृष्ट भी नहीं थी। आर्यों से पूर्व के लोगों में सबसे बड़ा वर्ग [[द्रविड़|द्रविड़ों]] का था। आर्यों द्वारा वे क्रमिक रीति से उत्तर से दक्षिण की ओर खदेड़ दिये गए। जहाँ दीर्घ काल तक उनका प्रधान्य रहा। बाद में उन्होंने आर्यों का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया। उनसे विवाह सम्बन्ध स्थापित कर लिये और अब वे महान् भारतीय राष्ट्र के अंग हैं। द्रविड़ों के अलावा देश में और मूल जातियाँ थी, जिनमें से कुछ का प्रतिनिधित्व [[मुण्डा]], [[कोल]], [[भील]] आदि जनजातियाँ करती हैं जो [[मोन-ख्मेर]] वर्ग की भाषाएँ बोलती हैं। भारतीय आर्यों का प्राचीनतम साहित्य हमें [[वेद|वेदों]] में विशेष रूप से ऋग्वेद में मिलता है, जिसका रचनाकाल कुछ विद्वान् तीन हज़ार ई॰ पू॰ मानते हैं। वेदों में हमें उस काल की सभ्यता की एक झाँकी मिलती है। आर्यों ने इस देश को कोई राजनीतिक एकता प्रदान नहीं की। यद्यपि उन्होंने उसे एक पुष्ट दर्शन और धर्म प्रदान किया, जो [[हिन्दू धर्म]] के नाम से प्रख्यात है और कम से कम चार हज़ार वर्ष से अक्षुण्ण है।
 
{{आदिकाल सूची1}}
====<u>महाजनपद युग</u>====
{{seealso|ब्राह्मण|अंधक संघ|कृष्ण|ब्रज}}
<blockquote>प्राचीन भारतीयों ने कोई तिथि क्रमानुसार इतिहास नहीं सुरक्षित रखा है। सबसे प्राचीन सुनिश्चित तिथि जो हमें ज्ञात है, 326 ई॰ पू॰ है, जब मक़दूनिया के राजा [[सिकन्दर]] ने भारत पर आक्रमण किया। इस तिथि से पहले की घटनाओं का तारतम्य जोड़ कर तथा साहित्य में सुरक्षित ऐतिहासिक अनुश्रुतियों का उपयोग करके भारत का इतिहास सातवीं शताब्दी ई॰ पू॰ तक पहुँच जाता है। इस काल में भारत [[क़ाबुल]] की घाटी से लेकर गोदावरी तक षोडश जनपदों में विभाजित था, जिनके नाम निम्नोक्त थेः-</blockquote>
{{महाजनपद सूची1}}
इन राज्यों मे आपस में बराबर लड़ाई होती रहती थी। छठीं शताब्दी ई॰ पू॰ के मध्य में [[बिम्बिसार]] तथा [[अजातशत्रु]] के राज्य काल में [[मगध]] ने [[काशी]]  तथा [[कोशल]] पर अधिकार करने के बाद अपनी सीमाओं का विस्तर आरम्भ किया। इन्हीं दोनों मगध राजाओं के राज्यकाल में वर्धमान [[महावीर]] ने [[जैन धर्म]] तथा [[बुद्ध|गौतम बुद्ध]] ने [[बौद्ध धर्म]] का उपदेश दिया। बाद मे काल में मगध राज्य का विस्तार जारी रहा और चौथी शताब्दी ई॰ पू॰ के अंत में नन्द राजाओं के शासनकाल में उसका विस्तार [[बंगाल]] से लेकर [[पंजाब]] में [[व्यास नदी]] के तट तक सारे उत्तरी भारत में हो गया।
{{highright}}[[चित्र:Hazari-Prasad-Dwivedi.jpg|125px|right]]भारतवर्ष कोई नया देश नहीं है। बड़े–बड़े साम्राज्य उसकी धूल में दबे हुए हैं, बड़ी–बड़ी धार्मिक घोषणाएँ उसके वायुमण्डल में निनादित हो चुकी हैं। बड़ी–बड़ी सभ्यताएँ उसके प्रत्येक कोने में उत्पन्न और विलीन हो चुकी हैं। उनके स्मृति चिह्न अब भी इस प्रकार निर्जीव होकर खड़े हैं मानों अट्टाहस करती हुई विजयलक्ष्मी को बिजली मार गई हो। अनादिकाल में उसमें अनेक जातियों, कबीलों, नस्लों और घुमक्कड़ ख़ानाबदोशों के झुण्ड इस देश में आते रहे हैं। कुछ देर के लिए इन्होंने देश के वातावरण को विक्षुब्ध भी बनाया है, पर अन्त तक वे दखल करके बैठ जाते रहे हैं और पुराने देवताओं के समान ही श्रद्धाभाजन बन जाते रहे हैं—कभी–कभी अधिक सम्मान भी पा सके हैं। भारतीय संस्कृति कि कुछ ऐसी विशेषता रही है कि उन कबीलों, नस्लों और जातियों की भीतरी समाज–व्यवस्था और धर्म–मत में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया गया है और फिर भी उनको सम्पूर्ण भारतीय मान लिया गया है। भागवत में ऐसी जातियों की एक सूची देकर बताया गया है कि एक बार भगवान का आश्रय पाते ही ये शुद्ध हो गई हैं। इनमें किरात हैं, हूण हैं, आंध्र हैं, पुलिंद हैं, पुक्कस हैं, आभीर हैं, शुंग हैं, यवन हैं, खस हैं, शक हैं और भी निश्चय ही ऐसी बहुत सी जातियाँ हैं, जिनका नाम भागवताकार<ref>
<poem>किरात हूणांध्र–पुलिंदा–पुक्कसाः
आभीर–शुंगा यवनाः खसादयः
येऽन्ये च पापास्तदपाश्रयाश्रयः–
शुध्यतिं तस्मै प्रभविष्णवे नमः। – 'भागवत', 24-18</poem></ref> नहीं गिना गए।- हज़ारीप्रसाद द्विवेदी <ref>"कबीर" लेखक- हज़ारीप्रसाद द्विवेदी</ref>{{highclose}}
====<u>मौर्य और शुंग</u>====
{{seealso|अशोक के शिलालेख|अशोक|बुद्ध|बौद्ध दर्शन|बौद्ध धर्म|फ़ाह्यान|पाटलिपुत्र}}
[[चित्र:Chanakya.jpg|thumb|250px|left|[[चाणक्य]]]]
यूनानी इतिहासकारों के द्वारा वर्णित 'प्रेसिआई' देश का राजा इतना शक्तिशाली था कि [[सिकन्दर]] की सेनाएँ व्यास पार करके प्रेसिआई देश में नहीं घुस सकीं और सिकन्दर, जिसने 326 ई॰ में पंजाब पर हमला किया, पीछे लौटने के लिए विवश हो गया। वह सिंधु के मार्ग से पीछे लौट गया। इस घटना के बाद ही मगध पर [[चंद्रगुप्त मौर्य]] (लगभग 322 ई॰ पू॰-298 ई॰ पू॰) ने पंजाब में सिकन्दर जिन यूनानी अधिकारियों को छोड़ गया था, उन्हें निकाल बाहर किया और बाद में एक युद्ध में सिकन्दर के सेनापति [[सेल्युकस]] को हरा दिया। सेल्युकस ने [[हिन्दूकुश]] तक का सारा प्रदेश वापस लौटा कर चन्द्रगुप्त मौर्य से संधि कर ली। चन्द्रगुप्त ने सारे उत्तरी भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उसने सम्भ्वतः दक्षिण भी विजय कर लिया। वह अपने इस विशाल साम्राज्य पर अपनी राजधानी [[पाटलिपुत्र]] से शासन करता था। उसकी राजधानी पाटलिपुत्र वैभव और समृद्धि में सूसा और एकबताना नगरियों को भी मात करती थी। उसका पौत्र [[अशोक]] था, जिसने [[कलिंग]] ([[उड़ीसा]]) को जीता। उसका साम्राज्य [[हिमालय]] के पादमूल से लेकर दक्षिण में [[पन्नार नदी]] तक तथा उत्तर पश्चिम में हिन्दूकुश से लेकर उत्तर-पूर्व में [[असम|आसाम]] की सीमा तक विस्तृत था। उसने अपने विशाल साम्राज्य के समय साधनों को मनुष्यों तथा पशुओं के कल्याण कार्यों तथा बौद्ध धर्म के प्रसार में लगाकर अमिट यश प्राप्त किया। उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भिक्षुओं को [[मिस्र]], [[मक़दूनिया]] तथा [[कोरिन्थ]] (प्राचीन [[यूनान]] की विलास नगरी) जैसे दूर-दराज स्थानों में भेजा और वहाँ लोकोपकारी कार्य करवाये। उसके प्रयत्नों से बौद्ध धर्म विश्वधर्म बन गया। परन्तु उसकी युद्ध से विरत रहने की शान्तिपूर्ण नीति ने उसके वंश की शक्ति क्षीण कर दी और लगभग आधी शताब्दी के बाद [[पुष्यमित्र शुंग|पुष्यमित्र]] ने उसका उच्छेद कर दिया। पुष्यमित्र ने [[शुंगवंश]] (लगभग 185 ई॰ पू॰- 73 ई॰ पू॰) की स्थापनी की, जिसका उच्छेद [[कराव वंश]] (लगभग  73 ई॰ पू॰-28 ई॰ पू॰) ने कर दिया।
{{highleft}}देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ऐसा कहते हैं... मैंने यह (प्रबन्ध) किया कि हर समय चाहे मैं खाता होऊँ या अन्तःपुर में रहूँ या गर्भागार (शयनगृह) में होऊँ या टहलता होऊँ या सवारी पर होऊँ या कूच कर रहा होऊँ, सभी जगह किसी भी समय पर, प्रतिवेदक (गुप्तचर) प्रजा का हाल मुझे सुनावें। मैं प्रजा का काम सभी जगह पर करता हूँ।… क्योंकि मैं कितना ही परिश्रम करूँ और कितना ही राजकार्य करुँ मुझे सन्तोष नहीं होता। सब लोगों का हित करना ही मैं अपना प्रधान कर्तव्य समझता हूँ। पर सभी लोगों का हित, परिश्रम और राजकार्य सम्पादन के बिना नहीं हो सकता। सभी लोगों का हित करने से बढ़कर और कोई कार्य नहीं है। जो कुछ भी पराक्रम करता हूँ वह इसीलिए कि प्राणियों के प्रति जो मेरा ऋण है उससे उऋण हो जाऊँ… अधिक परिश्रम के बिना यह कार्य कठिन है।- सम्राट [[अशोक]] महान<ref>गिरनार का षष्ठ शिलालेख  "अशोक के धर्म लेख" से पृष्ठ सं- 28</ref>{{highclose}}
 
====<u>शक, कुषाण और सातवाहन</u>====
{{seealso|राबाटक लेख|कुषाण|कनिष्क|कम्बोजिका|कल्हण}}
मौर्यवंश के पतन के बाद मगध की शक्ति घटने लगी और [[सातवाहन]] राजाओं के नेतृत्व में मगध साम्राज्य दक्षिण से अलग हो गया। सातवाहन वंश को [[आन्ध्र प्रदेश|आन्ध्र]] वंश भी कहते हैं और उसने 50 ई॰ पू॰ से 225 ई॰ तक राज्य किया। भारत में एक शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार के अभाव में [[बैक्ट्रिया]] और [[पार्थिया]] के राजाओं ने उत्तरी भारत पर आक्रमण शुरू कर दिये। इन आक्रमणकारी राजाओं में [[मिनाण्डर]] सबसे विख्यात है। इसके बाद ही [[शक]] राजाओं के आक्रमण शुरू हो गये और [[महाराष्ट्र]], [[सौराष्ट्र]] तथा [[मथुरा]] शक क्षत्रपों के शासन  में आ गये। इस तरह भारत की जो राजनीतिक एकता भंग हो गयी थी, वह ईसवीं पहली शताब्दी में [[कुजुल कडफ़ाइसिस]] द्वारा [[कुषाण वंश]] की शुरूआत से फिर स्थापित हो गयी। इस वंश ने तीसरी शताब्दी ईसवीं के मध्य तक उत्तरी भारत पर राज्य किया। <br />
इस वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा [[कनिष्क]] (लगभग 120-144 ई॰) था, जिसकी राजधानी [[पुरुषपुर]] अथवा [[पेशावर]] थी। उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया और [[अश्वघोष]], [[नागार्जुन बौद्धाचार्य|नागार्जुन]] तथा [[चरक]] जैसे भारतीय विद्वानों को संरक्षण दिया। कुषाणवंश का अज्ञात कारणों से तीसरी शताब्दी के मध्य तक पतन हो गया। इसके बाद भारतीय इतिहास का अंधकार युग आरम्भ होता है। जो चौथी शताब्दी के आरम्भ में [[गुप्तवंश]] के उदय से समाप्त हुआ।
 
====<u>गुप्त</u>====
{{seealso|ह्वेन त्सांग}}
लगभग 320 ई॰ पू॰ में चन्द्रगुप्त ने गुप्तवंश का प्रचलित किया और पाटलिपुत्र को फिर से अपनी राजधानी बनाया। गुप्त वंश में एक के बाद एक चार महान शक्तिशाली राजा हुए, जिन्होंने सारे उत्तरी भारत में अपना साम्राज्य विस्तृत कर लिया और दक्षिण के कई राज्यों पर भी अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उन्होंने हिन्दू धर्म को राज्य धर्म बनाया, बौद्ध धर्म और जैन धर्म के प्रति सहिष्णुता बरती और ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला, वास्तुकला और चित्रकला की उन्नति की। इसी युग में कालिदास, आर्यभट्ट तथा वराहमिहिर हुए। रामायण, महाभारत, पुराणों तथा मनुसंहिता को भी इसी युग में वर्तमान रूप प्राप्त हुआ। चीनी यात्री फाह्यान ने 401 से 410 ई॰ के बीच भारत की यात्रा की और उसने उस काल का रोचक वर्णन किया है। उसका मत है कि उस काल में देश में पूरा रामराज्य था। स्वाभाविक रूप से गुप्त युग को भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग माना जाता है और उसकी तुलना एथेन्स के परीक्लीज युग से की जाती है। (पेरीक्लीज (लगभग 492-529 ई॰ पू॰) एथेन्स का महान राजनेता तथा सेनापति था। उसके प्रशासकाल (460-429 ई॰ पू॰) में एथेन्स उन्नति के शिखर पर पहुँच गया।)
आंतरिक विघटन तथा हूणों के आक्रमणों के फलस्वरूप छठी शताब्दी में गुप्त वंश का पतन हो गया। परन्तु सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ में हर्षवर्धन ने एक दूसरा साम्राज्य खड़ा कर दिया, जिसकी राजधानी कन्नौज थी। यह साम्राज्य सारे उत्तरी भारत में विस्तृत था। दक्षिण में चालुक्य राजा पुलकेशी द्वितीय ने उसका साम्राज्य नर्मदा तट से आग बढ़ने से रोक दिया था। चीनी यात्री ह्वयुएनत्सांग उसके राज्यकाल में भारत आया था और उसने अपने यात्रा वर्णन में लिखा है कि हर्षवर्धन बड़ा प्रतापी और शक्तिशाली राजा है। वह 646 ई॰ में निस्संतान मर गया और उसके बाद सारे उत्तरी भारत में फिर से अव्यवस्था फैल गयी।
====<u>राजपूत आदि राजवंश</u>====
इस अव्यवस्था के फलस्वरूप राजवंशों का उदय हुआ, जो अपने को [[राजपूत]] कहते थे। इनमें पंजाब का हिन्दूशाही राजवंश, [[गुजरात]] का गुर्जर-प्रतिहार राजवंश, [[अजमेर]] का [[चौहान वंश]], [[कन्नौज]] का [[गहदवाल]] वंश तथा मगध और बंगाल का [[पाल वंश]] था। दक्षिण में भी [[सातवाहन वंश]] के पतन के बाद इसी प्रकार सत्ता का विघटन हो गया। [[उड़ीसा]] के [[गंग वंश]] जिसने पुरी का प्रसिद्ध [[जगन्नाथ मन्दिर]] बनवाया, [[वातापी कर्नाटक|वातापी]] के [[चालुक्य वंश]], जिसके राज्यकाल में [[अजन्ता की गुफ़ाएँ|अजन्ता]] के कुछ गुफ़ा चित्र बने तथा कांची के [[पल्लव वंश]] ने, जिसकी स्मृति उस काल में बनवाये गये कुछ प्रसिद्ध मन्दिरों में सुरक्षित है, दक्षिण को आपस में बांट लिया और परस्पर युद्धों में एक दूसरे का नाश कर दिया। इसके बाद [[मान्यखेट]] अथवा [[मालखड़]] के [[राष्ट्रकूट वंश]] का उदय हुआ, जिसका [[उच्छेद पुर]] ने चालुक्य वंश की एक नवीन शाखा ने कर दिया। जिसने [[कल्याणी]] को अपनी राजधानी बनाया। उसका [[उच्छेद देवगिरि]] के [[यादव|यादवों]] तथा [[द्वारसमुद्र]] के [[होयसल वंश]] ने कर दिया। सुदूर दक्षिण में [[चेर]], [[पांड्य]] और [[चोल]] राज्यों का उदय हुआ, जिनमें से अंतिम राज्य सबसे अधिक चला। इस तरह सारे भारत में अनैक्य व्याप्त हो गया।
 
====<u>इस्लाम का प्रवेश</u>====
{{seealso|चंगेज़ ख़ाँ|महमूद ग़ज़नवी}}
इस बीच 712 ई॰ में भारत में इस्लाम का प्रवेश हो चुका था। [[मुहम्मद-इब्न-क़ासिम]] के नेतृत्व में [[मुसलमान]] [[अरब देश|अरबों]] ने [[सिंध]] पर हमला कर दिया और वहाँ के [[ब्राह्मण]] राजा [[दाहिर]] को हरा दिया। इस तरह भारत की भूमि पर पहली बार [[इस्लाम]] के पैर जम गये और बाद की शताब्दियों के [[हिन्दू]] राजा उसे फिर हटा नहीं सके। परन्तु सिंध पर अरबों का शासन वास्तव में निर्बल था और 1176 ई॰ में [[शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी]] ने उसे आसानी से उखाड़ दिया। इससे पूर्व [[सुबुक्तगीन]] के नेतृत्व में सुसलमानों ने हमले करके [[पंजाब]] छीन लिया था और [[ग़ज़नी]] के [[सुल्तान महमूद]] ने 997 से 1030 ई॰ के बीच भारत पर सत्रह हमले किये और हिन्दू राजाओं की शक्ति कुचल डाली। फिर भी हिन्दू राजाओं ने मुसलमानी आक्रमण का जिस अनवरत रीति से प्रबल विरोध किया, उसका महत्व कम करके नहीं आंकना चाहिए।
====<u>पृथ्वीराज चौहान और ग़ोरी</u>====
{{seealsoमहमूद ग़ोरी}}
[[फ़ारस]] तथा पश्चिम एशिया के दूसरे राज्यों की तरह मुसलमानों को भारत में शीघ्रता से सफलता नहीं मिली। यद्यपि सिंध पर अरब मुसलमानों का शीघ्रता से क़ब्ज़ा हो गया, परन्तु वहाँ से वे लगभग चार शताब्दियों तक आगे नहीं बढ़ पाये। उत्तर-पश्चिम के मुसलमान आक्रमणकारियों को भी भारत ने लगभग तीन शताब्दियों तक रोके रखा। शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी का [[दिल्ली]] जीतने का पहला प्रयास विफल हुआ और [[पृथ्वीराज चौहान|पृथ्वीराज]] ने 1190 ई॰ में [[तराईन]] की पहली लड़ाई में उसे हरा दिया। वह 1193 ई॰ में तराईन की दूसरी लड़ाई में ही पृथ्वीराज को हराने में सफल हुआ। इस विजय के बाद शहाबुद्दीन और उसके सेनापतियों ने उत्तरी भारत के दूसरे हिन्दू राजाओं को भी हरा दिया और वहाँ मुसलमानी शासन स्थापित कर दिया। इस तरह तेरहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में दिल्ली के सुल्तानों की अधीनता में उत्तरी भारत की राजनीतिक एकता फिर से स्थापित हो गई।
====<u>तैमूर</u>====
{{seealso|तैमूर लंग|विजय नगर साम्राज्य|बहमनी वंश|चंगेज़ ख़ाँ|अलाउद्दीन ख़िलजी}}
दक्षिण एक और शताब्दी तक स्वतंत्र रहा, किन्तु [[सुल्तान ख़िलजी]] के राज्यकाल में दक्षिण भी दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गया और इस तरह चौदहवीं शताब्दी में कुछ काल के लिए सारे भारत का शासन फिर से एक केन्द्रीय सत्ता के अंतर्गत आ गया। परन्तु [[दिल्ली सल्तनत]] का शीघ्र ही पतन शुरू हो गया और 1336 ई॰ में दक्षिण में हिन्दुओं का एक विशाल राज्य स्थापित हुआ, जिसकी राजधानी [[विजय नगर साम्राज्य]] थी। बंगाल (1338 ई॰), [[जौनपुर]] (1393 ई॰), [[गुजरात]] तथा दक्षिण के मध्यवर्ती भाग में भी [[बहमनी सल्तनत]] (1347 ई॰) के नाम से स्वतंत्र मुसलमानी राज्य स्थापित हो गया। 1398 ई॰ में [[तैमूर]] ने भारत पर हमला किया और दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया और उसे लूटा। उसके हमले से दिल्ली की सल्तनत जर्जर हो गयी।
 
====<u>मुग़ल</u>====
{{seealso|बाबर|हुमायूँ|अकबर|जहाँगीर|शाहजहाँ|औरंगज़ेब|शेरशाह सूरी साम्राज्य|शेरशाह सूरी}}
दिल्ली की सल्तनत वास्तव में कमज़ोर थी, क्योंकि सुल्तानों ने अपनी विजित हिन्दू प्रजा का ह्रदय जीतने का कोई प्रयास नहीं किया। वे धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त कट्टर थे और उन्होंने बलपूर्वक हिन्दुओं को मुसलमान बनाने का प्रयास किया। इससे हिन्दू प्रजा उनसे कोई सहानुभूति नहीं रखती थी। इसक फलस्वरूप 1526 ई॰ में [[बाबर]] ने आसानी से दिल्ली की सल्तनत को उखाड़ फैंका। उसने [[पानीपत]] की  [[पानीपत का प्रथम युद्ध|पहली लड़ाई]] में अन्तिम सुल्तान [[इब्राहीम लोदी]] को हरा दिया और [[मुग़ल वंश]] की प्रतिष्ठित किया, जिसने 1526 से 1858 ई॰ तक भारत पर शासन किया। तीसरा [[मुग़ल]] बादशाह [[अकबर]] असाधारण रूप से योग्य और दूरदर्शी शासक था। उसने अपनी विजित हिन्दू प्रजा का ह्रदय जीतने की कोशिश की और विशेष रूप से युद्ध प्रिय राजपूत राजाओं को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया। अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता तथा मेल-मिलाप की नीति बरती, हिन्दुओं पर से [[जज़िया]] उठा लिया और राज्य के ऊँचे पदों पर बिना भेदभाव के सिर्फ योग्यता के आधार पर नियुक्तियाँ कीं।
{{मुग़ल काल}}
 
====<u>मराठा</u>====
{{seealso|मराठा साम्राज्य|शिवाजी|तानाजी|अहिल्याबाई होल्कर|जाटों का इतिहास}}
राजपूतों और मुग़लों के योग से उसने अपना साम्राज्य [[कन्दहार]] से [[आसाम]] की सीमा तक तथा [[हिमालय]] की तलहटी से लेकर दक्षिण में [[अहमदनगर]] तक विस्तृत कर दिया। उसके पुत्र [[जहाँगीर]] जहाँ पौत्र [[शाहजहाँ]] कि राज्यकाल में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार जारी रहा। शाहजहाँ ने ताज का निर्माण कराया, परन्तु क्न्दहार उसके हाथ से निकल गया। अकबर के प्रपौत्र औरंगज़ेब के राज्यकाल में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार अपने चरम शिखर पर पहुँच गया और कुछ काल के लिए सारा भारत उसके अंतर्गत हो गया। परन्तु [[औरंगज़ेब]] ने जान-बूझकर अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति त्याग दी और हिन्दुओं को अपने विरुद्ध कर लिया। उसने हिन्दुस्तान का शासन सिर्फ मुसलमानों के हित में चलाने की कोशिश की और हिन्दुओं को ज़बर्दस्ती मुसलमान बनाने का असफल प्रयास किया। इससे [[राजपूताना]], [[बुंदेलखण्ड]] तथा [[पंजाब]] के हिन्दू उसके विरुद्ध उठ खड़े हुए। [[महाराष्ट्र]] में [[शिवाजी]] ने 1707 ई॰ में औरंगज़ेब की मृत्यु से पूर्व ही एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य स्थापित कर दिया। औरंगज़ेब अन्तिम शक्तिशाली मुग़ल बादशाह था। उसके उत्तराधिकारी अत्यन्त निर्बल और अयोग्य थे, उनके वज़ीर विश्वासघाती थे। फ़ारस के [[नादिरशाह]] ने मुग़ल बादशाहत पर सबसे सांघातिक प्रहार किया। उसने 1739 ई॰ में भारत पर चढ़ाई की और दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया और उसे निर्दयता से पूरी तरह लूटा। उसके हमले से मुग़ल साम्राज्य पूरी तरह जर्जर हो गया और इसके बाद शीघ्रता से उसका विघटन हो गया। [[अवध]], [[बंगाल]] तथा दक्षिण के मुसलमान सूबेदारों ने अपने को स्वतंत्र कर लिया। राजपूत राजा भी अर्द्ध-स्वतंत्र हो गये। [[पेशवा बाजीराव प्रथम]] के नेतृत्व में [[मराठा|मराठों]] ने [[मुग़ल साम्राज्य]] के खंडहरों पर हिन्दू पद पादशाह की स्थापना का प्रयास किया।
====<u>अंग्रेज़</u>====
{{seealso|वास्को द गामा}}
परन्तु यह सम्भव नहीं हो सका। [[फ़िरंगी]] लोग समुद्री मार्गों से भारत की ज़मीन पर पैर जमा चुके थे। अकबर से लेकर औरंगज़ेब तक मुग़ल बादशाहों ने भारत के इस नये मार्ग का महत्व नहीं समझा। इनमें से कोई इन नवांगतुकों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का अनुमान नहीं लगा सका और उनके जंगी बेड़े का मुक़ाबला करने के लिए एक शक्तिशाली भारतीय जंगी बेड़ा तैयार करने की आवश्यकता को अनुभव नहीं कर सका। इस तरह भारतीयों की ओर से किसी प्रतिरोध का सामना किये बग़ैर सबसे पहले [[पुर्तग़ाली]] भारत पहुँचे। उसके बाद [[डच]], [[अंग्रेज]], [[फ्राँसीसी]] आये। सोलहवीं शताब्दी में इन फिरंगियों में आपस में लड़ाइयाँ होती रही, जो अधिकांश समुद्र में हुई। डच और अंग्रेजों ने मिलकर सबसे पहले पुर्तग़ालियों की सामुद्रिक शक्ति को समाप्त किया। इसके बाद डच लोगों को पता चला कि उनके लिए भारत की अपेक्षा मसाले वाले द्वीपों से व्यापार करना अधिक लाभदायी है। इस तरह भारत में सिर्फ अंग्रेज और फ्राँसीसी लोगों के बीच प्रतिद्वन्द्विता हुई।
====<u>ईस्ट इंडिया कम्पनी</u>====
{{seealso|मैसूर युद्ध|टीपू सुल्तान}}
अठारहवीं शताब्दी के शुरू में अंग्रेजों की [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] ने बम्बई (मुम्बई), मद्रास (चेन्नई) तथा कलकत्ता (कोलकाता) पर क़ब्ज़ा कर लिया। उधर फ्राँसीसियों की ईस्ट इंडिया कम्पनी ने [[माहे]], [[पुदुचेरी|पांडिचेरी]] तथा [[चंद्रानगर]] पर क़ब्ज़ा कर लिया। उन्हें अपनी सेनाओं में भारतीय सिपाहियों की भरती करने की भी इजाज़त मिल गयी। वे इन भारतीय सिपाहियों का उपयोग न केवल अपनी आपसी लड़ाइयों में करते थे बल्कि इस देश के राजाओं के विरुद्ध भी करते थे। इन राजाओं की आपसी प्रतिद्वन्द्विता और कमज़ोरी ने इनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा का जाग्रत कर दिया और उन्होंने कुछ देशी राजाओं के विरुद्ध दूसरे देशी राजाओं से संधियाँ कर लीं। 1744-49 ई॰ में मुग़ल बादशाह की प्रभुसत्ता की पूर्ण उपेक्षा करके उन्होंने आपस में [[कर्नाटक]] की दूसरी लड़ाई छेड़ी। एक साल के बाद कर्नाटक की दूसरी लड़ाई शुरू हुई। जिसमें फ्राँसीसी [[गवर्नर डूप्ले]] ने पहली लड़ाई से सबक़ लेते हुए न केवल कर्नाटक के प्रशासन पर, बल्कि [[निज़ाम]] के राज्य पर भी [[फ़्राँस]] का राजनीतिक नियत्रंण स्थापित करने की कोशिश की। परन्तु अंग्रेजों ने उसकी महत्वाकांक्षा पूरी नहीं होने दी। अंग्रेजों को बंगाल में भारी सफलता मिली थी। बादशाह औरंगज़ेब की मृत्यु के केवल पचास वर्ष बाद 1757 ई॰ में [[राबर्ट क्लाइव]] के नेतृत्व में अंग्रेजों ने [[नवाब सिराजुद्दोला]] के विरुद्ध विश्वासघातपूर्ण राजद्रोहात्मक षड़यंत्र रचकर [[प्लासी]] की [[प्लासी का युद्ध|लड़ाई]] जीत ली और बंगाल को एक प्रकार से अपनी मुट्ठी में कर लिया। उन्होंने बंगाल की गद्दी पर एक कठपुतली नवाब [[मीर ज़ाफ़र]] को बिठा दिया। इसके बाद एक के बाद, तेज़ी से कई घटनाएँ घटीं।
====<u>पानीपत</u>====
[[अहमद शाह अब्दाली]] ने 1748 से 1760 ई॰ के बीच भारत पर चढ़ाइयाँ कीं और 1761 ई॰ में [[पानीपत]] की तीसरी लड़ाई जीत कर मुग़ल साम्राज्य का फ़ातिहा पढ़ दिया। उसन दिल्ली पर दख़ल करके उसे लूटा। पानीपत की तीसरी लड़ाई में सबसे अधिक क्षति मराठों को उठानी पड़ी। कुछ समय के लिए उनकी बाढ़ रुक गयी और इस प्रकार वे मुग़ल बादशाहों की जगह ले लेने का मौका खो बैठे। यह लड़ाई वास्तव में मुग़ल साम्राज्य के पतन की सूचक है। इसने भारत में मुग़ल साम्राज्य के स्थान पर ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना में मदद की। अब्दाली को पानीपत में जो फ़तह मिली, उससे न तो वह स्वयं कोई लाभ उठा सका और न उसका साथ देने वाले मुसलमान सरदार। इस लड़ाई से वास्तविक फ़ायदा अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने उठाया। इसके बाद कम्पनी को एक के बाद दूसरी सफलताएँ मिलती गयीं।
====<u>रेग्युलेटिंग एक्ट</u>====
बंगाल के साधनों से बलशाली होकर अंग्रेजों ने 1760 ई॰ में [[वाण्डीवाश]] की लड़ाई में फ्राँसीसियों को हरा दिया और 1762 ई॰ में उनस पांडेचेरी ले लिया। इस प्रकार उन्होंने भारत में फ्राँसीसियों की राजनीतिक शक्ति समाप्त कर दी। 1764 ई॰ में अंग्रजों ने बक्सर की लड़ाई में [[बादशाह बहादुर शाह]] और [[अवध के नवाब]] की सम्मिलित सेना को हरा दिया और 1765 ई॰ में बादशाह से बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त कर ली। इसके फलस्वरूप ईस्ट इंडिया कम्पनी को पहली बार बंगाल, उड़ीसा तथा बिहार के प्रशासन का क़ानूनी अधिकार मिल गया। कुछ इतिहासकार इसे भारत में ब्रिटिश राज्य का प्रारम्भ मानते हैं। 1773 ई॰ में ब्रिटिश पार्लियामेंट ने एक [[रेग्युलेटिंग एक्ट]] पास करके भारत में ब्रिटिश प्रशासन को व्यवस्थित रूप देने का प्रयास किया। इस एक्ट के अंतर्गत भारत में कम्पनी क्षेत्रों का प्रशासन गवर्नर-जनरल के अधीन कर दिया गया। उसकी सहायता के लिए चार सदस्यों की कौंसिल गठित की गयी। एक्ट में बंगाल के गवर्नर को गवर्नर-जनरल का पद प्रदान किया गया और कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की भी स्थापना की गयी। [[वारेन हेस्टिग्स]], जो उस समय बंगाल का गवर्नर था, 1773 ई॰ में पहला गवर्नर-जनरल बनाया गया।
 
1773 ई॰ से 1947 ई॰ तक का काल, जब भारत में [[ब्रिटिश शासन]] समाप्त हुआ और भारत स्वाधीन हुआ, दो भागों में बाँटा जा सकता है। पहला, कम्पनी का शासनकाल, जो 1858 ई॰ तक चला और दूसरा, 1858 से 1947 ई॰ तक का काल, जब भारत का शासन सीधे ब्रिटेन द्वारा होने लगा।
====<u>गवर्नर-जनरलों का समय</u>====
कम्पनी के शासन काल में भारत का प्रशासन एक के बाद एक बाईस [[गवर्नर-जनरल|गवर्नर-जनरलों]] के हाथों मे रहा। इस काल के भारतीय इतिहास की सबसे उल्लेखनीय घटना यह है कि कम्पनी युद्ध तथा कूटनीति के द्वारा भारत में अपने साम्राज्य का उत्तरोत्तर विस्तार करती रही। [[मैसूर]] के साथ [[मैसूर युद्ध|चार लड़ाइयाँ]], मराठों के साथ तीन, बर्मा (म्यांमार) तथा [[सिख|सिखों]] के साथ दो-दो लड़ाइयाँ तथा सिंध के अमीरों, [[गोरखा|गोरखों]] तथा अफ़ग़ानिस्तान के साथ एक-एक लड़ाई छेड़ी गयी। इनमें से प्रत्येक लड़ाई में कम्पनी को एक या दूसरे देशी राजा की मदद मिली। उसने जिन फ़ौजों से लड़ाई की उनमें से अधिकांश भारतीय सिपाही थे और लड़ाई का ख़र्च पूरी तरह भारतीय करदाता को उठाना पड़ा। इन लड़ाइयों के फलस्वरूप 1857 ई॰ तक सारे भारत पर सीधे कम्पनी का प्रभुत्व स्थापित हो गया। दो-तिहाई भारत पर देशी राज्यों का शासन बना रहा। परन्तु उन्होंने कम्पनी का सार्वभौम प्रभुत्व स्वीकार कर लिया और अधीनस्थ तथा आश्रित मित्र राजा के रूप में अपनी रियासत का शासन चलाते रहे।
 
====<u>ग़दर- प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम</u>====
{{seealso|झांसी की रानी लक्ष्मीबाई|तात्या टोपे}}
इस काल में [[सती प्रथा]] का अन्त कर देने के समान कुछ सामाजिक सुधार के भी कार्य किये गये। अंग्रेज़ी के माध्यम से पश्चिम शिक्षा के प्रसार की दिशा में क़दम उठाये गये, अंग्रेजी देश की राजभाषा बना दी गयी, सारे देश में समान ज़ाब्ता दीवानी और ज़ाब्ता फ़ौजदारी क़ानून लागू कर दिया गया, जिससे सारे देश में एकता की नयी भावना पैदा हो गयी। परन्तु शासन स्वेच्छाचारी बना रहा और वह पूरी तरह अंग्रेजों के हाथों में रहा। 1833  के चार्टर एक्ट  के विपरीत ऊँचे पदों पर भारतीयों को नियुक्त नहीं किया गया। भाप से चलने वाले जहाज़ों और रेलगाड़ियों का प्रचलन, [[ईसाई मिशनरी|ईसाई मिशनरियों]] द्वारा आक्षेपजनक रीति से [[ईसाई धर्म]] का प्रचार, [[लार्ड डलहौज़ी]] द्वारा ज़ब्ती का सिद्धांत लागू करके अथवा कुशासन के आधार पर कुछ पुरानी देशी रियासतों की ज़ब्ती तथा ब्रिटिश भारतीय सेना के भारतीय सिपाहियों की शिकायतें—इन सब कारणों ने मिलकर सारे भारत में एक गहरे असंतोष की आग धधका दी, जो 1857-58 ई॰ में ग़दर के रूप में भड़क उठी। अन्तिम मुग़ल बहादुर शाह ज़फ़र, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तांत्या टोपे (रामचंन्द्र पांडुरंग), बिहार के बाबू कुँवरसिंह, महाराष्ट्र से नाना साहिब, इस प्रथम क्रान्ति के प्रयास के नायक थे किन्तु प्रयास विफल हो गया।
अधिकांश देशी राजाओं ने अपने को ग़दर से अलग रखा। देश की अधिकांश जनता ने भी इसमें कोई हिस्सा नहीं लिया। फलस्वरूप कम्पनी को बल पूर्वक ग़दर को कुचल देने में सफलता मिली, परन्तु ग़दर के बाद ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारत पर कम्पनी का शासन समाप्त कर दिया। भारत का शासन अब सीधे ब्रिटेन के द्वारा किया जाने लगा। महारानी विक्टोरिया ने एक घोषणा पत्र जारी करके अपनी भारतीय प्रजा को उसके कुछ अधिकारों तथा कुछ स्वाधीनताओं के बारे में आश्वासन दिया।
 
====<u>भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना</u>====
इस प्रकार भारत में ब्रिटिश शासन का दूसरा काल (1858-1947 ई॰) आरम्भ हुआ। इस काल का शासन एक के बाद इकत्तीस गवर्नर-जनरलों के हाथों में रहा। गवर्नर-जनरल को अब [[वाइसराय]] (ब्रिटिश सम्राट का प्रतिनिधी) कहा जाने लगा। [[लार्ड कैनिंग]] पहला वाइसराय तथा गवर्नर-जनरल नियुक्त हुआ। इस काल के भारतीय इतिहास की सबसे प्रमुख घटना है—भारत में राष्ट्रवादी भावना का उदय और 1947 ई॰ में भारत की स्वाधीनता के रूप में अंतिम विजय। 1857 ई॰ में कलकत्ता ([[कोलकाता]]), मद्रास ([[चेन्नई]]) तथा बम्बई ([[मुम्बई]]) में विश्वविद्यालयों की स्थापना के बाद शिक्षा का प्रसार होने लगा तथा 1869 ई॰ में [[स्वेज़ नहर]] खुलने के बाद [[इंग्लैण्ड]] तथा [[यूरोप]] से निकट सम्पर्क स्थापित हो जाने से भारत में नये मध्यवर्ग का विकास हुआ। यह मध्य वर्ग पश्चिमी दर्शन शास्त्र, राजनीति शास्त्र तथा अर्थशास्त्र के विचारों से प्रभावित था और ब्रिटिश शासन में भारतीयों को जो नीचा दर्ज़ा मिला हुआ था, उससे रुष्ट था। ब्रिटिश में स्थापित शान्ति के फलस्वरूप यह वर्ग सारे भारत को एक देश तथा समस्त भारतीयों को एक क़ौम मानने लगा और ब्रिटेन की भाँति संसदीय शासन प्रणाली की स्थापना उसका लक्ष्य बन गया। वह एक ऐसे संगठन की आवश्यकता महसूस करने लगा जो समस्त भारतीय राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर सके।
 
इसके फलस्वरूप 1885 ई॰ में बम्बई में [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] की स्थापना हुई जिसमें देश के समस्त भागों से 71 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन 1883 ई॰ में कलकत्ता में हुआ, जिसमें सारे देश से निर्वाचित 434 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस अधिवेशन में माँग की गयी कि भारत में केन्द्रीय तथा प्रांतीय विधानमंडलों का विस्तार किया जाये और उसके आधे सदस्य निर्वाचित भारतीय हों। कांग्रेस हर साल अपने अधिवेशनों में अपनी माँगें दोहराती रही। [[लार्ड डफ़रिन]] ने कांग्रेस पर व्यग्य करते हुए उसे ऐसे अल्पसंख्यक वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था बताया जिसे सिर्फ़ ख़ुर्दबीन से देखा जा सकता है। [[लार्ड लैन्सडाउन]] ने उसके प्रति पूर्ण उपेक्षा की नीति बरती, [[लार्ड कर्ज़न]] ने उसका खुलेआम मज़ाक उड़ाया तथा [[लार्ड मिन्टो द्वितीय]] ने 1909 के इंडियन कौंसिल एक्ट द्वारा स्थापित विधानमंडलों में मुसलमानों को अनुपात से अनुचित रीति से अधिक प्रतिनिधित्व देकर उन्हें फोड़ने तथा कांग्रेस को तोड़ने की कोशिश की, फिर भी कांग्रेस जिन्दा रही।
====<u>प्रारम्भिक सफलता</u>====
कांग्रेस को पहली मामूली सफलता 1909 में मिली, जब इंग्लैण्ड में भारत मंत्री के निर्शदन में काम करने वाली भारत परिषद में दो भारतीय सदस्यों की नियुक्ति पहली बार की गयी, वाइसराय की एक्जीक्यूटिव काउंसिल में पहली बार एक भारतीय सदस्य की नियुक्ति की गयी तथा इंडियन काउंसिल एक्ट के द्वारा केन्द्रीय तथा प्रान्तीय विधानमंडलों का विस्तार कर दिया गया तथा उनमें निर्वाचित भारतीय प्रतिनिधियों का अनुपात पहले से अधिक बढ़ा दिया गया। इन सुधारों के प्रस्ताव [[लार्ड मार्ले]] ने हालाँकि भारत में संसदीय संस्थाओं की स्थापना करने का कोई इरादा होने से इन्कार किया, फिर भी एक्ट में जो व्यवस्थाएँ की गयीं थी, उनका उद्देश्य उसी दिशा में आगे बढ़ने के सिवा और कुछ नहीं हो सकता था। 1911 ई॰ में लार्ड कर्जन के द्वारा 1905 ई॰ में किया बंगाल का विभाजन रद्द कर दिया गया और भारत ने ब्रिटेन का पूरा साथ दिया। भारत ने युद्ध को जीतने के लिए ब्रिटेन की फ़ौजों से, धन से तथा समाग्री से मदद की। भारत आशा करता था कि इस राजभक्ति प्रदर्शन के बदले युद्ध से होने वाले लाभों में उसे भी हिस्सा मिलेगा।
====<u>द्वैधशासन प्रणाली</u>====
भारत के लिए स्वशासन की माँग करने में पहली बार भारतीय मुसलमान भी हिन्दुओं के साथ संयुक्त हो गये और अगस्त 1917 ई॰ में ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि भारत में ब्रिटेश शासन की नीति है कि शासन की प्रत्येक शाखा में भारतीयों को अधिकारिक स्थान दिया जाय तथा स्वायत्त शासन का क्रमिकरूप से विकास किया जाय, ताकि ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत भारत में उत्तरदायी सरकार की उत्तरोत्तर स्थापना हो सके। इस घोषणा के अनुसार 1919 का गवर्नमेण्ट आफ इंडिया एक्ट पास किया गया। इस एक्ट के द्वारा विधान मंडलों का विस्तार कर दिया गया और अब उनके बहुसंख्य सदस्य भारतीय जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि होने लगे। एक्ट के द्वारा केन्द्रीय तथा प्रान्तीय सरकारों के कार्यों का विभाजन कर दिया गया और प्रान्तों में द्वैधशासन प्रणाली लागू करके कार्यपालिका को आंशिक रीति से विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी बना दिया गया। इस एक्ट के द्वारा भारत ने सुनिश्चित रीति से प्रगति की। भारतीय के इतिहास में पहली बार एक ऐसी संस्था की स्थापना की गयी, जिसके द्वारा ब्रिटिश भारत के निर्वाचित प्रतिनिधि सरकारी आधार पर एकत्र हो सकते थे। पहली बार उनका बहुमत स्थापित कर दिया गया और अब वे सरकार के कार्यों की  निर्भयतापूर्वक आलोचना कर सकते थे।
====<u>असहयोग और सत्याग्रह</u>====
इन सुधारों से पुराने कांग्रेसजन संतुष्ट हो गये, परन्तु नव युवकों का दल, जिसे [[मोहनदास करमचंद गाँधी]] के रूप में एक नया नेता मिल गया था, संतुष्ट नहीं हुआ। इन सुधारों के अंतर्गत केन्द्रीय कार्यपालिका को केन्द्रीय विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी नहीं बनाया गया था और वाइसराय को बहुत अधिक अधिकार प्रदान कर दिये गये थे। अतएव उसने इन सुधारों को अस्वीकृत कर दिया। उसके मन में जो आशंकाएँ थीं, वे ग़लत नहीं थी, यह 1919 के एक्ट के बाद ही पास किये गये [[रौलट एक्ट]] जैसे दमनकारी कानूनों तथा [[जलियाँवाला बाग़]] हत्याकांण्ड जैसे दमनमूलक कार्यों से सिद्ध हो गया। कांग्रेस ने 1920 ई॰ में अपने नागपुर अधिवेशन में अपना ध्येय पूर्ण स्वराज्य की स्थापना घोषित कर दी और अपनी माँगों को मनवाने के लिए उसने अहिंसक असहयोंग की नीति अपनायी। चूंकि ब्रिटिश सरकार ने उसकी माँगें स्वीकार नहीं की और दमनकारी नीति के द्वारा वह [[असहयोग आंदोलन]] को दबा देने में सफल हो गयी। इसलिए कांग्रेस ने दिसम्बर 1929 ई॰ में लाहौर अधिवेशन में अपना लक्ष्य पूर्ण स्वीधीनता निश्चित किया और अपनी माँग का मनवाने के लिए उसने 1930 में [[सत्याग्रह]] आंदोलन शुरू कर दिया।


====<u>द्वितीय विश्वयुद्ध</u>====
{{Point}} विस्तार में पढ़ने के लिए देखें:[[भारत आलेख]]
सरकार ने पहले की तरह आंदोलन को दबाने के लिए दमन और समझौते के दोनों रास्ते अख़्तियार किये और 1935 का गवर्नेण्ट आफ इंडिया एक्ट पास किया। इस एक्ट के द्वारा ब्रिटश भारत तथा देशी रियासतों के लिए सम्मिलित रूप से एक संघीय शासन का प्रस्ताव किया, केन्द्र में एक प्रकार के द्वैध शासन की स्थापना की गयी तथा प्रान्तों को स्वशासन प्रदान कर दिया गया। एक्ट का प्रान्तों से सम्बन्धित भाग लागू कर दिया गया तथा अप्रैल 1937 ई॰ में प्रान्तीय स्वशासन का श्रीगणेश कर दिया गया। परन्तु एक्ट के संघ सरकार से सम्बन्धित भाग के लागू होने से पहले ही सितम्बर 1939 ई॰ में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया जो 1945 ई॰ तक जारी रहा। यह विश्वव्यापी युद्ध था और ब्रिटेन को अपने सारे साधन उसमें झोंक देने पड़े। भारत ने ब्रिटेन का साथ दिया और भारत के पास जन और धन की जो विशाल शक्ति थी उससे लाभ उठाकर तथा [[अमरीका]] की सहायता से [[ब्रिटेन]] युद्ध जीत गया। [[गाँधी जी]] के अमित प्रभाव तथा अहिंसा में उनकी दृढ़ निष्ठा के कारण भारत ने यद्यपि ब्रिटिश सम्बन्ध को बनाये रखा, फिर भी यह स्पष्ट हो गया कि भारत अब ब्रिटिश साम्राज्य की अधीनता में नहीं रहना चाहता।
====<u>सम्प्रदायिक दंगे</u>====
कुछ ब्रिटिश अफ़सरों ने भारत को स्वाधीन होने से रोकने के लिए अंतिम दुर्राभ संधि की और मुसलमानों की भारत विभाजन करके पाकिस्तान की स्थापना की माँग का समर्थन करना शुरू कर दिया। इसके फलस्वरूप अगस्त 1946 ई॰ में सारे देश में भयानक सम्प्रदायिक दंगे शुरू हो गये, जिन्हें वाइसराय [[लार्ड वेवेल]] अपने समस्त फ़ौजी अनुभवों तथा साधनों बावजूद रोकन में असफल रहा। यह अनुभव किया गया कि भारत का प्रशासन ऐसी सरकार के द्वारा चलाना सम्भव नहीं है। जिसका नियंत्रण मुध्य रूप से अंग्रेजों के हाथों में हो। अतएव सितम्बर 1946 ई॰ में लार्ड वेवेल ने [[पंडित जवाहर लाल नेहरू]] के नेतृत्व में भारतीय नेताओं की एक अंतरिम सरकार गठित की। ब्रिटिश अधिकारियों की कृपापात्र होने के कारण मुस्लिम लीग के दिमाग़ काफ़ी ऊँचे हो गये थे। उसने पहले तो एक महीने तक अंतरिम सरकार से अपने को अलग रखा, इसके बाद वह भी उसमें सम्मिलित हो गयी।
====<u>स्वाधीनता</u>====
[[चित्र:Newspaper-15-August-1947.jpg|thumb|15 अगस्त 1947 का अख़बार<br /> Newspaper Of 15th August 1947]]
भारत का संविधान बनाने के लिए एक भारतीय संविधान सभा का आयोजन किया गया। 1947 ई॰ के शुरू में लार्ड वेवेल के स्थान पर [[लार्ड माउंटबेटेन]] वाइसराय नियुक्त हुआ। उसे पंजाब में भयानक सम्प्रदायिक दंगों का सामना करना पड़ा। जिनको भड़काने में वहाँ के कुछ ब्रिटिश अफसरों का हाथ था। वह प्रधानमंत्री [[एटली]] के नेतृत्व में ब्रिटेन की सरकार को यह समझाने में सफल हो गया कि भारत का भारत और पाकिस्तान के रूप में विभाजन करके उसे स्वाधीनता प्रदान करने से शान्ति की स्थापना सम्भव हो सकेगी और ब्रिटेन भारत में अपने व्यापारिक हितों को सुरक्षित रख सकेगा। 3 जून 1947 को ब्रिटिश सरकार की ओर से यह घोषणा कर दी गयी कि भारत का; भारत और पाकिस्तान के रूप में विभाजन करके उसे स्वाधीनता प्रदान कर दी जायगी। ब्रिटिश पार्लियामेंट ने 15 अगस्त 1947 को इंडिपेडंस आफ इंडिया  एक्ट पास कर दिया। इस तरह भारत उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त, [[बलूचिस्तान]], [[सिंध]], [[पश्चिमी पंजाब]], [[बांग्ला देश|पूर्वी बंगाल]] तथा [[पश्चिम बंगाल]] के मुसलिम बहुल भागों से रहित हो जाने के बाद, सात शताब्दियों की विदेशी पराधीनता के बाद स्वाधीनता के एक नये पथ पर अग्रसर हुआ।
====<u>गांधी जी की हत्या</u>====
स्वाधीन भारत को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ा, वे सरल नहीं थीं। उसे सबसे पहले साम्प्रदायिक उन्माद को शान्त करना था। भारत ने जानबूझकर धर्म निरपेक्ष राज्य बनना पसंद किया। उसने आश्वासन दिया कि जिन मुसलमानों ने पाकिस्तान को निर्गमन करने के बजाय भारत में रहना पसंद किया है उनको नागरिकता के पूर्ण अधिकार प्रदान किये जायेंगे। हालाँकि पाकिस्तान जानबूझकर अपने यहाँ से हिन्दुओं को निकाल बाहर करने अथवा जिन हिन्दुओं ने वहाँ रहने का फैसला किया था, उनको एक प्रकार से द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना देने की नीति पर चल रहा था। लॉर्ड माउंटबेटेन को स्वाधीन भारत का पहला गवर्नर जनरल बनाये रखा गया और [[पंडित जवाहर लाल नेहरू]] तथा अंतरिम सरकार में उनके कांग्रसी सहयोगियों ने थोड़े से हेरफेर के साथ पहले भारतीय मंत्रिमंडल का निर्माण किया। इस मंत्रिमंडल में सरदार पटेल तथा [[मौलाना अबुलकलाम आज़ाद]] का तो सम्मिलित कर लिया गया था, परन्तु नेताजी के बड़े भाई शरतचंद्र बोस को छोड़ दिया गया। 30 जनवरी 1948 ई॰ को [[नाथूराम गोडसे]] नामक हिन्दू ने [[राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी]] की हत्या कर दी। सारा देश शोक के सागर में डूब गया। नौ महीने के बाद, पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल मुहम्मद अली जिन्नाहकी भी मृत्यु हो गयी। उसी वर्ष लार्ड माउंटबेटेन ने भी अवकाश ग्रहण कर लिया और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भारत के प्रथम और अंतरिम गवर्नर जनरल नियुक्त हुए।


====<u>रियासतों का विलय</u>====
==राज्य संरचना==
अधिकांश देशी रियासतों ने , जिनके सामने भारत अथवा पाकिस्तान में विलय का प्रस्ताव रखा गया था, भारत में विलय के पक्ष में निर्णय लिया, परन्तु, दो रियासतों—[[कश्मीर]] तथा [[हैदराबाद रियासत|हैदराबाद]] ने कोई निर्णय नहीं किया। पाकिस्तान ने बलपूर्वक कश्मीर की रियासत पर अधिकार करने का प्रयास किया, परन्तु अक्टूबर 1947 ई॰ में कश्मीर के महाराज ने भारत में विलय की घोषणा कर दी और भारतीय सेनाओं को वायुयानों से भेजकर [[श्रीनगर]] सहित कश्मीरी घाटी तक जम्मू की रक्षा कर ली गयी। पाकिस्तानी आक्रमणकारियों ने रियासत के उत्तरी भाग पर अपना क़ब्ज़ा बनाये रखा और इसके फलस्वरूप पाकिस्तान से युद्ध छिड़ गया। भारत ने यह मामला संयुक्त राष्ट्र संघ में उठाया और संयुक्त राष्ट्र संघ ने जिस क्षेत्र पर जिसका क़ब्ज़ा था, उसी के आधार पर युद्ध विराम कर दिया। वह आज तक इस सवाल का कोई निपटारा नहीं कर सका है। हैदराबाद के [[निज़ामशाही वंश|निज़ाम]] ने अपनी रियासत को स्वतंत्रता का दर्जा दिलाने का षड़यंत्र रचा, परन्तु भारत सरकार की पुलिस कार्यवाही के फलस्वरूप वह 1948 ई॰ में अपनी रियासत भारत में विलयन करने के लिए मजबूर हो गये। रियासतों के विलय में तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की मुख्य भूमिका रही।
{{Main|राज्य संरचना}}
{{राज्य मानचित्र3}}


====<u>संघ राज्यों का विलय</u>====
[[भारतीय संविधान सभा]] के द्वारा 26 नवम्बर 1949 में संविधान पास किया गया। भारत का संविधान अधिनियम 26 जनवरी 1950 को लागू कर दिया गया। इस संविधान में भारत को लौकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया था और संघात्मक शासन की व्यवस्था की गयी थी। [[राजेन्द्र प्रसाद|डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद]] को पहला राष्ट्रपति चुना गया और बहुमत पार्टी के नेता के रूप  में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने प्रधान मंत्री का पद ग्रहण किया। इस पद पर वे 27 मई 1964 ई॰ में, अपनी मृत्यु तक बने रहे। नवोदित भारतीय गणराज्य के लिए उनका दीर्घकालीन प्रधानमंत्रित्व बड़ा लाभदायी सिद्ध हुआ। उससे प्रशासन तथा घरेलू एवं विदेश नीतियों में निरंतरता बनी रही। पंडित नेहरू ने वैदेशिक मामलों में गुट-निरपेक्षता की नीति अपनायी और [[चीन]] से राजनयिक सम्बन्ध स्थापित किये। [[फ्राँस]] ने 1951 ई॰ में [[चंद्रनगर]] शान्तिपूर्ण रीति से भारत का हस्तांतरित कर दिया। 1956 ई॰ में उसने अन्य फ्रेंच बस्तियाँ ([[पुदुचेरी|पांडिचेरी]], [[कारीकल]], [[माहे]] तथा [[युन्नान]]) भी भारत को सौंप दीं। [[पुर्तग़ाल]] ने फ्राँस का अनुसरण करने और शान्तिपूर्ण रीति से अपनी पुर्तग़ाली बस्तियाँ ([[गोवा]], [[दमन और दीव]]) छोड़ने से इंकार कर दिया। फलस्वरूप 1961 ई॰ में भारत को बलपूर्वक इन बस्तियों को लेना पड़ा<ref>1975 ई॰ में पुर्तग़ाली शासन ने वास्तविकता को समझकर इसको वैधानिक मान्यता दे दी है।</ref>। इस तरह भारत का एकीकरण पूरा हो गया।
{{लेख प्रगति
|आधार=
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|शोध=
}}


{{लेख प्रगति |आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक2|पूर्णता=|शोध=}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
{{Refbox}}{{top}}
==संबंधित लेख==
{{भारत गणराज्य}}{{भारत का विभाजन}}
[[Category:भारत गणराज्य संरचना]][[Category:गणराज्य संरचना कोश]]
__NOTOC__
__INDEX__
__NOEDITSECTION__

11:38, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

भारत विषय सूची
भारत गणराज्य
Republic of India
भारत का ध्वज भारत का कुलचिह्न
राष्ट्रवाक्य: "सत्यमेव जयते" (संस्कृत) सत्य ही विजयी होता है[1]
राष्ट्रगान: जन गण मन
भारत की स्थिति
भारत की स्थिति
राजधानी नई दिल्ली
28° 34′ N 77° 12′ E
सबसे बड़े नगर दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई
राजभाषा(एँ) हिन्दी संघ की राजभाषा है,
अंग्रेज़ी "सहायक राजभाषा" है।
अन्य भाषाएँ बांग्ला, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी और अन्य
सरकार प्रकार गणराज्य
द्रौपदी मुर्मू
वेंकैया नायडू
ओम बिड़ला
नरेन्द्र मोदी
डी. वाई. चन्द्रचूड़
विधायिका
-उपरी सदन
-निचला सदन
भारतीय संसद
राज्य सभा
लोक सभा
स्वतंत्रता
तिथि
गणराज्य
संयुक्त राजशाही से
15 अगस्त, 1947
26 जनवरी, 1950
क्षेत्रफल
 - कुल
 
 - जलीय (%)
 
32,87,263 किमी² (सातवां)
12,22,559 मील² 
9.56
जनसंख्या
 - 2011
 - 2001 जनगणना
 - जनसंख्या घनत्व
 
1,21,01,93,422[2] (द्वितीय)
1,02,70,15,248
382[2]/किमी² (27 वाँ)
954[3]/ मील² 
सकल घरेलू उत्पाद (पीपीपी)
 - कुल
 - प्रतिव्यक्ति
2012 अनुमान
$4,824 अरब[4] 
$3,944[4] 
सकल घरेलू उत्पाद (सांकेतिक)
 - कुल
 - प्रतिव्यक्ति
2012 अनुमान
$1,779 अरब[4] 
$1,454[4] 
मानव विकास संकेतांक (एचडीआई) 0.547 (134 वीं) – मध्यम
मुद्रा भारतीय रुपया (आइएनआर (INR))
समय मण्डल
 - ग्रीष्म ऋतु (डेलाइट सेविंग टाइम)
आइएसटी (IST) (UTC+5:30)
अनुसरण नहीं किया जाता (UTC+5:30)
इंटरनेट टीएलडी .in
वाहन चलते हैं बाएं
दूरभाष कोड ++91
अन्य महत्वपूर्ण जानकारी
सीमाओं में स्थित देश उत्तर पश्चिम में अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान, उत्तर में भूटान और नेपाल; पूरब में म्यांमार, बांग्लादेशश्रीलंका भारत से समुद्र के संकीर्ण नहर द्वारा अलग किया जाता है जो पाल्क स्ट्रेट और मन्नार की खाड़ी द्वारा निर्मित है।
समुद्र तट 7,516.6 किलोमीटर जिसमें मुख्य भूमि, लक्षद्वीप और अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह शामिल हैं।
जलवायु सर्दी (दिसम्बर-फ़रवरी); गर्मी (मार्च-जून); दक्षिण पश्चिम मानसून का मौसम (जून-सितम्बर); मानसून पश्च मौसम (अक्तूबर-नवम्बर)
भू-भाग मुख्य भूमि में चार क्षेत्र हैं- ग्रेट माउन्टेन जोन, गंगा और सिंधु का मैदान, रेगिस्तान क्षेत्र और दक्षिणी पेनिंसुला।
प्राकृतिक संसाधन कोयला, लौह अयस्क, मैगनीज अयस्क, माइका, बॉक्साइट, पेट्रोलियम, टाइटानियम अयस्क, क्रोमाइट, प्राकृतिक गैस, मैगनेसाइट, चूना पत्थर, अराबल लेण्ड, डोलोमाइट, माऊलिन, जिप्सम, अपादाइट, फोसफोराइट, स्टीटाइल, फ्लोराइट आदि।
प्राकृतिक आपदा मानसूनी बाढ़, फ्लेश बाढ़, भूकम्प, सूखा, ज़मीन खिसकना।
जनसंख्या वृद्धि दर औसत वार्षिक घातांकी वृद्धि दर वर्ष 2001-2011 के दौरान 1.64 प्रतिशत है।
लिंग अनुपात 1000:940 (2011)
धर्म वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार 1,028 मिलियन देश की कुल जनसंख्या में से 80.5 प्रतिशत के साथ हिन्दुओं की अधिकांशता है दूसरे स्थान पर 13.4 प्रतिशत की जनसंख्या वाले मुस्लिम इसके बाद ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और अन्य आते हैं।
साक्षरता 74.04% (2011) पुरुष- 82.14% महिलाएं- 65.46%
सम्भावित जीवन दर 65.8 वर्ष (पुरुष); 68.1 वर्ष (महिला)[5]
जातीय अनुपात सभी पांच मुख्य प्रकार की जातियाँ- ऑस्ट्रेलियाड, मोंगोलॉयड, यूरोपॉयड, कोकोसिन और नीग्रोइड।
कार्यपालिका शाखा भारत का राष्ट्रपति देश का प्रधान होता है, जबकि प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है और मंत्रिपरिषद् की सहायता से शासन चलाता है जो मंत्रिमंडल मंत्रालय का गठन करते हैं।
न्यायपालिका शाखा भारत का सर्वोच्च न्यायालय भारतीय कानून व्यवस्था का शीर्ष निकाय है इसके बाद अन्य उच्च न्यायालय और अधीनस्थ न्यायालय आते हैं।
अन्य जानकारी भारत का राष्ट्रीय ध्वज आयताकार तिरंगा है जिसमें केसरिया ऊपर है, बीच में सफ़ेद, और बराबर भाग में नीचे गहरा हरा है। सफ़ेद पट्टी के केन्द्र में गहरा नीला चक्र है जो सारनाथ में अशोक चक्र को दर्शाता है।
बाहरी कड़ियाँ भारत की आधिकारिक वेबसाइट
अद्यतन‎

भारत [सम्पूर्ण प्रभुतासंपन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य भारत। (अंग्रेज़ी: India)] दुनिया की सबसे पुरानी सभ्‍यताओं में से एक है, जो 4,000 से अधिक वर्षों से चली आ रही है और जिसने अनेक रीति-रिवाज़ों और परम्‍पराओं का संगम देखा है। यह देश की समृद्ध संस्‍कृति और विरासत का परिचायक है। आज़ादी के बाद 77 वर्षों में भारत ने सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत कृषि में आत्‍मनिर्भर देश है और औद्योगीकरण में भी विश्व के चुने हुए देशों में भी इसकी गिनती की जाती है। यह उन देशों में से एक है, जो चाँद पर पहुँच चुके हैं और परमाणु शक्ति संपन्न हैं।

{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}}विस्तार में पढ़ने के लिए देखें:भारत आलेख

इतिहास

भारत में मानवीय कार्यकलाप के जो प्राचीनतम चिह्न अब तक मिले हैं, वे 4,00,000 ई. पू. और 2,00,000 ई. पू. के बीच दूसरे और तीसरे हिम-युगों के संधिकाल के हैं और वे इस बात के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि उस समय पत्थर के उपकरण काम में लाए जाते थे। इसके पश्चात् एक लम्बे अरसे तक विकास मन्द गति से होता रहा, जिसमें अन्तिम समय में जाकर तीव्रता आई और उसकी परिणति 2300 ई. पू. के लगभग सिन्धु घाटी की आलीशान सभ्यता (अथवा नवीनतम नामकरण के अनुसार हड़प्पा संस्कृति) के रूप में हुई। हड़प्पा की पूर्ववर्ती संस्कृतियाँ हैं: बलूचिस्तानी पहाड़ियों के गाँवों की कुल्ली संस्कृति और राजस्थान तथा पंजाब की नदियों के किनारे बसे कुछ ग्राम-समुदायों की संस्कृति।[6]

भौतिक विशेषताएँ

मुख्‍य भूभाग में चार क्षेत्र हैं, नामत: महापर्वत क्षेत्र, गंगा और सिंधु नदी के मैदानी क्षेत्र और मरूस्‍थली क्षेत्र और दक्षिणी प्रायद्वीप।

हिमालय की तीन श्रृंखलाएँ हैं, जो लगभग समानांतर फैली हुई हैं। इसके बीच बड़े - बड़े पठार और घाटियाँ हैं, इनमें कश्मीर और कुल्‍लू जैसी कुछ घाटियाँ उपजाऊ, विस्‍तृत और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं। संसार की सबसे ऊंची चोटियों में से कुछ इन्‍हीं पर्वत श्रृंखलाओं में हैं। अधिक ऊंचाई के कारण आना -जाना केवल कुछ ही दर्रों से हो पाता है, जिनमें मुख्‍य हैं -

  • चुंबी घाटी से होते हुए मुख्‍य भारत-तिब्‍बत व्‍यापार मार्ग पर जेलप ला और नाथू-ला दर्रे
  • उत्तर-पूर्व दार्जिलिंग
  • कल्‍पना (किन्‍नौर) के उत्तर - पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकी ला दर्रा

भूगर्भीय संरचना

भारत के भू‍वैज्ञानिक क्षेत्र व्‍यापक रुप से भौतिक विशेषताओं का पालन करते हैं और इन्‍हें मुख्यत: तीन क्षेत्रों के समूह में रखा जा सकता है:

  1. हिमालय पर्वत श्रृंखला और उनके संबद्ध पर्वत समूह।
  2. भारत-गंगा मैदान क्षेत्र।
  3. प्रायद्वीपीय क्षेत्र

आँकड़े एक झलक

क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी.[7]
-भूमध्य रेखा से दूरी [8] 876 किमी
-पूर्व से पश्चिम लंबाई 2,933 किमी
-उत्तर से दक्षिण लंबाई 3,214 किमी
-प्रादेशिक जलसीमा की चौड़ाई समुद्र तट से 12 समुद्री मील तक।
-एकान्तिक आर्थिक क्षेत्र संलग्न क्षेत्र से आगे 200 समुद्री मील तक।

सीमा 7 देश और 2 महासागर[9]
-समुद्री सीमा[10] 7516.5 किमी
-प्राकृतिक भाग (1) उत्तर का पर्वतीय प्रदेश (2) उत्तर का विशाल मैदान (3) दक्षिण का प्रायद्वीपीय पठार (4) समुद्र तटीय मैदान तथा (5) थार मरुस्थल
-स्थलीय सीमा[11] 15,200 किमी

राज्य 29
-संघशासित क्षेत्र[12] 7
-ज़िलों की संख्या 593
-उपज़िलों की संख्या 5,470
-सबसे बड़ा ज़िला लद्दाख (जम्मू-कश्मीर, क्षेत्रफल 82,665 वर्ग किमी.)।
-सबसे छोटा ज़िला थौबॅल (मणिपुर, क्षेत्रफल- 507 वर्ग किमी.)।
-द्वीपों की कुल संख्या 247 [13]
-तटरेखा से लगे राज्य गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल
-केन्द्रशासित प्रदेश (तटरेखा) दमन व दीव, दादरा एवं नगर हवेली, लक्षद्वीप, पांडिचेरी तथा अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह
-कर्क रेखा [14] गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा तथा मिज़ोरम
-प्रमुख नगर मुम्बई, नई दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलोर, हैदराबाद, तिरुअनन्तपुरम, सिकन्दराबाद, कानपुर, अहमदाबाद, जयपुर, जोधपुर, अमृतसर, चण्‍डीगढ़, श्रीनगर, जम्मू, शिमला, दिसपुर, इटानगर, कोचीन, आगरा आदि।
-राजधानी नई दिल्ली
-पर्वतीय पर्यटन अल्मोड़ा, नैनीताल, लैन्सडाउन, गढ़मुक्तेश्वर, मसूरी, कसौली, शिमला, कुल्लू घाटी, डलहौज़ी, श्रीनगर, गुलबर्ग, सोनमर्ग, अमरनाथ, पहलगाम, दार्जिलिंग, कालिंपोंग, राँची, शिलांग, कुंजुर, ऊटकमंड (ऊटी), महाबलेश्वर, पंचमढ़ी, माउण्ट आबू
-प्रथम श्रेणी के नगरों की संख्या 300
-द्वितीय श्रेणी के नगरों की संख्या 345
-तृतीय श्रेणी के नगरों की संख्या 947
-चतुर्थ श्रेणी के नगरों की संख्या 1,167
-पंचम श्रेणी के नगरों की संख्या 740
-षष्ठम श्रेणी के नगरों की संख्या 197
-कुल नगरों की संख्या 5,161
-सर्वाधिक नगरों वाला राज्य उत्तर प्रदेश (704 नगर)
-सबसे कम नगर वाला राज्य मेघालय (7 नगर)
-सर्वाधिक नगरीय जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश (3,45,39,582), मिज़ोरम (45.10%)
-सबसे कम नगरीय जनसंख्या वाला राज्य सिक्किम (59,870), हिमाचल प्रदेश (8.69%)
-संघशासित क्षेत्र सर्वाधिक जनसंख्या[15] दिल्ली 89.93%
-संघ शासित क्षेत्र कम जनसंख्या [16] दादरा तथा नगर हवेली (8.47%)
-संघशासित क्षेत्र (सबसे बड़ा)[17] अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह (8,293 वर्ग किमी.)
-सबसे छोटा संघ शासित क्षेत्र लक्षद्वीप (32 वर्ग किमी.)
-शहरों की संख्या 5,161
-गांवों की संख्या 6,38,588
-आबाद गांवों की संख्या 5,93,732
-ग़ैर-आबाद गांवों की संख्या 44,856
-सामुद्रिक मत्स्ययन का प्रमुख क्षेत्र पश्चिमी तट (75% तथा पूर्वी तट (25%) [18]
-सबसे बड़ा राज्य (क्षेत्रफल) राजस्थान (3,42,239 वर्ग किमी.)
-सबसे छोटा राज्य गोवा (3,702 वर्ग किमी.)

भूगोल
-प्रमुख पर्वत हिमालय, कराकोरम, शिवालिक, अरावली, पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, विन्ध्याचल, सतपुड़ा, अन्नामलाई, नीलगिरि, पालनी, नल्लामाला, मैकल, इलायची
-प्रमुख नदियाँ सिन्धु, सतलज, ब्रह्मपुत्र, गंगा, यमुना, गोदावरी, दामोदर, नर्मदा, ताप्ती, कृष्णा, कावेरी, महानदी, घाघरा, गोमती, रामगंगा, चम्बल आदि।
-पर्वत शिखर गाडविन आस्टिन या माउण्ट के 2 (8,611 मी.), कंचनजंघा (8,598 मी.), नंगा पर्वत (8,126 मी.), नंदादेवी (7,717 मी.), कामेत (7,756 मी.), मकालू (8,078 मी.), अन्नपूर्णा (8,078 मी.), मनसालू (8,156 मी.), बद्रीनाथ, केदारनाथ, त्रिशूल, माना, गंगोत्री, गुरुशिखर, महेन्द्रगिरि, अनाईमुडी आदि।
-झील डल, वुलर, नैनी, सातताल, नागिन, सांभर, डीडवाना, चिल्का, हुसैन सागर, वेम्बानद आदि।
-जलवायु मानसूनी
-वनक्षेत्र 750 लाख हेक्टेयर [19]
-प्रमुख मिट्टियाँ जलोढ़, काली, लाल, पीली, लैटेराइट, मरुस्थलीय, पर्वतीय, नमकीन एवं पीट तथा दलदली।
-सिंचाई [20] नहरें (40.0%) कुएँ (37.8%), तालाब (14.5%) तथा अन्य (7.7%)।
-कृषि के प्रकार तर खेती [21], आर्द्र खेती [22], झूम कृषि [23] तथा पर्वतीय कृषि [24]
-खाद्यान्न फ़सलें चावल, गेहूँ, ज्वार, बाजरा, रागी, जौ आदि।
-नक़दी फ़सलें गन्ना, चाय, काफ़ी, रबड़, नारियल, फल एवं सब्जियाँ, दालें, तम्बाकू, कपास तथा तिलहनी फ़सलें।
-खनिज संसाधन लौह अयस्क, कोयला, मैंगनीज, अभ्रक, बॉक्साइट, चूनापत्थर, यूरेनियम, सोना, चाँदी, हीरा, खनिज तेल आदि।

जनसंख्या 1,028,610,328 (2001) [25]
-पुरुष जनसंख्या 53,21,56,772
-महिला जनसंख्या 49,64,53,556
-अनुसूचित जाति [26] 16,66,35,700 (कुल जनसंख्या का 16.2%)
-अनुसूचित जनजाति [27] 8,43,26,240 (कुल जनसंख्या का 8.2%)
-प्रमुख जनजातियाँ गद्दी, गुज्जर, थारू, भोटिया, मिपुरी, रियाना, लेप्चा, मीणा, भील, गरासिया, कोली, महादेवी, कोंकना, संथाल, मुंडा, उराँव, बैगा, कोया, गोंड आदि।
-विश्व में स्थान (जनसंख्या) दूसरा
-विश्व जनसंख्या का प्रतिशत 16.87%
-जनसंख्या घनत्व 324 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी
-जनसंख्या वृद्धि दर (दशक) 21.54% (1991-2001)
-औसत वृद्धि दर [28] 1.95%
-लिंगानुपात ♀/♂ 933 : 1000
-राज भाषा हिन्दी [29]
-प्रति व्यक्ति आय 27,786 रु0 (2007-08)

अर्थव्यवस्था
-निर्यात की वस्तुएँ इंजीनियरी उपकरण, मसाले, तम्बाकू, चमड़े का सामान, चाय, लौह अयस्क आदि।
-आयात की वस्तुएँ रसायन, मशीनरी, उपकरण, उर्वरक, खनिज तेल आदि।
-व्यापार सहयोगी संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, नये राष्ट्रों के राष्ट्रकुल (सी.आई.एस.) के देश, जापान, इटली, जर्मनी, पूर्वी यूरोपीय देश।
-राष्ट्रीयकृत बैंकों की संख्या 20
-तेलशोधनशालाओं की संख्या 13
-कुल उद्यमों की संख्या 4,212 करोड़ (कृषि में संलग्न उद्यमों के अतिरिक्त)
-उद्यम (ग्रामीण क्षेत्र) 2,581 करोड़ (कृषि में संलग्न उद्यमों के अतिरिक्त)
-उद्यम (शहरी क्षेत्र) 1,631 करोड़ (38.7%)।
-कृषि कार्य का प्रतिशत [30] 15%
-गैर-कृषि कार्य का प्रतिशत [31] 85%
-उद्यम (10 या अधिक कामगार) 5.83 लाख [32]
-सर्वाधिक उद्यम (पांच राज्य) तमिलनाडु-4446999 (10.56%), महाराष्ट्र- 4374764 (10.39%), पश्चिम बंगाल- 4285688 (10.17%), आंध्र प्रदेश- 4023411 (9.55%), उत्तर प्रदेश- 4015926 (9.53%)।
-सर्वाधिक उद्यम (केन्द्र शासित) दिल्ली-753795(1.79%), चंडीगढ़- 65906 (0.16%), पाण्डिचेरी-49915 (0.12%)।
-प्रमुख उद्योग लौह-इस्पात, जलयान निर्माण, मोटर वाहन, साइकिल, सूतीवस्त्र, ऊनी वस्त्र, रेशमी वस्त्र, वायुयान, उर्वरक, दवाएं एवं औषधियां, रेलवे इंजन, रेल के डिब्बे, जूट, काग़ज़, चीनी, सीमेण्ट, मत्स्ययन, चमड़ा उद्योग, शीशा, भारी एवं हल्के रासायनिक उद्योग तथा रबड़ उद्योग।
-बड़े बन्दरगाहों की संख्या 12 बड़े एवं 139 छोटे बंदरगाह।
-प्रमुख बन्दरगाह मुम्बई, न्हावा शेवा, कलकत्ता, हल्दिया, गोवा, कोचीन, कांडला, चेन्नई, न्यू मंगलोर, तूतीकोरिन, विशाखापटनम, मझगाँव, अलेप्पी, भटकल, भावनगर, कालीकट, काकीनाडा, कुडलूर, धनुषकोडि, पाराद्वीप, गोपालपुर।
-पश्चिमी तट प्रमुख बंदरगाह कांडला, मुंबई, मार्मुगाओं, न्यू मंगलौर, कोचीन और जवाहरलाल नेहरू
-पूर्वी तट के प्रमुख बंदरगाह तूतीकोरिन, चेन्नई, विशाखापत्तनम, पारादीप और कोलकाता- हल्दिया।
-पुराना बंदरगाह (पूर्वी तट) चेन्नई
-सबसे गहरा बंदरगाह विशाखापत्तनम
-कार्यशील व्यक्तियों की संख्या 31.5 करोड़, मुख्य श्रमिक- 28.5 करोड़, सीमान्त श्रमिक- 3,0 करोड़
-ताजे जल की मछलियाँ सॉ-फिश, लाइवफिश, फैदरबैंक, एंकावी, ईल, बाटा, रेवा, तोर, चिताला, कटला, मिंगाल, मिल्कफिश, कार्प, पर्लशाट आदि।

परिवहन
-जल परिवहन कोलकाता (केन्द्रीय अन्तर्देशीय जल परिवहन निगम का मुख्यालय)
-सड़क मार्ग की कुल लम्बाई 33,19,664 किमी.
-राष्ट्रीय राजमार्गों की संख्या संख्यानुसार 109 जबकि कुल 143 (लगभग 19 निर्माणाधीन)।
-राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लम्बाई 66,590 किमी.
-सबसे लम्बा राष्ट्रीय राजमार्ग राजमार्ग संख्या 7 (लंबाई- 2369 किमी वाराणसी से कन्याकुमारी)
-राष्ट्रीय राजमार्ग (स्वर्ण चतुर्भुज) 5,846 किमी (योजना के अंतर्गत शामिल राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लम्बाई)
-राष्ट्रीय राजमार्ग (उत्तर-दक्षिण कॉरिडॉर) 7,300 किमी (योजना अंतर्गत शामिल राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लम्बाई)
-रेलमार्ग 63,465 किमी.
-रेलवे परिमण्डलों की संख्या 16
-सबसे बड़ा रेलवे परिमण्डल उत्तर रेलवे (11,023 किमी., मुख्यालय- नई दिल्ली)
-रेलवे स्टेशनों की संख्या लगभग 7,133 (31 मार्च, 2006 तक)
-रेल यात्रियों की संख्या 50,927 लाख प्रतिदिन (2002-03)
-रेल इंजनों की संख्या</ref> 8,025 (मार्च, 2006)।
-रेल सवारी डिब्बों की संख्या 42,570 (2001)
-रेल माल डिब्बों की संख्या 2,22,147 (2001)
-यात्री रेलगाड़ियों की संख्या 44,090
-अन्य सवारी रेल गाड़ियाँ 5,990
-अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों की संख्या पाँच [33]
-मुक्त आकाशीय हवाई अड्डा गया (बिहार)
-प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे बंगलौर, हैदराबाद, अहमदाबाद, गोवा, अमृतसर, गुवाहाटी एवं कोचीन।

अन्य
-जीव-जन्तु (अनुमानित) 75,000 जिनमें उभयचर- 2,500, सरीसृप- 450, पक्षी- 2,000 तथा स्तनपायी- 850
-राष्ट्रीय उद्यान 70
-वन्य प्राणी विहार 412
-प्राणी उद्यान 35
-राष्ट्रीय प्रतीक राष्ट्रध्वज- तिरंगा
-राजचिन्ह सिंहशीर्ष (सारनाथ)
-राष्ट्र गान जन गण मन [34]
-राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम् [35]
-राष्ट्रीय पशु बाघ (पैंथर टाइग्रिस)।
-राष्ट्रीय पक्षी मयूर (पावो क्रिस्टेशस)।
-स्वतन्त्रता दिवस 15 अगस्त
-गणतन्त्र दिवस 26 जनवरी

भारत का संविधान

भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। इसका निर्माण संविधान सभा ने किया था, जिसकी पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई थी। संविधान सभा ने 26 नवम्बर, 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। संविधान सभा की पहली बैठक अविभाजित भारत के लिए बुलाई गई थी। 4 अगस्त, 1947 को संविधान सभा की बैठक पुनः हुई और उसके अध्यक्ष सच्चिदानन्द सिन्हा थे। सिन्हा के निधन के बाद डॉ. राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष बने। फ़रवरी 1948 में संविधान का मसौदा प्रकाशित हुआ। 26 नवम्बर, 1949 को संविधान अन्तिम रूप में स्वीकृत हुआ और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।

धर्म

भारतीय संस्कृति में विभिन्नता उसका भूषण है। यहाँ हिन्दू धर्म के अगणित रूपों और संप्रदायों के अतिरिक्त, बौद्ध, जैन, सिक्ख, इस्लाम, ईसाई, यहूदी आदि धर्मों की विविधता का भी एक सांस्कृतिक समायोजन देखने को मिलता है। हिन्दू धर्म के विविध सम्प्रदाय एवं मत सारे देश में फैले हुए हैं, जैसे वैदिक धर्म, शैव, वैष्णव, शाक्त आदि पौराणिक धर्म, राधा-बल्लभ संप्रदाय, श्री संप्रदाय, आर्य समाज, समाज आदि। परन्तु इन सभी मतवादों में सनातन धर्म की एकरसता खण्डित न होकर विविध रूपों में गठित होती है। यहाँ के निवासियों में भाषा की विविधता भी इस देश की मूलभूत सांस्कृतिक एकता के लिए बाधक न होकर साधक प्रतीत होती है।

अर्थव्यवस्था

भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था क्रय शक्ति समानता के आधार पर दुनिया में चौथी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है। यह विशाल जनशक्ति आधार, विविध प्राकृतिक संसाधनों और सशक्‍त वृहत अर्थव्‍यवस्‍था के मूलभूत तत्‍वों के कारण व्‍यवसाय और निवेश के अवसरों के सबसे अधिक आकर्षक गंतव्‍यों में से एक है। वर्ष 1991 में आरंभ की गई आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया से सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था में फैले नीतिगत ढाँचे के उदारीकरण के माध्‍यम से एक निवेशक अनुकूल परिवेश मिलता रहा है। भारत को आज़ाद हुए 77 साल हो चुके हैं और इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा में ज़बरदस्त बदलाव आया है। औद्योगिक विकास ने अर्थव्यवस्था का रूप बदल दिया है। आज भारत की गिनती दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में होती है। विश्व की अर्थव्यवस्था को चलाने में भारत की भूमिका बढ़ती जा रही है। आईटी सॅक्टर में पूरी दुनिया भारत का लोहा मानती है।

कृषि

कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों एवं प्रयासों से कृषि को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में गरिमापूर्ण दर्जा मिला है। कृषि क्षेत्रों में लगभग 64% श्रमिकों को रोज़गार मिला हुआ है। 1950-51 में कुल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा 59.2% था जो घटकर 1982-83 में 36.4% और 1990-91 में 34.9% तथा 2001-2002 में 25% रह गया। यह 2006-07 की अवधि के दौरान औसत आधार पर घटकर 18.5% रह गया। दसवीं योजना (2002-2007) के दौरान समग्र सकल घरेलू उत्पाद की औसत वार्षिक वृद्धि पद 7.6% थी जबकि इस दौरान कृषि तथा सम्बद्ध क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर 2.3% रही। 2001-02 से प्रारंभ हुई नव सहस्त्राब्दी के प्रथम 6 वर्षों में 3.0% की वार्षिक सामान्य औसत वृद्धि दर 2003-04 में 10% और 2005-06 में 6% की रही।

खनिज संपदा

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में खनिजों के उत्पादन में निरन्तर वृद्धि हुई है। कोयला, लौह अयस्क, बॉक्साइट आदि का उत्पादन निरंतर बढ़ा है। 1951 में सिर्फ़ 83 करोड़ रुपये के खनिजों का खनन हुआ था, परन्तु 1970-71 में इनकी मात्रा बढ़कर 490 करोड़ रुपये हो गई। अगले 20 वर्षों में खनिजों के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। 2001-02 में निकाले गये खनिजों का कुल मूल्य 58,516.36 करोड़ रुपये तक पहुँच गया जबकि 2005-06 के दौरान कुल 75,121.61 करोड़ रुपये मूल्य के खनिजों का उत्पादन किया गया। यदि मात्रा की दृष्टि से देखा जाये, तो भारत में खनिजों की मात्रा में लगभग तिगुनी वृद्धि हुई है, उसका 50% भाग सिर्फ़ पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के कारण तथा 40% कोयला के कारण हुआ है।

रक्षा

भारत की रक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में उसे बढ़ावा दिया जाए एवं स्थायित्व प्रदान किया जाए तथा देश की रक्षा सेनाओं को पर्याप्त रूप से सुसज्जित किया जाए, ताकि वे किसी भी आक्रमण से देश की रक्षा कर सकें। वर्ष 1946 के पूर्व भारतीय रक्षा का पूरा नियंत्रण अंग्रेज़ों के हाथों में था। उसी वर्ष केंद्र में अंतरिम सरकार में पहली बार एक भारतीय देश के रक्षा मंत्री बलदेव सिंह बने। हालांकि कमांडर-इन-चीफ एक अंग्रेज़ ही रहा । 1947 में देश का विभाजन होने पर भारत को 45 रेजीमेंटें मिलीं, जिनमें 2.5 लाख सैनिक थे। शेष रेजीमेंट पाकिस्तान चली गयीं। गोरखा फ़ौज की 6 रेजीमेंट (लगभग 25,000 सैनिक) भी भारत को मिलीं। शेष गोरखा सैनिक ब्रिटिश सेना में सम्मिलित हो गये। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन हो गयी। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन भारतीय भूमि से 28 फ़रवरी, 1948 को स्वदेश रवाना हुई।

पशु पक्षी जगत

वन्य जीवन प्रकृति की अमूल्य देन है। भविष्य में वन्य प्राणियों की समाप्ति की आशंका के कारण भारत में सर्वप्रथम 7 जुलाई, 1955 को वन्य प्राणी दिवस मनाया गया । यह भी निर्णय लिया गया कि प्रत्येक वर्ष दो अक्तूबर से पूरे सप्ताह तक वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जाएगा। वर्ष 1956 से वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जा रहा है। भारत के संरक्षण कार्यक्रम की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक मज़बूत संस्थागत ढांचे की रचना की गयी है।

भारतीय भाषा परिवार

भारत की मुख्य विशेषता यह है कि यहाँ विभिन्नता में एकता है। भारत में विभिन्नता का स्वरूप न केवल भौगोलिक है, बल्कि भाषायी तथा सांस्कृतिक भी है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचलन में हैं, जबकि संविधान द्वारा 22 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 344 के अंतर्गत पहले केवल 15 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता दी गयी थी, लेकिन 21वें संविधान संशोधन के द्वारा सिन्धी को तथा 71वाँ संविधान संशोधन द्वारा नेपाली, कोंकणी तथा मणिपुरी को भी राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया। बाद में 92वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूची में चार नई भाषाओं बोडो, डोगरी, मैथिली तथा संथाली को राजभाषा में शामिल कर लिया गया। इस प्रकार अब संविधान में 22 भाषाओं को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया है।

शिक्षा

1911 में भारतीय जनगणना के समय साक्षरता को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि "एक पत्र पढ़-लिखकर उसका उत्तर दे देने की योग्यता" साक्षरता है। भारत में लम्बे समय से लिखित भाषा का अस्तित्व है, किन्तु प्रत्यक्ष सूचना के अभाव के कारण इसका संतोषजनक विकास नहीं हुआ। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की लेखन चित्रलिपि तीन हज़ार वर्ष ईसा पूर्व और बाद की है। यद्यपि अभी तक इस लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है, तथापि इससे यह स्पष्ट है कि भारतीयों के पास कई शताब्दियों पहले से ही एक लिखित भाषा थी और यहाँ के लोग पढ़ और लिख सकते थे। हड़प्पा और अशोक के काल के बीच में पन्द्रह सौ वर्षों का ऐसा समय रहा है, जिसमें की कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता। लेकिन पाणिनि ने उस समय भारतीयों के द्वारा बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं का उल्लेख किया है।

भारतीय कला

भारतीय कला अपनी प्राचीनता तथा विविधता के लिए विख्यात रही है। आज जिस रूप में 'कला' शब्द अत्यन्त व्यापक और बहुअर्थी हो गया है, प्राचीन काल में उसका एक छोटा हिस्सा भी न था। यदि ऐतिहासिक काल को छोड़ और पीछे प्रागैतिहासिक काल पर दृष्टि डाली जाए तो विभिन्न नदियों की घाटियों में पुरातत्त्वविदों को खुदाई में मिले असंख्य पाषाण उपकरण भारत के आदि मनुष्यों की कलात्मक प्रवृत्तियों के साक्षात प्रमाण हैं। पत्थर के टुकड़े को विभिन्न तकनीकों से विभिन्न प्रयोजनों के अनुरूप स्वरूप प्रदान किया जाता था।

भारतीय संगीत

संगीत मानवीय लय एवं तालबद्ध अभिव्यक्ति है। भारतीय संगीत अपनी मधुरता, लयबद्धता तथा विविधता के लिए जाना जाता है। वर्तमान भारतीय संगीत का जो रूप दृष्टिगत होता है, वह आधुनिक युग की प्रस्तुति नहीं है, बल्कि यह भारतीय इतिहास के प्रासम्भ के साथ ही जुड़ा हुआ है। वैदिक काल में ही भारतीय संगीत के बीज पड़ चुके थे। सामवेद उन वैदिक ॠचाओं का संग्रह मात्र है, जो गेय हैं। प्राचीन काल से ही ईश्वर आराधना हेतु भजनों के प्रयोग की परम्परा रही है। यहाँ तक की यज्ञादि के अवसर पर भी समूहगान होते थे।

नृत्य कला

भारत में नृत्य की अनेक शैलियाँ हैं। भरतनाट्यम, ओडिसी, कुचिपुड़ी, कथकली, मणिपुरी, कथक आदि परंपरागत नृत्य शैलियाँ हैं तो भंगड़ा, गिद्दा, नगा, बिहू आदि लोक प्रचलित नृत्य है। ये नृत्य शैलियाँ पूरे देश में विख्यात है। गुजरात का गरबा हरियाणा में भी मंचो की शोभा को बढ़ाता है और पंजाब का भंगड़ा दक्षिण भारत में भी बड़े शौक़ से देखा जाता है। भारत के संगीत को विकसित करने में अमीर ख़ुसरो, तानसेन, बैजू बावरा जैसे संगीतकारों का विशेष योगदान रहा है। आज भारत के संगीत-क्षितिज पर बिस्मिल्ला ख़ाँ‎, ज़ाकिर हुसैन, रवि शंकर समान रूप से सम्मानित हैं।

संस्कृति

त्योहार और मेले भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। यह भी कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति अपने हृदय के माधुर्य को त्योहार और मेलों में व्यक्त करती है, तो अधिक सार्थक होगा। भारतीय संस्कृति प्रेम, सौहार्द्र, करुणा, मैत्री, दया और उदारता जैसे मानवीय गुणों से परिपूर्ण है। यह उल्लास, उत्साह और विकास को एक साथ समेटे हुए है। आनन्द और माधुर्य तो जैसे इसके प्राण हैं। यहाँ हर कार्य आनन्द के साथ शुरू होता है और माधुर्य के साथ सम्पन्न होता है। भारत जैसे विशाल धर्मप्राण देश में आस्था और विश्वास के साथ मिल कर यही आनन्द और उल्लास त्योहार और मेलों में फूट पड़ता है। त्योहार और मेले हमारी धार्मिक आस्थाओं, सामाजिक परम्पराओं और आर्थिक आवश्यकताओं की त्रिवेणी है, जिनमें समूचा जनमानस भावविभोर होकर गोते लगाता है।

भारतीय भोजन

भारतीय भोजन स्वाद और सुगंध का मधुर संगम है। पूरन पूरी हो या दाल बाटी, तंदूरी रोटी हो या शाही पुलाव, पंजाबी भोजन हो या मारवाड़ी भोजन, ज़िक्र चाहे जिस किसी का भी हो रहा हो, केवल नाम सुनने से ही भूख जाग उठती है। भारत में पकवानों की विविधता भी बहुत अधिक है। राजस्थान में दाल-बाटी, कोलकाता में चावल-मछली, पंजाब में रोटी-साग, दक्षिण में इडली-डोसा। इतनी विविधता के बीच एकता का प्रमाण यह है कि आज दक्षिण भारत के लोग दाल-रोटी उसी शौक़ से खाते हैं, जितने शौक़ से उत्तर भारतीय इडली-डोसा खाते हैं। सचमुच भारत एक रंगबिरंगा गुलदस्ता है।

पर्यटन

भारतवासी अपनी दीर्घकालीन, अनवरत एवं सतरंगी उपलब्धियों से युक्त इतिहास पर गर्व कर सकते हैं। प्राचीन काल से ही भारत एक अत्यन्त ही विविधता सम्पन्न देश रहा है और यह विशेषता आज भी समय की घड़ी पर अंकित है। यहाँ प्रारम्भ से अनेक अध्यावसायों का अनुसरण होता रहा है, पृथक्-पृथक् मान्यताएँ हैं, लोगों के रिवाज और दृष्टिकोणों के विभिन्न रंगों से सज़ा यह देश अतीत को भूत, वर्तमान एवं भविष्य की आँखों से देखने के लिए आह्वान कर रहा है। किन्तु बहुरंगी सभ्यता एवं संस्कृति वाले देश के सभी आयामों को समझने का प्रयास इतना आसान नहीं है।

{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}} विस्तार में पढ़ने के लिए देखें:भारत आलेख

राज्य संरचना


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पंथा विततो देवयानः।
    येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा यत्र सत्सत्यस्य परमं निधानम्॥

    मुण्डकोपनिषद् तृतीय मुण्डक श्लोक 6
  2. 2.0 2.1 India : Census 2011
  3. Population Density per Square Mile of Countries
  4. 4.0 4.1 4.2 4.3 Report for Selected Countries and Subjects (अंग्रेज़ी) (ए.एस.पी) International Monetory Fund। अभिगमन तिथि: 15 मई, 2012।
  5. सितम्बर 2006-2011 की स्थिति के अनुसार
  6. पुस्तक 'भारत का इतिहास' रोमिला थापर) पृष्ठ संख्या-19
  7. (विश्व का 2.2% विश्व में 7वां स्थान)
  8. एकदम दक्षिणी भाग की भूमध्य रेखा से दूरी
  9. उत्तर में हिमालय पर्वतमाला से लगे हुए चीन, नेपाल तथा भूटान, पूर्व में पर्वतीय श्रृंखला से अलग हुआ म्यान्मार तथा पूर्व में ही बांग्लादेश, पश्चिम में पाकिस्तान एवं अफ़ग़ानिस्तान तथा दक्षिण में हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर
  10. द्वीपों सहित समुद्री सीमा की कुल लंबाई
  11. स्थलीय सीमा की लंबाई
  12. संघशासित क्षेत्रों की संख्या
  13. बंगाल की खाड़ी में द्वीपों की संख्या- 204, अरब सागर में द्वीपों की संख्या- 43।
  14. वे राज्य जिनसे होकर कर्क रेखा गुजरती है
  15. सर्वाधिक नगरीय जनसंख्या वाला संघ शासित क्षेत्र
  16. सबसे कम नगरीय जनसंख्या वाला संघ शासित क्षेत्र
  17. क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा संघशासित क्षेत्र
  18. प्रमुख सागरीय मछलियाँ- बटरफिश, स्वेत बेट, सारडाइन, प्रान, मैकरेल, ज्यूफिश, रिबनफिश, कैटफिश, सारंगा, दारा, ट्यूना, मुलेट्स, सियरफिश, शार्क, पामफ्रेट, श्रिम्प आदि। विश्व मत्स्ययन का- 2.7%।
  19. कुल क्षेत्रफल का 22.7%
  20. सिंचाई के साधन
  21. 200 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में बिना सिंचाई के
  22. 100 से 200 सेमी. वर्षा वालेऐ जलोढ़ एंव काली मिट्टी के क्षेत्रों में
  23. उत्तर-पूर्वी भारत, पश्चिमी घाट आदि क्षेत्रों में
  24. विशेष रूप से हिमालय के ढालों पर
  25. मणिपुर के सेनापति ज़िले के तीन उपज़िलों को छोड़कर
  26. अनुसूचित जातियों की संख्या
  27. अनुसूचित जनजातियों की संख्या
  28. औसत वार्षिक घातीय वृद्धि दर
  29. अनुच्छेद 344 (1), 351, आठवीं अनुसूची के अनुसार 22 भाषाऐं है जिनके नाम इस प्रकार है:- असमिया , बांग्ला , गुजराती , हिन्दी , कन्नड़ , कश्मीरी , कोंकणी , मलयालम , मणिपुरी , मराठी , नेपाली , उड़िया , पंजाबी , संस्कृत , सिंधी , तमिल , उर्दू , तेलुगु , बोडो , डोगरी , मैथिली , संथाली
  30. कृषि से संबंधित कार्य में संलग्न उद्यमों का प्रतिशत
  31. गैर-कृषि संबंधी कार्यों में संलग्न उद्यमों का प्रतिशत
  32. कुल उद्यमों का 1.4%
  33. जवाहर लाल नेहरू अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (सान्ताक्रुज, मुम्बई), सुभाष चन्द्र बोस हवाई अड्डा (दमदम- कोलकाता), इन्दिरा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (पालम, दिल्ली), मीनाम्बकम हवाई अड्डा (चेन्नई) तथा तिरुवनन्तपुरम।
  34. रचयिता-गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर
  35. रचयिता- बंकिमचन्द्र चटर्जी
ऊपर जायें
ऊपर जायें

संबंधित लेख