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'''चितळकर रामचन्द्र''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Ramchandra Chitalkar'', जन्म- [[12 जनवरी]], [[1918]], [[अहमदनगर]], [[महाराष्ट्र]]; मृत्यु- [[5 जनवरी]], [[1982]], [[मुंबई]]) न केवल [[संगीत]] निर्देशन की प्रतिभा से परिपूर्ण थे, अपितु उन्होंने अपनी गायकी, फ़िल्म निर्माण, निर्देशन और अभिनय से भी सिने प्रेमियों को अपना दीवाना बनाए रखा। फ़िल्म जगत में 'अन्ना साहब' के नाम से मशहूर सी. रामचन्द्र से फ़िल्मों से जुड़ी कोई भी विधा अछूती नहीं रही थी। वह ऐसे हंसमुख इंसान थे, जिनकी उपस्थिति मात्र से ही माहौल खुशनुमा हो जाता था। हँसते-हँसाते रहने की प्रवृत्ति को उन्होंने अपने संगीत निर्देशन और गायकी में भी खूब बारीकी से उकेरा था। सी. रामचन्द्र का यह अंदाज़आज भी उनके चहेतों की यादों में बसा हुआ है। | |||
'''चितळकर रामचन्द्र''' ([[अंग्रेज़ी]]: Ramchandra Chitalkar | |||
==जन्म तथा शिक्षा== | ==जन्म तथा शिक्षा== | ||
सी. रामचन्द्र का जन्म 12 जनवरी, सन 1918 में महाराष्ट्र के [[अहमदनगर ज़िला|अहमदनगर ज़िले]] के एक छोटे-से गांव 'पुंतबा' में हुआ था। बाल्यकाल से ही उनका | सी. रामचन्द्र का जन्म 12 जनवरी, सन 1918 में महाराष्ट्र के [[अहमदनगर ज़िला|अहमदनगर ज़िले]] के एक छोटे-से गांव 'पुंतबा' में हुआ था। बाल्यकाल से ही उनका रुझान संगीत की ओर था। [[हिन्दी]] फ़िल्म संगीत को सुरों से नहलाने वाले संगीतकार सी. रामचन्द्र के नाम से उनके [[तमिल भाषा|तमिल]] भाषी होने का अनुमान लगाया जाता है, किंतु वे तमिल भाषी नहीं थे। वे [[पुणे]] के पास एक गाँव के मराठी देशरथ ब्राह्मण थे। हालांकि यह बात उल्लेखनीय है कि उन्हें सबसे पहले एक तमिल फ़िल्म में ही [[संगीत]] देने का मौंका मिला था। [[संक्रान्ति]] से दो दिन पहले जन्म लेने वाले सी. रामचन्द्र को असल में [[कृष्ण]] की तरह दो माताएँ मिली थीं। जन्म देने वाली माँ के हिस्से का प्यार उन्होंने सौतेली [[माँ]] से पाया था। उनके [[पिता]] रेलवे में सरकारी कर्मचारी थे। दिन-रात रेल के इंजनों की कर्कश आवाज़ सुनकर भी रामचन्द्र संगीतकार बने। घर में भी संगीत के नाम पर केवल [[संस्कृत]] के [[श्लोक]] ही गूंजते थे। | ||
सी. रामचन्द्र का पढ़ाई में मन नहीं लगता था। उन्होंने पहली बार एक नाटक में काम किया और उसके लिए गाया भी। इस पर उन्हें वाहवाही मिली थी। इसी दौरान उन्हें सिनेमा देखने और उसमें काम करने का | सी. रामचन्द्र का पढ़ाई में मन नहीं लगता था। उन्होंने पहली बार एक नाटक में काम किया और उसके लिए गाया भी। इस पर उन्हें वाहवाही मिली थी। इसी दौरान उन्हें सिनेमा देखने और उसमें काम करने का शौक़ लगा। लेकिन [[नागपुर]] में फ़िल्मों का निर्माण होता ही नहीं था। इसीलिए वे पुणे आ गये। यहाँ उन्होंने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा 'गंधर्व महाविद्यालय', [[महाराष्ट्र]] के विनायकबुआ पटवर्धन से प्राप्त की। बाद में [[नागपुर]] के 'श्रीराम संगीत विद्यालय' में शंकरराव से भी संगीत की शिक्षा ग्रहण की। | ||
====फ़िल्मी शुरुआत==== | ====फ़िल्मी शुरुआत==== | ||
सी.रामचन्द्र ने अपने सिने कैरियर की शुरुआत बतौर अभिनेता यू. बी. राव की फ़िल्म 'नागानंद' से की। इस बीच सी. रामचन्द्र को 'मिनर्वा मूवीटोन' की निर्मित कुछ फ़िल्मों में भी अभिनय करने का मौका मिला। इसी समय उनकी मुलाकात | सी.रामचन्द्र ने अपने सिने कैरियर की शुरुआत बतौर अभिनेता यू. बी. राव की फ़िल्म 'नागानंद' से की। इस बीच सी. रामचन्द्र को 'मिनर्वा मूवीटोन' की निर्मित कुछ फ़िल्मों में भी अभिनय करने का मौका मिला। इसी समय उनकी मुलाकात महान् [[सोहराब मोदी|निर्माता-निर्देशक सोहराब मोदी]] से हुई। सोहराब मोदी ने सी. रामचन्द्र को सलाह दी कि यदि वह अभिनय के बजाए संगीत की ओर ध्यान दें तो फ़िल्म इंडस्ट्री में सफल कामयाब हो सकते हैं। इसके बाद सी. रामचन्द्र 'मिनर्वा मूविटोन' के संगीतकार बिन्दु ख़ान और हबीब ख़ान के ग्रुप में शामिल हो गए। अब वे ग्रुप में बतौर [[हारमोनियम]] वादक काम करने लगे थे। बतौर संगीतकार सी. रामचन्द्र को सबसे पहले एक तमिल फ़िल्म में काम करने का मौका मिला।<ref name="mcc">{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8190.html|title=सी. रामचंद्र|accessmonthday=30 सितम्बर|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
==सफलता== | ==सफलता== | ||
[[1942]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'सुखी जीवन' की सफलता के बाद सी. रामचन्द्र कुछ हद तक बतौर संगीतकार फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। चालीस के दशक में सी. रामचन्द्र ने एक संगीतकार के रूप में जिन फ़िल्मों को संगीतबद्ध किया था, उनमें 'सावन' (1945), 'शहनाई' (1947), 'पतंगा' (1949) और 'समाधि' एवं 'सरगम' (1950) जैसी फ़िल्में उल्लेखनीय हैं। सन [[1951]] में सी. रामचन्द्र को [[भगवान दादा]] की निर्मित फ़िल्म 'अलबेला' में संगीत देने का मौका मिला। 1951 में प्रदर्शित फ़िल्म 'अलबेला' में अपने संगीतबद्ध गीतों की कामयाबी के बाद सी. रामचन्द्र एक सफल संगीतकार के रूप में फ़िल्मी दुनिया में जम गए। वैसे तो फ़िल्म 'अलबेला' में उनके संगीतबद्ध सभी गाने सुपरहिट हुए, लेकिन ख़ासकर "शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के", "भोली सूरत दिल के खोटे नाम बड़े और दर्शन छोटे", "मेरे पिया गए रंगून, किया है वहाँ से टेलीफोन" आदि गीतों ने [[भारत]] में धूम मचा दी। | [[1942]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'सुखी जीवन' की सफलता के बाद सी. रामचन्द्र कुछ हद तक बतौर संगीतकार फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। चालीस के दशक में सी. रामचन्द्र ने एक संगीतकार के रूप में जिन फ़िल्मों को संगीतबद्ध किया था, उनमें 'सावन' ([[1945]]), 'शहनाई' ([[1947]]), 'पतंगा' ([[1949]]) और 'समाधि' एवं 'सरगम' ([[1950]]) जैसी फ़िल्में उल्लेखनीय हैं। सन [[1951]] में सी. रामचन्द्र को [[भगवान दादा]] की निर्मित फ़िल्म 'अलबेला' में संगीत देने का मौका मिला। 1951 में प्रदर्शित फ़िल्म 'अलबेला' में अपने संगीतबद्ध गीतों की कामयाबी के बाद सी. रामचन्द्र एक सफल संगीतकार के रूप में फ़िल्मी दुनिया में जम गए। वैसे तो फ़िल्म 'अलबेला' में उनके संगीतबद्ध सभी गाने सुपरहिट हुए, लेकिन ख़ासकर "शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के", "भोली सूरत दिल के खोटे नाम बड़े और दर्शन छोटे", "मेरे पिया गए रंगून, किया है वहाँ से टेलीफोन" आदि गीतों ने [[भारत]] में धूम मचा दी। | ||
==फ़िल्म निर्माण== | ==फ़िल्म निर्माण== | ||
सन [[1953]] में [[प्रदीप कुमार]] और बीना राय अभिनीत फ़िल्म 'अनारकली' की सफलता के बाद सी. रामचन्द्र शोहरत की बुंलदियों पर पहुँच गये। फ़िल्म 'अनारकली' में उनके [[संगीत]] से सजे ये गीत "जाग दर्द-ए-इश्क जाग..", "ये ज़िंदगी उसी की है.. ", श्रोताओं के बीच बहुत लोकप्रिय हुए। [[1953]] में सी. रामचन्द्र ने फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया और 'न्यू सांई प्रोडक्शन' का निर्माण किया, जिसके बैनर तले उन्होंने 'झांझर', 'लहरें' और 'दुनिया गोल है' जैसी फ़िल्मों का निर्माण किया। लेकिन ये उनका दुर्भाग्य ही था कि इनमें से कोई भी फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं सकी। इसके बाद सी. रामचन्द्र ने फ़िल्म निर्माण से तौबा कर ली और अपना ध्यान संगीत की ओर जी लगाना शुरू कर दिया। वर्ष [[1954]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'नास्तिक' में उनके संगीतबद्ध गीत "देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान", समाज में बढ़ रही कुरीतियों के उपर उनका सीधा प्रहार था। इस गीत की प्रसिद्धि ने उन्हें फिर से लोकप्रिय बना दिया।<ref name="mcc"/> | सन [[1953]] में [[प्रदीप कुमार]] और बीना राय अभिनीत फ़िल्म 'अनारकली' की सफलता के बाद सी. रामचन्द्र शोहरत की बुंलदियों पर पहुँच गये। फ़िल्म 'अनारकली' में उनके [[संगीत]] से सजे ये गीत "जाग दर्द-ए-इश्क जाग..", "ये ज़िंदगी उसी की है.. ", श्रोताओं के बीच बहुत लोकप्रिय हुए। [[1953]] में सी. रामचन्द्र ने फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया और 'न्यू सांई प्रोडक्शन' का निर्माण किया, जिसके बैनर तले उन्होंने 'झांझर', 'लहरें' और 'दुनिया गोल है' जैसी फ़िल्मों का निर्माण किया। लेकिन ये उनका दुर्भाग्य ही था कि इनमें से कोई भी फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं सकी। इसके बाद सी. रामचन्द्र ने फ़िल्म निर्माण से तौबा कर ली और अपना ध्यान संगीत की ओर जी लगाना शुरू कर दिया। वर्ष [[1954]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'नास्तिक' में उनके संगीतबद्ध गीत "देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान", समाज में बढ़ रही कुरीतियों के उपर उनका सीधा प्रहार था। इस गीत की प्रसिद्धि ने उन्हें फिर से लोकप्रिय बना दिया।<ref name="mcc"/> | ||
====राजेन्द्र कृष्ण से जोड़ी==== | ====राजेन्द्र कृष्ण से जोड़ी==== | ||
सी. रामचन्द्र के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी गीतकार राजेन्द्र कृष्ण के साथ बहुत चर्चित रही। उनकी और राजेन्द्र कृष्ण की जोड़ी वाली फ़िल्मो में 'पतंगा' ([[1949]]), ' | सी. रामचन्द्र के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी गीतकार राजेन्द्र कृष्ण के साथ बहुत चर्चित रही। उनकी और राजेन्द्र कृष्ण की जोड़ी वाली फ़िल्मो में 'पतंगा' ([[1949]]), 'ख़ज़ाना' ([[1951]]), 'अलबेला' ([[1951]]), 'साकी' ([[1952]]), 'अनारकली' ([[1953]]), 'कवि' ([[1954]]), 'तीरंदाज' ([[1955]]), 'शतरंज' ([[1956]]), 'शारदा' ([[1957]]), 'आशा' ([[1957]]) और 'अमरदीप' ([[1958]]) जैसी फ़िल्में शामिल हैं। पचास के दशक में स्वरों के लिए विख्यात [[लता मंगेशकर]] ने संगीतकार सी. रामचन्द्र की धुनों पर कई गीत गाए, जिनमें फ़िल्म 'अनारकली' के गीत "ये ज़िंदगी उसी की है...", "जाग दर्दे-ए-इश्क जाग.." जैसे गीत इन दोनों फनकारों की जोड़ी की बेहतरीन मिसाल हैं। | ||
==पुन: लोकप्रियता की प्राप्ति== | ==पुन: लोकप्रियता की प्राप्ति== | ||
साठ का दशक सी. रामचन्द्र के लिए बुरा वक़्त था। इस दशक में पाश्चात्य गीत-संगीत की चमक से निर्माता-निर्देशक स्वयं को नहीं बचा सके और धीरे-धीरे निर्देशकों ने सी. रामचन्द्र की ओर से अपना मुख मोड़ लिया। लेकिन [[1958]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'तलाक' और | साठ का दशक सी. रामचन्द्र के लिए बुरा वक़्त था। इस दशक में पाश्चात्य गीत-संगीत की चमक से निर्माता-निर्देशक स्वयं को नहीं बचा सके और धीरे-धीरे निर्देशकों ने सी. रामचन्द्र की ओर से अपना मुख मोड़ लिया। लेकिन [[1958]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'तलाक' और [[1959]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'पैग़ाम' में उनके संगीतबद्ध गीत "इंसान का इंसान से हो भाईचारा.." की कामयाबी के बाद सी. रामचन्द्र एक बार फिर से अपनी खोयी हुई लोकप्रियता पाने में सफल हो गए। | ||
' में उनके संगीतबद्ध गीत "इंसान का इंसान से हो भाईचारा.." की कामयाबी के बाद सी. रामचन्द्र एक बार फिर से अपनी खोयी हुई लोकप्रियता पाने में सफल हो गए। | |||
[[भारत]] के वीर जवानों को श्रद्धाजंलि देने के लिए [[कवि प्रदीप]] ने [[1962]] में "ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँख में भर लो पानी.." गीत की रचना की। इस गीत का संगीत तैयार करने की जिम्मेंदारी उन्होंने सी. रामचन्द्र को सौंप दी। सी. रामचन्द्र के संगीत निर्देशन में एक कार्यक्रम के दौरान स्वर साम्राज्ञी [[लता मंगेशकर]] से देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण इस गीत को सुनकर तत्कालीन [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहरलाल नेहरू]] की [[आँख|आँखों]] में आँसू छलक आए थे। "ऐ मेरे वतन के लोगों.." गीत को संगीत देकर सी. रामचन्द्र ने जैसे इस गीत को अमर बना दिया। आज भी भारत के | [[भारत]] के वीर जवानों को श्रद्धाजंलि देने के लिए [[कवि प्रदीप]] ने [[1962]] में "ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँख में भर लो पानी.." गीत की रचना की। इस गीत का संगीत तैयार करने की जिम्मेंदारी उन्होंने सी. रामचन्द्र को सौंप दी। सी. रामचन्द्र के संगीत निर्देशन में एक कार्यक्रम के दौरान स्वर साम्राज्ञी [[लता मंगेशकर]] से देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण इस गीत को सुनकर तत्कालीन [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहरलाल नेहरू]] की [[आँख|आँखों]] में आँसू छलक आए थे। "ऐ मेरे वतन के लोगों.." गीत को संगीत देकर सी. रामचन्द्र ने जैसे इस गीत को अमर बना दिया। आज भी भारत के महान् देशभक्ति गीत के रूप में याद किया जाता है।<ref name="mcc"/> | ||
====पार्श्वगायन==== | ====पार्श्वगायन==== | ||
साठ के दशक में सी. रामचन्द्र ने 'धनंजय' और 'घरकुल' जैसी [[मराठी भाषा|मराठी]] फ़िल्मों का निर्माण किया। उन्होंने इन फ़िल्मों में अभिनय और [[संगीत]] निर्देशन भी किया। संगीत निर्देशन के अतिरिक्त सी. रामचन्द्र ने अपने पार्श्वगायन से भी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। इन गीतों में "मेरी जान मेरी जान संडे के संडे.." (शहनाई, [[1947]]), "कदम कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा.." (समाधि, [[1950]]), "भोली सूरत दिल के खोटे नाम बड़े और दर्शन छोटे..", "शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के.." (अलबेला, [[1951]]), "कितना हसीं है मौसम कितना हसीं सफर है..." (आजाद, [[1955]]), "आ जा रे नटखट ना छू रे मेरा घूंघट.." (नवरंग, [[1959]]) जैसे न भूलने वाले गीत भी शामिल है। सी. रामचन्द्र ने अपने चार दशक के लंबे सिने करियर में लगभग 150 फ़िल्मों को संगीतबद्ध किया। [[हिन्दी]] फ़िल्मों के अतिरिक्त उन्होंने [[तमिल भाषा|तमिल]], [[मराठी भाषा|मराठी]], [[तेलुगू भाषा|तेलुगू]] और [[भोजपुरी भाषा|भोजपुरी]] फ़िल्मों को भी संगीतबद्ध किया। | साठ के दशक में सी. रामचन्द्र ने 'धनंजय' और 'घरकुल' जैसी [[मराठी भाषा|मराठी]] फ़िल्मों का निर्माण किया। उन्होंने इन फ़िल्मों में अभिनय और [[संगीत]] निर्देशन भी किया। संगीत निर्देशन के अतिरिक्त सी. रामचन्द्र ने अपने पार्श्वगायन से भी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। इन गीतों में "मेरी जान मेरी जान संडे के संडे.." (शहनाई, [[1947]]), "कदम कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा.." (समाधि, [[1950]]), "भोली सूरत दिल के खोटे नाम बड़े और दर्शन छोटे..", "शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के.." (अलबेला, [[1951]]), "कितना हसीं है मौसम कितना हसीं सफर है..." (आजाद, [[1955]]), "आ जा रे नटखट ना छू रे मेरा घूंघट.." (नवरंग, [[1959]]) जैसे न भूलने वाले गीत भी शामिल है। सी. रामचन्द्र ने अपने चार दशक के लंबे सिने करियर में लगभग 150 फ़िल्मों को संगीतबद्ध किया। [[हिन्दी]] फ़िल्मों के अतिरिक्त उन्होंने [[तमिल भाषा|तमिल]], [[मराठी भाषा|मराठी]], [[तेलुगू भाषा|तेलुगू]] और [[भोजपुरी भाषा|भोजपुरी]] फ़िल्मों को भी संगीतबद्ध किया। | ||
==प्रसिद्ध संगीतबद्ध गीत== | ==प्रसिद्ध संगीतबद्ध गीत== | ||
[[चित्र:Pradeep-Lata-Mangeshkar-C.Ramchandra.jpg|thumb|[[प्रदीप|कवि प्रदीप]], [[लता मंगेशकर]] और सी. रामचंद्र]] | |||
सी. रामचन्द्र के कुछ संगीतबद्ध गीत निम्नलिखित हैं- | सी. रामचन्द्र के कुछ संगीतबद्ध गीत निम्नलिखित हैं- | ||
*मेरी जान मेरी जान संडे के संडे - शहनाई ([[1947]]) | *मेरी जान मेरी जान संडे के संडे - शहनाई ([[1947]]) | ||
*कदम कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा - समाधि ([[1950]]) | *[[क़दम क़दम बढ़ाये जा|कदम कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा]] - समाधि ([[1950]]) | ||
*शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के - अलबेला ([[1951]]) | *शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के - अलबेला ([[1951]]) | ||
*भोली सूरत दिल के खोटे नाम बड़े और दर्शन छोटे - अलबेला | *भोली सूरत दिल के खोटे नाम बड़े और दर्शन छोटे - अलबेला | ||
*मेरे पिया गए रंगून, किया है वहाँ से टेलीफोन - अलबेला | *मेरे पिया गए रंगून, किया है वहाँ से टेलीफोन - अलबेला | ||
*बलमा बड़ा नादान - अलबेला | *बलमा बड़ा नादान - अलबेला | ||
*ये | *ये ज़िंदगी उसी की है, जो किसी का हो गया - अनारकली ([[1953]]) | ||
*जाग दर्द इश्क जाग - अनारकली ([[1953]]) | *जाग दर्द इश्क जाग - अनारकली ([[1953]]) | ||
*देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान - नास्तिक ([[1954]]) | *देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान - नास्तिक ([[1954]]) | ||
पंक्ति 68: | पंक्ति 66: | ||
*देखो जी बहार आई - आजाद ([[1955]]) | *देखो जी बहार आई - आजाद ([[1955]]) | ||
*आ जा रे नटखट ना छू रे मेरा घूंघट - नवरंग, ([[1959]] | *आ जा रे नटखट ना छू रे मेरा घूंघट - नवरंग, ([[1959]] | ||
*ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी - ([[1962]]) | *[[ऐ मेरे वतन के लोगों|ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी]] - ([[1962]]) | ||
==निधन== | ==निधन== | ||
अपने संगीतबद्ध गीतों से श्रोताओं के दिलों पर राज करने वाले | अपने संगीतबद्ध गीतों से श्रोताओं के दिलों पर राज करने वाले महान् संगीतकार सी. रामचन्द्र ने [[5 जनवरी]], [[1982]] को इस दुनिया से विदा ली। लेकिन उनके संगीतबद्ध गीत आज भी हर किसी की जुबान पर आते रहते हैं। | ||
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06:40, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
सी. रामचन्द्र
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पूरा नाम | रामचंद्र नरहर चितळकर |
अन्य नाम | अन्ना साहब |
जन्म | 12 जनवरी, 1918 |
जन्म भूमि | अहमदनगर, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 5 जनवरी, 1982 |
मृत्यु स्थान | मुंबई |
कर्म भूमि | महाराष्ट्र, भारत |
कर्म-क्षेत्र | संगीतकार, गायक, फ़िल्म निर्माता |
मुख्य फ़िल्में | शहनाई, समाधि, अलबेला, अनारकली, नास्तिक, आज़ाद, नवरंग, तीरंदाज, शतरंज, आशा, अमरदीप, शारदा आदि। |
शिक्षा | संगीत |
विद्यालय | 'गंधर्व महाविद्यालय', महाराष्ट्र |
प्रसिद्धि | संगीतकार व गायक |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | 1953 में आपने फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखा और 'न्यू सांई प्रोडक्शन' का निर्माण किया, जिसके बैनर तले उन्होंने 'झांझर', 'लहरें' और 'दुनिया गोल है' जैसी फ़िल्मों का निर्माण किया। |
चितळकर रामचन्द्र (अंग्रेज़ी: Ramchandra Chitalkar, जन्म- 12 जनवरी, 1918, अहमदनगर, महाराष्ट्र; मृत्यु- 5 जनवरी, 1982, मुंबई) न केवल संगीत निर्देशन की प्रतिभा से परिपूर्ण थे, अपितु उन्होंने अपनी गायकी, फ़िल्म निर्माण, निर्देशन और अभिनय से भी सिने प्रेमियों को अपना दीवाना बनाए रखा। फ़िल्म जगत में 'अन्ना साहब' के नाम से मशहूर सी. रामचन्द्र से फ़िल्मों से जुड़ी कोई भी विधा अछूती नहीं रही थी। वह ऐसे हंसमुख इंसान थे, जिनकी उपस्थिति मात्र से ही माहौल खुशनुमा हो जाता था। हँसते-हँसाते रहने की प्रवृत्ति को उन्होंने अपने संगीत निर्देशन और गायकी में भी खूब बारीकी से उकेरा था। सी. रामचन्द्र का यह अंदाज़आज भी उनके चहेतों की यादों में बसा हुआ है।
जन्म तथा शिक्षा
सी. रामचन्द्र का जन्म 12 जनवरी, सन 1918 में महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले के एक छोटे-से गांव 'पुंतबा' में हुआ था। बाल्यकाल से ही उनका रुझान संगीत की ओर था। हिन्दी फ़िल्म संगीत को सुरों से नहलाने वाले संगीतकार सी. रामचन्द्र के नाम से उनके तमिल भाषी होने का अनुमान लगाया जाता है, किंतु वे तमिल भाषी नहीं थे। वे पुणे के पास एक गाँव के मराठी देशरथ ब्राह्मण थे। हालांकि यह बात उल्लेखनीय है कि उन्हें सबसे पहले एक तमिल फ़िल्म में ही संगीत देने का मौंका मिला था। संक्रान्ति से दो दिन पहले जन्म लेने वाले सी. रामचन्द्र को असल में कृष्ण की तरह दो माताएँ मिली थीं। जन्म देने वाली माँ के हिस्से का प्यार उन्होंने सौतेली माँ से पाया था। उनके पिता रेलवे में सरकारी कर्मचारी थे। दिन-रात रेल के इंजनों की कर्कश आवाज़ सुनकर भी रामचन्द्र संगीतकार बने। घर में भी संगीत के नाम पर केवल संस्कृत के श्लोक ही गूंजते थे।
सी. रामचन्द्र का पढ़ाई में मन नहीं लगता था। उन्होंने पहली बार एक नाटक में काम किया और उसके लिए गाया भी। इस पर उन्हें वाहवाही मिली थी। इसी दौरान उन्हें सिनेमा देखने और उसमें काम करने का शौक़ लगा। लेकिन नागपुर में फ़िल्मों का निर्माण होता ही नहीं था। इसीलिए वे पुणे आ गये। यहाँ उन्होंने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा 'गंधर्व महाविद्यालय', महाराष्ट्र के विनायकबुआ पटवर्धन से प्राप्त की। बाद में नागपुर के 'श्रीराम संगीत विद्यालय' में शंकरराव से भी संगीत की शिक्षा ग्रहण की।
फ़िल्मी शुरुआत
सी.रामचन्द्र ने अपने सिने कैरियर की शुरुआत बतौर अभिनेता यू. बी. राव की फ़िल्म 'नागानंद' से की। इस बीच सी. रामचन्द्र को 'मिनर्वा मूवीटोन' की निर्मित कुछ फ़िल्मों में भी अभिनय करने का मौका मिला। इसी समय उनकी मुलाकात महान् निर्माता-निर्देशक सोहराब मोदी से हुई। सोहराब मोदी ने सी. रामचन्द्र को सलाह दी कि यदि वह अभिनय के बजाए संगीत की ओर ध्यान दें तो फ़िल्म इंडस्ट्री में सफल कामयाब हो सकते हैं। इसके बाद सी. रामचन्द्र 'मिनर्वा मूविटोन' के संगीतकार बिन्दु ख़ान और हबीब ख़ान के ग्रुप में शामिल हो गए। अब वे ग्रुप में बतौर हारमोनियम वादक काम करने लगे थे। बतौर संगीतकार सी. रामचन्द्र को सबसे पहले एक तमिल फ़िल्म में काम करने का मौका मिला।[1]
सफलता
1942 में प्रदर्शित फ़िल्म 'सुखी जीवन' की सफलता के बाद सी. रामचन्द्र कुछ हद तक बतौर संगीतकार फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। चालीस के दशक में सी. रामचन्द्र ने एक संगीतकार के रूप में जिन फ़िल्मों को संगीतबद्ध किया था, उनमें 'सावन' (1945), 'शहनाई' (1947), 'पतंगा' (1949) और 'समाधि' एवं 'सरगम' (1950) जैसी फ़िल्में उल्लेखनीय हैं। सन 1951 में सी. रामचन्द्र को भगवान दादा की निर्मित फ़िल्म 'अलबेला' में संगीत देने का मौका मिला। 1951 में प्रदर्शित फ़िल्म 'अलबेला' में अपने संगीतबद्ध गीतों की कामयाबी के बाद सी. रामचन्द्र एक सफल संगीतकार के रूप में फ़िल्मी दुनिया में जम गए। वैसे तो फ़िल्म 'अलबेला' में उनके संगीतबद्ध सभी गाने सुपरहिट हुए, लेकिन ख़ासकर "शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के", "भोली सूरत दिल के खोटे नाम बड़े और दर्शन छोटे", "मेरे पिया गए रंगून, किया है वहाँ से टेलीफोन" आदि गीतों ने भारत में धूम मचा दी।
फ़िल्म निर्माण
सन 1953 में प्रदीप कुमार और बीना राय अभिनीत फ़िल्म 'अनारकली' की सफलता के बाद सी. रामचन्द्र शोहरत की बुंलदियों पर पहुँच गये। फ़िल्म 'अनारकली' में उनके संगीत से सजे ये गीत "जाग दर्द-ए-इश्क जाग..", "ये ज़िंदगी उसी की है.. ", श्रोताओं के बीच बहुत लोकप्रिय हुए। 1953 में सी. रामचन्द्र ने फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया और 'न्यू सांई प्रोडक्शन' का निर्माण किया, जिसके बैनर तले उन्होंने 'झांझर', 'लहरें' और 'दुनिया गोल है' जैसी फ़िल्मों का निर्माण किया। लेकिन ये उनका दुर्भाग्य ही था कि इनमें से कोई भी फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं सकी। इसके बाद सी. रामचन्द्र ने फ़िल्म निर्माण से तौबा कर ली और अपना ध्यान संगीत की ओर जी लगाना शुरू कर दिया। वर्ष 1954 में प्रदर्शित फ़िल्म 'नास्तिक' में उनके संगीतबद्ध गीत "देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान", समाज में बढ़ रही कुरीतियों के उपर उनका सीधा प्रहार था। इस गीत की प्रसिद्धि ने उन्हें फिर से लोकप्रिय बना दिया।[1]
राजेन्द्र कृष्ण से जोड़ी
सी. रामचन्द्र के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी गीतकार राजेन्द्र कृष्ण के साथ बहुत चर्चित रही। उनकी और राजेन्द्र कृष्ण की जोड़ी वाली फ़िल्मो में 'पतंगा' (1949), 'ख़ज़ाना' (1951), 'अलबेला' (1951), 'साकी' (1952), 'अनारकली' (1953), 'कवि' (1954), 'तीरंदाज' (1955), 'शतरंज' (1956), 'शारदा' (1957), 'आशा' (1957) और 'अमरदीप' (1958) जैसी फ़िल्में शामिल हैं। पचास के दशक में स्वरों के लिए विख्यात लता मंगेशकर ने संगीतकार सी. रामचन्द्र की धुनों पर कई गीत गाए, जिनमें फ़िल्म 'अनारकली' के गीत "ये ज़िंदगी उसी की है...", "जाग दर्दे-ए-इश्क जाग.." जैसे गीत इन दोनों फनकारों की जोड़ी की बेहतरीन मिसाल हैं।
पुन: लोकप्रियता की प्राप्ति
साठ का दशक सी. रामचन्द्र के लिए बुरा वक़्त था। इस दशक में पाश्चात्य गीत-संगीत की चमक से निर्माता-निर्देशक स्वयं को नहीं बचा सके और धीरे-धीरे निर्देशकों ने सी. रामचन्द्र की ओर से अपना मुख मोड़ लिया। लेकिन 1958 में प्रदर्शित फ़िल्म 'तलाक' और 1959 में प्रदर्शित फ़िल्म 'पैग़ाम' में उनके संगीतबद्ध गीत "इंसान का इंसान से हो भाईचारा.." की कामयाबी के बाद सी. रामचन्द्र एक बार फिर से अपनी खोयी हुई लोकप्रियता पाने में सफल हो गए।
भारत के वीर जवानों को श्रद्धाजंलि देने के लिए कवि प्रदीप ने 1962 में "ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँख में भर लो पानी.." गीत की रचना की। इस गीत का संगीत तैयार करने की जिम्मेंदारी उन्होंने सी. रामचन्द्र को सौंप दी। सी. रामचन्द्र के संगीत निर्देशन में एक कार्यक्रम के दौरान स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर से देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण इस गीत को सुनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आँखों में आँसू छलक आए थे। "ऐ मेरे वतन के लोगों.." गीत को संगीत देकर सी. रामचन्द्र ने जैसे इस गीत को अमर बना दिया। आज भी भारत के महान् देशभक्ति गीत के रूप में याद किया जाता है।[1]
पार्श्वगायन
साठ के दशक में सी. रामचन्द्र ने 'धनंजय' और 'घरकुल' जैसी मराठी फ़िल्मों का निर्माण किया। उन्होंने इन फ़िल्मों में अभिनय और संगीत निर्देशन भी किया। संगीत निर्देशन के अतिरिक्त सी. रामचन्द्र ने अपने पार्श्वगायन से भी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। इन गीतों में "मेरी जान मेरी जान संडे के संडे.." (शहनाई, 1947), "कदम कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा.." (समाधि, 1950), "भोली सूरत दिल के खोटे नाम बड़े और दर्शन छोटे..", "शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के.." (अलबेला, 1951), "कितना हसीं है मौसम कितना हसीं सफर है..." (आजाद, 1955), "आ जा रे नटखट ना छू रे मेरा घूंघट.." (नवरंग, 1959) जैसे न भूलने वाले गीत भी शामिल है। सी. रामचन्द्र ने अपने चार दशक के लंबे सिने करियर में लगभग 150 फ़िल्मों को संगीतबद्ध किया। हिन्दी फ़िल्मों के अतिरिक्त उन्होंने तमिल, मराठी, तेलुगू और भोजपुरी फ़िल्मों को भी संगीतबद्ध किया।
प्रसिद्ध संगीतबद्ध गीत
सी. रामचन्द्र के कुछ संगीतबद्ध गीत निम्नलिखित हैं-
- मेरी जान मेरी जान संडे के संडे - शहनाई (1947)
- कदम कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा - समाधि (1950)
- शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के - अलबेला (1951)
- भोली सूरत दिल के खोटे नाम बड़े और दर्शन छोटे - अलबेला
- मेरे पिया गए रंगून, किया है वहाँ से टेलीफोन - अलबेला
- बलमा बड़ा नादान - अलबेला
- ये ज़िंदगी उसी की है, जो किसी का हो गया - अनारकली (1953)
- जाग दर्द इश्क जाग - अनारकली (1953)
- देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान - नास्तिक (1954)
- कितना हसीं है मौसम कितना हसीं सफर है - आजाद (1955)
- देखो जी बहार आई - आजाद (1955)
- आ जा रे नटखट ना छू रे मेरा घूंघट - नवरंग, (1959
- ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी - (1962)
निधन
अपने संगीतबद्ध गीतों से श्रोताओं के दिलों पर राज करने वाले महान् संगीतकार सी. रामचन्द्र ने 5 जनवरी, 1982 को इस दुनिया से विदा ली। लेकिन उनके संगीतबद्ध गीत आज भी हर किसी की जुबान पर आते रहते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 सी. रामचंद्र (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 30 सितम्बर, 2012।
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