"मरियप्पन थंगावेलु": अवतरणों में अंतर
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'''मरियप्पन थंगावेलु''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Mariyappan Thangavelu'', जन्म- [[28 जून]], [[1995]], [[सलेम ज़िला]], [[तमिलनाडु]]) [[भारत]] के ऊँची कूद के खिलाड़ी हैं। [[ब्राजील]] के रियो डी जनेरियो में पैरालंपिक खेलों में पुरुषों के ऊँची कूद मुकाबले में मरियप्पन थंगावेलु ने स्वर्ण और वरुण भाटी ने कांस्य पदक | '''मरियप्पन थंगावेलु''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Mariyappan Thangavelu'', जन्म- [[28 जून]], [[1995]], [[सलेम ज़िला]], [[तमिलनाडु]]) [[भारत]] के ऊँची कूद के खिलाड़ी हैं। [[ब्राजील]] के रियो डी जनेरियो में पैरालंपिक खेलों में पुरुषों के ऊँची कूद मुकाबले में मरियप्पन थंगावेलु ने स्वर्ण और [[वरुण भाटी]] ने कांस्य पदक जीतकर देश का मान बढ़ाया है। मरियप्पन थंगावेलु ने 1.89 मी. की जंप लगाते हुए [[सोना]] जीता, जबकि भाटी ने 1.86 मी. की जंप लगाते हुए कांस्य पदक अपने नाम किया है। मरियप्पन थंगावेलु, मुरलीकांत पेटकर (तैराकी, [[1972]] हेजवर्ग) और [[देवेन्द्र झाझरिया|देवेंद्र झाझरिया]] (भाला फेंक, एथेंस, [[2004]]) के बाद स्वर्ण जीतने वाले तीसरे भारतीय हैं। थंगावेलु और भाटी की इस सफलता के बाद अभी तक के सभी पैरालंपिक खेलों में भारत के कुल पदकों की संख्या 10 हो गई है, जिसमें 3 स्वर्ण, तीन रजत और चार कांस्य शामिल हैं। | ||
==परिचय== | ==परिचय== | ||
मरियप्पन थंगावेलु का जन्म 28 जून, 1995 को [[तमिलनाडु]] के सलेम ज़िले में हुआ था। महज पांच साल की उम्र में मरियप्पन थंगावेलु को अपनी एक टांग गंवानी पड़ी थी। वह अपने घर के बाहर खेल रहे थे, जब एक बस ने उन्हें टक्कर मार दी। इस हादसे में उनकी दायीं टांग घुटने से नीचे पूरी तरह कुचली गई। उनका पैर पूरी तरह बेकार हो चुका था। एक साक्षात्कार में मरियप्पन ने बताया कि बस का चालक नशे में था, लेकिन इस बात से आखिर क्या फर्क पड़ता है? मेरा पैर पूरी तरह बेकार हो चुका था। मेरी टांग फिर कभी ठीक नहीं हुई। उनका [[परिवार]] आज भी सरकारी ट्रांसपोर्ट कंपनी के खिलाफ कोर्ट में केस लड़ रहा है। लेकिन यह हादसा भी मरियप्पन को रोक नहीं पाया। वह अब 21 साल के हो चुके हैं। [[9 सितम्बर]], [[2016]] को उन्होंने पुरुषों की टी42 ऊँची कूद में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। ब्राजील की राजधानी रियो डी जनेरो में हो रहे पैरालिंपिक खेलों में मरियप्पन ने सोने की छलांग लगाई।<ref>{{cite web |url=http://m.navbharattimes.indiatimes.com/sports/other-sports/thangavelu-and-bhati-fought-disability-to-get-medal-in-rio-paralympics/articleshow/54264578.cms |title=थंगावलु ने हासिल किया पैरालिंपिक में पदक |accessmonthday=11 सितम्बर |accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=नवभारत टाइम्स |language=हिंदी }}</ref> | मरियप्पन थंगावेलु का जन्म 28 जून, 1995 को [[तमिलनाडु]] के सलेम ज़िले में हुआ था। महज पांच साल की उम्र में मरियप्पन थंगावेलु को अपनी एक टांग गंवानी पड़ी थी। वह अपने घर के बाहर खेल रहे थे, जब एक बस ने उन्हें टक्कर मार दी। इस हादसे में उनकी दायीं टांग घुटने से नीचे पूरी तरह कुचली गई। उनका पैर पूरी तरह बेकार हो चुका था। एक साक्षात्कार में मरियप्पन ने बताया कि बस का चालक नशे में था, लेकिन इस बात से आखिर क्या फर्क पड़ता है? मेरा पैर पूरी तरह बेकार हो चुका था। मेरी टांग फिर कभी ठीक नहीं हुई। उनका [[परिवार]] आज भी सरकारी ट्रांसपोर्ट कंपनी के खिलाफ कोर्ट में केस लड़ रहा है। लेकिन यह हादसा भी मरियप्पन को रोक नहीं पाया। वह अब 21 साल के हो चुके हैं। [[9 सितम्बर]], [[2016]] को उन्होंने पुरुषों की टी42 ऊँची कूद में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। ब्राजील की राजधानी रियो डी जनेरो में हो रहे पैरालिंपिक खेलों में मरियप्पन ने सोने की छलांग लगाई।<ref>{{cite web |url=http://m.navbharattimes.indiatimes.com/sports/other-sports/thangavelu-and-bhati-fought-disability-to-get-medal-in-rio-paralympics/articleshow/54264578.cms |title=थंगावलु ने हासिल किया पैरालिंपिक में पदक |accessmonthday=11 सितम्बर |accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=नवभारत टाइम्स |language=हिंदी }}</ref> | ||
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मरियप्पन थंगावेलु [[तमिलनाडु]] के सलेम ज़िले के पेरियावादागामपट्टी गांव के रहने वाले हैं। सूबे की राजधानी [[चैन्नई]] से इस [[गाँव]] की दूरी 340 किलोमीटर है। उनकी मां, सरोजा साइकिल पर सब्जियाँ बेचने और मजदूरी का काम करती हैं। मरियप्पन के [[पिता]] करीब एक दशक पहले [[परिवार]] को छोड़कर चले गए थे, लेकिन | मरियप्पन थंगावेलु [[तमिलनाडु]] के सलेम ज़िले के पेरियावादागामपट्टी गांव के रहने वाले हैं। सूबे की राजधानी [[चैन्नई]] से इस [[गाँव]] की दूरी 340 किलोमीटर है। उनकी मां, सरोजा साइकिल पर सब्जियाँ बेचने और मजदूरी का काम करती हैं। मरियप्पन के [[पिता]] करीब एक दशक पहले [[परिवार]] को छोड़कर चले गए थे, लेकिन माँ ने मरियप्पन का साथ नहीं छोड़ा। स्कूल और कॉलेज स्तर पर उन्होंने कई मेडल जीते। | ||
वर्ष [[2015]] में ही उन्होंने बिजनस एडमिस्ट्रेशन की अपनी डिग्री पूरी की है और अब वह रेग्युलर जॉब की तलाश में थे। नौकरी तो हालांकि उन्हें अभी नहीं मिली, लेकिन नाम और पहचान | वर्ष [[2015]] में ही उन्होंने बिजनस एडमिस्ट्रेशन की अपनी डिग्री पूरी की है और अब वह रेग्युलर जॉब की तलाश में थे। नौकरी तो हालांकि उन्हें अभी नहीं मिली, लेकिन नाम और पहचान ज़रूर मिल गई है। मरियप्पन के कोच सत्यनारायण [[बैंगलौर]] के रहने वाले हैं। उन्होंने ही मरियप्पन को प्रशिक्षण दिया और कुछ बड़ा करने का सपना भी दिखाया। | ||
==पुरस्कार== | ==पुरस्कार== | ||
[[मार्च]] | [[मार्च 2016]] में मरियप्पन थंगावेलु ने 1.78 मीटर की छलांग लगाकर रियो के लिए क्वॉलिफाइ किया था, जबकि क्वॉलिफिकेश मार्क 1.60 मीटर था। उनके प्रदर्शन से इस बात का अंदाजा लग गया था कि ओलिंपिक का पदक उनकी पहुंच से दूर नहीं है। मरियप्पन को [[भारत सरकार]] की ओर से पैरालिंपिक में स्वर्ण पदक जीतने पर 75 लाख रुपये की इनामी राशि तो मिली ही है, साथ ही [[तमिलनाडु]] सरकार ने भी उन्हें दो करोड़ [[रुपया|रुपये]] का पुरस्कार देने का ऐलान किया है। | ||
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मरियप्पन थंगावेलु
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पूरा नाम | मरियप्पन थंगावेलु |
जन्म | 28 जून, 1995 |
जन्म भूमि | पेरियावादागामपट्टी गांव, सलेम ज़िला, तमिलनाडु |
अभिभावक | माता- सरोजा |
कर्म भूमि | भारत |
खेल-क्षेत्र | ऊँची कूद |
शिक्षा | बिजनस एडमिस्ट्रेशन की डिग्री |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | मरियप्पन थंगावेलु के कोच सत्यनारायण बैंगलौर के रहने वाले हैं। उन्होंने ही मरियप्पन को प्रशिक्षण दिया और कुछ बड़ा करने का सपना भी दिखाया। |
अद्यतन | 16:40, 11 सितम्बर 2016 (IST)
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मरियप्पन थंगावेलु (अंग्रेज़ी: Mariyappan Thangavelu, जन्म- 28 जून, 1995, सलेम ज़िला, तमिलनाडु) भारत के ऊँची कूद के खिलाड़ी हैं। ब्राजील के रियो डी जनेरियो में पैरालंपिक खेलों में पुरुषों के ऊँची कूद मुकाबले में मरियप्पन थंगावेलु ने स्वर्ण और वरुण भाटी ने कांस्य पदक जीतकर देश का मान बढ़ाया है। मरियप्पन थंगावेलु ने 1.89 मी. की जंप लगाते हुए सोना जीता, जबकि भाटी ने 1.86 मी. की जंप लगाते हुए कांस्य पदक अपने नाम किया है। मरियप्पन थंगावेलु, मुरलीकांत पेटकर (तैराकी, 1972 हेजवर्ग) और देवेंद्र झाझरिया (भाला फेंक, एथेंस, 2004) के बाद स्वर्ण जीतने वाले तीसरे भारतीय हैं। थंगावेलु और भाटी की इस सफलता के बाद अभी तक के सभी पैरालंपिक खेलों में भारत के कुल पदकों की संख्या 10 हो गई है, जिसमें 3 स्वर्ण, तीन रजत और चार कांस्य शामिल हैं।
परिचय
मरियप्पन थंगावेलु का जन्म 28 जून, 1995 को तमिलनाडु के सलेम ज़िले में हुआ था। महज पांच साल की उम्र में मरियप्पन थंगावेलु को अपनी एक टांग गंवानी पड़ी थी। वह अपने घर के बाहर खेल रहे थे, जब एक बस ने उन्हें टक्कर मार दी। इस हादसे में उनकी दायीं टांग घुटने से नीचे पूरी तरह कुचली गई। उनका पैर पूरी तरह बेकार हो चुका था। एक साक्षात्कार में मरियप्पन ने बताया कि बस का चालक नशे में था, लेकिन इस बात से आखिर क्या फर्क पड़ता है? मेरा पैर पूरी तरह बेकार हो चुका था। मेरी टांग फिर कभी ठीक नहीं हुई। उनका परिवार आज भी सरकारी ट्रांसपोर्ट कंपनी के खिलाफ कोर्ट में केस लड़ रहा है। लेकिन यह हादसा भी मरियप्पन को रोक नहीं पाया। वह अब 21 साल के हो चुके हैं। 9 सितम्बर, 2016 को उन्होंने पुरुषों की टी42 ऊँची कूद में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। ब्राजील की राजधानी रियो डी जनेरो में हो रहे पैरालिंपिक खेलों में मरियप्पन ने सोने की छलांग लगाई।[1]
मरियप्पन थंगावेलु तमिलनाडु के सलेम ज़िले के पेरियावादागामपट्टी गांव के रहने वाले हैं। सूबे की राजधानी चैन्नई से इस गाँव की दूरी 340 किलोमीटर है। उनकी मां, सरोजा साइकिल पर सब्जियाँ बेचने और मजदूरी का काम करती हैं। मरियप्पन के पिता करीब एक दशक पहले परिवार को छोड़कर चले गए थे, लेकिन माँ ने मरियप्पन का साथ नहीं छोड़ा। स्कूल और कॉलेज स्तर पर उन्होंने कई मेडल जीते।
वर्ष 2015 में ही उन्होंने बिजनस एडमिस्ट्रेशन की अपनी डिग्री पूरी की है और अब वह रेग्युलर जॉब की तलाश में थे। नौकरी तो हालांकि उन्हें अभी नहीं मिली, लेकिन नाम और पहचान ज़रूर मिल गई है। मरियप्पन के कोच सत्यनारायण बैंगलौर के रहने वाले हैं। उन्होंने ही मरियप्पन को प्रशिक्षण दिया और कुछ बड़ा करने का सपना भी दिखाया।
पुरस्कार
मार्च 2016 में मरियप्पन थंगावेलु ने 1.78 मीटर की छलांग लगाकर रियो के लिए क्वॉलिफाइ किया था, जबकि क्वॉलिफिकेश मार्क 1.60 मीटर था। उनके प्रदर्शन से इस बात का अंदाजा लग गया था कि ओलिंपिक का पदक उनकी पहुंच से दूर नहीं है। मरियप्पन को भारत सरकार की ओर से पैरालिंपिक में स्वर्ण पदक जीतने पर 75 लाख रुपये की इनामी राशि तो मिली ही है, साथ ही तमिलनाडु सरकार ने भी उन्हें दो करोड़ रुपये का पुरस्कार देने का ऐलान किया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ थंगावलु ने हासिल किया पैरालिंपिक में पदक (हिंदी) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 11 सितम्बर, 2016।
बाहरी कड़ियाँ
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