"ज़माना -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>'ज़माना' -आदित्य चौधरी</font></div><br /> | [[चित्र:Facebook-icon-2.png|20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत)]] [http://www.facebook.com/bharatdiscovery भारतकोश] <br /> | ||
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<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>'ज़माना'<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | |||
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--"एक्सचेन्ज में मेरा कोई इन्टरॅस्ट नहीं है और 'डीलक्स पति' थोड़े महंगे लग रहे हैं 'इकॉनमी' में क्या वॅराइटी है ?" | --"एक्सचेन्ज में मेरा कोई इन्टरॅस्ट नहीं है और 'डीलक्स पति' थोड़े महंगे लग रहे हैं 'इकॉनमी' में क्या वॅराइटी है ?" | ||
--इकॉनमी में तो देवदास, लाल बादशाह, साजन, बालम, सैंया, मेरे महबूब ..." | --इकॉनमी में तो देवदास, लाल बादशाह, साजन, बालम, सैंया, मेरे महबूब ..." | ||
--"नहीं-नहीं ये तो नाम से ही बोर लग रहे हैं... मुझे तो डीलक्स पति ही दे दीजिए" | --"नहीं-नहीं ये तो नाम से ही बोर लग रहे हैं... मुझे तो डीलक्स पति ही दे दीजिए" | ||
दहेज़ की कुप्रथा ख़त्म नहीं हुई तो यही हाल होना है दूल्हे राजाओं का... ख़ैर ये 'मॅम' तो बजट आने से पहले ही अपना 'डीलक्स पति' ले कर चली गईं। | दहेज़ की कुप्रथा ख़त्म नहीं हुई तो यही हाल होना है दूल्हे राजाओं का... ख़ैर ये 'मॅम' तो बजट आने से पहले ही अपना 'डीलक्स पति' ले कर चली गईं। | ||
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"ज़माना बहुत ख़राब आ गया है" | "ज़माना बहुत ख़राब आ गया है" | ||
"आजकल के लड़के-लड़कियों में शर्म-लिहाज़ नहीं है" | "आजकल के लड़के-लड़कियों में शर्म-लिहाज़ नहीं है" | ||
ऊपर लिखे संवाद हमारी फ़िल्मों में ही सदाबहार रहे हों ऐसा नहीं है। हमारे समाज में चारों ओर यही बातें रोज़ाना चलती रहती हैं। ये तीन महावाक्य वे हैं जो हमारे समाज में किसी को भी ज़िम्मेदार या परिपक्व होने का प्रमाणपत्र देते हैं। जब तक लड़के- लड़की बड़े हो कर इन तीनों मंत्रों को | ऊपर लिखे संवाद हमारी फ़िल्मों में ही सदाबहार रहे हों ऐसा नहीं है। हमारे समाज में चारों ओर यही बातें रोज़ाना चलती रहती हैं। ये तीन महावाक्य वे हैं जो हमारे समाज में किसी को भी ज़िम्मेदार या परिपक्व होने का प्रमाणपत्र देते हैं। जब तक लड़के- लड़की बड़े हो कर इन तीनों मंत्रों को अक्सर दोहराना शुरू नहीं करते तब तक उन्हें 'बच्चा' और 'ग़ैरज़िम्मेदार' माना जाता है। | ||
दो हज़ार पाँच सौ साल पहले प्लॅटो ने एथेंस की अव्यवस्था और प्रजातंत्र पर कटाक्ष किया है- "सभी ओर प्रजातंत्र का ज़ोर है, बेटा पिता का कहना नहीं मानता; पत्नी पति का कहना नहीं मानती सड़कों पर गधों के झुंड घूमते रहते हैं जैसे कि ऊपर ही चढ़े चले आयेंगे। ज़माना कितना ख़राब आ गया है।" कमाल है ढाई हज़ार साल पहले भी यही समस्या ? | दो हज़ार पाँच सौ साल पहले प्लॅटो ने एथेंस की अव्यवस्था और प्रजातंत्र पर कटाक्ष किया है- "सभी ओर प्रजातंत्र का ज़ोर है, बेटा पिता का कहना नहीं मानता; पत्नी पति का कहना नहीं मानती सड़कों पर गधों के झुंड घूमते रहते हैं जैसे कि ऊपर ही चढ़े चले आयेंगे। ज़माना कितना ख़राब आ गया है।" कमाल है ढाई हज़ार साल पहले भी यही समस्या ? | ||
'देविकारानी' भारतीय हिन्दी सिनेमा में अपने ज़माने की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री ही नहीं थी बल्कि बेहद प्रभावशाली भी थीं। अनेक बड़े बड़े अभिनेताओं को हिंदी सिनेमा में लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है जिनमें से एक नाम हमारे दादा मुनि यानि अशोक कुमार भी हैं। 'अछूत कन्या' हिंदी सिनेमा की शरूआती फ़िल्मों में एक उत्कृष्ट कृति मानी गयी है। इस फ़िल्म में अशोक कुमार और देविका रानी नायक नायिका थे। देविका रानी ने 1933 में बनी फ़िल्म 'कर्म' में पूरे 4 मिनट लम्बा चुंबन दृश्य दिया। इससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह थी कि दृश्य में उनके साथ उनके पति हिमांशु राय थे। इसकी आलोचना होना स्वाभाविक ही था, किंतु भारत सरकार ने उन्हें पद्म सम्मान, पद्मश्री और सिने | 'देविकारानी' भारतीय [[हिन्दी सिनेमा]] में अपने ज़माने की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री ही नहीं थी बल्कि बेहद प्रभावशाली भी थीं। अनेक बड़े बड़े अभिनेताओं को हिंदी सिनेमा में लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है जिनमें से एक नाम हमारे दादा मुनि यानि अशोक कुमार भी हैं। 'अछूत कन्या' हिंदी सिनेमा की शरूआती फ़िल्मों में एक उत्कृष्ट कृति मानी गयी है। इस फ़िल्म में अशोक कुमार और देविका रानी नायक नायिका थे। देविका रानी ने 1933 में बनी फ़िल्म 'कर्म' में पूरे 4 मिनट लम्बा चुंबन दृश्य दिया। इससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह थी कि दृश्य में उनके साथ उनके पति हिमांशु राय थे। इसकी आलोचना होना स्वाभाविक ही था, किंतु भारत सरकार ने उन्हें पद्म सम्मान, पद्मश्री और सिने जगत् के सर्वोच्च सम्मान 'दादा साहेब फाल्के सम्मान' से राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया। | ||
1907 में कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में मंच पर जूते फेंके गये जिसमें फ़िरोज़शाह मेहता और सुरेंद्रनाथ बैनर्जी जैसे वरिष्ठ नेता घायल हुए और यह घटना बाल गंगाधर लोकमान्य तिलक, मोतीलाल नेहरू और सम्भवत: लाला लाजपत राय की उपस्थिति में हुई। | 1907 में कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में मंच पर जूते फेंके गये जिसमें फ़िरोज़शाह मेहता और सुरेंद्रनाथ बैनर्जी जैसे वरिष्ठ नेता घायल हुए और यह घटना बाल गंगाधर लोकमान्य तिलक, मोतीलाल नेहरू और सम्भवत: लाला लाजपत राय की उपस्थिति में हुई। | ||
महाभारत काल में युधिष्ठिर अपने भाईयों समेत अपनी पत्नी द्रौपदी को भी जुए में हार गया और द्रौपदी को भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने ही द्रौपदी को निवस्त्र करने का घटनाक्रम चला। | महाभारत काल में युधिष्ठिर अपने भाईयों समेत अपनी पत्नी द्रौपदी को भी जुए में हार गया और द्रौपदी को भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने ही द्रौपदी को निवस्त्र करने का घटनाक्रम चला। | ||
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ज़रा सोचिए कि जिस पल हम कहते हैं कि अब तो ज़माना ख़राब आ गया तो सहसा हम इस ज़माने के कटे होने की बात ही कह रहे होते हैं और ख़ुद को इस मौजूदा वक़्त से तालमेल न बैठा पाने वाला व्यक्ति घोषित कर रहे होते हैं। यह पूरी तरह नकारात्मक सोच है। निश्चित रूप से यह सोच नई पीढ़ी को हतोत्साहित करने वाली सोच है। हमको नई पीढ़ी को यह कहकर डराना नहीं चाहिए कि जिस 'समय' में वे जी रहे हैं वह पिछले गुज़रे हुए समय से बेकार है बल्कि उनको तो यह बताया जाना चाहिए कि यह समय अब तक के सभी समयों में सबसे अच्छा समय है क्योंकि ये वास्तव में ही सर्वश्रेष्ठ समय है। | ज़रा सोचिए कि जिस पल हम कहते हैं कि अब तो ज़माना ख़राब आ गया तो सहसा हम इस ज़माने के कटे होने की बात ही कह रहे होते हैं और ख़ुद को इस मौजूदा वक़्त से तालमेल न बैठा पाने वाला व्यक्ति घोषित कर रहे होते हैं। यह पूरी तरह नकारात्मक सोच है। निश्चित रूप से यह सोच नई पीढ़ी को हतोत्साहित करने वाली सोच है। हमको नई पीढ़ी को यह कहकर डराना नहीं चाहिए कि जिस 'समय' में वे जी रहे हैं वह पिछले गुज़रे हुए समय से बेकार है बल्कि उनको तो यह बताया जाना चाहिए कि यह समय अब तक के सभी समयों में सबसे अच्छा समय है क्योंकि ये वास्तव में ही सर्वश्रेष्ठ समय है। | ||
असल में हमारा समाज आदिकाल से ही निरंतर विकासक्रम में है और यह निश्चित ही पूर्ण रूप से सकारात्मक सोच का नतीजा है न कि विध्वंसक सोच का। विकसित समाज में अनेक 'संस्थाओं' ने निरंतर विकास किया है जैसे कि 'विवाह संस्था'। विवाह संस्था आज जितने परिपक्व रूप में है उतनी पहले कभी नहीं थी। गुज़रे समय में अनेक बंधनों के चलते स्त्री ने विवाह को अपने लिए हर हाल में एक घाटे का सौदा ही माना, यहाँ तक कि पति के लिए चिता में सती भी होना पड़ा, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। पढ़े-लिखे और काम-काजी पति-पत्नी गृहस्थ जीवन में लगभग प्रत्येक कोण पर पति-पत्नी समान अधिकारों का आनंद उठाने लगे हैं। | असल में हमारा समाज आदिकाल से ही निरंतर विकासक्रम में है और यह निश्चित ही पूर्ण रूप से सकारात्मक सोच का नतीजा है न कि विध्वंसक सोच का। विकसित समाज में अनेक 'संस्थाओं' ने निरंतर विकास किया है जैसे कि 'विवाह संस्था'। विवाह संस्था आज जितने परिपक्व रूप में है उतनी पहले कभी नहीं थी। गुज़रे समय में अनेक बंधनों के चलते स्त्री ने विवाह को अपने लिए हर हाल में एक घाटे का सौदा ही माना, यहाँ तक कि पति के लिए चिता में सती भी होना पड़ा, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। पढ़े-लिखे और काम-काजी पति-पत्नी गृहस्थ जीवन में लगभग प्रत्येक कोण पर पति-पत्नी समान अधिकारों का आनंद उठाने लगे हैं। | ||
हम | हम अक्सर अच्छे-बुरे ज़माने को प्रमाण-पत्र देने वाले मठाधीश बनकर अनेक हास्यास्पद उपक्रम और पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यवहार करने लगते हैं। जिससे नई पीढ़ी हमें 'आउट डेटेड' घोषित कर देती है और हम एक ऐसी दवाई बन जाते हैं जिसकी 'एक्सपाइरी डेट' भी निकल चुकी हो। | ||
ये तीन हानिकारक वाक्य- "महंगाई बहुत बढ़ गई है", "ज़माना बहुत ख़राब आ गया है", "आजकल के लड़के-लड़कियों में शर्म-लिहाज़ नहीं है" असल में पूरी तरह से नकारात्मक दृष्टिकोण वाले हैं और 'विकासवादी' सोच के विपरीत हैं। मैंने 'प्रगतिवादी' के स्थान पर 'विकासवादी' शब्द का प्रयोग किया है, जिसका कारण मेरा 'प्रगति' की अपेक्षा 'विकास' में अधिक विश्वास करना है। 'प्रगति' किसी भी दिशा में हो सकती है लेकिन क्रमिक-विकास सामाजिक-व्यवस्था के सुव्यवस्थित सम्पोषण के लिए ही होता है। प्रगति एक इकाई है तो विकास एक संस्था और वैसे भी विकास, प्रगति की तरह अचानक नहीं होता और क्रमिक-विकास निश्चित रूप से 'प्रगति' से अधिक प्रभावकारी और सुव्यवस्थित प्रजातांत्रिक व्यवस्था का सबसे सहज अंग है। | ये तीन हानिकारक वाक्य- "महंगाई बहुत बढ़ गई है", "ज़माना बहुत ख़राब आ गया है", "आजकल के लड़के-लड़कियों में शर्म-लिहाज़ नहीं है" असल में पूरी तरह से नकारात्मक दृष्टिकोण वाले हैं और 'विकासवादी' सोच के विपरीत हैं। मैंने 'प्रगतिवादी' के स्थान पर 'विकासवादी' शब्द का प्रयोग किया है, जिसका कारण मेरा 'प्रगति' की अपेक्षा 'विकास' में अधिक विश्वास करना है। 'प्रगति' किसी भी दिशा में हो सकती है लेकिन क्रमिक-विकास सामाजिक-व्यवस्था के सुव्यवस्थित सम्पोषण के लिए ही होता है। प्रगति एक इकाई है तो विकास एक संस्था और वैसे भी विकास, प्रगति की तरह अचानक नहीं होता और क्रमिक-विकास निश्चित रूप से 'प्रगति' से अधिक प्रभावकारी और सुव्यवस्थित प्रजातांत्रिक व्यवस्था का सबसे सहज अंग है। | ||
इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | |||
-आदित्य चौधरी | -आदित्य चौधरी | ||
<small>संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक</small> | |||
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</ | {{भारतकोश सम्पादकीय}} | ||
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13:54, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
'ज़माना' -आदित्य चौधरी --"आप मोबाइल पर ही बात करते रहेंगे या मेरी भी बात सुनेंगे ?" |
टीका टिप्पणी और संदर्भ