"भीमसेन जोशी": अवतरणों में अंतर

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भारतीय संगीत के क्षेत्र में इससे पहले एम एस सुब्बालक्ष्मी, उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ान, पंडित रविशंकर और लता मंगेशकर को 'भारत रत्न' से सम्मानित किया जा चुका है।  भीमसेन जोशी किराना घराने के महत्वपूर्ण गायक हैं। उन्होंने 19 साल की उम्र से गायन शुरू किया था और वह पिछले सात दशकों से शास्त्रीय गायन कर रहे हैं।
{{सूचना बक्सा कलाकार
 
|चित्र=Bhimsen-Joshi-2.jpg
भीमसेन जोशी ने कर्नाटक को गौरवान्वित किया है । उनकी योग्यता का आधार उनकी महान संगीत साधना है। देश विदेश में लोकप्रिय हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के महान गायकों में उनकी गिनती होती है । अपने एकल गायन से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में नए युग का सूत्रपात करने वाले पंडित भीमसेन जोशी कला और संस्कृति की दुनिया के छठे व्यक्ति हैं जिन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान [[भारत रत्‍न]] से सम्मानित किया गया है। किराना घराने के भीमसेन गुरुराज जोशी ने गायकी के अपने विभिन्‍न तरीकों से एक अद्भुत गायन की रचना की है।
|पूरा नाम=पंडित भीमसेन गुरुराज जोशी
 
|अन्य नाम=
देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान मिलने के बारे में जब उनके पुत्र श्रीनिवास जोशी ने उन्हें बताया तो भीमसेन जोशी ने पुणे में कहा–
|जन्म=[[4 फ़रवरी]], [[1922]]
<blockquote>"मैं उन सभी हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायकों की तरफ से इस सम्मान को स्वीकार करता हूं जिन्होंने अपनी जिंदगी संगीत को समर्पित कर दी।"</blockquote>
|जन्म भूमि= गडग, [[कर्नाटक]]
==जन्म==  
|अभिभावक=गुरुराज जोशी
{{tocright}}
|पति/पत्नी=
कर्नाटक के गड़ग में 14 फरवरी 1922 को उनका जन्म हुआ उनके पिता 'गुरुराज जोशी' स्थानीय हाई स्कूल के हेडमास्टर और [[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]] , [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] और [[संस्कृत]] के विद्वान थे । उनके चाचा जी.बी जोशी चर्चित नाटककार थे तथा उन्होंने धारवाड़ की मनोहर ग्रन्थमाला को प्रोत्साहित किया था । उनके दादा प्रसिद्ध कीर्तनकार थे
|संतान=श्रीनिवास जोशी (पुत्र)
पाठशाला के रास्ते में 'भूषण ग्रामोफोन शॉप' थी । ग्राहकों को सुनाए जा रहे गानों सुनने के लिए किशोर भीमसेन खड़े हो जाते थे । एक दिन उन्होंने 'अब्दुल करीम ख़ान' का गाया राग वसंत में फगवा 'बृज देखन को' और 'पिया बिना नहि आवत चैन'- ठुमरी सुनी । कुछ ही दिनों पश्चात उन्होंने कुंडगोल के समारोह में सवाई गंधर्व को सुना । मात्र ग्यारह वर्षीय भीमसेन के मन में उन्हें गुरु बनाने की इच्छा हुई । पुत्र की संगीत में रुचि होने का पता चलने पर गुरुराज ने 'अगसरा चनप्पा' को भीमसेन का संगीत शिक्षक नियुक्त किया।  एक बार पंचाक्षरी गवई ने भीमसेन को गाते हुए सुनकर चनप्पा से कहा, ‘इस लड़के को सिखाना तुम्हारे बस की बात नहीं , इसे किसी बेहतर गुरु के पास भेजो ।’
|कर्म भूमि=[[भारत]]
 
|कर्म-क्षेत्र=शास्त्रीय गायन
|मृत्यु=[[24 जनवरी]], [[2011]]
|मृत्यु स्थान=[[पुणे]], [[महाराष्ट्र]]
|मुख्य रचनाएँ='मिले सुर मेरा तुम्हारा'
|मुख्य फ़िल्में=
|विषय=[[शास्त्रीय संगीत]]
|शिक्षा=
|विद्यालय=
|पुरस्कार-उपाधि=[[भारत रत्‍न]], [[पद्म विभूषण]], [[संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]], [[पद्म भूषण]], [[पद्म श्री]] 
|प्रसिद्धि=हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायक
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|अन्य जानकारी=पंडित जोशी [[किराना घराना|किराना घराने]] के गायक हैं। उन्हें उनके [[ख़्याल]] शैली और भजन गायन के विशेष रूप से जाना जाता है।
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}}'''पंडित भीमसेन जोशी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Bhimsen Joshi''; जन्म- [[4 फ़रवरी]], [[1922]], गड़ग, [[कर्नाटक]]; मृत्यु- [[24 जनवरी]], [[2011]], [[पुणे]], [[महाराष्ट्र]]) [[किराना घराना|किराना घराने]] के महत्त्वपूर्ण शास्त्रीय गायक थे। उन्होंने 19 साल की उम्र से गायन शुरू किया था और वे सात दशकों तक शास्त्रीय गायन करते रहे। भीमसेन जोशी ने [[कर्नाटक]] को गौरवान्वित किया है। भारतीय [[संगीत]] के क्षेत्र में इससे पहले [[एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी]], [[बिस्मिल्ला ख़ान|उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ान]], [[रवि शंकर|पंडित रविशंकर]] और [[लता मंगेशकर]] को 'भारत रत्न' से सम्मानित किया जा चुका है। उनकी योग्यता का आधार उनकी महान् संगीत साधना है। देश-विदेश में लोकप्रिय हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के महान् गायकों में उनकी गिनती होती थी। अपने एकल गायन से [[शास्त्रीय संगीत|हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत]] में नए युग का सूत्रपात करने वाले पंडित भीमसेन जोशी [[कला]] और [[संस्कृति]] की दुनिया के छठे व्यक्ति थे, जिन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान '[[भारत रत्‍न]]' से सम्मानित किया गया था। 'किराना घराने' के भीमसेन गुरुराज जोशी ने गायकी के अपने विभिन्‍न तरीकों से एक अद्भुत गायन की रचना की। देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान मिलने के बारे में जब उनके पुत्र श्रीनिवास जोशी ने उन्हें बताया था तो भीमसेन जोशी ने पुणे में कहा था कि-
<blockquote>"मैं उन सभी हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायकों की तरफ से इस सम्मान को स्वीकार करता हूं जिन्होंने अपनी ज़िंदगी संगीत को समर्पित कर दी।"</blockquote>
==जन्म==
[[कर्नाटक]] के 'गड़ग' में [[4 फ़रवरी]], [[1922]] ई. को भीमसेन जोशी का जन्म हुआ था। उनके [[पिता]] 'गुरुराज जोशी' स्थानीय हाई स्कूल के हेडमास्टर और [[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]], [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] और [[संस्कृत]] के विद्वान् थे। उनके चाचा जी.बी जोशी चर्चित नाटककार थे तथा उन्होंने धारवाड़ की मनोहर ग्रन्थमाला को प्रोत्साहित किया था। उनके दादा प्रसिद्ध कीर्तनकार थे।
==संगीत में रुचि==
भीमसेन जोशी जिस पाठशाला में शिक्षा प्राप्त करते थे, वहाँ पाठशाला के रास्ते में 'भूषण ग्रामोफ़ोन शॉप' थी। ग्राहकों को सुनाए जा रहे गानों को सुनने के लिए किशोर भीमसेन खड़े हो जाते थे। एक दिन उन्होंने 'अब्दुल करीम ख़ान' का गाया 'राग वसंत' में 'फगवा' 'बृज देखन को' और 'पिया बिना नहि आवत चैन' [[ठुमरी]] सुनी। कुछ ही दिनों पश्चात् उन्होंने कुंडगोल के समारोह में सवाई गंधर्व को सुना। मात्र ग्यारह वर्षीय भीमसेन के मन में उन्हें गुरु बनाने की इच्छा प्रबल हो उठी। पुत्र की [[संगीत]] में रुचि होने का पता चलने पर इनके पिता गुरुराज ने 'अगसरा चनप्पा' को भीमसेन का [[संगीत]] शिक्षक नियुक्त कर दिया। एक बार पंचाक्षरी गवई ने भीमसेन को गाते हुए सुनकर चनप्पा से कहा, "इस लड़के को सिखाना तुम्हारे बस की बात नहीं, इसे किसी बेहतर गुरु के पास भेजो।"
==गुरु की खोज==
==गुरु की खोज==
एक दिन भीमसेन घर से भाग लिए। उस घटना को याद कर वह विनोद में कहते हैं - 'ऐसा करके उन्होंने परिवार की परम्परा ही निभाई थी।' मंजिल का पता नहीं था। रेल में बिना टिकट बैठ गये और बीजापुर तक का सफर किया। टी॰टी॰ को राग भैरव में 'जागो मोहन प्यारे' और 'कौन-कौन गुन गावे' सुना कर मुग्ध कर दिया । साथ के यात्रियों परभी उनके गायन का जादू चल गया। सहयात्रियों ने रास्ते में खिलाया- पिलाया। अंतत: वह बीजापुर पहुँच गये। गलियों में गा गा कर और लोगों के घरों के बाहर रात गुज़ार कर दो हफ़्ते बीत गये। एक संगीत प्रेमी ने सलाह दी, ‘संगीत सीखना हो तो [[ग्वालियर]] जाओ।’
एक दिन भीमसेन घर से भाग निकले। उस घटना को याद कर उन्होंने विनोद में कहा- "ऐसा करके उन्होंने [[परिवार]] की परम्परा ही निभाई थी।" मंज़िल का पता नहीं था। रेल में बिना टिकट बैठ गये और [[बीजापुर]] तक का सफर किया। टी.टी. को राग भैरव में 'जागो मोहन प्यारे' और 'कौन-कौन गुन गावे' सुनाकर मुग्ध कर दिया। साथ के यात्रियों पर भी उनके गायन का जादू चल निकला। सहयात्रियों ने रास्ते में खिलाया-पिलाया। अंतत: वह बीजापुर पहुँच गये। गलियों में गा-गाकर और लोगों के घरों के बाहर रात गुज़ार कर दो हफ़्ते बीत गये। एक संगीत प्रेमी ने सलाह दी, ‘संगीत सीखना हो तो [[ग्वालियर]] जाओ।’
उन्हें पता नहीं था ग्वालियर कहाँ है । वह एक अन्य ट्रेन पर सवार हो गये इस बार पुणे पहुँच गये। उन्हें नहीं पता था कि पुणे उनका स्थायी निवास स्थान बनेगा । रेल गाड़ियाँ बदलते और रेलकर्मियों से बचते-बचाते भीमसेन आख़िर ग्वालियर पहुँच गये । वहाँ के 'माधव संगीत विद्यालय' में प्रवेश ले लिया। किंतु भीमसेन को किसी कक्षा की नहीं, एक गुरु की ज़रूरत थी ।
[[चित्र:Bhimsen-Joshi-3.jpg|thumb|left|भीमसेन जोशी]]
 
उन्हें पता नहीं था कि ग्वालियर कहाँ है। वह एक अन्य ट्रेन पर सवार हो गये और इस बार [[पुणे]], [[महाराष्ट्र]] पहुँच गये। उन्हें नहीं पता था कि एक दिन पुणे ही उनका स्थायी निवास स्थान बनेगा। रेल गाड़ियाँ बदलते और रेल कर्मियों से बचते-बचाते भीमसेन आख़िर ग्वालियर पहुँच गये। वहाँ के 'माधव संगीत विद्यालय' में प्रवेश ले लिया। किंतु भीमसेन को किसी कक्षा की नहीं, एक गुरु की ज़रूरत थी। भीमसेन तीन साल तक गुरु की खोज में भटकते रहे। फिर उन्हें 'करवल्लभ संगीत सम्मेलन' में [[विनायकराव पटवर्धन]] मिले। विनायकराव को आश्चर्य हुआ कि सवाई गन्धर्व उसके घर के बहुत पास रहते हैं। सवाई गन्धर्व ने भीमसेन को सुनकर कहा, "मैं इसे सिखाऊँगा यदि यह अब तक का सीखा हुआ सब भुला सके।” डेढ़ साल तक उन्होंने भीमसेन को कुछ नहीं सिखाया। एक बार भीमसेन के [[पिता]] उनकी प्रगति का हाल जानने आए, उन्हें आश्चर्य हुआ कि वह अपने गुरु के घर के लिए पानी से भरे बड़े-बड़े घड़े ढो रहे हैं। भीमसेन ने अपने पिता से कहा- "मैं यहाँ खुश हूँ। आप चिन्ता न करें।"
भीमसेन तीन साल तक गुरु की खोज में भटकते रहे । फिर उन्हें 'करवल्लभ संगीत सम्मेलन' में विनायकराव पटवर्धन मिले । विनायकराव को आश्चर्य हुआ कि सवाई गन्धर्व उसके घर के बहुत पास रहते हैं। सवाई गन्धर्व ने भीमसेन को सुनकर कहा, "मैं इसे सिखाऊँगा यदि यह अब तक का सीखा हुआ सब भुला सके।” डेढ़ साल तक उन्होंने भीमसेन को कुछ नहीं सिखाया । एक बार भीमसेन के पिता उनकी प्रगति का हाल जानने आए, उन्हें आश्चर्य हुआ कि वह अपने गुरु के घर के लिए पानी से भरे बड़े बड़े घड़े ढो रहे हैं । भीमसेन ने अपने पिता से कहा-"मैं यहाँ खुश हूँ ।आप चिन्ता न करें।"
==पहला संगीत प्रदर्शन==
==पहला संगीत प्रदर्शन==
भीमसेन ने सबसे पहले 19 साल की उम्र में अपना पहला संगीत प्रदर्शन किया। उनका पहला एल्बम 20 वर्ष की आयु में निकला जिसमें कन्‍नड और हिंदी में कुछ धार्मिक गीत थे। अपने गुरु की याद में उन्होंने वार्षिक 'सवाई गंधर्व संगीत समारोह' प्रारम्भ किया। पुणे में यह समारोह हर साल दिसंबर में होता है। भीमसेन के पुत्र भी शास्त्रीय गायक एवं संगीतकार हैं।
वर्ष [[1941]] में भीमसेन जोशी ने 19 वर्ष की उम्र में मंच पर अपनी पहली प्रस्तुति दी। उनका पहला एल्बम 20 [[वर्ष]] की आयु में निकला, जिसमें [[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]] और [[हिन्दी]] में कुछ धार्मिक गीत थे। इसके दो वर्ष बाद वह रेडियो कलाकार के तौर पर [[मुंबई]] में काम करने लगे। अपने गुरु की याद में उन्होंने वार्षिक 'सवाई गंधर्व संगीत समारोह' प्रारम्भ किया था। पुणे में यह समारोह हर वर्ष [[दिसंबर]] में होता है। भीमसेन के पुत्र भी शास्त्रीय गायक एवं संगीतकार हैं।
==भारत रत्न==
====बुलंद आवाज़ तथा संवेदनशीलता====
[[कर्नाटक]] में जन्मे भीमसेन जोशी पिछले 50 से अधिक वर्षों से  [[पुणे]] में रह रहे हैं। कला और संस्कृति के क्षेत्र से संबंधित उनसे पहले [[सत्यजीत रे]] , कर्नाटक संगीत की कोकिला [[एम.एस.सुब्बालक्ष्मी]], [[पंडित रविशंकर]], [[लता मंगेशकर]] और [[उस्ताद बिस्मिल्ला]] खां को भारत रत्न मिल चुका है। भीमसेन दूसरे शास्त्रीय गायक हैं जिन्हें भारत रत्न मिला है।
पंडित भीमसेन जोशी को बुलंद आवाज़, सांसों पर बेजोड़ नियंत्रण, [[संगीत]] के प्रति संवेदनशीलता, जुनून और समझ के लिए जाना जाता था। उन्होंने 'सुधा कल्याण', 'मियां की तोड़ी', 'भीमपलासी', 'दरबारी', 'मुल्तानी' और 'रामकली' जैसे अनगिनत [[राग]] छेड़ संगीत के हर मंच पर संगीत प्रमियों का दिल जीता। पंडित मोहनदेव ने कहा, "उनकी गायिकी पर केसरबाई केरकर, उस्ताद आमिर ख़ान, [[बेगम अख़्तर]] का गहरा प्रभाव था। वह अपनी गायिकी में सरगम और तिहाईयों का जमकर प्रयोग करते थे। उन्होंने [[हिन्दी]], [[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]] और [[मराठी भाषा|मराठी]] में ढेरों भजन गाए थे।<ref name="a">{{cite web |url=http://www.bhartiyadharohar.com/2015-03-25-08-51-05/ |title= गायकी के भीमसेन|accessmonthday= 04 फ़रवरी|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= bhartiyadharohar.com|language= हिन्दी}}</ref>
 
==जुगलबंदी==
*भीमसेन जोशी को 1972 में [[पद्म श्री]] से सम्मानित किया जा चुका है।
[[चित्र:Bhimsen-Joshi-1.jpg|thumb|200px|पत्नी के साथ भीमसेन जोशी]]
*भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में सन 1985 में [[पद्म भूषण]] पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
भीमसेन जोशी को खयाल गायकी का स्कूल कहा जाता है। [[संगीत]] के छात्रों को बताया जाता है कि खयाल गायकी में [[राग]] की शुद्धता और रागदारी का सबसे सही तरीका सीखना है तो जोशी जी को सुनो। उन्होंने [[कन्नड़]], [[संस्कृत]], [[हिंदी]] और [[मराठी]] में ढेरों भजन और [[अभंग]] भी गाए हैं जो बहुत ही लोकप्रिय हैं। भीमसेन जोशी ने [[हरिप्रसाद चौरसिया|पं. हरिप्रसाद चौरसिया]], [[रविशंकर|पं. रविशंकर]] और बाल मुरली कृष्णा जैसे दिग्गजों के साथ यादगार जुगलबंदियां की हैं। युवा पीढ़ी के गायकों में [[रामपुर-सहस्वान घराना|रामपुर सहसवान घराने]] के [[राशिद ख़ान|उस्ताद राशिद ख़ान]] के साथ भी उन्होंने गाया है लेकिन समकालीन शास्त्रीय गायन या वादन जोशी जी का मन नहीं लुभा पाता था। उन पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाते हुए [[गुलज़ार]] ने पूछा- "आजकल के जो गायक हैं उन्हें सुनते हैं तो कैसा लगता है?" इस पर जोशी जी का जवाब था- "हमने तो [[बड़े गुलाम अली खां|बड़े गुलाम अली]], [[उस्ताद अमीर ख़ाँ]] और गुरुजी को सुना है। वह कान में बसा हुआ है। आज बहुत सारे गाने वाले हैं, समझदार हैं, अच्छी तैयारी भी है, लेकिन उनका गाना दिल को छू नहीं पाता।"
*पंडित जोशी को सन 1999 में [[पद्म विभूषण]] से सम्मानित किया जा चुका है।
===गायकी के भीमसेन===
*भीमसेन जोशी को 4 नवम्बर, 2008 को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, [[भारत रत्‍न]] पुरस्कार दिया गया।
भीमसेन जोशी उस संगीत के पक्षधर थे, जिसमें राग की शुद्धता के साथ ही उसको बरतने में भी वह सिद्धि हो कि सुनने वाले की आँखें मुंद जाएं, वह किसी और लोक में पहुंच जाए। भीमसेन जोशी की गायकी स्वयं में इस परिकल्पना की मिसाल है। उन्हें गायकी का भीमसेन में बनाने में उनके दौर का भी बड़ा योगदान है। ये वह दौर था, जब माइक नहीं होते थे, या फिर नहीं के बराबर होते थे। इसलिए गायकी में स्वाभाविक दमखम का होना बहुत ज़रूरी माना जाता था। गायक और पहलवान को बराबरी का दर्जा दिया जाता था। जोशी जी के सामने [[बड़े गुलाम अली खां|बड़े गुलाम अली ख़ां]], [[फ़ैयाज़ ख़ाँ]], अब्दुल करीम ख़ां और अब्दुल वहीद ख़ां जैसे सीनियर्स थे जो गले के साथ ही शरीर की भी वर्जिश करते थे और गाते वक्त जिन्हें माइक की ज़रूरत ही नहीं होती थी। समकालीनों में भी [[कुमार गंधर्व]] थे, मल्लिकार्जुन मंसूर जैसे अखाड़ेबाज़ गायक थे।
*उन्हें [[संगीत नाटक अकादमी]] पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.
इनसे पहले 1998 में सुब्बालक्ष्मी को शास्त्रीय गायन के लिए यह पुरस्कार मिला था। 1954 में भारत रत्न की शुरुआत होने के बाद से कुल 41 प्रमुख हस्तियों को यह पुरस्कार मिल चुका है।


==सवाई गंधर्व महोत्सव==
एक समय था, जब शास्त्रीय संगीत दरबारों में, घरानों में कैद था। गंधर्व महाविद्यालय, प्रयाग संगीत समिति और भातखंडे विश्वविद्यालय जैसी संस्थाओं के आने का असर ये हुआ कि आम लोगों के बीच शास्त्रीय संगीत की पहुंच तेज़ीसे बढ़ने लगी। लेकिन साथ ही संगीत की गुणवत्ता के स्तर पर बड़ा ह्रास हुआ। जोशी जी भी मानते थे कि संस्थाओं में कलाकार पैदा नहीं किए जा सकते, कलाकार बनने के लिए गुरु के सामने समर्पण ही एक रास्ता है। भीमसेन जोशी देशभर में घूम-घूमकर कलाकारों को खोजते थे और अपने गुरु की याद में शुरू किए गए 'सवाई गंधर्व महोत्सव' में उन्हें मंच देते थे। [[पुणे]] में आयोजित होने वाले इस समारोह की ख्याति इतनी है कि यहां प्रस्तुति देने का अवसर पाकर कोई भी कलाकार गौरवान्वित महसूस करता है।<ref name="a"/>
===पसंदीदा राग===
मिया की तोड़ी, मारवा, पूरिया धनाश्री, दरबारी, रामकली, शुद्ध कल्याण, मुल्तानी और भीमपलासी भीमसेन जोशी के पसंदीदा राग रहे। लेकिन मौका मिलने पर उन्होंने फ़िल्मों के लिए भी गाया। उन्हें देश का भी भरपूर प्यार मिला। संगीत नाटक अकादमी, पद्म भूषण समेत अनगिनत सम्मान के बाद [[2008]] में जोशी जी को '[[भारत रत्न]]' से नवाजा गया।
==पुरस्कार व सम्मान==
[[चित्र:Pandit-Bhimsen-Joshi.jpg|thumb|पं. भीमसेन जोशी<br />Pt. Bhimsen Joshi]]
*भीमसेन जोशी को [[1972]] में '[[पद्म श्री]]' से सम्मानित किया गया।
*'[[भारत सरकार]]' द्वारा उन्हें कला के क्षेत्र में सन [[1985]] में '[[पद्म भूषण]]' पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
*पंडित जोशी को सन [[1999]] में '[[पद्म विभूषण]]' प्रदान किया गया था।
*[[4 नवम्बर]], [[2008]] को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान '[[भारत रत्‍न]]' भी जोशी जी को मिला। [[कला]] और [[संस्कृति]] के क्षेत्र से संबंधित उनसे पहले [[सत्यजीत रे]], [[कर्नाटक संगीत]] की कोकिला [[एम.एस.सुब्बालक्ष्मी]], [[पंडित रविशंकर]], [[लता मंगेशकर]] और [[उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ]] को '[[भारत रत्न]]' मिल चुका था। भीमसेन जोशी दूसरे शास्त्रीय गायक रहे, जिन्हें 'भारत रत्न' प्रदान किया गया था।
*'[[संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]]' से भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका था।
==अविस्मरणीय संगीत==
==अविस्मरणीय संगीत==
अस्सी वर्षीय भीमसेन जोशी को 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' के लिए याद किया जाता है जिसमें उनके साथ बालमुरली कृष्णा और लता मंगेशकर ने जुगलबंदी की है। जोशी को [[पद्म विभूषण]], [[पद्म भूषण]] और [[पद्म श्री]] सहित कई पुरस्कार मिल चुके हैं।
पंडित भीमसेन जोशी को '''मिले सुर मेरा तुम्हारा''' के लिए याद किया जाता है, जिसमें उनके साथ बालमुरली कृष्णा और [[लता मंगेशकर]] ने जुगलबंदी की। [[1985]] से ही वे ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ के जरिये घर-घर में पहचाने जाने लगे थे। तब से लेकर आज भी इस गाने के बोल और धुन पंडित जी की पहचान बने हुए हैं।
==किराना घराना==
====फ़िल्मों के लिए गायन====
विभिन्‍न घरानों के गुणों को मिलाकर वह गायन की अद्भुत गायन प्रस्तुत करते हैं। पंडित जोशी किराना घराने के गायक हैं। उन्हें उनके ख़्याल शैली और भजन गायन के विशेष रूप से जाना जाता है।  
पंडित भीमसेन जोशी ने कई फ़िल्मों के लिए भी गाने गाए। उन्होंने ‘तानसेन’, ‘सुर संगम’, ‘बसंत बहार’ और ‘अनकही’ जैसी कई फ़िल्मों के लिए गायिकी की। पंडित जी शराब पीने के शौकीन थे, लेकिन संगीत कैरियर पर इसका प्रभाव पड़ने पर [[1979]] में उन्होंने शराब का पूरी तरह से त्याग कर दिया।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.samaylive.com/entertainment-news-in-hindi/bollywod/140265/indian-classical-music-twentieth-century-new-direction-and-dimen.html|title= बीसवीं सदी के महान् शास्त्रीय गायक पंडित भीमसेन जोशी|accessmonthday= 20 जनवरी|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= सहारा समय|language= हिन्दी}}</ref>
====किराना घराना====
{{main|किराना घराना}}
विभिन्‍न [[घराना|घरानों]] के गुणों को मिलाकर भीमसेन जोशी अद्भुत गायन प्रस्तुत करते थे। जोशी जी [[किराना घराना|किराना घराने]] के सबसे प्रसिद्ध गायकों में से एक माने जाते थे। उन्हें उनकी [[ख़्याल]] शैली और भजन गायन के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।
==निधन==
भीमसेन जोशी बड़े सादे इंसान थे। उन्हें कार चलाने का शौक था। मर्सिडीज की कारें उनकी कमज़ोरी थीं। जवान थे तो तैराकी, [[योग]] और [[फ़ुटबॉल]] खेलने का शौक रखते थे। शराब पीना उनका शौक था, लेकिन कहते हैं कि कॅरियर पर असर होते देखकर उन्होंने पीना छोड़ दिया था। संगीतज्ञों के बीच एक कहावत है- "जब तक कला जवान होती है, तब तक कलाकार बूढ़ा हो चुका होता है।" जोशी जी भी तन से बूढ़े हुए और उनका निधन [[24 जनवरी]], [[2011]] को [[पुणे]], [[महाराष्ट्र]] में हुआ। आज के संगीत जगत् में भीमसेन जोशी घर के एक बड़े बुजुर्ग की तरह थे। बुजुर्ग, जिनके रूप में एक पूरा का पूरा युग हमारे बीच मौजूद रहता है, जिनकी उपस्थिति ही शुभ का, सुरक्षा का अहसास देती है, बताती है कि हम अनाथ नहीं हुए हैं। जोशी जी के जाने के साथ ही समकालीन [[संगीत]] के सिर से एक बड़े-बुजुर्ग का हाथ उठ गया।
===लोगों के विचार===
पंडित भीमसेन जोशी के विषय में कई लोगों ने अपने विचार व्यक्त किये हैं, जैसे-
*‘हिन्दुस्तानी म्यूजिक टुडे’ किताब में लेखक दीपक एस राजा ने भीमसेन जोशी के लिए लिखा है कि "जोशी 20वीं सदी के सबसे महान् शास्त्रीय गायकों में से एक थे। उन्होंने हिन्दी, कन्नड़ और मराठी में [[ख़्याल]], [[ठुमरी]] और भजन गायन से तीन पीढ़ियों को आनंदित किया। उनकी अपनी अलग गायन [[शैली]] थी।
*राजा के अनुसार, "जोशी ने सवाई गंधर्व से गायिकी का प्रशिक्षण लिया था। उनके संगीत कैरियर में एक से बढ़कर एक बेजोड़ उपलब्धियां शामिल हैं। जोशी जी 'ग्रामोफोन कंपनी ऑफ़ इंडिया' (एचएमवी) का 'प्लैटिनम पुरस्कार' पाने वाले एकमात्र [[भारतीय शास्त्रीय संगीत]] गायक थे।<ref name="aa"/>


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://thatshindi.oneindia.in/art-culture/2009/bhimsen-joshi-presented-bharat-ratna.html  पं. भीमसेन जोशी भारत रत्न से सम्मानित]
*[http://www.livehindustan.com/news/1/1/1-1-23498.html पंडित भीमसेन जोशी को मिलेगा भारत रत्न ]
*[http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2009/02/090210_bhimsen_bharatratna_ad.shtml  भीमसेन जोशी भारत रत्न से सम्मानित]
*[http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2009/02/090210_bhimsen_bharatratna_ad.shtml  भीमसेन जोशी भारत रत्न से सम्मानित]
 
*[http://www.sounak.com/kiranagharana.html sounak.com किराना घराना]
[[Category:शास्त्रीय_गायक_कलाकार]]
==संबंधित लेख==
[[Category:भारत_रत्न_सम्मान]]
{{भारत रत्‍न}}{{शास्त्रीय गायक कलाकार}}{{संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार}}{{भारत रत्‍न2}}
[[Category:गायन]]
[[Category:शास्त्रीय_गायक_कलाकार]][[Category:भारत_रत्न_सम्मान]][[Category:पद्म विभूषण]][[Category:पद्म श्री]][[Category:पद्म भूषण]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:कला कोश]][[Category:समाचार जगत]][[Category:संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]]
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08:19, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

भीमसेन जोशी
पूरा नाम पंडित भीमसेन गुरुराज जोशी
जन्म 4 फ़रवरी, 1922
जन्म भूमि गडग, कर्नाटक
मृत्यु 24 जनवरी, 2011
मृत्यु स्थान पुणे, महाराष्ट्र
अभिभावक गुरुराज जोशी
संतान श्रीनिवास जोशी (पुत्र)
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र शास्त्रीय गायन
मुख्य रचनाएँ 'मिले सुर मेरा तुम्हारा'
विषय शास्त्रीय संगीत
पुरस्कार-उपाधि भारत रत्‍न, पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्म भूषण, पद्म श्री
प्रसिद्धि हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायक
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी पंडित जोशी किराना घराने के गायक हैं। उन्हें उनके ख़्याल शैली और भजन गायन के विशेष रूप से जाना जाता है।

पंडित भीमसेन जोशी (अंग्रेज़ी: Bhimsen Joshi; जन्म- 4 फ़रवरी, 1922, गड़ग, कर्नाटक; मृत्यु- 24 जनवरी, 2011, पुणे, महाराष्ट्र) किराना घराने के महत्त्वपूर्ण शास्त्रीय गायक थे। उन्होंने 19 साल की उम्र से गायन शुरू किया था और वे सात दशकों तक शास्त्रीय गायन करते रहे। भीमसेन जोशी ने कर्नाटक को गौरवान्वित किया है। भारतीय संगीत के क्षेत्र में इससे पहले एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी, उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ान, पंडित रविशंकर और लता मंगेशकर को 'भारत रत्न' से सम्मानित किया जा चुका है। उनकी योग्यता का आधार उनकी महान् संगीत साधना है। देश-विदेश में लोकप्रिय हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के महान् गायकों में उनकी गिनती होती थी। अपने एकल गायन से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में नए युग का सूत्रपात करने वाले पंडित भीमसेन जोशी कला और संस्कृति की दुनिया के छठे व्यक्ति थे, जिन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्‍न' से सम्मानित किया गया था। 'किराना घराने' के भीमसेन गुरुराज जोशी ने गायकी के अपने विभिन्‍न तरीकों से एक अद्भुत गायन की रचना की। देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान मिलने के बारे में जब उनके पुत्र श्रीनिवास जोशी ने उन्हें बताया था तो भीमसेन जोशी ने पुणे में कहा था कि-

"मैं उन सभी हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायकों की तरफ से इस सम्मान को स्वीकार करता हूं जिन्होंने अपनी ज़िंदगी संगीत को समर्पित कर दी।"

जन्म

कर्नाटक के 'गड़ग' में 4 फ़रवरी, 1922 ई. को भीमसेन जोशी का जन्म हुआ था। उनके पिता 'गुरुराज जोशी' स्थानीय हाई स्कूल के हेडमास्टर और कन्नड़, अंग्रेज़ी और संस्कृत के विद्वान् थे। उनके चाचा जी.बी जोशी चर्चित नाटककार थे तथा उन्होंने धारवाड़ की मनोहर ग्रन्थमाला को प्रोत्साहित किया था। उनके दादा प्रसिद्ध कीर्तनकार थे।

संगीत में रुचि

भीमसेन जोशी जिस पाठशाला में शिक्षा प्राप्त करते थे, वहाँ पाठशाला के रास्ते में 'भूषण ग्रामोफ़ोन शॉप' थी। ग्राहकों को सुनाए जा रहे गानों को सुनने के लिए किशोर भीमसेन खड़े हो जाते थे। एक दिन उन्होंने 'अब्दुल करीम ख़ान' का गाया 'राग वसंत' में 'फगवा' 'बृज देखन को' और 'पिया बिना नहि आवत चैन' ठुमरी सुनी। कुछ ही दिनों पश्चात् उन्होंने कुंडगोल के समारोह में सवाई गंधर्व को सुना। मात्र ग्यारह वर्षीय भीमसेन के मन में उन्हें गुरु बनाने की इच्छा प्रबल हो उठी। पुत्र की संगीत में रुचि होने का पता चलने पर इनके पिता गुरुराज ने 'अगसरा चनप्पा' को भीमसेन का संगीत शिक्षक नियुक्त कर दिया। एक बार पंचाक्षरी गवई ने भीमसेन को गाते हुए सुनकर चनप्पा से कहा, "इस लड़के को सिखाना तुम्हारे बस की बात नहीं, इसे किसी बेहतर गुरु के पास भेजो।"

गुरु की खोज

एक दिन भीमसेन घर से भाग निकले। उस घटना को याद कर उन्होंने विनोद में कहा- "ऐसा करके उन्होंने परिवार की परम्परा ही निभाई थी।" मंज़िल का पता नहीं था। रेल में बिना टिकट बैठ गये और बीजापुर तक का सफर किया। टी.टी. को राग भैरव में 'जागो मोहन प्यारे' और 'कौन-कौन गुन गावे' सुनाकर मुग्ध कर दिया। साथ के यात्रियों पर भी उनके गायन का जादू चल निकला। सहयात्रियों ने रास्ते में खिलाया-पिलाया। अंतत: वह बीजापुर पहुँच गये। गलियों में गा-गाकर और लोगों के घरों के बाहर रात गुज़ार कर दो हफ़्ते बीत गये। एक संगीत प्रेमी ने सलाह दी, ‘संगीत सीखना हो तो ग्वालियर जाओ।’

भीमसेन जोशी

उन्हें पता नहीं था कि ग्वालियर कहाँ है। वह एक अन्य ट्रेन पर सवार हो गये और इस बार पुणे, महाराष्ट्र पहुँच गये। उन्हें नहीं पता था कि एक दिन पुणे ही उनका स्थायी निवास स्थान बनेगा। रेल गाड़ियाँ बदलते और रेल कर्मियों से बचते-बचाते भीमसेन आख़िर ग्वालियर पहुँच गये। वहाँ के 'माधव संगीत विद्यालय' में प्रवेश ले लिया। किंतु भीमसेन को किसी कक्षा की नहीं, एक गुरु की ज़रूरत थी। भीमसेन तीन साल तक गुरु की खोज में भटकते रहे। फिर उन्हें 'करवल्लभ संगीत सम्मेलन' में विनायकराव पटवर्धन मिले। विनायकराव को आश्चर्य हुआ कि सवाई गन्धर्व उसके घर के बहुत पास रहते हैं। सवाई गन्धर्व ने भीमसेन को सुनकर कहा, "मैं इसे सिखाऊँगा यदि यह अब तक का सीखा हुआ सब भुला सके।” डेढ़ साल तक उन्होंने भीमसेन को कुछ नहीं सिखाया। एक बार भीमसेन के पिता उनकी प्रगति का हाल जानने आए, उन्हें आश्चर्य हुआ कि वह अपने गुरु के घर के लिए पानी से भरे बड़े-बड़े घड़े ढो रहे हैं। भीमसेन ने अपने पिता से कहा- "मैं यहाँ खुश हूँ। आप चिन्ता न करें।"

पहला संगीत प्रदर्शन

वर्ष 1941 में भीमसेन जोशी ने 19 वर्ष की उम्र में मंच पर अपनी पहली प्रस्तुति दी। उनका पहला एल्बम 20 वर्ष की आयु में निकला, जिसमें कन्नड़ और हिन्दी में कुछ धार्मिक गीत थे। इसके दो वर्ष बाद वह रेडियो कलाकार के तौर पर मुंबई में काम करने लगे। अपने गुरु की याद में उन्होंने वार्षिक 'सवाई गंधर्व संगीत समारोह' प्रारम्भ किया था। पुणे में यह समारोह हर वर्ष दिसंबर में होता है। भीमसेन के पुत्र भी शास्त्रीय गायक एवं संगीतकार हैं।

बुलंद आवाज़ तथा संवेदनशीलता

पंडित भीमसेन जोशी को बुलंद आवाज़, सांसों पर बेजोड़ नियंत्रण, संगीत के प्रति संवेदनशीलता, जुनून और समझ के लिए जाना जाता था। उन्होंने 'सुधा कल्याण', 'मियां की तोड़ी', 'भीमपलासी', 'दरबारी', 'मुल्तानी' और 'रामकली' जैसे अनगिनत राग छेड़ संगीत के हर मंच पर संगीत प्रमियों का दिल जीता। पंडित मोहनदेव ने कहा, "उनकी गायिकी पर केसरबाई केरकर, उस्ताद आमिर ख़ान, बेगम अख़्तर का गहरा प्रभाव था। वह अपनी गायिकी में सरगम और तिहाईयों का जमकर प्रयोग करते थे। उन्होंने हिन्दी, कन्नड़ और मराठी में ढेरों भजन गाए थे।[1]

जुगलबंदी

पत्नी के साथ भीमसेन जोशी

भीमसेन जोशी को खयाल गायकी का स्कूल कहा जाता है। संगीत के छात्रों को बताया जाता है कि खयाल गायकी में राग की शुद्धता और रागदारी का सबसे सही तरीका सीखना है तो जोशी जी को सुनो। उन्होंने कन्नड़, संस्कृत, हिंदी और मराठी में ढेरों भजन और अभंग भी गाए हैं जो बहुत ही लोकप्रिय हैं। भीमसेन जोशी ने पं. हरिप्रसाद चौरसिया, पं. रविशंकर और बाल मुरली कृष्णा जैसे दिग्गजों के साथ यादगार जुगलबंदियां की हैं। युवा पीढ़ी के गायकों में रामपुर सहसवान घराने के उस्ताद राशिद ख़ान के साथ भी उन्होंने गाया है लेकिन समकालीन शास्त्रीय गायन या वादन जोशी जी का मन नहीं लुभा पाता था। उन पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाते हुए गुलज़ार ने पूछा- "आजकल के जो गायक हैं उन्हें सुनते हैं तो कैसा लगता है?" इस पर जोशी जी का जवाब था- "हमने तो बड़े गुलाम अली, उस्ताद अमीर ख़ाँ और गुरुजी को सुना है। वह कान में बसा हुआ है। आज बहुत सारे गाने वाले हैं, समझदार हैं, अच्छी तैयारी भी है, लेकिन उनका गाना दिल को छू नहीं पाता।"

गायकी के भीमसेन

भीमसेन जोशी उस संगीत के पक्षधर थे, जिसमें राग की शुद्धता के साथ ही उसको बरतने में भी वह सिद्धि हो कि सुनने वाले की आँखें मुंद जाएं, वह किसी और लोक में पहुंच जाए। भीमसेन जोशी की गायकी स्वयं में इस परिकल्पना की मिसाल है। उन्हें गायकी का भीमसेन में बनाने में उनके दौर का भी बड़ा योगदान है। ये वह दौर था, जब माइक नहीं होते थे, या फिर नहीं के बराबर होते थे। इसलिए गायकी में स्वाभाविक दमखम का होना बहुत ज़रूरी माना जाता था। गायक और पहलवान को बराबरी का दर्जा दिया जाता था। जोशी जी के सामने बड़े गुलाम अली ख़ां, फ़ैयाज़ ख़ाँ, अब्दुल करीम ख़ां और अब्दुल वहीद ख़ां जैसे सीनियर्स थे जो गले के साथ ही शरीर की भी वर्जिश करते थे और गाते वक्त जिन्हें माइक की ज़रूरत ही नहीं होती थी। समकालीनों में भी कुमार गंधर्व थे, मल्लिकार्जुन मंसूर जैसे अखाड़ेबाज़ गायक थे।

सवाई गंधर्व महोत्सव

एक समय था, जब शास्त्रीय संगीत दरबारों में, घरानों में कैद था। गंधर्व महाविद्यालय, प्रयाग संगीत समिति और भातखंडे विश्वविद्यालय जैसी संस्थाओं के आने का असर ये हुआ कि आम लोगों के बीच शास्त्रीय संगीत की पहुंच तेज़ीसे बढ़ने लगी। लेकिन साथ ही संगीत की गुणवत्ता के स्तर पर बड़ा ह्रास हुआ। जोशी जी भी मानते थे कि संस्थाओं में कलाकार पैदा नहीं किए जा सकते, कलाकार बनने के लिए गुरु के सामने समर्पण ही एक रास्ता है। भीमसेन जोशी देशभर में घूम-घूमकर कलाकारों को खोजते थे और अपने गुरु की याद में शुरू किए गए 'सवाई गंधर्व महोत्सव' में उन्हें मंच देते थे। पुणे में आयोजित होने वाले इस समारोह की ख्याति इतनी है कि यहां प्रस्तुति देने का अवसर पाकर कोई भी कलाकार गौरवान्वित महसूस करता है।[1]

पसंदीदा राग

मिया की तोड़ी, मारवा, पूरिया धनाश्री, दरबारी, रामकली, शुद्ध कल्याण, मुल्तानी और भीमपलासी भीमसेन जोशी के पसंदीदा राग रहे। लेकिन मौका मिलने पर उन्होंने फ़िल्मों के लिए भी गाया। उन्हें देश का भी भरपूर प्यार मिला। संगीत नाटक अकादमी, पद्म भूषण समेत अनगिनत सम्मान के बाद 2008 में जोशी जी को 'भारत रत्न' से नवाजा गया।

पुरस्कार व सम्मान

पं. भीमसेन जोशी
Pt. Bhimsen Joshi

अविस्मरणीय संगीत

पंडित भीमसेन जोशी को मिले सुर मेरा तुम्हारा के लिए याद किया जाता है, जिसमें उनके साथ बालमुरली कृष्णा और लता मंगेशकर ने जुगलबंदी की। 1985 से ही वे ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ के जरिये घर-घर में पहचाने जाने लगे थे। तब से लेकर आज भी इस गाने के बोल और धुन पंडित जी की पहचान बने हुए हैं।

फ़िल्मों के लिए गायन

पंडित भीमसेन जोशी ने कई फ़िल्मों के लिए भी गाने गाए। उन्होंने ‘तानसेन’, ‘सुर संगम’, ‘बसंत बहार’ और ‘अनकही’ जैसी कई फ़िल्मों के लिए गायिकी की। पंडित जी शराब पीने के शौकीन थे, लेकिन संगीत कैरियर पर इसका प्रभाव पड़ने पर 1979 में उन्होंने शराब का पूरी तरह से त्याग कर दिया।[2]

किराना घराना

विभिन्‍न घरानों के गुणों को मिलाकर भीमसेन जोशी अद्भुत गायन प्रस्तुत करते थे। जोशी जी किराना घराने के सबसे प्रसिद्ध गायकों में से एक माने जाते थे। उन्हें उनकी ख़्याल शैली और भजन गायन के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।

निधन

भीमसेन जोशी बड़े सादे इंसान थे। उन्हें कार चलाने का शौक था। मर्सिडीज की कारें उनकी कमज़ोरी थीं। जवान थे तो तैराकी, योग और फ़ुटबॉल खेलने का शौक रखते थे। शराब पीना उनका शौक था, लेकिन कहते हैं कि कॅरियर पर असर होते देखकर उन्होंने पीना छोड़ दिया था। संगीतज्ञों के बीच एक कहावत है- "जब तक कला जवान होती है, तब तक कलाकार बूढ़ा हो चुका होता है।" जोशी जी भी तन से बूढ़े हुए और उनका निधन 24 जनवरी, 2011 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ। आज के संगीत जगत् में भीमसेन जोशी घर के एक बड़े बुजुर्ग की तरह थे। बुजुर्ग, जिनके रूप में एक पूरा का पूरा युग हमारे बीच मौजूद रहता है, जिनकी उपस्थिति ही शुभ का, सुरक्षा का अहसास देती है, बताती है कि हम अनाथ नहीं हुए हैं। जोशी जी के जाने के साथ ही समकालीन संगीत के सिर से एक बड़े-बुजुर्ग का हाथ उठ गया।

लोगों के विचार

पंडित भीमसेन जोशी के विषय में कई लोगों ने अपने विचार व्यक्त किये हैं, जैसे-

  • ‘हिन्दुस्तानी म्यूजिक टुडे’ किताब में लेखक दीपक एस राजा ने भीमसेन जोशी के लिए लिखा है कि "जोशी 20वीं सदी के सबसे महान् शास्त्रीय गायकों में से एक थे। उन्होंने हिन्दी, कन्नड़ और मराठी में ख़्याल, ठुमरी और भजन गायन से तीन पीढ़ियों को आनंदित किया। उनकी अपनी अलग गायन शैली थी।
  • राजा के अनुसार, "जोशी ने सवाई गंधर्व से गायिकी का प्रशिक्षण लिया था। उनके संगीत कैरियर में एक से बढ़कर एक बेजोड़ उपलब्धियां शामिल हैं। जोशी जी 'ग्रामोफोन कंपनी ऑफ़ इंडिया' (एचएमवी) का 'प्लैटिनम पुरस्कार' पाने वाले एकमात्र भारतीय शास्त्रीय संगीत गायक थे।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 गायकी के भीमसेन (हिन्दी) bhartiyadharohar.com। अभिगमन तिथि: 04 फ़रवरी, 2017।
  2. 2.0 2.1 बीसवीं सदी के महान् शास्त्रीय गायक पंडित भीमसेन जोशी (हिन्दी) सहारा समय। अभिगमन तिथि: 20 जनवरी, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

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