"कहता है जुगाड़ सारा ज़माना -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
आदित्य चौधरी (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "किस्सा" to "क़िस्सा ") |
||
(3 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{| width="100%" class="headbg37" style="border:thin groove #003333; margin-left:5px; border-radius:5px; padding:10px;" | |||
{| width="100%" class="headbg37" style="border:thin groove #003333; border-radius:5px; padding:10px;" | |||
|- | |- | ||
| | | | ||
[[चित्र:Bharatkosh-copyright-2.jpg|50px|right|link=|]] | [[चित्र:Bharatkosh-copyright-2.jpg|50px|right|link=|]] | ||
[[चित्र:Facebook-icon-2.png|20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत)]] [http://www.facebook.com/bharatdiscovery भारतकोश] <br /> | |||
[[चित्र:Facebook-icon-2.png|20px|link=http://www.facebook.com/profile.php?id=100000418727453|फ़ेसबुक पर आदित्य चौधरी]] [http://www.facebook.com/profile.php?id=100000418727453 आदित्य चौधरी] | |||
<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>कहता है जुगाड़ सारा ज़माना<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | <div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>कहता है जुगाड़ सारा ज़माना<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | ||
---- | ---- | ||
पंक्ति 19: | पंक्ति 18: | ||
"ओह ! इसका मतलब है तुमने मेरी बात नहीं मानी और तुम गलियों में घूमे ?" | "ओह ! इसका मतलब है तुमने मेरी बात नहीं मानी और तुम गलियों में घूमे ?" | ||
"यस सर। बहुत अच्छा लगा... खाने की चीज़े तो कमाल थीं..." | "यस सर। बहुत अच्छा लगा... खाने की चीज़े तो कमाल थीं..." | ||
"तुमने वहाँ | "तुमने वहाँ ख़ूब खाया भी होगा ? है ना ?" | ||
"यस सर!" | "यस सर!" | ||
"ठीक है, तुम इस पैकेट में कोई न कोई खाने की चीज़ ही लाए होगे ? | "ठीक है, तुम इस पैकेट में कोई न कोई खाने की चीज़ ही लाए होगे ? | ||
पंक्ति 39: | पंक्ति 38: | ||
आजकल पढ़ाई का तरीक़ा बदल रहा है। नई पीढ़ी की रुचि विज्ञान और कला में कम है। ज़्यादातर छात्र इस तरह के विषय चुन रहे हैं जो व्यापार से और पैसा कमाने से संबंधित हैं। इसलिए 'जुगाड़' करने वाली प्रतिभा कम हो रही है। असल में जुगाड़ करने के लिए ख़ाली वक़्त भी चाहिए। यह कहावत कि 'ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर' सही नहीं है, इसे होना चाहिए 'ख़ाली दिमाग़ जुगाड़ का घर'। | आजकल पढ़ाई का तरीक़ा बदल रहा है। नई पीढ़ी की रुचि विज्ञान और कला में कम है। ज़्यादातर छात्र इस तरह के विषय चुन रहे हैं जो व्यापार से और पैसा कमाने से संबंधित हैं। इसलिए 'जुगाड़' करने वाली प्रतिभा कम हो रही है। असल में जुगाड़ करने के लिए ख़ाली वक़्त भी चाहिए। यह कहावत कि 'ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर' सही नहीं है, इसे होना चाहिए 'ख़ाली दिमाग़ जुगाड़ का घर'। | ||
शायद शुरुआती जुगाड़, [[महात्मा गांधी]] ने बनाया था। उन्हें एक 'फ़ोर्ड कार' उपहार में मिली। गांधी जी ने कार के आगे बैल लगवा दिए और उसका नाम रख दिया 'ऑक्स-फ़ोर्ड'। इसके बाद तो हरियाणा-पंजाब से प्रसिद्धि प्राप्त करता हुआ 'जुगाड़' लगभग पूरे भारत में चलने लगा। | शायद शुरुआती जुगाड़, [[महात्मा गांधी]] ने बनाया था। उन्हें एक 'फ़ोर्ड कार' उपहार में मिली। गांधी जी ने कार के आगे बैल लगवा दिए और उसका नाम रख दिया 'ऑक्स-फ़ोर्ड'। इसके बाद तो हरियाणा-पंजाब से प्रसिद्धि प्राप्त करता हुआ 'जुगाड़' लगभग पूरे भारत में चलने लगा। | ||
जुगाड़ के लिए एक | जुगाड़ के लिए एक क़िस्सा और मशहूर है-</poem> | ||
[[चित्र:Jugad-3.jpg|left|200px|border]] | [[चित्र:Jugad-3.jpg|left|200px|border]] | ||
<poem> | <poem> | ||
पंक्ति 54: | पंक्ति 53: | ||
इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | ||
-आदित्य चौधरी | -आदित्य चौधरी | ||
<small> | <small>संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक</small> | ||
</poem> | </poem> | ||
|} | |} | ||
14:09, 9 मई 2021 के समय का अवतरण
कहता है जुगाड़ सारा ज़माना -आदित्य चौधरी आज 'अंतर-राष्ट्रीय जुगाड़ दिवस' है ! ... और अगर नहीं है, तो होना चाहिए। इसके साथ ही कुछ ऐसा जुगाड़ भी किया जाना चाहिए, जिससे कि एक जुगाड़ मंत्रालय का जुगाड़ हो जाये। जुगाड़ मंत्रालय की ज़रूरत हमारे देश को किसी भी अन्य मंत्रालय से अधिक है... किसी गाँव की बात है कि अधेड़ उम्र में आकर, छोटे पहलवान की पत्नी स्वर्ग सिधार गई। छोटे पहलवान अकेले रह गए लेकिन बेटे बहू के घर में होने से संतोष कर लिया। एक दिन की बात है शाम के समय छोटे पहलवान खेत से लौटे तो उन्होंने बेटे की बहू से मूँग की दाल बनाने के लिए कहा। बहू ने अपने पति से कहलवा भेजा कि 'अब रात के समय मूँग की दाल कहाँ से आएगी, इसलिए जो कुछ बना है, वही खा लें'। |