"कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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कैसे कह दूँ कि मैं भी ज़िन्दा हूँ | |||
कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ | कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ | ||
उसने देखे थे यहाँ ख़ाब कई | उसने देखे थे यहाँ ख़ाब कई | ||
पंक्ति 17: | पंक्ति 17: | ||
सर्द फ़ुटपाथ पर पड़ी थी जहाँ बेसुध वो | सर्द फ़ुटपाथ पर पड़ी थी जहाँ बेसुध वो | ||
वहीं छितरे हुए थे अहसास कई | वहीं छितरे हुए थे अहसास कई | ||
लेकिन अब वो | लेकिन अब वो ख़ाब नहीं सदमे थे | ||
इक तरफ़ कुचला हुआ वो घूँघट था | इक तरफ़ कुचला हुआ वो घूँघट था | ||
जिसे उठना था किसी ख़ास रात | जिसे उठना था किसी ख़ास रात | ||
मगर वो रात अब न आएगी कभी | मगर वो रात अब न आएगी कभी | ||
न शहनाई,न | न शहनाई, न सेहरा, न बाबुल गाएगी कभी | ||
लेकिन मुझे तो काम थे बहुत | लेकिन मुझे तो काम थे बहुत | ||
पंक्ति 28: | पंक्ति 28: | ||
उसे उठाने के लिए तो सारा ज़माना था | उसे उठाने के लिए तो सारा ज़माना था | ||
यूँ ही गिरी पड़ी रही बेसुध वो | यूँ ही गिरी पड़ी रही बेसुध वो | ||
मगर मैं | मगर मैं रुक न सका पल भर को | ||
कैसे कह दूँ कि मैं भी ज़िन्दा हूँ | |||
कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ | कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ | ||
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12:35, 18 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ -आदित्य चौधरी
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