"भारतकोश सम्पादकीय 19 मार्च 2013": अवतरणों में अंतर
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>मेरा है वास्ता <small>-आदित्य चौधरी</small></font></div> | |||
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<poem style="color=#003333"> | |||
तेरा हो या ना हो, मेरा है वास्ता | |||
जाना पहचाना लगता है ये रास्ता | |||
उसके खेतों से और उसके खलिहान से | |||
छोटे जुम्मन की फूफी की दूकान से | |||
उसके कमज़ोर कांधों के सामान से | |||
है मेरा वास्ता, मेरा है वास्ता | |||
मांगते भीख इंसान इंसान से | |||
सर्द रातों से लड़ती हुई जान से | |||
और गाँवों के बनते वीरान से | |||
है मेरा वास्ता, मेरा है वास्ता | |||
आँख से जो न टपकी हो उस बूँद से | |||
कसमसाते हुए दिल की हर गूँज से | |||
बिन लिखे उन ख़तों के मज़मून से | |||
है मेरा वास्ता, मेरा है वास्ता | |||
करवटों से परेशान फ़ुटपाथ से | |||
उस मुहल्ले के बिछड़े हुए साथ से | |||
और हँसिए को थामे हुए हाथ से | |||
मेरा है वास्ता, है मेरा वास्ता | |||
उसके अल्लाह से और भगवान से | |||
उसके भजनों से भी, उसकी आज़ान से | |||
और दंगों में जाती हुई जान से | |||
है मेरा वास्ता, मेरा है वास्ता | |||
उसके चूल्हे की बुझती हुई आग से | |||
उस हवेली की जूठन, बचे साग से | |||
टूटी चूड़ी के फूटे हुए भाग से | |||
है मेरा वास्ता, मेरा है वास्ता | |||
कम्मो दादी की धोती के पैबंद से | |||
और पसीने की आती हुई गंध से | |||
उसके जूआ छुड़ाने की सौगंध से | |||
है मेरा वास्ता, मेरा है वास्ता | |||
उसकी छत से टपकती हुई बूँद से | |||
सरहदों पर बहाए हुए ख़ून से | |||
ज़ुल्म ढाते हुए स्याह क़ानून से | |||
तेरा हो या ना हो, तेरा हो या ना हो, मेरा है वास्ता | |||
जाना पहचाना लगता है ये रास्ता | |||
कितना अपना सा लगता है ये रास्ता | |||
मेरा है वास्ता, मेरा है वास्ता | |||
मेरा है वास्ता, मेरा है वास्ता | |||
</poem> | |||
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12:29, 1 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
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