"भारतकोश सम्पादकीय 3 जून 2013": अवतरणों में अंतर
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>तुमको बताने का क्या फ़ायदा<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div> | |||
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<poem style="color=#003333"> | |||
ज़िन्दगी में फ़साने बहुत हैं मगर | |||
उनको सुनने सुनाने का क्या फ़ायदा | |||
रोज़ जीते रहे | |||
रोज़ मरते रहे | |||
आज तुमको बताने का क्या फ़ायदा | |||
देख अपनी ही तस्वीर ऐसा लगा | |||
जैसे कोई अजाना सा चेहरा मेरा | |||
रंग बदलते रहे | |||
संग चलते रहे | |||
इसको दिल से लगाने का क्या फ़ायदा | |||
दोस्तों का यूँ मिल जाना आसान है | |||
कितना मुश्किल है दूरी बनाना मगर | |||
अपनी कहते रहे | |||
ज़ुल्म सहते रहे | |||
आज पर्दा उठाने का क्या फ़ायदा | |||
वास्ता उनसे जान-ओ-जिगर का भी था | |||
जान देने की ख़्वाहिश तो उनकी भी थी | |||
दूर जाते रहे | |||
कसमसाते रहे | |||
अस्ली मक़सद जताने का क्या फ़ायदा | |||
कोई कितना भी समझाए हमको यहाँ | |||
हम मुहब्बत के घावों को सीते नहीं | |||
वो सताते रहे | |||
दिल जलाते रहे | |||
आज मरहम दिखाने का क्या फ़ायदा | |||
ज़िन्दगी का भरोसा नहीं है तो क्या | |||
मौत के ही सहारे से जी लेंगे हम | |||
वो बरसते रहे | |||
हम तरसते रहे | |||
ज़िक्र अपना चलाने का क्या फ़ायदा | |||
अपने बीते हुए दिन न लौटें कभी | |||
बीते लम्हे न आएँ कभी लौटकर | |||
ये ही गाते रहे | |||
गुनगुनाते रहे | |||
याद उनको दिलाने का क्या फ़ायदा | |||
</poem> | |||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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08:41, 23 अगस्त 2013 के समय का अवतरण
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टीका टिप्पणी और संदर्भ