"वोटरानी और वोटर -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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"अरे तो कौन सा दस-बीस साल पहले मरा है ? अभी छ: महीने पहले ही तो मरा है, एकदम से इतनी जल्दी वोट थोड़े ही ख़तम होता है... एक-दो साल तो चलेगा ही। हम भी पढ़े-लिखे हैं साहब ! दिखाओ कौन से क़ानून में लिखा है कि मरा आदमी वोट नहीं डालेगा... ये हिन्दुस्तान है बाबूजी हिन्दुस्तान... सबको बराबर का हक़ है ज़िन्दा को भी और मरे हुए को भी... डेमोकिरेसी है, डेमोकिरेसी... सब एक बराबर चाहे आदमी-औरत, बड़ा-छोटा, राजा-भिखारी... और चाहे ज़िन्दा चाहे मरा... समझे" छोटे पहलवान ने अधिकारी को समझाया। जब मामला नहीं सुलटा तो इस विवाद को पुलिस के दरोग़ा के पास ले जाया गया | "अरे तो कौन सा दस-बीस साल पहले मरा है ? अभी छ: महीने पहले ही तो मरा है, एकदम से इतनी जल्दी वोट थोड़े ही ख़तम होता है... एक-दो साल तो चलेगा ही। हम भी पढ़े-लिखे हैं साहब ! दिखाओ कौन से क़ानून में लिखा है कि मरा आदमी वोट नहीं डालेगा... ये हिन्दुस्तान है बाबूजी हिन्दुस्तान... सबको बराबर का हक़ है ज़िन्दा को भी और मरे हुए को भी... डेमोकिरेसी है, डेमोकिरेसी... सब एक बराबर चाहे आदमी-औरत, बड़ा-छोटा, राजा-भिखारी... और चाहे ज़िन्दा चाहे मरा... समझे" छोटे पहलवान ने अधिकारी को समझाया। जब मामला नहीं सुलटा तो इस विवाद को पुलिस के दरोग़ा के पास ले जाया गया | ||
दरोग़ा ने गम्भीरता से समझाया- | दरोग़ा ने गम्भीरता से समझाया- | ||
"देखिए जी ! हमारी तैनाती है यहाँ शान्ति-व्यवस्था बनाए रखने के लिए न कि किसी के ज़िन्दा-मुर्दा होने का फ़ैसला करने के लिए ... अरे ये तो काम डाक्टर का है कि बताए कि कौन ज़िन्दा है और कौन नहीं... ये हमारा काम नहीं है।... काहे को लड़ रहे हैं ?... सिर्फ एक वोट के लिए ?... अरे ! करोड़ों वोटर हैं हमारे देश में अगर एक-आध वोट कम ज़्यादा हो भी जाय तो क्या | "देखिए जी ! हमारी तैनाती है यहाँ शान्ति-व्यवस्था बनाए रखने के लिए न कि किसी के ज़िन्दा-मुर्दा होने का फ़ैसला करने के लिए ... अरे ये तो काम डाक्टर का है कि बताए कि कौन ज़िन्दा है और कौन नहीं... ये हमारा काम नहीं है।... काहे को लड़ रहे हैं ?... सिर्फ एक वोट के लिए ?... अरे ! करोड़ों वोटर हैं हमारे देश में अगर एक-आध वोट कम ज़्यादा हो भी जाय तो क्या फ़र्क़ पड़ता है जी ? हमारे देश में जब करोड़ों ज़िन्दा वोटर वोट नहीं देते तो एक मरा हुआ वोटर वोट दे दे तो क्या परेशानी है ?" | ||
चुनाव अधिकारी ने एक दूसरे वरिष्ठ अधिकारी से संपर्क किया तो जवाब मिला- | चुनाव अधिकारी ने एक दूसरे वरिष्ठ अधिकारी से संपर्क किया तो जवाब मिला- | ||
"यार ! तुम नौजवान हो तुमने दुनिया नहीं देखी। जो कुछ हो रहा है, होने दो। मेरे सफ़ेद बालों को देखो तो सब समझ में आ जाएगा। छोटे पहलवान यहाँ का नेता है। मंत्री जी का आदमी है। कल को हमें-तुम्हें काम पड़ेगा तो छोटे पहलवान ही काम आएगा... समझे !" | "यार ! तुम नौजवान हो तुमने दुनिया नहीं देखी। जो कुछ हो रहा है, होने दो। मेरे सफ़ेद बालों को देखो तो सब समझ में आ जाएगा। छोटे पहलवान यहाँ का नेता है। मंत्री जी का आदमी है। कल को हमें-तुम्हें काम पड़ेगा तो छोटे पहलवान ही काम आएगा... समझे !" | ||
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सारा खेल वोट का है जिसे 'वोटर' देता है। हमारे देश में जब भी कोई बच्चा पैदा होता है तो आकाशवाणी होती है- | सारा खेल वोट का है जिसे 'वोटर' देता है। हमारे देश में जब भी कोई बच्चा पैदा होता है तो आकाशवाणी होती है- | ||
"हे वोटरानी! ये नौनिहाल जो तेरी गोदी में मचल रहा है यह बड़ा होकर क्या बनेगा ! इसकी जिज्ञासा तो तुझे अवश्य होगी ही... लेकिन तू परेशान न हो ये भी भारत के अन्य बच्चों की तरह वोटर ही बनेगा। वोटर और सिर्फ़ वोटर न इससे ज़्यादा न कम..." | "हे वोटरानी! ये नौनिहाल जो तेरी गोदी में मचल रहा है यह बड़ा होकर क्या बनेगा ! इसकी जिज्ञासा तो तुझे अवश्य होगी ही... लेकिन तू परेशान न हो ये भी भारत के अन्य बच्चों की तरह वोटर ही बनेगा। वोटर और सिर्फ़ वोटर न इससे ज़्यादा न कम..." | ||
इसके बाद | इसके बाद माँ बच्चे को लोरी गाकर सुलाने लगती है- | ||
"सो जा वोटर मेरे सो जा..." | "सो जा वोटर मेरे सो जा..." | ||
'वोटर', वैसे तो विश्व के कोने-कोने में पाया जाता है लेकिन भारत के वोटर की नस्ल सबसे अलग है। वोटरों की कई प्रजातियाँ भी हैं जैसे सयाना, सीधा, पढ़ा-लिखा, गुम्म, रूठा, बिकाऊ, सौदेबाज़ आदि। | 'वोटर', वैसे तो विश्व के कोने-कोने में पाया जाता है लेकिन भारत के वोटर की नस्ल सबसे अलग है। वोटरों की कई प्रजातियाँ भी हैं जैसे सयाना, सीधा, पढ़ा-लिखा, गुम्म, रूठा, बिकाऊ, सौदेबाज़ आदि। | ||
वोटर बनना आसान नहीं है। इसके लिए कई शर्तें हैं जो पूरी करनी पड़ती हैं लेकिन नेताओं की नज़र से अगर देखें तो सबसे अच्छा वोटर वही माना जाता है जो ज़िन्दा ही न हो यानि बहुत पहले ही मर चुका हो क्योंकि इस प्रकार का वोटर बिना किसी मांग के और बिना कोई वादा लिए वोट दे सकता है। दूसरा वह जो कभी भी पोलिंग बूथ पर न जाए लेकिन उसका वोट हर चुनाव में डल जाय। ऊपर वाले दोनों प्रकार के वोटर सबसे अच्छे माने जाते हैं क्योंकि इनका वोट उम्मीदवार के शुभचिंतकों द्वारा ही डाले जाते हैं। ये दोनों ही क़िस्में भारत में या भारत जैसे देशों में ही पायी जाती हैं। | वोटर बनना आसान नहीं है। इसके लिए कई शर्तें हैं जो पूरी करनी पड़ती हैं लेकिन नेताओं की नज़र से अगर देखें तो सबसे अच्छा वोटर वही माना जाता है जो ज़िन्दा ही न हो यानि बहुत पहले ही मर चुका हो क्योंकि इस प्रकार का वोटर बिना किसी मांग के और बिना कोई वादा लिए वोट दे सकता है। दूसरा वह जो कभी भी पोलिंग बूथ पर न जाए लेकिन उसका वोट हर चुनाव में डल जाय। ऊपर वाले दोनों प्रकार के वोटर सबसे अच्छे माने जाते हैं क्योंकि इनका वोट उम्मीदवार के शुभचिंतकों द्वारा ही डाले जाते हैं। ये दोनों ही क़िस्में भारत में या भारत जैसे देशों में ही पायी जाती हैं। | ||
18 वर्ष की आयु तक प्रत्येक भारतीय का जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होता है। इसके बाद वही सीधा-सादा भारतीय नागरिक एक वोटर में परिवर्तित हो जाता है। वोटर बनते ही वह सभी राजनीतिक दलों की 'निगाह' में वैसे ही आ जाता जैसे ईद से पहले कोई तन्दुरुस्त बकरा। इस बेचारे वोटर को तरह-तरह से बहलाया फुसलाया जाता है और जब वो इस लायक़ बन जाता है कि अपने दिमाग़ का इस्तेमाल किए 'बिना' वोट दे सके तो उससे वोट ले लिया जाता है। इस सारी बाज़ीगरी से वोटर के दिमाग़ में यह बैठ जाता है कि वोट देना उसका कर्तव्य नहीं है बल्कि राजनीतिक दलों और नेताओं पर किया जाने वाला एक अहसान है। वोटर अपने वोट का संबंध देश के भविष्य से न मान कर नेताओं के भविष्य से मानने लगता है। | 18 वर्ष की आयु तक प्रत्येक भारतीय का जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होता है। इसके बाद वही सीधा-सादा भारतीय नागरिक एक वोटर में परिवर्तित हो जाता है। वोटर बनते ही वह सभी राजनीतिक दलों की 'निगाह' में वैसे ही आ जाता जैसे ईद से पहले कोई तन्दुरुस्त बकरा। इस बेचारे वोटर को तरह-तरह से बहलाया फुसलाया जाता है और जब वो इस लायक़ बन जाता है कि अपने दिमाग़ का इस्तेमाल किए 'बिना' वोट दे सके तो उससे वोट ले लिया जाता है। इस सारी बाज़ीगरी से वोटर के दिमाग़ में यह बैठ जाता है कि वोट देना उसका कर्तव्य नहीं है बल्कि राजनीतिक दलों और नेताओं पर किया जाने वाला एक अहसान है। वोटर अपने वोट का संबंध देश के भविष्य से न मान कर नेताओं के भविष्य से मानने लगता है। | ||
चुनाव शुरू होते हैं। चुनावी सभाओं में नेता हॅलीकॉप्टर से आते हैं और अपने आप को जनता का सेवक बताते हैं, जिससे जनता को तुरंत विश्वास हो जाता है कि भई वाक़ई सही बात है, ये जनता का सेवक ही तो है वरना बेचारा हॅलीकॉप्टर में कैसे चल सकता है। दूसरा ये भी है कि आम आदमी को बड़ा गर्व भी होता है कि देखो ! हम न सही लेकिन हमारा नौकर तो हॅलीकॉप्टर में चल रहा है। अनेक राजनीतिक दल वोटर को तरह-तरह की योजनाएं बना कर यह समझाने का प्रयास करते हैं कि वोटर होना, जीवन की एक | चुनाव शुरू होते हैं। चुनावी सभाओं में नेता हॅलीकॉप्टर से आते हैं और अपने आप को जनता का सेवक बताते हैं, जिससे जनता को तुरंत विश्वास हो जाता है कि भई वाक़ई सही बात है, ये जनता का सेवक ही तो है वरना बेचारा हॅलीकॉप्टर में कैसे चल सकता है। दूसरा ये भी है कि आम आदमी को बड़ा गर्व भी होता है कि देखो ! हम न सही लेकिन हमारा नौकर तो हॅलीकॉप्टर में चल रहा है। अनेक राजनीतिक दल वोटर को तरह-तरह की योजनाएं बना कर यह समझाने का प्रयास करते हैं कि वोटर होना, जीवन की एक महान् घटना है और वोटर को ख़ुद यह मालूम नहीं है कि किसे वोट देना है। बेचारा वोटर क्या जाने कि वोट कैसे, किसे और कब देना है इसीलिए चुनावी सभाएं की जाती हैं, रैलियां निकाली जाती हैं और घर-घर जाकर वोट मांगे जाते हैं। शराब पिलाई जाती है, उपहार बाँटे जाते हैं और नक़द रुपया दिया जाता है। विज्ञापनों द्वारा यह प्रचार किया जाता है कि वोट ज़रूर दो। | ||
ये जो 'वोट ज़रुर दो ये तुम्हारा हक़ है, कर्तव्य है।' का वाक्य, चुनाव के क़रीब आने पर धीरे-धीरे अपना रंग बदलने लगता है ज़रा देखिए कैसे- | ये जो 'वोट ज़रुर दो ये तुम्हारा हक़ है, कर्तव्य है।' का वाक्य, चुनाव के क़रीब आने पर धीरे-धीरे अपना रंग बदलने लगता है ज़रा देखिए कैसे- | ||
चुनाव से 15 दिन पहले (स्थान: कोई सभा स्थल जैसे चौपाल): | चुनाव से 15 दिन पहले (स्थान: कोई सभा स्थल जैसे चौपाल): | ||
पंक्ति 54: | पंक्ति 54: | ||
"अरे! ऐसा कैसे हो सकता है कि आपके यहाँ सड़क नहीं है... क्या कह रहे हैं ? स्कूल भी नहीं है... बड़े कमाल की बात है... मैं अभी रिपोर्ट मंगवाता हूँ..." | "अरे! ऐसा कैसे हो सकता है कि आपके यहाँ सड़क नहीं है... क्या कह रहे हैं ? स्कूल भी नहीं है... बड़े कमाल की बात है... मैं अभी रिपोर्ट मंगवाता हूँ..." | ||
अब इसके बाद सारा मामला उन अधिकारियों के हाथ में सौंप दिया जाता है जो चालाक लोमड़ी होने के बावजूद ख़ुद को भेड़ साबित करने में स्वर्ण पदक विजेता होते हैं। | अब इसके बाद सारा मामला उन अधिकारियों के हाथ में सौंप दिया जाता है जो चालाक लोमड़ी होने के बावजूद ख़ुद को भेड़ साबित करने में स्वर्ण पदक विजेता होते हैं। | ||
ऐसा नहीं है कि जनता यह नहीं जानती कि चुनाव के बाद नेता | ऐसा नहीं है कि जनता यह नहीं जानती कि चुनाव के बाद नेता अचानक रंग पलट जाते हैं, जनता सब जानती है लेकिन इसका आनंद लेती है और भाग्यवादी भारत की जनता इस तरह की बातों को भाग्य का लेखा या क़िस्मत की लिखाई ही समझ लेती है। इस तरह देश चलता रहता है और आम आदमी, नेताओं को म्यूज़िकल चेयर वाले खेल की तरह बदलता रहता है। | ||
09:55, 30 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
वोटरानी और वोटर -आदित्य चौधरी चुनाव हो रहे हैं। एक गाँव के स्कूल में पोलिंग बूथ बना हुआ है। दनादन वोट डाले जा रहे हैं। पोलिंग बूथ के आस-पास एक आदमी गले में एक थैला लटका कर कुछ बेच रहा है और आवाज़ लगा रहा है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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