"नाट्य शास्त्र": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
आदित्य चौधरी (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "निरुपण" to "निरूपण") |
||
(3 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
[[चित्र:Natyasastra.jpg|thumb|250px|नाट्यशास्त्र]] | |||
'''नाट्यशास्त्र''' नाट्य कला पर व्यापक ग्रंथ एवं टीका, जिसमें शास्त्रीय संस्कृत [[रंगमंच]] के सभी पहलुओं का वर्णन है। माना जाता है कि इसे तीसरी शताब्दी से पहले [[भरत मुनि]] ने लिखा था। | '''नाट्यशास्त्र''' नाट्य कला पर व्यापक ग्रंथ एवं टीका, जिसमें शास्त्रीय संस्कृत [[रंगमंच]] के सभी पहलुओं का वर्णन है। माना जाता है कि इसे तीसरी शताब्दी से पहले [[भरत मुनि]] ने लिखा था। | ||
पंक्ति 6: | पंक्ति 7: | ||
==नाट्यशास्त्र का स्वरूप== | ==नाट्यशास्त्र का स्वरूप== | ||
अभिनव गुप्त के मतानुसार नाट्य शास्त्र के 36 अध्याय हैं। इसमें कुल 4426 [[श्लोक]] और गद्यभाग हैं। नाट्यशास्त्र की आवृतियां निर्णय सागर प्रेस, चौखम्बा संस्कृत ग्रंथमाला<ref>[[गायकवाड़]] प्राच्य विद्यामाला</ref> द्वारा प्रकाशित हुई है। गुजराती के [[कवि]] नथुराम सुंदरजी की 'नाट्य शास्त्र' पुस्तक है, जिसमें नाट्य शास्त्र का सार दिया गया है। | अभिनव गुप्त के मतानुसार नाट्य शास्त्र के 36 अध्याय हैं। इसमें कुल 4426 [[श्लोक]] और गद्यभाग हैं। नाट्यशास्त्र की आवृतियां निर्णय सागर प्रेस, चौखम्बा संस्कृत ग्रंथमाला<ref>[[गायकवाड़]] प्राच्य विद्यामाला</ref> द्वारा प्रकाशित हुई है। गुजराती के [[कवि]] नथुराम सुंदरजी की 'नाट्य शास्त्र' पुस्तक है, जिसमें नाट्य शास्त्र का सार दिया गया है। | ||
==नाट्यशास्त्र के टीकाकार== | ==नाट्यशास्त्र के टीकाकार== | ||
भरत के हाल ही में उपलब्ध नाट्यशास्त्र पर सर्वाधिक प्रमाणिक और विद्वत्तापूर्ण 'अभिनव भारती' टीका के कर्ता अभिनव गुप्त हैं। यह टीका ई. सन 1013 में लिखी गयी थी। अभिनव गुप्त के पूर्व नाट्यशास्त्र पर उद्भट त्नोल्लट, [[शंकुक]], कीर्तिधर, भट्टनायक आदि ने टीकाएं लिखी थी। [[कालिदास]], [[बाण]], [[श्रीहर्ष]], [[भवभूति]] आदि [[संस्कृत]] नाट्यकार नाट्य शास्त्र को सर्वप्रमाण मूर्धन्य मानते थे। | भरत के हाल ही में उपलब्ध नाट्यशास्त्र पर सर्वाधिक प्रमाणिक और विद्वत्तापूर्ण 'अभिनव भारती' टीका के कर्ता अभिनव गुप्त हैं। यह टीका ई. सन 1013 में लिखी गयी थी। अभिनव गुप्त के पूर्व नाट्यशास्त्र पर उद्भट त्नोल्लट, [[शंकुक]], कीर्तिधर, भट्टनायक आदि ने टीकाएं लिखी थी। [[कालिदास]], [[बाण]], [[श्रीहर्ष]], [[भवभूति]] आदि [[संस्कृत]] नाट्यकार नाट्य शास्त्र को सर्वप्रमाण मूर्धन्य मानते थे। | ||
==नाट्यशास्त्र का विषय== | ==नाट्यशास्त्र का विषय== | ||
नाट्य शास्त्र में नाट्य शास्त्र से संबंधित सभी विषयों का आवश्यकतानुसार विस्तार के साथ अथवा संक्षेप में | नाट्य शास्त्र में नाट्य शास्त्र से संबंधित सभी विषयों का आवश्यकतानुसार विस्तार के साथ अथवा संक्षेप में निरूपण किया गया है। विषयवस्तु, पात्र, प्रेक्षागृह, रस, वृति, अभिनय, [[भाषा]], [[नृत्य]], [[गीत]], [[वाद्य यंत्र|वाद्य]], पात्रों के परिधान, प्रयोग के समय की जाने वाली धार्मिक क्रिया, नाटक के अलग अलग वर्ग, भाव, शैली, सूत्रधार, विदूषक, गणिका, गणिका, नायिका आदि पात्रों में किस प्रकार की कुशलता अपेक्षित है, आदि नाटक से संबंधित सभी वस्तुओं का विचार किया गया है। नाट्यशास्त्र ने जिस तरह से और जैसा निरूपण नाट्य स्वरूप का किया है, उसे देखते हुए यदि 'न भूतो न भविष्यति' कहें तो उचित ही है, क्योंकि ऐसा निरूपण पिछले 2000 वर्षों में किसी ने नहीं किया। | ||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | ||
|आधार= | |||
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 | |||
|माध्यमिक= | |||
|पूर्णता= | |||
|शोध= | |||
}} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
भारतीय संस्कृति के सर्जक, पेज न. (35) | भारतीय संस्कृति के सर्जक, पेज न. (35) | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{नृत्य कला}} | {{रंगमंच}}{{नृत्य कला}} | ||
[[Category:नाट्य और अभिनय]][[Category:नाट्य कला]] [[Category:कला कोश]] | [[Category:रंगमंच]][[Category:नाट्य और अभिनय]][[Category:नाट्य कला]] [[Category:कला कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
07:53, 6 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
नाट्यशास्त्र नाट्य कला पर व्यापक ग्रंथ एवं टीका, जिसमें शास्त्रीय संस्कृत रंगमंच के सभी पहलुओं का वर्णन है। माना जाता है कि इसे तीसरी शताब्दी से पहले भरत मुनि ने लिखा था।
इसके कई अध्यायों में नृत्य, संगीत, कविता एवं सामान्य सौंदर्यशास्त्र सहित नाटक की सभी भारतीय अवधारणाओं में समाहित हर प्रकार की कला पर विस्तार से विचार-विमर्श किया गया है। इसका बुनियादी महत्व भारतीय नाटक को जीवन के चार लक्ष्यों, धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष के प्रति जागरूक बनाने के माध्यम के रूप में इसका औचित्य सिद्ध करना है।
दंत कथा
भरतमुनि के नाट्य शास्त्र के विषय में ऐसी दंत कथा है कि त्रेता युग में लोग दु:ख, आपत्ति से पीड़ित हो रहे थे। इन्द्र की प्रार्थना पर ब्रह्मा ने चारों वर्णों और विशेष रूप से शूद्रों के मनोरंजन और अलौकिक आनंद के लिए 'नाट्यवेद' नामक पांचवें वेद का निर्माण किया। इस वेद का निर्माण ऋग्वेद में से पाठ्य वस्तु, सामवेद से गान, यजुर्वेद में से अभिनय और अथर्ववेद में से रस लेकर किया गया। भरतमुनि को उसका प्रयोग करने का कार्य सौंपा गया। भरतमुनि ने 'नाट्य शास्त्र' की रचना की और अपने पुत्रों को पढ़ाया। इस दंत कथा से इतना तो अवश्य फलित होता है कि भरतमुनि संस्कृत नाट्यशास्त्र के आद्य प्रवर्तक हैं।
नाट्यशास्त्र का स्वरूप
अभिनव गुप्त के मतानुसार नाट्य शास्त्र के 36 अध्याय हैं। इसमें कुल 4426 श्लोक और गद्यभाग हैं। नाट्यशास्त्र की आवृतियां निर्णय सागर प्रेस, चौखम्बा संस्कृत ग्रंथमाला[1] द्वारा प्रकाशित हुई है। गुजराती के कवि नथुराम सुंदरजी की 'नाट्य शास्त्र' पुस्तक है, जिसमें नाट्य शास्त्र का सार दिया गया है।
नाट्यशास्त्र के टीकाकार
भरत के हाल ही में उपलब्ध नाट्यशास्त्र पर सर्वाधिक प्रमाणिक और विद्वत्तापूर्ण 'अभिनव भारती' टीका के कर्ता अभिनव गुप्त हैं। यह टीका ई. सन 1013 में लिखी गयी थी। अभिनव गुप्त के पूर्व नाट्यशास्त्र पर उद्भट त्नोल्लट, शंकुक, कीर्तिधर, भट्टनायक आदि ने टीकाएं लिखी थी। कालिदास, बाण, श्रीहर्ष, भवभूति आदि संस्कृत नाट्यकार नाट्य शास्त्र को सर्वप्रमाण मूर्धन्य मानते थे।
नाट्यशास्त्र का विषय
नाट्य शास्त्र में नाट्य शास्त्र से संबंधित सभी विषयों का आवश्यकतानुसार विस्तार के साथ अथवा संक्षेप में निरूपण किया गया है। विषयवस्तु, पात्र, प्रेक्षागृह, रस, वृति, अभिनय, भाषा, नृत्य, गीत, वाद्य, पात्रों के परिधान, प्रयोग के समय की जाने वाली धार्मिक क्रिया, नाटक के अलग अलग वर्ग, भाव, शैली, सूत्रधार, विदूषक, गणिका, गणिका, नायिका आदि पात्रों में किस प्रकार की कुशलता अपेक्षित है, आदि नाटक से संबंधित सभी वस्तुओं का विचार किया गया है। नाट्यशास्त्र ने जिस तरह से और जैसा निरूपण नाट्य स्वरूप का किया है, उसे देखते हुए यदि 'न भूतो न भविष्यति' कहें तो उचित ही है, क्योंकि ऐसा निरूपण पिछले 2000 वर्षों में किसी ने नहीं किया।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय संस्कृति के सर्जक, पेज न. (35)