"दिलों के टूट जाने की -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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नहीं आवाज़ होती है, दिलों के टूट जाने की | नहीं आवाज़ होती है, दिलों के टूट जाने की | ||
ज़रूरत क्या है फिर तुमको, इसे सुनने-सुनाने की | ज़रूरत क्या है फिर तुमको, इसे सुनने-सुनाने की | ||
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हज़ारों ख़्वाइशों को छोड़ के तुमको ही चाहा था | हज़ारों ख़्वाइशों को छोड़ के तुमको ही चाहा था | ||
तुम्हें | तुम्हें बेचैनियां रहती हैं अब सारे ज़माने की | ||
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16:52, 29 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
![]() दिलों के टूट जाने की -आदित्य चौधरी
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