"रंग का इतिहास": अवतरणों में अंतर
नवनीत कुमार (वार्ता | योगदान) No edit summary |
आदित्य चौधरी (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "मुताबिक" to "मुताबिक़") |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 36: | पंक्ति 36: | ||
[[चित्र:King-priest-mohenjo-daro.jpg|thumb|left|प्रधान अनुष्ठानकर्ता मोहनजोदाड़ो 2000 ई.पू.]] | [[चित्र:King-priest-mohenjo-daro.jpg|thumb|left|प्रधान अनुष्ठानकर्ता मोहनजोदाड़ो 2000 ई.पू.]] | ||
==रंगों की तलाश== | ==रंगों की तलाश== | ||
क़रीब सौ साल पहले पश्चिम में हुई औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप कपड़ा उद्योग का | क़रीब सौ साल पहले पश्चिम में हुई औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप कपड़ा उद्योग का तेज़ीसे विकास हुआ। रंगों की खपत बढ़ी। प्राकृतिक रंग सीमित मात्रा में उपलब्ध थे इसलिए बढ़ी हुई मांग की पूर्ति प्राकृतिक रंगों से संभव नहीं थी। ऐसी स्थिति में कृत्रिम रंगों की तलाश आरंभ हुई। उन्हीं दिनों रॉयल कॉलेज ऑफ़ केमिस्ट्री, लंदन में विलियम पार्कीसन एनीलीन से मलेरिया की दवा कुनैन बनाने में जुटे थे। तमाम प्रयोग के बाद भी कुनैन तो नहीं बन पायी, लेकिन [[बैंगनी रंग]] ज़रूर बन गया। महज संयोगवश 1856 में तैयार हुए इस कृत्रिम रंग को मोव कहा गया। आगे चलकर 1860 में [[रानी रंग]], 1862 में एनलोन नीला और एनलोन काला, [[1865]] में बिस्माई भूरा, [[1880]] में सूती काला जैसे रासायनिक रंग अस्तित्त्व में आ चुके थे। शुरू में यह रंग तारकोल से तैयार किए जाते थे। बाद में इनका निर्माण कई अन्य रासायनिक [[पदार्थ|पदार्थों]] के सहयोग से होने लगा। जर्मन रसायनशास्त्री एडोल्फ फोन ने [[1865]] में कृत्रिम नील के विकास का कार्य अपने हाथ में लिया। कई असफलताओं और लंबी मेहनत के बाद [[1882]] में वे नील की संरचना निर्धारित कर सके। इसके अगले वर्ष रासायनिक नील भी बनने लगा। इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए बइयर साहब को [[1905]] का [[नोबेल पुरस्कार]] भी प्राप्त हुआ था। | ||
[[मुंबई]] में रंग का काम करने वाली कामराजजी नामक फर्म ने सबसे पहले [[1867]] में रानी रंग (मजेंटा) का आयात किया था। [[1872]] में जर्मन रंग विक्रेताओं का एक दल एलिजिरिन नामक रंग लेकर यहाँ आया था। इन लोगों ने भारतीयों के बीच अपना रंग चलाने के लिए तमाम हथकंडे अपनाए। आरंभ में उन्होंने नमूने के रूप में अपने रंग मुफ़्त बांटे। बाद में अच्छा ख़ासा ब्याज वसूला। वनस्पति रंगों के मुक़ाबले रासायनिक रंग काफ़ी सस्ते थे। इनमें तात्कालिक चमक-दमक भी खूब थी। यह आसानी से उपलब्ध भी हो जाते थे। इसलिए हमारी प्राकृतिक रंगों की परंपरा में यह रंग आसानी से क़ब्ज़ा जमाने में कामयाब हो गए।।<ref>{{cite web |url=http://khulasaa.com/index.php?option=com_content&view=article&id=126&Itemid=48 |title=कैसे आए कृत्रिम रंग |accessmonthday=[[16 अक्टूबर]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=खुलासा डॉट कॉम |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | [[मुंबई]] में रंग का काम करने वाली कामराजजी नामक फर्म ने सबसे पहले [[1867]] में रानी रंग (मजेंटा) का आयात किया था। [[1872]] में जर्मन रंग विक्रेताओं का एक दल एलिजिरिन नामक रंग लेकर यहाँ आया था। इन लोगों ने भारतीयों के बीच अपना रंग चलाने के लिए तमाम हथकंडे अपनाए। आरंभ में उन्होंने नमूने के रूप में अपने रंग मुफ़्त बांटे। बाद में अच्छा ख़ासा ब्याज वसूला। वनस्पति रंगों के मुक़ाबले रासायनिक रंग काफ़ी सस्ते थे। इनमें तात्कालिक चमक-दमक भी खूब थी। यह आसानी से उपलब्ध भी हो जाते थे। इसलिए हमारी प्राकृतिक रंगों की परंपरा में यह रंग आसानी से क़ब्ज़ा जमाने में कामयाब हो गए।।<ref>{{cite web |url=http://khulasaa.com/index.php?option=com_content&view=article&id=126&Itemid=48 |title=कैसे आए कृत्रिम रंग |accessmonthday=[[16 अक्टूबर]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=खुलासा डॉट कॉम |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
पंक्ति 49: | पंक्ति 49: | ||
*[http://www.samaydarpan.com/Dec2010/samajrangose.aspx रंगों से सँवारे जीवन] | *[http://www.samaydarpan.com/Dec2010/samajrangose.aspx रंगों से सँवारे जीवन] | ||
*[http://epsos.de/hi/%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5 रंग का अर्थ] | *[http://epsos.de/hi/%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5 रंग का अर्थ] | ||
*[http://thatshindi.oneindia.in/astrology/2010/color-astrology.html राशियों के | *[http://thatshindi.oneindia.in/astrology/2010/color-astrology.html राशियों के मुताबिक़ चुनें कपड़ों के रंग] | ||
*[http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3282866.cms भाग्यशाली रंगों से भरें ज़िंदगी में रंग] | *[http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3282866.cms भाग्यशाली रंगों से भरें ज़िंदगी में रंग] | ||
*[http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0/%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE-%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%82-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%B9%E0%A4%A4-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%82-1110627012_1.htm रंग बिरंगा खाएं, शानदार सेहत पाएं] | *[http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0/%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE-%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%82-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%B9%E0%A4%A4-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%82-1110627012_1.htm रंग बिरंगा खाएं, शानदार सेहत पाएं] |
09:51, 11 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
रंग का इतिहास
| |
विवरण | रंग का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। रंगों से हमें विभिन्न स्थितियों का पता चलता है। हम अपने चारों तरफ अनेक प्रकार के रंगों से प्रभावित होते हैं। |
उत्पत्ति | रंग, मानवी आँखों के वर्णक्रम से मिलने पर छाया सम्बंधी गतिविधियों से उत्पन्न होते हैं। मूल रूप से इंद्रधनुष के सात रंगों को ही रंगों का जनक माना जाता है, ये सात रंग लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला तथा बैंगनी हैं। |
मुख्य स्रोत | रंगों की उत्पत्ति का सबसे प्राकृतिक स्रोत सूर्य का प्रकाश है। सूर्य के प्रकाश से विभिन्न प्रकार के रंगों की उत्पत्ति होती है। प्रिज़्म की सहायता से देखने पर पता चलता है कि सूर्य सात रंग ग्रहण करता है जिसे सूक्ष्म रूप या अंग्रेज़ी भाषा में VIBGYOR और हिन्दी में "बैं जा नी ह पी ना ला" कहा जाता है। |
VIBGYOR | |
रंगों के प्रकार | प्राथमिक रंग (लाल, नीला और हरा), द्वितीयक रंग और विरोधी रंग |
संबंधित लेख | इंद्रधनुष, तरंग दैर्ध्य, वर्ण विक्षेपण, अपवर्तन, होली |
अन्य जानकारी | विश्व की सभी भाषाओं में रंगों की विभिन्न छवियों को भिन्न नाम प्रदान किए गए हैं। लेकिन फिर भी रंगों को क्रमबद्ध नहीं किया जा सका। अंग्रेज़ी भाषा में किसी एक छवि के अनेकानेक नाम हैं। |
रंग अथवा वर्ण का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। रंगों से हमें विभिन्न स्थितियों का पता चलता है। मूल रूप से इंद्रधनुष के सात रंगों को ही रंगों का जनक माना जाता है, ये सात रंग लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला तथा बैंगनी हैं।
रंग हज़ारों वर्षों से हमारे जीवन में अपनी जगह बनाए हुए हैं। प्राचीनकाल से ही रंग कला में भारत का विशेष योगदान रहा है। मुग़ल काल में भारत में रंग कला को अत्यधिक महत्त्व मिला। यहाँ तक कि कई नये-नये रंगों का आविष्कार भी हुआ। इससे ऐसा आभास होता है कि रंगों के उपलब्ध कठिन पारिभाषिक नामों के अतिरिक्त भारतीय भाषाओं में उनके सुगम नाम भी विद्यमान रहे होंगे। यहाँ आजकल कृत्रिम रंगों का उपयोग ज़ोरों पर है वहीं प्रारंभ में लोग प्राकृतिक रंगों को ही उपयोग में लाते थे। उल्लेखनीय है कि मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई में सिंधु घाटी सभ्यता की जो चीज़ें मिलीं उनमें ऐसे बर्तन और मूर्तियाँ भी थीं, जिन पर रंगाई की गई थी। उनमें एक लाल रंग के कपड़े का टुकड़ा भी मिला। विशेषज्ञों के अनुसार इस पर मजीठ या मजिष्ठा की जड़ से तैयार किया गया रंग चढ़ाया गया था। हज़ारों वर्षों तक मजीठ की जड़ और बक्कम वृक्ष की छाल लाल रंग का मुख्य स्रोत थी। पीपल, गूलर और पाकड़ जैसे वृक्षों पर लगने वाली लाख की कृमियों की लाह से महाउर रंग तैयार किया जाता था। पीला रंग और सिंदूर हल्दी से प्राप्त होता था।
रंगों की तलाश
क़रीब सौ साल पहले पश्चिम में हुई औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप कपड़ा उद्योग का तेज़ीसे विकास हुआ। रंगों की खपत बढ़ी। प्राकृतिक रंग सीमित मात्रा में उपलब्ध थे इसलिए बढ़ी हुई मांग की पूर्ति प्राकृतिक रंगों से संभव नहीं थी। ऐसी स्थिति में कृत्रिम रंगों की तलाश आरंभ हुई। उन्हीं दिनों रॉयल कॉलेज ऑफ़ केमिस्ट्री, लंदन में विलियम पार्कीसन एनीलीन से मलेरिया की दवा कुनैन बनाने में जुटे थे। तमाम प्रयोग के बाद भी कुनैन तो नहीं बन पायी, लेकिन बैंगनी रंग ज़रूर बन गया। महज संयोगवश 1856 में तैयार हुए इस कृत्रिम रंग को मोव कहा गया। आगे चलकर 1860 में रानी रंग, 1862 में एनलोन नीला और एनलोन काला, 1865 में बिस्माई भूरा, 1880 में सूती काला जैसे रासायनिक रंग अस्तित्त्व में आ चुके थे। शुरू में यह रंग तारकोल से तैयार किए जाते थे। बाद में इनका निर्माण कई अन्य रासायनिक पदार्थों के सहयोग से होने लगा। जर्मन रसायनशास्त्री एडोल्फ फोन ने 1865 में कृत्रिम नील के विकास का कार्य अपने हाथ में लिया। कई असफलताओं और लंबी मेहनत के बाद 1882 में वे नील की संरचना निर्धारित कर सके। इसके अगले वर्ष रासायनिक नील भी बनने लगा। इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए बइयर साहब को 1905 का नोबेल पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था।
मुंबई में रंग का काम करने वाली कामराजजी नामक फर्म ने सबसे पहले 1867 में रानी रंग (मजेंटा) का आयात किया था। 1872 में जर्मन रंग विक्रेताओं का एक दल एलिजिरिन नामक रंग लेकर यहाँ आया था। इन लोगों ने भारतीयों के बीच अपना रंग चलाने के लिए तमाम हथकंडे अपनाए। आरंभ में उन्होंने नमूने के रूप में अपने रंग मुफ़्त बांटे। बाद में अच्छा ख़ासा ब्याज वसूला। वनस्पति रंगों के मुक़ाबले रासायनिक रंग काफ़ी सस्ते थे। इनमें तात्कालिक चमक-दमक भी खूब थी। यह आसानी से उपलब्ध भी हो जाते थे। इसलिए हमारी प्राकृतिक रंगों की परंपरा में यह रंग आसानी से क़ब्ज़ा जमाने में कामयाब हो गए।।[1]
रंग का इतिहास |
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कैसे आए कृत्रिम रंग (हिन्दी) खुलासा डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 16 अक्टूबर, 2010।
बाहरी कड़ियाँ
- रंगों से सँवारे जीवन
- रंग का अर्थ
- राशियों के मुताबिक़ चुनें कपड़ों के रंग
- भाग्यशाली रंगों से भरें ज़िंदगी में रंग
- रंग बिरंगा खाएं, शानदार सेहत पाएं
- नीले रंग का कमाल
संबंधित लेख