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==परिचय==
==परिचय==
मूल रूप से [[पंजाब]] के [[जालंधर]] और अब मवाना रोड डिफेंस कालोनी निवासी सेना में कैप्टन पी.एल. तलवार के सुपुत्र मनोज तलवार का जन्म 29 अगस्त, 1969 को मुज़फ़्फ़रनगर, [[उत्तर प्रदेश]] की गांधी कॉलोनी में हुआ था। जब मनोज दस साल के थे तो [[पिता]] की पोस्टिंग [[कानपुर]] में थी। घर के पास प्लॉट में तारबंदी थी। वहां से सेना के जवान परेड के लिए जाते थे। मनोज तारबंदी कूदकर जवानों से हैलो बोलकर आते थे। पिता की वर्दी पहनकर अपने दोस्तों के साथ जवानों की तरह जंग करने के सीन बनाते थे। जवानों को देखकर यही कहते कि "मैं बड़ा होकर सेना में जाऊंगा।"
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==सियाचिन में नियुक्ति==
==सियाचिन में नियुक्ति==
मनोज तलवार एनडीए में सेलेक्ट हो गए थे। वर्ष [[1992]] में कमीशन प्राप्त कर 'महार रेजीमेंट' में लेफ्टीनेंट पद पर नियुक्त हुए। प्रथम तैनाती [[जम्मू-कश्मीर]] में हुई। कमांडो की विशेष ट्रेनिंग के बाद उन्हें [[असम]] में उल्फा उग्रवादियों का सफाया करने के लिए भेजा गया। [[फ़रवरी]], [[1999]] में मेजर मनोज तलवार की रेजीमेंट फ़िरोजपुर, पंजाब में तैनात हुई। लेकिन कुछ कर गुजरने की चाह रखने वाले मेजर मनोज तलवार ने [[सियाचिन]] में नियुक्ति की मांग कर दी।
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सियाचिन जाने से पहले मेजर मनोज तलवार [[मार्च]] में घर आए थे। छुट्टी खत्म होने से कुछ दिन पहले [[माता]]-[[पिता]], भाई व बहन ने उनसे [[विवाह]] करने की बात कही। इस पर उन्होंने कहा कि '''मां मेरा समर्पण तो देश के साथ जुड़ चुका है। अभी तो उसकी हिफाजत के लिए वचनबद्ध हूं। पता नहीं क्या हो। मैं किसी लड़की का जीवन बर्बाद नहीं करूंगा।''' इसके बाद वे कारगिल चले गए।
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[[13 जून]], [[1999]] की शाम दुश्मनों को मारकर मेजर मनोज तलवार ने ऊंची चोटी पर [[तिरंगा]] फहरा दिया। लेकिन इसी बीच दुश्मनों की तोप के गोले से वे शहीद हो गए।
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देश के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वालों में 12 महार के दस जवान, 9 महार के आठ जवान और 19 महार के छह जवानों का नाम रेजीमेंट और सेना के इतिहास में अमिट हो गया है। 9 महार के शहीद मेजर मनोज तलवार के नाम पर [[सियाचिन]] में ग्लेशियर नंबर-3 पर सैन्य पोस्ट का नाम रखा गया है, जो कि महार की वीरता का प्रतीक है।
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08:15, 29 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

मेजर मनोज तलवार
मेजर मनोज तलवार
मेजर मनोज तलवार
पूरा नाम मेजर मनोज तलवार
जन्म 29 अगस्त, 1969
जन्म भूमि मुज़फ़्फ़रनगर, उत्तर प्रदेश
स्थान जम्मू-कश्मीर
अभिभावक पिता- कैप्टन पी.एल. तलवार
सेना भारतीय थल सेना
बटालियन महार रेजीमेंट
पद मेजर
सेवा काल 1992-1999
युद्ध कारगिल युद्ध
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी वर्ष 1992 में कमीशन प्राप्त कर मेजर मनोज तलवार 'महार रेजीमेंट' में लेफ्टीनेंट पद पर नियुक्त हुए थे। 13 जून, 1999 की शाम दुश्मनों को मारकर उन्होंने ऊंची चोटी पर तिरंगा फहरा दिया था।

मेजर मनोज तलवार (अंग्रेज़ी: Major Manoj Talwar, जन्म- 29 अगस्त, 1969, मुज़फ़्फ़रनगर; शहादत- 13 जून, 1999, जम्मू-कश्मीर) भारतीय सेना के जाबांज सैनिकों में से एक थे। ऐसे वीर सपूत कम ही पैदा होते हैं, जो देश की खातिर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं। ऐसे ही वीर सपूत थे मुज़फ़्फ़रनगर के मेजर मनोज तलवार। जून, 1999 को जब देश के दुश्मनों ने अपने नापाक इरादों से हमला किया, तो मनोज तलवार अपने साथियों के साथ शत्रुओं को करारा जवाब दे रहे थे। 13 जून को कारगिल में दुश्मनों को ढेर करने के बाद टुरटक की पहाड़ियों पर तिरंगा लहराने के बाद वे शहीद हो गए। मेजर मनोज तलवार को मरणोपरांत 'वीर चक्र' से सम्मानित किया गया।

परिचय

मूल रूप से पंजाब के जालंधर और अब मवाना रोड डिफेंस कालोनी निवासी सेना में कैप्टन पी.एल. तलवार के सुपुत्र मनोज तलवार का जन्म 29 अगस्त, 1969 को मुज़फ़्फ़रनगर, उत्तर प्रदेश की गांधी कॉलोनी में हुआ था। जब मनोज दस साल के थे तो पिता की पोस्टिंग कानपुर में थी। घर के पास प्लॉट में तारबंदी थी। वहां से सेना के जवान परेड के लिए जाते थे। मनोज तारबंदी कूदकर जवानों से हैलो बोलकर आते थे। पिता की वर्दी पहनकर अपने दोस्तों के साथ जवानों की तरह जंग करने के सीन बनाते थे। जवानों को देखकर यही कहते कि "मैं बड़ा होकर सेना में जाऊंगा।"

सियाचिन में नियुक्ति

मनोज तलवार एनडीए में सेलेक्ट हो गए थे। वर्ष 1992 में कमीशन प्राप्त कर 'महार रेजीमेंट' में लेफ्टीनेंट पद पर नियुक्त हुए। प्रथम तैनाती जम्मू-कश्मीर में हुई। कमांडो की विशेष ट्रेनिंग के बाद उन्हें असम में उल्फा उग्रवादियों का सफाया करने के लिए भेजा गया। फ़रवरी, 1999 में मेजर मनोज तलवार की रेजीमेंट फ़िरोजपुर, पंजाब में तैनात हुई। लेकिन कुछ कर गुजरने की चाह रखने वाले मेजर मनोज तलवार ने सियाचिन में नियुक्ति की मांग कर दी।

सियाचिन जाने से पहले मेजर मनोज तलवार मार्च में घर आए थे। छुट्टी खत्म होने से कुछ दिन पहले माता-पिता, भाई व बहन ने उनसे विवाह करने की बात कही। इस पर उन्होंने कहा कि मां मेरा समर्पण तो देश के साथ जुड़ चुका है। अभी तो उसकी हिफाजत के लिए वचनबद्ध हूं। पता नहीं क्या हो। मैं किसी लड़की का जीवन बर्बाद नहीं करूंगा। इसके बाद वे कारगिल चले गए।

वह अन्तिम पत्र

12 जून, 1999 को मेजर मनोज तलवार ने आखिरी चिट्ठी लिखी। उनके पिता के अनुसार मनोज क्रिकेट का बहुत शौकीन था। उसने लिखा था कि 'भारत की पाकिस्तान पर क्रिकेट में जीत का जश्न हमने दुश्मनों पर गोले बरसाकर मनाया है। चिंता मत करना। मैं युद्ध में अपना फर्ज निभा रहा हूं।' ये चिट्ठी पोस्ट करने के बाद मेजर मनोज तलवार कारगिल में टुरटक सेंटर की शून्य से 60 डिग्री नीचे तापमान की 19 हजार फीट ऊंची खड़ी चोटी पर घुसपैठियों को भगाने के लिए अपनी टुकड़ी लेकर बढ़ चले।

शहादत

13 जून, 1999 की शाम दुश्मनों को मारकर मेजर मनोज तलवार ने ऊंची चोटी पर तिरंगा फहरा दिया। लेकिन इसी बीच दुश्मनों की तोप के गोले से वे शहीद हो गए।

सैन्य पोस्ट

देश के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वालों में 12 महार के दस जवान, 9 महार के आठ जवान और 19 महार के छह जवानों का नाम रेजीमेंट और सेना के इतिहास में अमिट हो गया है। 9 महार के शहीद मेजर मनोज तलवार के नाम पर सियाचिन में ग्लेशियर नंबर-3 पर सैन्य पोस्ट का नाम रखा गया है, जो कि महार की वीरता का प्रतीक है।


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