"एक महान डाकू की शोक सभा -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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एक 'महान' नेता, एक 'महान' डाकू की शोक सभा संबोधित कर रहे थे।- | एक 'महान' नेता, एक 'महान' डाकू की शोक सभा संबोधित कर रहे थे।- | ||
"वो एक महान डाकू थे। ऐसे ख़ानदानी और लगनशील डाकू अब देखने में नहीं आते। आज भी मुझे अच्छी तरह याद है... जब उन्होंने पहली डक़ैती डाली तो वो नवम्बर-दिसम्बर का महीना रहा होगा; दिवाली के आसपास की बात है। डक़ैती डाल कर वो सीधे मेरे पास आए और डक़ैती का पूरा क़िस्सा मुझे एक ही साँस में सुना डाला। हम दोनों की आँखों में खुशी के आँसू थे। बाद में हम दोनों गले मिलकर ख़ूब रोए।" | "वो एक महान डाकू थे। ऐसे ख़ानदानी और लगनशील डाकू अब देखने में नहीं आते। आज भी मुझे अच्छी तरह याद है... जब उन्होंने पहली डक़ैती डाली तो वो नवम्बर-दिसम्बर का महीना रहा होगा; दिवाली के आसपास की बात है। डक़ैती डाल कर वो सीधे मेरे पास आए और डक़ैती का पूरा क़िस्सा मुझे एक ही साँस में सुना डाला। हम दोनों की आँखों में खुशी के आँसू थे। बाद में हम दोनों गले मिलकर ख़ूब रोए।" | ||
आगे कुछ बोलने से पहले उन्होंने वही किया जो नेता | आगे कुछ बोलने से पहले उन्होंने वही किया जो नेता अक्सर भाषण देते हुए करते हैं- | ||
उन्होंने माइक को देखा और भावुक होकर दाएँ हाथ से उसे पकड़ लिया। बाएँ हाथ की चार उंगलियों को मोड़कर एक लाइन में लगाया और ग़ौर से नाखूनों को देखा। इसके बाद कुछ सोचने का अभिनय किया और साँस छोड़कर (जो कि खिंची हुई थी) दोनों हाथ पीछे बाँध लिए। एक बार एड़ियों पर उचक कर फिर से कहना शुरू किया- | उन्होंने माइक को देखा और भावुक होकर दाएँ हाथ से उसे पकड़ लिया। बाएँ हाथ की चार उंगलियों को मोड़कर एक लाइन में लगाया और ग़ौर से नाखूनों को देखा। इसके बाद कुछ सोचने का अभिनय किया और साँस छोड़कर (जो कि खिंची हुई थी) दोनों हाथ पीछे बाँध लिए। एक बार एड़ियों पर उचक कर फिर से कहना शुरू किया- | ||
"वो ज़माना ही ऐसा था... उस ज़माने में डक़ैती डालने में एक लगन होती थी... एक रचनात्मक दृष्टिकोण होता था। जो आज बहुत ही कम देखने में आता है। मुझे भी कई बार मूलाजी के साथ डक़ैतियों पर जाने का अवसर मिला। आ हा हा! क्या डक़ैती डालते थे मूलाजी। कम से कम ख़र्च में एक सुंदर डक़ैती डालना उनके बाएँ हाथ का खेल था। बाद में वक़्त की माँग के अनुसार उन्होंने अपनी डक़ैतियों में बलात्कार को भी एक समुचित स्थान दिया किन्तु दुर्भाग्य ! कि उन्होंने जो डक़ैतियाँ डालीं... हत्याएँ कीं और बलात्कार किए... उसका पूरा श्रेय और बाद में लाभ ख़ुद उन्हीं को नहीं मिल पाया।" | "वो ज़माना ही ऐसा था... उस ज़माने में डक़ैती डालने में एक लगन होती थी... एक रचनात्मक दृष्टिकोण होता था। जो आज बहुत ही कम देखने में आता है। मुझे भी कई बार मूलाजी के साथ डक़ैतियों पर जाने का अवसर मिला। आ हा हा! क्या डक़ैती डालते थे मूलाजी। कम से कम ख़र्च में एक सुंदर डक़ैती डालना उनके बाएँ हाथ का खेल था। बाद में वक़्त की माँग के अनुसार उन्होंने अपनी डक़ैतियों में बलात्कार को भी एक समुचित स्थान दिया किन्तु दुर्भाग्य ! कि उन्होंने जो डक़ैतियाँ डालीं... हत्याएँ कीं और बलात्कार किए... उसका पूरा श्रेय और बाद में लाभ ख़ुद उन्हीं को नहीं मिल पाया।" | ||
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आइए इस शोक सभा से अब वापस चलें | आइए इस शोक सभा से अब वापस चलें | ||
जिस तरह हर चीज़ का ज़माना होता है वैसे ही 'चम्बल-ब्रांड' डाकुओं का भी एक 'ज़माना' था। जनता का हाल ये रहता था कि लोग, डाकुओं के घोड़ों की टापों से उड़ती धूल को टल्कम पाउडर से कम नहीं समझते थे। फ़िल्मों के लिए भी 'डाकू' एक हिट विषय रहा है। डाकू को नायक बनाया जाय या खलनायक, डाकू | जिस तरह हर चीज़ का ज़माना होता है वैसे ही 'चम्बल-ब्रांड' डाकुओं का भी एक 'ज़माना' था। जनता का हाल ये रहता था कि लोग, डाकुओं के घोड़ों की टापों से उड़ती धूल को टल्कम पाउडर से कम नहीं समझते थे। फ़िल्मों के लिए भी 'डाकू' एक हिट विषय रहा है। डाकू को नायक बनाया जाय या खलनायक, डाकू अक्सर हिट ही होता है। जैसे- | ||
जिस देश में गंगा बहती है का 'राका' ([[प्राण (अभिनेता)|प्राण]]- खलनायक) | जिस देश में गंगा बहती है का 'राका' ([[प्राण (अभिनेता)|प्राण]]- खलनायक) | ||
गंगा जमना का 'गंगा' ([[दिलीप कुमार]]- नायक) | गंगा जमना का 'गंगा' ([[दिलीप कुमार]]- नायक) |
13:50, 9 जून 2012 का अवतरण
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टीका टिप्पणी और संदर्भ