"एक महान डाकू की शोक सभा -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>एक महान डाकू की शोक सभा <small>-आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | [[चित्र:Facebook-icon-2.png|20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत)]] [http://www.facebook.com/bharatdiscovery भारतकोश] <br /> | ||
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<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>एक महान डाकू की शोक सभा<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | |||
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उन्होंने माइक को देखा और भावुक होकर दाएँ हाथ से उसे पकड़ लिया। बाएँ हाथ की चार उंगलियों को मोड़कर एक लाइन में लगाया और ग़ौर से नाखूनों को देखा। इसके बाद कुछ सोचने का अभिनय किया और साँस छोड़कर (जो कि खिंची हुई थी) दोनों हाथ पीछे बाँध लिए। एक बार एड़ियों पर उचक कर फिर से कहना शुरू किया- | उन्होंने माइक को देखा और भावुक होकर दाएँ हाथ से उसे पकड़ लिया। बाएँ हाथ की चार उंगलियों को मोड़कर एक लाइन में लगाया और ग़ौर से नाखूनों को देखा। इसके बाद कुछ सोचने का अभिनय किया और साँस छोड़कर (जो कि खिंची हुई थी) दोनों हाथ पीछे बाँध लिए। एक बार एड़ियों पर उचक कर फिर से कहना शुरू किया- | ||
"वो ज़माना ही ऐसा था... उस ज़माने में डक़ैती डालने में एक लगन होती थी... एक रचनात्मक दृष्टिकोण होता था। जो आज बहुत ही कम देखने में आता है। मुझे भी कई बार मूलाजी के साथ डक़ैतियों पर जाने का अवसर मिला। आ हा हा! क्या डक़ैती डालते थे मूलाजी। कम से कम ख़र्च में एक सुंदर डक़ैती डालना उनके बाएँ हाथ का खेल था। बाद में वक़्त की माँग के अनुसार उन्होंने अपनी डक़ैतियों में बलात्कार को भी एक समुचित स्थान दिया किन्तु दुर्भाग्य ! कि उन्होंने जो डक़ैतियाँ डालीं... हत्याएँ कीं और बलात्कार किए... उसका पूरा श्रेय और बाद में लाभ ख़ुद उन्हीं को नहीं मिल पाया।" | "वो ज़माना ही ऐसा था... उस ज़माने में डक़ैती डालने में एक लगन होती थी... एक रचनात्मक दृष्टिकोण होता था। जो आज बहुत ही कम देखने में आता है। मुझे भी कई बार मूलाजी के साथ डक़ैतियों पर जाने का अवसर मिला। आ हा हा! क्या डक़ैती डालते थे मूलाजी। कम से कम ख़र्च में एक सुंदर डक़ैती डालना उनके बाएँ हाथ का खेल था। बाद में वक़्त की माँग के अनुसार उन्होंने अपनी डक़ैतियों में बलात्कार को भी एक समुचित स्थान दिया किन्तु दुर्भाग्य ! कि उन्होंने जो डक़ैतियाँ डालीं... हत्याएँ कीं और बलात्कार किए... उसका पूरा श्रेय और बाद में लाभ ख़ुद उन्हीं को नहीं मिल पाया।" | ||
... | "...उनकी आदत हमेशा दूसरों को बढ़ावा देने की रही। वो तो मानो एक विश्वविद्यालय ही थे। नये लड़कों को जब वो अपने साथ डक़ैतियों में ले जाते थे तो उन्हीं को हमेशा हत्याएँ और बलात्कार करने का मौक़ा भी देते थे। जहाँ तक मुझे याद आता है, जब भी वो मुझे मिले, उनके साथ चार-पाँच नई उम्र के लड़के होते थे। आ हा हा! क्या दृश्य होता था... सभी लड़के नशे में धुत्त, मुँह में पान और अपनी-अपनी अन्टी में तरह-तरह के हथियार लगाए हुए। उन लड़कों में से... जो आज जीवित बचे हैं, उनके नाम और फ़ोटो अख़बारों में देखकर बेहद प्रसन्नता होती है। मूलाजी के 'सधाए' हुए लड़के आज कई पार्टियों में सम्मानित पदों पर हैं। उस त्यागमूर्ति का ध्यान आने से ही मैं भावुक हो जाता हूँ।" | ||
-तालियाँ बजीं... | -तालियाँ बजीं... | ||
"शुरुआत में छः-सात डक़ैतियाँ डालने के बाद ही वो काफ़ी प्रसिद्धी पा गए थे लेकिन आप तो जानते ही हैं कि पुलिस ने हमेशा उनके साथ सौतेला व्यवहार ही किया। कई डक़ैतियाँ ऐसी थीं जो उन्होंने अपने बल-बूते पर ही डाली थीं, लेकिन पुलिस रिकार्ड से उनका नाम ग़ायब ही रहा और उन डक़ैतियों का श्रेय उन्हें नहीं मिल पाया। असल में उस समय जो पुलिस कप्तान था वो अपनी जाति के एक साधारण से डाकू को प्रमोट करने के चक्कर में रहता था। जिसमें कि बाद में वो सफल भी रहा।" | "शुरुआत में छः-सात डक़ैतियाँ डालने के बाद ही वो काफ़ी प्रसिद्धी पा गए थे लेकिन आप तो जानते ही हैं कि पुलिस ने हमेशा उनके साथ सौतेला व्यवहार ही किया। कई डक़ैतियाँ ऐसी थीं जो उन्होंने अपने बल-बूते पर ही डाली थीं, लेकिन पुलिस रिकार्ड से उनका नाम ग़ायब ही रहा और उन डक़ैतियों का श्रेय उन्हें नहीं मिल पाया। असल में उस समय जो पुलिस कप्तान था वो अपनी जाति के एक साधारण से डाकू को प्रमोट करने के चक्कर में रहता था। जिसमें कि बाद में वो सफल भी रहा।" | ||
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<small>प्रशासक एवं प्रधान सम्पादक</small> | <small>प्रशासक एवं प्रधान सम्पादक</small> | ||
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09:37, 12 नवम्बर 2012 का अवतरण
एक महान डाकू की शोक सभा -आदित्य चौधरी एक 'महान' नेता, एक 'महान' डाकू की शोक सभा संबोधित कर रहे थे।- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ