"मानसून का शंख -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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"आपको कुछ पता भी है कि दुनिया में क्या हो रहा है, अरे! दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गयी और एक हमारे ये हैं... भोले भंडारी... अरे महाराज समाधि लगाये ही बैठे रहोगे या कुछ मेरी भी सुनोगे ?" [[कैलास पर्वत]] पर [[पार्वती देवी|पार्वती मैया]] ग़ुस्से से भन्ना रही थीं। [[शिव|शंकर जी]] ने ध्यान भंग करना ही सही समझा और बोले- | "आपको कुछ पता भी है कि दुनिया में क्या हो रहा है, अरे! दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गयी और एक हमारे ये हैं... भोले भंडारी... अरे महाराज समाधि लगाये ही बैठे रहोगे या कुछ मेरी भी सुनोगे ?" [[कैलास पर्वत]] पर [[पार्वती देवी|पार्वती मैया]] ग़ुस्से से भन्ना रही थीं। [[शिव|शंकर जी]] ने ध्यान भंग करना ही सही समझा और बोले- | ||
"तुम्हारी ही तो सुनता हूँ भागवान... दूसरे देवता तो चार-चार... छह-छह ब्याह करके बैठे हैं और मैं तो सिर्फ़ तुम्हारी ही माला जपता रहता हूँ... अब हुआ क्या जो [[नंदी]] की तरह सींग समेत लड़ रही हो ?" | "तुम्हारी ही तो सुनता हूँ भागवान... दूसरे देवता तो चार-चार... छह-छह ब्याह करके बैठे हैं और मैं तो सिर्फ़ तुम्हारी ही माला जपता रहता हूँ... अब हुआ क्या जो [[नंदी]] की तरह सींग समेत लड़ रही हो ?" | ||
"मेरे अलावा कोई दूसरी इस कमबख्त नंदी पर बैठ कर घूमने को तैयार भी तो नहीं होगी... बताओ, हद हो गई... भला नंदी भी कोई सवारी हुई... ज़रा किसी दूसरी देवी को बिठा कर तो देखो नंदी पर... [[महालक्ष्मी देवी|लक्ष्मी जी]] होतीं तो दो दिन में भाग जातीं... वो तो मैं ही हूँ जो तुम्हारे भूत-प्रेतों के साथ निभा रही हूँ।" अब तक साड़ी कमर में खोंसी जा चुकी थी। नंदी की आँखों में उदासी छा गई थी, दोनों कान लटक गए और गर्दन झुक गई... भगवान शिव शंकर इस मामले | "मेरे अलावा कोई दूसरी इस कमबख्त नंदी पर बैठ कर घूमने को तैयार भी तो नहीं होगी... बताओ, हद हो गई... भला नंदी भी कोई सवारी हुई... ज़रा किसी दूसरी देवी को बिठा कर तो देखो नंदी पर... [[महालक्ष्मी देवी|लक्ष्मी जी]] होतीं तो दो दिन में भाग जातीं... वो तो मैं ही हूँ जो तुम्हारे भूत-प्रेतों के साथ निभा रही हूँ।" अब तक साड़ी कमर में खोंसी जा चुकी थी। नंदी की आँखों में उदासी छा गई थी, दोनों कान लटक गए और गर्दन झुक गई... भगवान शिव शंकर इस मामले की नज़ाकत को समझ कर पूरी तरह से आत्मसमर्पण करके बोले- | ||
"चलो ठीक, बेचारे नंदी को क्यों घसीट रही हो... अब बता भी दो, क्या बात है ? | "चलो ठीक, बेचारे नंदी को क्यों घसीट रही हो... अब बता भी दो, क्या बात है ? | ||
"बात... बात तो कुछ नहीं है ! मैं तो बस इतना चाहती हूँ कि जैसे दूसरे भगवानों का सम्मान होता है, ऐसे ही आपका भी होना चाहिए... मुझसे यह नहीं बर्दाश्त होता कि सब आपको भोलेबाबा-भोलेबाबा कहकर बहकाते रहें... बस कह दिया मैंने... हाँ नईं तो..." | "बात... बात तो कुछ नहीं है ! मैं तो बस इतना चाहती हूँ कि जैसे दूसरे भगवानों का सम्मान होता है, ऐसे ही आपका भी होना चाहिए... मुझसे यह नहीं बर्दाश्त होता कि सब आपको भोलेबाबा-भोलेबाबा कहकर बहकाते रहें... बस कह दिया मैंने... हाँ नईं तो..." |
15:28, 8 जुलाई 2012 का अवतरण
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