"ये सूरज रोज़ ढलते हैं -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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जिन्हें मौक़ा नहीं मिलता यहाँ तक़्दीर से यारो। | जिन्हें मौक़ा नहीं मिलता यहाँ तक़्दीर से यारो। | ||
वही तद्बीर से आलम का इक दिन रुख़ बदलते हैं।। | वही तद्बीर से आलम का इक दिन रुख़ बदलते हैं।। | ||
लगी हों ठोकरें कितनी, हमें परवाह क्या करना। | लगी हों ठोकरें कितनी, हमें परवाह क्या करना। | ||
न जाने कौन सी ताक़त से गिरकर फिर संभलते | न जाने कौन सी ताक़त से गिरकर फिर संभलते हैं।। | ||
गरम लोहे को करने की किसे फ़ुर्सत यहाँ बाक़ी। | गरम लोहे को करने की किसे फ़ुर्सत यहाँ बाक़ी। | ||
करारी चोट से लोहा तो क्या पत्थर पिघलते हैं।। | करारी चोट से लोहा तो क्या पत्थर पिघलते हैं।। | ||
किसी के बाप की जागीर, ये दुनिया नहीं यारो। | |||
यहाँ तो ताज भी पैरों तले हरदम कुचलते हैं।। | |||
ज़ुबाँ पर मज़हबी ताले हैं, गूँगे लोग क्या बोलें। | ज़ुबाँ पर मज़हबी ताले हैं, गूँगे लोग क्या बोलें। | ||
तरक़्क़ी देखकर दुनिया की बेकस हाथ मलते हैं।। | तरक़्क़ी देखकर दुनिया की बेकस हाथ मलते हैं।। | ||
सुना है बंदिशें करतीं हैं हर इक मोड़ पर साज़िश। | सुना है बंदिशें करतीं हैं हर इक मोड़ पर साज़िश। | ||
अगर है ठान ली दिल में तो रस्ते भी निकलते हैं।। | अगर है ठान ली दिल में तो रस्ते भी निकलते हैं।। | ||
किसी उगते हुए सूरज की परछांई में रहना क्या। | किसी उगते हुए सूरज की परछांई में रहना क्या। | ||
यहाँ है रोज़ का क़िस्सा, ये सूरज रोज़ ढलते हैं।। | यहाँ है रोज़ का क़िस्सा, ये सूरज रोज़ ढलते हैं।। | ||
तुम्हें ग़र जान प्यारी है तो दुनिया के सितम झेलो। | तुम्हें ग़र जान प्यारी है तो दुनिया के सितम झेलो। | ||
यहाँ तो ख़ून से इतिहास अपना लिखते चलते | यहाँ तो ख़ून से इतिहास अपना लिखते चलते हैं।। | ||
उसी से पूछ लो जाकर कि जिसने दिल बनाया था। | उसी से पूछ लो जाकर कि जिसने दिल बनाया था। | ||
तमन्नाओं के ये अरमान हरदम क्यों मचलते | तमन्नाओं के ये अरमान हरदम क्यों मचलते हैं।। | ||
अपन की मुफ़लिसी में भी ज़माने भर की मस्ती है। | अपन की मुफ़लिसी में भी ज़माने भर की मस्ती है। | ||
ये 'उनकी' है अजब फ़ितरत, फ़क़ीरी से भी जलते हैं।। | ये 'उनकी' है अजब फ़ितरत, फ़क़ीरी से भी जलते हैं।। |
10:16, 30 अक्टूबर 2012 का अवतरण
ये सूरज रोज़ ढलते हैं
-आदित्य चौधरी जिन्हें मौक़ा नहीं मिलता यहाँ तक़्दीर से यारो। |