"ये सूरज रोज़ ढलते हैं -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
आदित्य चौधरी (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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यहाँ है रोज़ का क़िस्सा, ये सूरज रोज़ ढलते हैं।। | यहाँ है रोज़ का क़िस्सा, ये सूरज रोज़ ढलते हैं।। | ||
तुम्हें | तुम्हें गर जान प्यारी है तो दुनिया के सितम झेलो। | ||
यहाँ तो ख़ून से इतिहास अपना लिखते चलते हैं।। | यहाँ तो ख़ून से इतिहास अपना लिखते चलते हैं।। | ||
07:01, 3 फ़रवरी 2013 का अवतरण
ये सूरज रोज़ ढलते हैं
-आदित्य चौधरी जिन्हें मौक़ा नहीं मिलता यहाँ तक़्दीर से यारो। |