"चौकोर फ़ुटबॉल -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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पुराने ज़माने की बात है, एक गाँव से होकर एक व्यापारी सेठ की माल असबाब से लदी बैलगाड़ी गुज़र रही थी। रास्ते में बरसात के कारण गहरा गड्ढ़ा था जिसमें गाड़ी फंस गई। चार-चार आदमियों की काफ़ी कोशिश के बाद भी गाड़ी निकाली न जा सकी। पास ही एक दुकान के पट्टे पर छोटे पहलवान भी बैठा था और यह सब देख रहा था। दुकानदार ने सेठ जी से कहा- | पुराने ज़माने की बात है, एक गाँव से होकर एक व्यापारी सेठ की माल असबाब से लदी [[बैलगाड़ी]] गुज़र रही थी। रास्ते में बरसात के कारण गहरा गड्ढ़ा था जिसमें गाड़ी फंस गई। चार-चार आदमियों की काफ़ी कोशिश के बाद भी गाड़ी निकाली न जा सकी। पास ही एक दुकान के पट्टे पर छोटे पहलवान भी बैठा था और यह सब देख रहा था। दुकानदार ने सेठ जी से कहा- | ||
"सेठ जी आप छोटे पहलवान से अगर कह दें तो आपकी गाड़ी पार निकल जाएगी।" | "सेठ जी आप छोटे पहलवान से अगर कह दें तो आपकी गाड़ी पार निकल जाएगी।" | ||
सेठ जी ने छोटे पहलवान से गाड़ी निकालने कहा। पहलवान ने चारों लोगों को हटा दिया और अकेले ही कंधे के सहारे से बड़े आसानी से गाड़ी को गड्ढ़े से निकाल दिया। | सेठ जी ने छोटे पहलवान से गाड़ी निकालने कहा। पहलवान ने चारों लोगों को हटा दिया और अकेले ही कंधे के सहारे से बड़े आसानी से गाड़ी को गड्ढ़े से निकाल दिया। |
11:55, 17 अप्रैल 2014 का अवतरण
चौकोर फ़ुटबॉल -आदित्य चौधरी पुराने ज़माने की बात है, एक गाँव से होकर एक व्यापारी सेठ की माल असबाब से लदी बैलगाड़ी गुज़र रही थी। रास्ते में बरसात के कारण गहरा गड्ढ़ा था जिसमें गाड़ी फंस गई। चार-चार आदमियों की काफ़ी कोशिश के बाद भी गाड़ी निकाली न जा सकी। पास ही एक दुकान के पट्टे पर छोटे पहलवान भी बैठा था और यह सब देख रहा था। दुकानदार ने सेठ जी से कहा- छोटे पहलवान की तो मौज आ गई। अच्छा खाना-पीना मिलने लगा तो पहलवान की सेहत और अच्छी हो गई। सेठ भी बेखटके अपनी व्यापारिक यात्राएँ करने लगा। एक दिन शाम के झुटपुटे में सेठ की गाड़ी को कुछ लुटेरों ने घेर लिया और गाड़ी को लूट लिया। सेठ ने देखा कि इस पूरे हादसे में पहलवान कुछ नहीं बोला और एक तरफ़ जा कर बैठ गया। जब सेठ का सारा माल लूटकर और सेठ जी की अच्छी पिटाई करने के बाद वहाँ से चलने लगे तो सेठ ने लुटेरों को रोका और कहा-
जब एक बुद्धिमान और होनहार व्यक्ति किसी प्रतिष्ठान में नौकरी करता है तो उसका काम करने का तरीक़ा सामान्य व्यक्तियों से अलग होता है। वह जानता है कि यदि उसे विकास करना है तो कम्पनी की प्रगति भी जरूरी है और वह बिना भावुकता के सोची समझी रणनीति के साथ अपने काम को ज़िम्मेदारी से करता है। सीधी सी बात है अगर हमें महत्त्वपूर्ण बनना है तो हमें उस प्रतिष्ठान की अनिवार्य ज़रूरत के रूप में खुद को साबित करना होगा। यहाँ पर यह भी ध्यान देने योग्य है कि कोई भी प्रतिष्ठान किसी कर्मचारी को भावुकता के धरातल पर नहीं रखता इसलिए कर्मचारियों का भी प्रतिष्ठान के प्रति भावुक प्रेम निरर्थक ही है। |
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