"कभी ख़ुशी कभी ग़म -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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भारत में दु:खी लोगों के आँकड़े बहुत चौंकाने वाले हैं। इन आँकड़ों पर आप यूँ ही विश्वास कर लें तो यह भी ठीक नहीं क्योंकि आँकड़े अलग-अलग परिस्थिति में और अलग-अलग एजेंसियों द्वारा इकट्ठे किए जाते हैं जो बदलते रहते हैं फिर भी एक नज़र डालें... | भारत में दु:खी लोगों के आँकड़े बहुत चौंकाने वाले हैं। इन आँकड़ों पर आप यूँ ही विश्वास कर लें तो यह भी ठीक नहीं क्योंकि आँकड़े अलग-अलग परिस्थिति में और अलग-अलग एजेंसियों द्वारा इकट्ठे किए जाते हैं जो बदलते रहते हैं फिर भी एक नज़र डालें... | ||
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|+बढ़ते दुखी लोग (आँकड़े प्रतिशत में) | |+बढ़ते दुखी लोग (आँकड़े प्रतिशत में) | ||
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|+विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोग | |||
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! विभिन्न क्षेत्र | ! विभिन्न क्षेत्र | ||
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|+ कम पढ़े ज़्यादा दुखी | |+ कम पढ़े ज़्यादा दुखी | ||
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| प्रोफेशनल डिग्रीधारी | | प्रोफेशनल डिग्रीधारी | ||
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11:04, 8 नवम्बर 2013 का अवतरण
कभी ख़ुशी कभी ग़म -आदित्य चौधरी "छोटे पहलवान! क्या बात है इतने उदास क्यों हो यार?"
आंकड़े कह रहे हैं कि दुखी बढ़ रहे हैं या यह कहें कि सुखी कम हो रहे हैं। वैसे दोनों बातें एक ही हैं। लेकिन एक प्रश्न है 'सुख को बढ़ाने से दु:ख कम होगा या दु:ख को घटाने से सुख बढ़ेगा ? इन दोनों में से कौन सी बात सही है? असल में मनुष्य का दु:ख कम करने के लिए उसे सुखी करना आवश्यक है। इसलिए सुखी करने के उपाय करना ही अर्थपूर्ण है न कि दु:ख कम करने का। दु:ख कम करने के लिए कोई उपाय नहीं है। सारी दुनिया में सभी व्यक्ति सुख की तलाश में रहते हैं शायद ईश्वर से भी ज़्यादा किसी की तलाश यदि की गई है तो वह है सुख। वैसे यदि ये कहें कि सुख प्राप्ति के लिए ही ईश्वर की तलाश की जाती है तो कुछ ग़लत नहीं होगा। |
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