"अपने आप पर -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) ('{| width="100%" style="background:#fbf8df; border:thin groove #003333; border-radius:5px; padding:8px;" |- | <noinclude>[[चित्...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{| width="100%" style="background:transparent" | {| width="100%" style="background:transparent" | ||
|-valign="top" | |-valign="top" | ||
| style="width: | | style="width:40%"| | ||
| style="width: | | style="width:30%"| | ||
<poem style="color=#003333"> | <poem style="color=#003333"> | ||
कभी क्षुब्ध होता हूँ | कभी क्षुब्ध होता हूँ | ||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
अपने आप पर | अपने आप पर | ||
कभी कुंठाग्रस्त मौन | |||
ही मेरा आवरण | |||
तो कभी कहीं इतना मुखर | |||
कि जैसे आकश ही मेरा घर | |||
कभी तरस जाता हूँ | कभी तरस जाता हूँ | ||
पंक्ति 26: | पंक्ति 26: | ||
रह रह कर | रह रह कर | ||
कभी धमनियों का रक्त ही | |||
जैसे जम जाता है | |||
एक रोटी के लिए | |||
सड़क पर बच्चों की | |||
कलाबाज़ी देख कर | |||
कभी चमक लाता है | कभी चमक लाता है | ||
पंक्ति 38: | पंक्ति 38: | ||
निडर हो कर | निडर हो कर | ||
कभी सूरज की रौशनी भी | |||
कम पड़ जाती है | |||
तो कभी अच्छा लगता है | |||
कि चाँद भी दिखे तो | |||
दूज बन कर | |||
</poem> | </poem> |
13:59, 4 अक्टूबर 2014 का अवतरण
अपने आप पर -आदित्य चौधरी
|