"अभिभावक -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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“जिस दिन से मेरे पहले बच्चे ने स्कूल में क़दम रखा, उसी दिन से मैं अभिभावक बन गया हूँ।” | “जिस दिन से मेरे पहले बच्चे ने स्कूल में क़दम रखा, उसी दिन से मैं अभिभावक बन गया हूँ।” | ||
उस दिन मुझे पता चला कि मैं अपने आप को न जाने क्या-क्या समझता हूँ पर सब बकवास है। असल में, मैं एक अभिभावक हूँ और इससे ज़्यादा कुछ नहीं। | उस दिन मुझे पता चला कि मैं अपने आप को न जाने क्या-क्या समझता हूँ पर सब बकवास है। असल में, मैं एक अभिभावक हूँ और इससे ज़्यादा कुछ नहीं। | ||
हमारी पृथ्वी अभिभावकों से भरी पड़ी है। जहाँ भी ढेला फेंकेगे अभिभावक को ही लगेगा। अभिभावक वो होता है जिसे स्कूलों के फ़ादर, मदर, सुपीरियर और “सिस्टर”, “पेरेन्ट-पेरेन्ट” कहकर फुसलाते हैं। इन फुसले हुए अभिभावकों की हालत उन दिनों बड़ी दयनीय होती है, जिन दिनों में स्कूलों में दाख़िले होते हैं। दूर से देखकर ही पहचाना जा सकता है कि कौन अभिभावक है और कौन नहीं। इन दिनों भोले-भाले माता-पिता अचानक अभिभावक बनने के | हमारी पृथ्वी अभिभावकों से भरी पड़ी है। जहाँ भी ढेला फेंकेगे अभिभावक को ही लगेगा। अभिभावक वो होता है जिसे स्कूलों के फ़ादर, मदर, सुपीरियर और “सिस्टर”, “पेरेन्ट-पेरेन्ट” कहकर फुसलाते हैं। इन फुसले हुए अभिभावकों की हालत उन दिनों बड़ी दयनीय होती है, जिन दिनों में स्कूलों में दाख़िले होते हैं। दूर से देखकर ही पहचाना जा सकता है कि कौन अभिभावक है और कौन नहीं। इन दिनों भोले-भाले माता-पिता अचानक अभिभावक बनने के सदमे से होश खो बैठते हैं। स्कूलों के चक्कर लगाने लगते हैं। बच्चे के एडमीशन के लिए उनका इंटरव्यू होना है… सोच-सोच कर पगलैट हो जाते हैं। दिन-रात पढ़ाई करते हैं। आपस में लड़ते हैं। सिफ़ारिशों के जुगाड़ लगाते हैं। इसके बाद बच्चे का एडमीशन कराने में सफल हो जाते हैं तो डर के मारे काफ़ी दिनों तक अभिभावक ही बने रहते हैं। | ||
एक अभिभावक दूसरे अभिभावक के प्रति, प्रचलित शैली में ईर्ष्या भाव रखता है। किसी अभिभावक को दूसरे अभिभावक से ईर्ष्या नहीं है तो वो आदर्श अभिभावक नहीं हो सकता। दिन-रात तरह-तरह के ईर्ष्यालु सवाल अभिभावक के मन में घुमड़ते रहते हैं, “शुक्ला के बेटे का ए ग्रेड?”, “सक्सैना की बेटी के नाइंटी टू परसैन्ट मार्क्स?”, “चड्ढा का लड़का स्कूल का कैप्टन?” असल में हमारे देश में ईर्ष्या का “फ़ैशन” अभिभावकों ने ही चलाया है। | एक अभिभावक दूसरे अभिभावक के प्रति, प्रचलित शैली में ईर्ष्या भाव रखता है। किसी अभिभावक को दूसरे अभिभावक से ईर्ष्या नहीं है तो वो आदर्श अभिभावक नहीं हो सकता। दिन-रात तरह-तरह के ईर्ष्यालु सवाल अभिभावक के मन में घुमड़ते रहते हैं, “शुक्ला के बेटे का ए ग्रेड?”, “सक्सैना की बेटी के नाइंटी टू परसैन्ट मार्क्स?”, “चड्ढा का लड़का स्कूल का कैप्टन?” असल में हमारे देश में ईर्ष्या का “फ़ैशन” अभिभावकों ने ही चलाया है। | ||
पहले यह माना जाता था कि इंसान और जानवर में सबसे बड़ा अंतर है “हँसी”। इंसान जब ख़ुश होता है तो अपनी ख़ुशी को बड़े हास्यास्पद तरीक़े से ज़ाहिर करता है। इस तरीक़े को हँसना कहते हैं। जानवर ने इस तरीक़े को हमेशा हेय दृष्टि से देखा है। जानवर चूंकि इंसान की तरह छिछोरी प्रकृति के नहीं होते इसीलिए ख़ुशी को हँसकर ज़ाहिर नहीं करते हैं। | पहले यह माना जाता था कि इंसान और जानवर में सबसे बड़ा अंतर है “हँसी”। इंसान जब ख़ुश होता है तो अपनी ख़ुशी को बड़े हास्यास्पद तरीक़े से ज़ाहिर करता है। इस तरीक़े को हँसना कहते हैं। जानवर ने इस तरीक़े को हमेशा हेय दृष्टि से देखा है। जानवर चूंकि इंसान की तरह छिछोरी प्रकृति के नहीं होते इसीलिए ख़ुशी को हँसकर ज़ाहिर नहीं करते हैं। |
13:45, 8 जुलाई 2015 का अवतरण
अभिभावक -आदित्य चौधरी एक सौ पच्चीस करोड़ की आबादी, 6 लाख 38 हज़ार से अधिक गाँवों और क़रीब 18 सौ नगर-क़स्बों वाले हमारे देश में क़रीब 35 करोड़ छात्राएँ-छात्र हैं। जो 16 लाख से अधिक शिक्षण संस्थानों और 700 विश्वविद्यालयों में समाते हैं। दु:खद यह है कि विश्व के मुख्य 100 शिक्षण संस्थानों में किसी भी भारतीय शिक्षण संस्थान का नाम-ओ-निशां नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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