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#इस लेख में हम्मीर को विषम घाटी पंचानन कहा गया है।
#इस लेख में हम्मीर को विषम घाटी पंचानन कहा गया है।


*यह मेवाड़ के महाराणाओं की वंशावली को विशुद्ध रूप से जानने के लिए बड़ा महत्वपूर्ण है। इसमें कुल 5 शिलालेखों का वर्णन मिलता है। इस [[शिलालेख]] में 2709 [[श्लोक]] हैं। दासता, आश्रम व्यवस्था, [[यज्ञ]], [[तपस्या]], शिक्षा आदि अनेक विषयों का उल्लेख इस शिलालेख में मिलता है।<ref name="pp">{{cite web |url=https://govtexamsuccess.com/rajasthan-abhilekh/ |title=राजस्थान के अभिलेख|accessmonthday=13 दिसम्बर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= govtexamsuccess.com|language=हिंदी}}</ref>
*यह मेवाड़ के महाराणाओं की वंशावली को विशुद्ध रूप से जानने के लिए बड़ा महत्वपूर्ण है। इसमें कुल 5 शिलालेखों का वर्णन मिलता है। इस [[शिलालेख]] में 2709 [[श्लोक]] हैं। दासता, आश्रम व्यवस्था, [[यज्ञ]], तपस्या, शिक्षा आदि अनेक विषयों का उल्लेख इस शिलालेख में मिलता है।<ref name="pp">{{cite web |url=https://govtexamsuccess.com/rajasthan-abhilekh/ |title=राजस्थान के अभिलेख|accessmonthday=13 दिसम्बर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= govtexamsuccess.com|language=हिंदी}}</ref>
*इस लेख का रचयिता डॉक्टर ओझा के अनुसार महेश होना चाहिए, क्योंकि इस लेख के कई साक्ष्य [[चित्तौड़]] की प्रशस्ति से मिलते हैं।
*इस लेख का रचयिता डॉक्टर ओझा के अनुसार महेश होना चाहिए, क्योंकि इस लेख के कई साक्ष्य [[चित्तौड़]] की प्रशस्ति से मिलते हैं।
*रतनलाल मिश्र ने लिखा है कि कुम्भलगढ़ प्रशस्ति के श्लोक संख्या 21 एवं 22 से ज्ञात होता है कि महाराणा कुम्भा जांगलस्थल को युद्ध में रोंदता हुआ आगे बढा और शम्सखान (कायमखानी) भूपति के अनन्त रत्नों के संग्रह को छीन लिया। उसने कासली को अचानक जीत लिया। कासली, सीकर के दक्षिण में 9 कि.मी. दूरी पर है। उस समय इस पर सम्भवतः [[चन्देल वंश|चन्देलों]] का राज्य था जो पहले [[चौहान वंश|चौहानों]] के सामन्त थे, पर उनके कमजोर पड़ने पर स्वतंत्र हो गए थे।
*रतनलाल मिश्र ने लिखा है कि कुम्भलगढ़ प्रशस्ति के श्लोक संख्या 21 एवं 22 से ज्ञात होता है कि महाराणा कुम्भा जांगलस्थल को युद्ध में रोंदता हुआ आगे बढा और शम्सखान (कायमखानी) भूपति के अनन्त रत्नों के संग्रह को छीन लिया। उसने कासली को अचानक जीत लिया। कासली, सीकर के दक्षिण में 9 कि.मी. दूरी पर है। उस समय इस पर सम्भवतः [[चन्देल वंश|चन्देलों]] का राज्य था जो पहले [[चौहान वंश|चौहानों]] के सामन्त थे, पर उनके कमजोर पड़ने पर स्वतंत्र हो गए थे।

10:33, 13 दिसम्बर 2021 के समय का अवतरण

कुंभलगढ़ शिलालेख या कुम्भलगढ़ प्रशस्ति (अंग्रेज़ी: Kumbhalgarh Inscriptions) राजस्थान के राजसमंद जिले के कुम्भलगढ़ दुर्ग में स्थित कुम्भश्याम मंदिर में स्थित है। इस मन्दिर को वर्तमान समय में मामादेव का मदिर कहते हैं। यह प्रशस्ति संस्कृत भाषा एवं नागरी लिपि में है और पांच शिलाओं पर उत्कीर्ण की गयी है। अब यह प्रशस्ति उदयपुर संग्रहालय में है। इस प्रशस्ति को किसने रचा, यह ठीक से ज्ञात नहीं है। सम्भवत: इसके रचयिता कन्ह व्यास हों जो इसके रचना काल में कुम्भलगढ़ में ही रहते थे।

  • कुम्भलगढ़ प्रशस्ति की निम्न विशेषतायें हैं-
  1. इसमें गुहिल वंश का वर्णन है।
  2. यह मेवाड़ के महाराणाओं की वंशावली को जानने का महत्वपूर्ण साधन है।
  3. यह राजस्थान का एकमात्र अभिलेख है, जो महाराणा कुंभा के लेखन पर प्रकाश डालता है।
  4. इस लेख में हम्मीर को विषम घाटी पंचानन कहा गया है।
  • यह मेवाड़ के महाराणाओं की वंशावली को विशुद्ध रूप से जानने के लिए बड़ा महत्वपूर्ण है। इसमें कुल 5 शिलालेखों का वर्णन मिलता है। इस शिलालेख में 2709 श्लोक हैं। दासता, आश्रम व्यवस्था, यज्ञ, तपस्या, शिक्षा आदि अनेक विषयों का उल्लेख इस शिलालेख में मिलता है।[1]
  • इस लेख का रचयिता डॉक्टर ओझा के अनुसार महेश होना चाहिए, क्योंकि इस लेख के कई साक्ष्य चित्तौड़ की प्रशस्ति से मिलते हैं।
  • रतनलाल मिश्र ने लिखा है कि कुम्भलगढ़ प्रशस्ति के श्लोक संख्या 21 एवं 22 से ज्ञात होता है कि महाराणा कुम्भा जांगलस्थल को युद्ध में रोंदता हुआ आगे बढा और शम्सखान (कायमखानी) भूपति के अनन्त रत्नों के संग्रह को छीन लिया। उसने कासली को अचानक जीत लिया। कासली, सीकर के दक्षिण में 9 कि.मी. दूरी पर है। उस समय इस पर सम्भवतः चन्देलों का राज्य था जो पहले चौहानों के सामन्त थे, पर उनके कमजोर पड़ने पर स्वतंत्र हो गए थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. राजस्थान के अभिलेख (हिंदी) govtexamsuccess.com। अभिगमन तिथि: 13 दिसम्बर, 2021।

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