"राज की नीति -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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-क्या आप मुझे, अपने मकान में किराए पर एक कमरा दे सकते हैं ? | :-क्या आप मुझे, अपने मकान में किराए पर एक कमरा दे सकते हैं ? | ||
नहीं !... क्योंकि तुम मकान ख़ाली नहीं करोगे। हमारे पूरे मकान पर क़ब्ज़ा कर लोगे। | :नहीं !... क्योंकि तुम मकान ख़ाली नहीं करोगे। हमारे पूरे मकान पर क़ब्ज़ा कर लोगे। | ||
-क्या आप मुझे नौकरी दे सकते हैं ? | :-क्या आप मुझे नौकरी दे सकते हैं ? | ||
नहीं !... क्योंकि पहली बात तो पढ़े-लिखे नहीं हो, दूसरे तुम्हारा व्यवहार बेहूदा है। | :नहीं !... क्योंकि पहली बात तो पढ़े-लिखे नहीं हो, दूसरे तुम्हारा व्यवहार बेहूदा है। | ||
-क्या आप मुझे अपने व्यापार में शामिल कर सकते हैं ? | :-क्या आप मुझे अपने व्यापार में शामिल कर सकते हैं ? | ||
नहीं !... क्योंकि तुम हमारे व्यापार में शामिल होकर हमारे व्यापार पर क़ब्ज़ा कर लोगे। हो सकता है मुझे मरवा भी दो। | :नहीं !... क्योंकि तुम हमारे व्यापार में शामिल होकर हमारे व्यापार पर क़ब्ज़ा कर लोगे। हो सकता है मुझे मरवा भी दो। | ||
-क्या आप मुझे कुछ कर्ज़ा दे सकते हैं ? | :-क्या आप मुझे कुछ कर्ज़ा दे सकते हैं ? | ||
नहीं !... क्योंकि तुम कभी वापस नहीं करोगे। तुमको कर्ज़ा देने का मतलब है पैसे डूब जाना। | :नहीं !... क्योंकि तुम कभी वापस नहीं करोगे। तुमको कर्ज़ा देने का मतलब है पैसे डूब जाना। | ||
-क्या आप अपनी बेटी की शादी मुझसे कर सकते हैं, मैं कुँवारा हूँ ? | :-क्या आप अपनी बेटी की शादी मुझसे कर सकते हैं, मैं कुँवारा हूँ ? | ||
नहीं !... क्योंकि तुमसे बेटी की शादी होने पर उसका और हमारा जीवन नर्क हो जाएगा। इससे अच्छा है कि वो ज़िंदगी भर कुँवारी रहे। | :नहीं !... क्योंकि तुमसे बेटी की शादी होने पर उसका और हमारा जीवन नर्क हो जाएगा। इससे अच्छा है कि वो ज़िंदगी भर कुँवारी रहे। | ||
-क्या आप मुझे वोट दे सकते हैं मैं इस बार के चुनाव में खड़ा हो रहा हूँ? | :-क्या आप मुझे वोट दे सकते हैं मैं इस बार के चुनाव में खड़ा हो रहा हूँ? | ||
-हाँ, हम तुम्हें वोट देंगे, चंदा देंगे और तुम्हारा ज़ोरदार स्वागत भी करेंगे। | :-हाँ, हम तुम्हें वोट देंगे, चंदा देंगे और तुम्हारा ज़ोरदार स्वागत भी करेंगे। | ||
-"लेकिन क्यों ! आपने मुझे किसी लायक़ नहीं समझा तो फिर मैं नेतृत्व के लायक़ क्यों हूँ ?" | :-"लेकिन क्यों ! आपने मुझे किसी लायक़ नहीं समझा तो फिर मैं नेतृत्व के लायक़ क्यों हूँ ?" | ||
"क्योंकि अब ये हमारे देश की परम्परा हो गयी है। जिसे हम किसी योग्य नहीं मानते उसे हम नेता बनने के योग्य तो मान ही लेते हैं। इसका कारण है कि हम हर तरीक़े से हीरो को 'दबंग' ही देखना चाहते हैं और नेता को भी दबंग ही देखना चाहते हैं। इसलिए जाओ होनहार नौजवान! नेता बन जाओ और देश का कल्याण करो (और मेरी जान छोड़ो)।" | :"क्योंकि अब ये हमारे देश की परम्परा हो गयी है। जिसे हम किसी योग्य नहीं मानते उसे हम नेता बनने के योग्य तो मान ही लेते हैं। इसका कारण है कि हम हर तरीक़े से हीरो को 'दबंग' ही देखना चाहते हैं और नेता को भी दबंग ही देखना चाहते हैं। इसलिए जाओ होनहार नौजवान! नेता बन जाओ और देश का कल्याण करो (और मेरी जान छोड़ो)।" | ||
ये वार्तालाप यहीं समाप्त हुआ। अब आगे चलें... | ये वार्तालाप यहीं समाप्त हुआ। अब आगे चलें... |
06:34, 10 मार्च 2012 का अवतरण
राज की नीति -क्या आप मुझे, अपने मकान में किराए पर एक कमरा दे सकते हैं ? ज़ाहिर है पाँच राज्यों के चुनावों से राजनीति का विषय भी गर्म रहा। इस बार अपराधियों की भागीदारी सत्ता में कम से कम हो; इस बात का काफ़ी प्रचार रहा। कई नेताओं ने अपने-अपने ज़ोर आज़माए हैं... ये सब तो ठीक लेकिन ये 'नेता' होता क्या है? जिस तरह किसी नौकरी के लिए बहुत सारी अहर्ताएँ पूरी होनी चाहिए, उसी तरह नेता बनने के लिए भी किसी योग्यता अथवा 'क्वालिफ़िकेशन' की ज़रूरत है? ये सवाल अनेक बार उठते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ Niccolò Machiavelli. जो 'पुनर्जागरण काल' (Renaissance 14वीं से 17वीं शताब्दी) में अपनी विवादास्पद पुस्तक 'द प्रिंस' के कारण बहुत चर्चित भी रहा और घृणा का पात्र भी बना