"राज की नीति -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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:-क्या आप अपनी बेटी की शादी मुझसे कर सकते हैं, मैं कुँवारा हूँ ? | :-क्या आप अपनी बेटी की शादी मुझसे कर सकते हैं, मैं कुँवारा हूँ ? | ||
:नहीं !... क्योंकि तुमसे बेटी की शादी होने पर उसका और हमारा जीवन नर्क हो जाएगा। इससे अच्छा है कि वो ज़िंदगी भर कुँवारी रहे। | :नहीं !... क्योंकि तुमसे बेटी की शादी होने पर उसका और हमारा जीवन नर्क हो जाएगा। इससे अच्छा है कि वो ज़िंदगी भर कुँवारी रहे। | ||
:-क्या आप मुझे वोट दे सकते हैं मैं इस बार के चुनाव में खड़ा हो रहा हूँ | :-क्या आप मुझे वोट दे सकते हैं ? मैं इस बार के चुनाव में खड़ा हो रहा हूँ| | ||
:-हाँ, हम तुम्हें वोट देंगे, चंदा देंगे और तुम्हारा ज़ोरदार स्वागत भी करेंगे। | :-हाँ, हम तुम्हें वोट देंगे, चंदा देंगे और तुम्हारा ज़ोरदार स्वागत भी करेंगे। | ||
:-"लेकिन क्यों ! आपने मुझे किसी लायक़ नहीं समझा तो फिर मैं नेतृत्व के लायक़ क्यों हूँ ?" | :-"लेकिन क्यों ! आपने मुझे किसी लायक़ नहीं समझा तो फिर मैं नेतृत्व के लायक़ क्यों हूँ ?" | ||
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असल में राजनीति में 'राज' के साथ 'नीति' लगी हुई है। नीति आदमी तभी बनाता है, जब वह कुछ प्राप्त करना चाहता है। त्यागने के लिए नीतियों की आवश्यकता नहीं होती। जब राज प्राप्त करना चाहते हैं तो राज के साथ में नीति लगाकर काम चलता है। अर्थ प्राप्त करना चाहते हैं तो अर्थ के साथ में नीति लगाते हैं, 'अर्थनीति' कर देते हैं। चाणक्य और चन्द्रगुप्त का ध्येय था मगध का राज्य प्राप्त करना। चाणक्य ने नीति बनाई तो चाणक्य-नीति कहलाने लगी। कौटिल्य का अर्थशास्त्र बना, अर्थनीति बनी। | असल में राजनीति में 'राज' के साथ 'नीति' लगी हुई है। नीति आदमी तभी बनाता है, जब वह कुछ प्राप्त करना चाहता है। त्यागने के लिए नीतियों की आवश्यकता नहीं होती। जब राज प्राप्त करना चाहते हैं तो राज के साथ में नीति लगाकर काम चलता है। अर्थ प्राप्त करना चाहते हैं तो अर्थ के साथ में नीति लगाते हैं, 'अर्थनीति' कर देते हैं। चाणक्य और चन्द्रगुप्त का ध्येय था मगध का राज्य प्राप्त करना। चाणक्य ने नीति बनाई तो चाणक्य-नीति कहलाने लगी। कौटिल्य का अर्थशास्त्र बना, अर्थनीति बनी। | ||
अर्थ बहुत अर्थपूर्ण होता है, शासन के लिए, राज्य के लिए। इस संबंध में चाणक्य की तरह ही मैकियावेली<ref>Niccolò Machiavelli. जो 'पुनर्जागरण काल' (''Renaissance'' 14वीं से 17वीं शताब्दी) में अपनी विवादास्पद पुस्तक 'द प्रिंस' के कारण बहुत चर्चित भी रहा और घृणा का पात्र भी बना</ref> ने भी अनेक नियम राजा या शासक के लिए बताए हैं। मैकियावेली ने लिखा है किसी भी व्यक्ति को शासक बनने से पहले आर्थिक मामलों में उदार होना चाहिए लेकिन शासन हाथ में आने पर उसका कृपण (कंजूस) हो जाना ही राज्य के हित में है। क्योंकि राज्य पैसों से ही चलता है। यदि राज्य प्राप्त करने के बाद राजा उदार हो जायेगा तो सारा ख़ज़ाना लुटा देगा और राज्य की व्यवस्थाएँ कमज़ोर पड़ जायेंगी। विदेशी ताक़तें क़ब्ज़ा कर लेंगी, आर्थिक मंदी आ जायेगी। इस तरह की बातें मैकियावेली ने लिखी हैं। मैकियावेली कोई जन-प्रिय लेखक नहीं रहा क्योंकि उसको क्रूर शासन से सम्बन्धित नीतियाँ बताने का आरोपी पाया गया। मैकियावेली का प्रभाव नीत्शे पर पड़ा और नीत्शे का हिटलर पर। | अर्थ बहुत अर्थपूर्ण होता है, शासन के लिए, राज्य के लिए। इस संबंध में चाणक्य की तरह ही मैकियावेली<ref>Niccolò Machiavelli. जो 'पुनर्जागरण काल' (''Renaissance'' 14वीं से 17वीं शताब्दी) में अपनी विवादास्पद पुस्तक 'द प्रिंस' के कारण बहुत चर्चित भी रहा और घृणा का पात्र भी बना</ref> ने भी अनेक नियम राजा या शासक के लिए बताए हैं। मैकियावेली ने लिखा है किसी भी व्यक्ति को शासक बनने से पहले आर्थिक मामलों में उदार होना चाहिए लेकिन शासन हाथ में आने पर उसका कृपण (कंजूस) हो जाना ही राज्य के हित में है। क्योंकि राज्य पैसों से ही चलता है। यदि राज्य प्राप्त करने के बाद राजा उदार हो जायेगा तो सारा ख़ज़ाना लुटा देगा और राज्य की व्यवस्थाएँ कमज़ोर पड़ जायेंगी। विदेशी ताक़तें क़ब्ज़ा कर लेंगी, आर्थिक मंदी आ जायेगी। इस तरह की बातें मैकियावेली ने लिखी हैं। मैकियावेली कोई जन-प्रिय लेखक नहीं रहा क्योंकि उसको क्रूर शासन से सम्बन्धित नीतियाँ बताने का आरोपी पाया गया। मैकियावेली का प्रभाव नीत्शे (Friedrich Nietzsche) पर पड़ा और नीत्शे का हिटलर पर। | ||
उधर मैकियावेली का ठीक उल्टा 'थॉरो' (Henry David Thoreau 1817-62 ) है। थॉरो की नीतियाँ बिल्कुल अलग हैं, उसकी सोच बिल्कुल अलग है। थॉरो कहता है कि सरकार सबसे अच्छी वह है; जो कम से कम शासन करे। उसे शासन में न्यूनतम भागीदारी करनी पड़े। वह विकास कार्यों में अधिक ध्यान दे। यानी न्यूनतम शासन- प्रशासन वाली सरकार। न्यूनतम शासन करने वाला राजा सर्वश्रेष्ठ है। ये थॉरो महाशय वही हैं, जिनके विचारों से प्रभावित होकर महात्मा गांधी जी ने 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' चलाया। 'सविनय अवज्ञा' असल में थॉरो की ही सोच थी। | उधर मैकियावेली का ठीक उल्टा 'थॉरो' (Henry David Thoreau 1817-62 ) है। थॉरो की नीतियाँ बिल्कुल अलग हैं, उसकी सोच बिल्कुल अलग है। थॉरो कहता है कि सरकार सबसे अच्छी वह है; जो कम से कम शासन करे। उसे शासन में न्यूनतम भागीदारी करनी पड़े। वह विकास कार्यों में अधिक ध्यान दे। यानी न्यूनतम शासन- प्रशासन वाली सरकार। न्यूनतम शासन करने वाला राजा सर्वश्रेष्ठ है। ये थॉरो महाशय वही हैं, जिनके विचारों से प्रभावित होकर महात्मा गांधी जी ने 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' चलाया। 'सविनय अवज्ञा' असल में थॉरो की ही सोच थी। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | |||
*[http://books.google.co.in/books?id=AHh3d4Xk9IAC&printsec=frontcover&dq=the+prince+machiavelli&hl=en&sa=X&ei=ASNbT_KsMMvLrQf00qSEDA&redir_esc=y#v=onepage&q=the%20prince%20machiavelli&f=false 'द प्रिंस' लेखक मैकियावेली] | |||
*[http://myloc.gov/Exhibitions/gettysburgaddress/Pages/default.aspx 'गॅटिस बर्ग में लिंकन का भाषण'] | |||
*[http://thoreau.eserver.org थॉरो का लेखन] | |||
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10:06, 10 मार्च 2012 का अवतरण
राज की नीति -क्या आप मुझे, अपने मकान में किराए पर एक कमरा दे सकते हैं ? ज़ाहिर है पाँच राज्यों के चुनावों से राजनीति का विषय भी गर्म रहा। इस बार अपराधियों की भागीदारी सत्ता में कम से कम हो; इस बात का काफ़ी प्रचार रहा। कई नेताओं ने अपने-अपने ज़ोर आज़माए हैं... ये सब तो ठीक लेकिन ये 'नेता' होता क्या है? जिस तरह किसी नौकरी के लिए बहुत सारी अहर्ताएँ पूरी होनी चाहिए, उसी तरह नेता बनने के लिए भी किसी योग्यता अथवा 'क्वालिफ़िकेशन' की ज़रूरत है? ये सवाल अनेक बार उठते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ Niccolò Machiavelli. जो 'पुनर्जागरण काल' (Renaissance 14वीं से 17वीं शताब्दी) में अपनी विवादास्पद पुस्तक 'द प्रिंस' के कारण बहुत चर्चित भी रहा और घृणा का पात्र भी बना